सिन्धु घाटी सभ्यता का पतन | सिंधु सभ्यता के पतन के कारण (Decline of Indus Valley Civilization)
सिन्धु घाटी सभ्यता का पतन (Decline of Indus Valley Civilization)
सिंधु सभ्यता के पतन के कारण
सिंधु घाटी सभ्यता का पतन कैसे हुआ
- लगभग 2300 ई. पू. में जन्मी सिन्धु घाटी की सभ्यता करीब 1750 ई० पूर्व तक जीवित रही।
- ईसा पूर्व अठाहरवीं सदी के अंत तक आते-आते तो इस प्रदेश के दो प्रमुख नगर हड़प्पा और मोहनजोदड़ो का तो बिल्कुल नाश हो चुका था।
- इस प्रदेश के अन्य केन्द्रों ने भी धीरे-धीरे हमेशा के लिए अपने पूर्व अस्तित्व को खो दिये।
- इस सभ्यता के अन्त होने का कारण निश्चित तौर पर अभी ज्ञात नहीं हो पाया है।
सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के संबंध मे दिये गए मत
A विदेशी लोगों ने आक्रमण
- अनुमान किया जाता है कि इस सभ्यता को विदेशी लोगों ने आक्रमण करके बर्बाद कर दिया। विद्वानों द्वारा ये मत दो बातों के आधार पर बताये जाते हैं-
- (क) मोहनजोदड़ो के ऊपरी स्तर पर पाये गये लगभग अड़तालीस नरकंकालों का अन्वेषण और (ब) ऋग्वेद में वर्णित वैदिक देवता इन्द्र का उल्लेख जिसने कई दुर्गों को बर्बाद किया।
- इस प्रदेश में पाये गये नरकंकालों का अध्ययन करने से पता चलता है कि इन पर तलवार जैसे किसी तेज हथियार से आक्रमण किया गया था।
- ये कंकाल आभूषणों से अलंकृत हैं। ऐसा लगता है कि वहां के लोगों को आक्रमण के कारण अचानक भागना पड़ा था। जल्दबाजी के कारण ये लोग अपने आभूषण भी नहीं उतार पाये होंगे। लेकिन किसी भी स्रोत से इन आक्रमणकारियों के बारे में हमें जानकारी नहीं हो पायी है।
- कई विद्वानों का कहना है कि ये आक्रमणकारी कोई अन्य नहीं बल्कि आर्य थे। इन विद्वानों के अनुसार ऋग्वेद में वर्णित इन्द्र ने ही अनेक दुर्गों को नष्ट किया।
- हरि युपीय नामक शहर की चर्चा ऋग्वेद में होने के कारण विद्वानों ने इसे हड़प्पा मान लिया है। सिन्धु क्षेत्र में स्थित इसी प्रसिद्ध हड़प्पा को आर्यों ने नष्ट किया ।
- सिन्धु सभ्यता के पतन के सम्बंध में उपर्युक्त विवेचना तर्क की कसौटी पर सत्य नहीं उतरती। हड़प्पा संस्कृति के आखिरी चरण में कुछ नये लोग यहां आये जरूर क्योंकि इस क्षेत्र से नये प्रकार के मिट्टी के बर्तन एवं हथियार मिले हैं।
- लेकिन इसका यह अर्थ कि ये लोग आक्रमण करने के उद्देश्य से योजना बनाकर यहां आये, सत्य नहीं प्रतीत होता अवशेषों से ऐसा नहीं लगता कि बाहरी लोग इतनी बड़ी संख्या में यहाँ आये कि सम्पूर्ण सभ्यता को पूर्णत: नष्ट कर दें।
- प्राचीन एवं मध्यकाल में कई शहरों के बारे में हमें जानकारी मिलती है कि आक्रमण होने से वही शहर हमेशा के लिए समाप्त हो गया जो केवल अपनी प्रशासनिक या धार्मिक विशेषता एवं स्वभाव के दृष्टिकोण से प्रमुख रहा।
- वैसे शहर जो मुख्य रूप से व्यापार के केन्द्र रहे हों और उसके आस-पास के क्षेत्रों में व्यापारिक सामग्री काफी पैदा की जाती हो या यातायात की सुविधा के कारण यहाँ व्यापारिक वस्तुएं बाहर से मंगाई जाती हों तो वैसे शहर पर आक्रमण का कोई विशेष असर अधिक दिनों तक नहीं पड़ेगा, क्योंकि किसी भी शहर की जिन्दगी का मुख्य आधार धन होता है।
- चालुक्यों की राजधानी कल्याणी पर आक्रमण जब हुआ तो मुख्य रूप से केवल प्रशासनिक विशेषता के कारण उसने हमेशा के लिए अपना पूर्व स्थान खो दिया लेकिन दक्षिण भारत में ही स्थित गोवा पर भी कई बार आक्रमण हुआ लेकिन व्यापारिक दृष्टिकोण से इसका इतना महत्त्व था कि इस पर आक्रमण होने और दुश्मनों द्वारा आग लगा देने पर भी यह न तो हमेशा के लिए बर्बाद हुआ और न इसकी शान शौकत में कोई कमी आयी।
- सिन्धु लोगों एवं आर्यों के बीच तो बड़े पैमाने पर युद्ध के अवशेष भी नहीं मिलते हैं। मोहनजोदड़ो के ऊपरी स्तर के नरकंकाल किसी एक ही काल से सम्बंध नहीं रखते हैं। अतः उनसे बड़े पैमाने पर जनसंहार का कोई संकेत नहीं मिलता।
- यह आज भी विवाद का विषय बना हुआ है कि सिन्ध प्रदेश पर आक्रमण बड़े पैमाने पर हुआ या नहीं। अगर आक्रमण हुआ तो ये आक्रमणकारी कौन थे?
