गुप्तकालीन सैन्य संगठन |गुप्त कालीन पुलिस संगठन |गुप्त कालीन न्याय व्यवस्था |गुप्त कालीन राजस्व व्यवस्था | Gupt Kalin Sainya Sangathan
गुप्तकालीन सैन्य संगठन |गुप्त कालीन पुलिस संगठन |गुप्त कालीन न्याय व्यवस्था |गुप्त कालीन राजस्व व्यवस्था | Gupt Kalin Sainya Sangathan
गुप्तकालीन सैन्य संगठन
सैनिक विभाग केन्द्र का सबसे महत्त्वपूर्ण विभाग था। सम्राट ही सेनाध्यक्ष होता था। वृद्ध सम्राट की सेना की अध्यक्षता युवराज करता था। राजा के नीचे प्रधान सेनापति होता था जिसे महादण्डनायक कहा जाता था। गजसेना और अश्वसेना सेना के मुख्य अंग थे। गजसेना के प्रधान को महापीलुपति कहा जाता था। इसके नीचे कई उपाध्यक्ष होते थे जिन्हें पीलुपति कहते थे। अश्वसेना के अध्यक्ष को महाश्वपति कहा जाता था। प्रयाग-प्रशस्ति में फरसा (परशु), वाण (शर), शंकु तोमर भिन्दिपाल आदि युद्ध हथियारों का उल्लेख मिलता है।
गुप्त कालीन पुलिस संगठन
- गुप्तकाल में पुलिस की समुचित व्यवस्था थी। पुलिस विभाग का बड़ा अधिकारी दण्डपाशिक कहलाता था। साधारण कर्मचारियों को चाट तथा भाट कहा जाता था। पहरेदार को रक्षिन् कहा जाता था। फाहियान के यात्रा वृतान्त से पता चलता है कि उस समय कोई चोरी डकैती नहीं होती थी। इससे पता चलता है कि उस समय पुलिस प्रशासन काफी कठोर था। साम्राज्य में शान्ति व्यवस्था थी। चोरी, डकैती, हत्या आदि अपराध बहुत कम होते थे। गुप्तचर विभाग काफी दक्ष था। इसके कर्मचारी दूत कहे जाते थे। पुलिस और गुप्तचर काफी सतर्क रहते थे।
गुप्त कालीन न्याय व्यवस्था
- गुप्त शासन में न्याय विधान पूर्णतः विकसित था। न्याय प्रणाली बड़ी उत्तम थी। न्याय विभाग का सर्वोच्च अधिकरी सम्राट होता था। विभिन्न न्यायालयों के विवादपूर्ण मामलों में सम्राट का निर्णय ही अन्तिम माना जाता था।
नारद स्मृति के अनुसार उस समय चार प्रकार के न्यायालय थे
(3) गुण न्यायालय और
- गुप्त सम्राटों का दण्ड विधान कठोर नहीं था। मृत्युदण्ड किसी को भी नहीं दिया जाता था देशद्रोहियों अथवा बार-बार चोरी करने वाले अपराधियों का हाथ काट दिया जाता था। प्रायः अपराधियों को आर्थिक दण्ड ही दिया जाता था। दण्ड की मात्रा अपराधी की आर्थिक स्थिति के अनुसार न्यायाधीश द्वारा निश्चित की जाती थी। फाहियान के अनुसार अपराध बहुत कम होते थे। गुप्त सम्राट न्यायक्षेत्र में बड़े उदार थे। वे प्रायः सभी प्रकार के अपराधियों को न्यायालय से दण्ड पाने के उपरान्त क्षमा याचिका प्रस्तुत करने पर क्षमा कर दिया करते थे। बड़े-बड़े भीषण अपराध भी क्षमा याचना करने पर प्रायः क्षमा कर दिये जाते थे।
गुप्त कालीन राजस्व व्यवस्था
- राज्य की आय के कई प्रमुख साधन थे। सबसे अधिक आय भूमि कर से होती थी। इसके अतिरिक्त तत्कालीन साहित्य और लेखों में आय के कई और साधनों का भी उल्लेख मिलता है; जैसे- नियमित कर, सामयिक कर, अर्थ दण्ड, राज्य सम्पत्ति से आय और अधीनस्थ सामन्तों से प्राप्त उपहार नियमित कर के अन्तर्गत उद्रंग (भूमि कर), उपरिकर (भोगकर), भूतोवात प्रत्याय, विष्टी तथा अन्य प्रकार के कर थे। राजा उपज का छठा भाग कर के रूप में लेता था। नगरों तथा गाँवों में बाहर से आने वाले माल पर चुँगी लगती थी। बंजर भूमि, जंगलों, चरागाहों, नमक की खानों पर राज्य का स्वामित्व होता था। यह भी आय के साधन थे।
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