पेशवाओं के काल में मराठा शक्ति का विस्तार The expansion of Maratha power during the Peshwa period
पेशवाओं के काल में मराठा शक्ति का विस्तार
The expansion of Maratha power during the Peshwa period
- शिवाजी की सन् 1680 में मृत्यु उनके पुत्र शम्भाजी ने मराठा साम्राज्य को कमज़ोर कर दिया। सन् 1689 में मुगलों ने उसे पकड़ लिया और औरंगज़ेब के आदेश पर उसकी हत्या कर दी गई।
- अगले 30 वर्ष तक मराठे अपने अस्तिव संरक्षण के लिए संघर्षरत रहे। राजाराम, ताराबाई और पेशवा बालाजी विश्वनाथ के सहयोग से छत्रपति शाहू ने मुगलों का मुकाबला किया परन्तु इस काल में मराठा शक्ति का किंचित भी विस्तार नहीं हो सका।
- पेशवा बालाजी विश्वनाथ ने हिन्दू पद पादशाही (भारत में हिन्दू साम्राज्य की स्थापना) का स्वप्न अवश्य देखा था किन्तु उसे साकार करने का प्रयास उसके पुत्र पेशवा बाजीराव प्रथम ने किया था।
- बाजीराव ने मराठों की रक्षात्मक नीति को आक्रामक नीति में बदल दिया। उसने मुगल ठिकानों पर आक्रमण कर अब उन्हें रक्षात्मक नीति अपनाने के लिए बाध्य किया। उसने जर्जर होते हुए विशाल वृक्ष रूपी मुगल साम्राज्य की जड़ पर चोट करने के लिए अपने साहसी होल्कर, सिंन्धिया गायकवाड़ और भोंसले सहयोगियों को लेकर उसने उत्तर भारत की ओर अभियान किए।
- मराठा छत्रपति शाहू की भूमिका अब पृष्ठभूमि में चली गई और अब उसका स्थान पेशवा के नेतृत्व में मराठा राज्य संघ ने ले लिया |
- मराठों ने दक्षिण में महाराष्ट्र, कोंकण, और कर्नाटक में अपनी शक्ति का विस्तार किया। बड़ौदा में गायकवाड़, नागपुर में भोंसले, इन्दौर में होल्कर और ग्वालियर में सिन्धिया राज्यों की स्थापना कर मराठों ने अपनी शक्ति का विस्तार किया।
- पूना में रहते हुए पेशवा अब भारत की राजनीतिक गतिविधियों का प्रधान संचालक बन गया। सन् 1737 में बाजीराव दिल्ली की सीमा तक जा पहुंचा। उसने मुगलों के सबसे प्रतिष्ठित सेनानायक निज़ाम को कई बार करारी शिकस्त देकर अपनी शर्तों पर सन्धि करने के लिए विवश किया। मराठों के प्रभाव क्षेत्र में अत्यधिक विस्तार हुआ। अपने प्रभाव क्षेत्र में चौथ और सरदेशमुखी वसूल कर मराठों ने अपने संसाधनों में वृद्धि की.
- बाजीराव प्रथम की मृत्यु के बाद पेशवा बालाजी बाजीराव के काल में भी मराठा शक्ति का विस्तार जारी रहा। उत्तर भारत में मराठा प्रभाव क्षेत्र पंजाब तक फैल गया।
- नादिरशाह और अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों से छिन्न-भिन्न मुगल सत्ता अब नाम मात्र की ही रह गई थी। अब मराठों की नज़र दिल्ली के तख्त पर अधिकार करने पर लग गई।
- सन् 1761 में पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठों और अपने भारतीय सहयोगियों के साथ लड़ रहे अहमद शाह अब्दाली के बीच यही निर्णय होना था कि दिल्ली के तख्त पर किसका अधिकार होगा। मराठे इस युद्ध में पराजित हुए और उनका साम्राज्य विस्तार का स्वप्न भंग हो गया
- पेशवा माधवराव प्रथम और महादजी सिधिया ने मराठा शक्ति को पुनर्जीवित करने में सफलता प्राप्त की। व्यावहारिक दृष्टि से मराठे मुगलों के राजनीतिक उत्तराधिकारी बन बैठे थे। वास्तव में अंग्रेज़ों ने मुगलों को हराकर नहीं अपितु मराठों को हराकर भारत में अपना साम्राज्य स्थापित किया था।
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