- प्रसिद्ध इतिहासकार आर० एस० शर्मा के अनुसार, सिन्धु प्रदेश पर आक्रमण करने वालों की संख्या बहुत ज्यादा नहीं थी। प्रोफेसर शर्मा की यह उक्ति सही लगती है और परिणामस्वरूप हम कह सकते हैं कि बाहरी आक्रमण इस सभ्यता के पतन का एकमात्र कारण नहीं था। आक्रमणकारी तो आर्य ही लगते हैं जो इस समय पश्चिम से ईरान होते हुए भारत आकर यहां के सिन्धु के प्रदेश में बसने का प्रयास कर रहे थे।
- इनके आगमन से इनका सिन्धु के मूल निवासियों के साथ युद्ध होना स्वाभाविक लगता है। यहां यह स्पष्ट कर देना आवश्यक लगता है कि उपर्युक्त तथ्य के आधार पर नहीं कहा जा सकता है कि वैदिककाल के आर्यों के साथ सिन्धु प्रदेश के नये आर्यों के बीच कोई सम्बंध लगातार बना रहा।
B- बड़े पैमाने पर आग
- इस सभ्यता के पतन के सम्बंध में विद्वानों ने एक दूसरा मत भी दिया है। उनके अनुसार बड़े पैमाने पर आग लगने के कारण ही इस सभ्यता का विनाश हुआ है। अपने इस विचार के पक्ष में उन्होंने यह तर्क दिया कि सिन्धु प्रदेश के अधिकांश मकानों में लकड़ी का प्रयोग बड़े पैमाने पर होता था।
- लकड़ी तो स्वाभाविक रूप से आग का दुश्मन होती है। अतः किसी कारणवश वहां आग लगी होगी और देखते-देखते इसने विशाल अग्निकांड का रूप ले लिया। परिणामस्वरूप सम्पूर्ण प्रदेश जलकर राख हो गया होगा, तो कोई आश्चर्य नहीं। उपर्युक्त तथ्यों की सार्थकता खुदाई से प्राप्त सामग्री के आधार पर भी होती है।
- ईसा पूर्व 1700 ई. में ब्लूचिस्तान में स्थित नाल, घुंडई, राणा, डावरकोट आदि स्थानों से बड़े पैमाने पर राख पायी गयी है। इससे आग लगने वाली बात को कुछ हद तक प्रमाणित किया जा सकता है। वैसे सिन्धु घाटी में इस तरह का कोई प्रमाण हमें नहीं मिलता।
C -बड़े पैमाने पर महामारी
- बड़े पैमाने पर महामारी जैसे प्लेग, मलेरिया आदि फैलने के कारण भी जैसा कि कुछ विद्वानों का कहना है, इस सभ्यता का पतन हुआ होगा। इस महामारी के चलते उन्नति का मार्ग अवरुद्ध हो गया होगा और धीरे-धीरे इसका पतन हो गया होगा। लेकिन अफसोस इस बात का है कि इस प्रदेश में महामारी वाली बात किसी भी तरह प्रमाणित नहीं हो पाती है।
D विषैली वस्तु को फल समझकर खाना
कुछ लोगों का कहना है कि इस प्रदेश के लोग कुछ विषैली वस्तु को फल समझकर खाते गये और कुछ दिनों के पश्चात मौत के शिकार हो गये। लेकिन यह तथ्य भी बिना आधार का लगता है। इस तरह टुकड़े-टुकड़े जोड़कर सिन्धु सभ्यता के पतन का एक साफ चित्र बनाने का जो प्रयास है, वह सफल होता नहीं जान पड़ रहा है।
बड़ा आश्चर्य होता है यह देखकर कि इसी सिन्धु प्रदेश के पड़ोसी देश मिस्त्र में बिना किसी विशेष परिवर्तन में कोई-न-कोई राजा शासन करता रहा। वैसे कुछ आक्रमणकारी मिस्र में भी थे। ये लोग आर्य ही थे। इराक में भी आक्रमण हुए। आक्रमणकारियों के साथ यहां भाषा और पूजा करने की विधि में परिवर्तन भी हुआ लेकिन नगर बर्बाद नहीं हुए।
- ज्यादा से ज्यादा यही हुआ कि विशेष प्रकार की मान प्रतिष्ठा एक नगर से दूसरे नगर को मिलती रही। यहां एक बात बहुत ही महत्त्वपूर्ण लगती है कि जब किसी राजा के द्वारा भूमि में सिंचाई की व्यवस्था को ठीक से बरकरार रखने के लिए विशेष ध्यान नहीं दिया गया तो परिणामस्वरूप हम पाते हैं कि वह ऊपजाऊ भूमि फिर से रेगिस्तान बन गयी।
E रेगिस्तान होने से वहां पैदावार नहीं
- रेगिस्तान होने से वहां पैदावार नहीं हुई होगी पैदावार रुकने से आस-पास के लोगों को नया सामान बनाने के लिए कच्चा माल या खाने के लिए अन्न मिलेगा नहीं। फलस्वरूप उस भूमि के आधार पर अपना भरण-पोषण करने वाले लोग वह स्थान नहीं चाहने के बावजूद भी छोड़ देंगे।
क्या यह सम्भव नहीं कि उपर्युक्त स्थिति में ही सिन्धु प्रदेश के शहरों का विनाश हुआ हो?
