वैदिक ग्रन्थों में वर्णित भौगोलिक क्षेत्र | Geographicla Area in Vedik Sahitya
वैदिक ग्रन्थों में वर्णित भौगोलिक क्षेत्र
- ऋग्वेद में आर्यों के आदि-देश, उनके प्रयाण स्थल, प्रस्थान का काल, मार्ग आदि का विवरण नहीं है।
- ऋग्वेद से ऐसा प्रतीत होता है कि सर्वप्रथम आर्य पूर्वी अफगानिस्तान तथा पंजाब में बसे थे।
- अफगानिस्तान की काबुल, स्वात, कुर्रम तथा गोमल नदियों और पंजाब की पांचों नदियों वितस्ता (झेलम), असिक्नी (चेनाब), परूष्णी (रावी), विपाशा (व्यास) तथा शुतुद्री (सतलज) नदियों का उल्लेख ऋग्वेद के मन्त्रों में बार-बार आया है।
- जिन अन्य नदियों का उल्लेख मिलता है उनमें सिन्धु सुषोमा (रावलपिंडी जिला), मरूदवृधा (जम्मू तथा काश्मीर), सरस्वती, दृषद्वती (रक्षी या चितांग), यमुना तथा गंगा सम्मिलित है।
- यमुना का तीन बार तथा गंगा का केवल एक बार उल्लेख मिलता है।
- गंगा के पूर्व की नदियों का उल्लेख नहीं मिलता है।
- ऋग्वेदिक आर्यों को पूर्व की भौगोलिक जानकारी न होने का एक अन्य प्रमाण यह है कि ऋग्वेद में पूर्वी खाद्यान्न चावल और पूर्वी पशु बाघ का उल्लेख नहीं मिलता है।
- ऋग्वैदिक लोगों को हिमालय की जानकारी थी क्योंकि सोम का पौधा ये हिमालय के मूजवत् शिखर से प्राप्त करते थे। इन्हें यमुना के दक्षिण की जानकारी नहीं थी क्योंकि विंध्य का उल्लेख नहीं मिलता है।
- समुद्र की जानकारी सौ पतवारों वाले जहाज से यात्रा करने के उल्लेख तथा भुज्यु के बेड़े के टूटने के उल्लेख से मिलती है, परन्तु अनेक विद्वान समुद्र का अर्थ जल-राशि से लेते हैं, और मानते हैं कि नौ यात्रा, नावों द्वारा नदियों को पार करने तक सीमित थी।
- उत्तरवैदिक कालीन ग्रन्थ आर्यों के बाद के प्रसार को बताते हैं जिससे हमें उनके भौगोलिक ज्ञान की जानकारी होती है।
- ऋग्वैदिक कालीन आर्यों को केवल अफगानिस्तान, पंजाब तथा दिल्ली क्षेत्र का ज्ञान था परन्तु अब आर्यों की जानकारी में भारत के अधिकांश भाग आ गये थे।
- कुरुक्षेत्र इस युग की सभ्यता का केन्द्र था, मध्यदेश भी इससे संबंधित था।
- मध्यदेश, सरस्वती से लेकर गंगा के दोआब तक विस्तृत था और कुरू, पांचाल तथा उशीनर आर्य समूह द्वारा अधिकृत था।
- सरयू और वरणावती से सिंचित कोसल एवं काशी, विदेहों के उपनिवेश गंडक के पूरब वाली दलदलों तथा विदर्भों से अधिकृत वर्धा की तराई का आर्यों को सम्यक ज्ञान हो चुका था।
- पूर्व बिहार में अंग दक्षिण बिहार में मागध जैसी मिश्रित जातियों, उत्तर बंगाल में पुत्र, तथा गोदावरी की तराई में स्थित आन्ध्रों का उन्हें ज्ञान था। विंध्य के जंगालों में पुलिन्द और शबर इस काल की भौगोलिक जानकारी का ज्ञान इस काल में प्रयुक्त चित्रित धूसर मृणभाण्डों से भी लगता है।
- चित्रित धूसर भाण्डों का प्रयोग करने वाली लगभग 315 बस्तियां उत्खनित हुई है। इन बस्तियों के उत्खनन से आर्यों के प्रसरण का सम्यक अध्ययन होता है।
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