क्या ऐसा नहीं हुआ होगा कि व्यापार की बढ़ोत्तरी के कारण कृषि व्यवस्था का ह्रास हुआ हो?
- उपर्युक्त बात पर प्रकाश डालते हुए डी० डी० कोसाम्बी (प्राचीन भारत की संस्कृति और सभ्यता; पृ० 97-98) का कहना है कि इस प्रदेश में नहरों की कमी का पता चलता है। ऐसा लगता है कि जिन नदियों के किनारे ये नगर बसे हुए थे उन नदियों ने अपना मार्ग बदल लिया हो, क्योंकि नदियों द्वारा मार्ग बदलने की बात सर्वविदित है। इसके कारण नदियों के किनारे बसे हुए व्यापारिक शहर उजड़ गये। खाने की वस्तुओं का भी अभाव होने लगा।
- फिर अगर आक्रमणकारियों द्वारा इस प्रदेश पर विजय पा लेने के दृष्टिकोण से इस पर विचार किया जाये तो कहा जा सकता है कि ये आक्रमणकारी कृषक नहीं थे। फलतः निर्दयी होकर इन्होंने बांधों को भी तोड़ दिया।
- बांधों के कारण ही बाढ़ की मिट्टी बहुत बड़े क्षेत्र में जमा होती थी और इस तरह उपजाऊ जमीन बन जाती थी। इस तरह यह प्रक्रिया अनाज के उत्पादन के अन्त का सूचक थी। इसी के कारण नगरों का भी अन्त हुआ। उत्पादन में कमी के कारण लोगों में गतिहीनता की बात पायी जाने लगती है और तब शहरी लोग विघटित होने लगे।
F भौगोलिक प्रक्रिया के परिणामस्वरूप
- कुछ अन्य विद्वानों ने भी इस सम्बंध में अपने विचार प्रकट किये हैं। इसके अनुसार समुद्रतल में भौगोलिक प्रक्रिया के परिणामस्वरूप समुद्र का जलस्तर काफी ऊँचा उठ गया। जलस्तर ऊँचा हो जाने के कारण सिन्धु प्रदेश के नगरों में पानी इतना चला गया कि यह सम्पूर्ण क्षेत्र ही डूब गया और इसका अन्त में विनाश हो गया।
- कहते हैं, 1700 ई० पू० के लगभग सिन्धु प्रदेश के आस-पास के देशों, जैसे, मित्र, मेसोपोटामिया आदि की आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गई।
- आर्थिक स्थिति खराब होने के पीछे राजनीतिक अस्थिरता को जिम्मेदार ठहराया गया है। इसके कारण सिन्धु प्रदेश के नगरों का व्यापारिक सम्बंध आस-पास के इन देशों से रुक गया या बिल्कुल कम हो गया।
- किसी भी नगर के लिए सबसे आवश्यक चीज व्यापार होता है क्योंकि उसी से धन की काफी प्राप्ति होती है। जब व्यापार पर ही आघात पहुंच जाएगा तो किसी भी नगर को बहुत दिनों तक अपना अस्तित्व बनाये रखना असम्भव है।
- आर० एस० शर्मा के अनुसार, जनसंख्या में वृद्धि एवं प्राकृतिक साधनों की कमी ने ही यहां के आर्थिक आधार को कमजोर कर दिया।
उपर्युक्त तथ्यों का अध्ययन करने पर ऐसा लगता है कि सिन्धु सभ्यता के पतन के लिए किसी एक कारण को ही जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। लेकिन आर्थिक संकट ने इस सभ्यता का विनाश किया, यह मत सबसे ज्यादा सत्य के करीब लगता है।
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