गुप्तों का मूल निवास स्थान | Gupt Vansh Ka Mul Niwas
गुप्तों का मूल निवास स्थान
गुप्तों की जाति के ही समान उनके मूल निवास स्थान के विषय में भी विद्वानों में काफी मतभेद है।
इत्सिंग (I-tsing) के विवरण के आधार पर अनेक विद्वानों का कहना है कि गुप्तों का आदि स्थान मगध था।
- इत्सिंग का कहना है कि चे-लि-कि- तो नामक राजा ( श्रीगुप्त) ने मृगशिखावन ( सारनाथ) के समीप चीनी यात्रियों के लिए एक मन्दिर का निर्माण करवाया तथा उसके प्रतिपालन के लिए चौबीस ग्राम दान में दिए। यह राजा चूँकि चीनी यात्री से बोध गया में मिला था, अत: ऐसा कहा जाता है कि वह मगध का शासक था। परन्तु इस बात से उसके मगध के शासक होने का प्रमाण नहीं मिलता है। इससे तो इसी बात की सम्भावना अधिक प्रतीत होती है कि उसका शासन पूर्वी उत्तर प्रदेश में था क्योंकि उसने बनारस के पास एक मन्दिर का निर्माण करवाया था।
- मुद्राओं एवं अभिलेखों के प्राप्ति स्थान से भी इस सम्भावना की पुष्टि होती है। चन्द्रगुप्त प्रथम की अधिकांश मुद्राएँ उत्तर प्रदेश के अयोध्या, लखनऊ, सीतापुर, टांडा, गाजीपुर एवं बनारस आदि स्थानों में प्राप्त हुई हैं। बिहार से सिर्फ एक मुद्रा मिली है। इस प्रकार स्पष्ट है कि गुप्त स्वर्ण मुद्राएँ अधिकांश पूर्वी उत्तर प्रदेश में ही मिली हैं। इससे यह साफ जाहिर होता है कि प्रारम्भिक गुप्त सम्राटों का पूर्वी उत्तर प्रदेश के साथ अन्य प्रदेशों की अपेक्षा अधिक घनिष्ठ सम्बन्ध था।
- अभिलेखीय प्रमाणों से भी इसी बात का संकेत मिलता है कि गुप्तों का निवास स्थान पूर्वी उत्तर प्रदेश में ही था। प्रारम्भ से लेकर स्कन्दगुप्त के काल तक के 15 अभिलेखों में से 8 पूर्वी उत्तर प्रदेश से मिले हैं। बिहार में सिर्फ दो अभिलेख (समुद्रगुप्त का गया एवं नालन्दा ताम्रपत्र अभिलेख) मिले हैं, इनकी विश्वसनीयता भी संदेहास्पद है। बिहार और बंगाल (5) में मिले अभिलेख दानपत्र हैं, जबकि अन्य महत्त्वपूर्ण अभिलेख (प्रयाग प्रशस्ति) पूर्वी उत्तर प्रदेश में ही मिले हैं।
- पुराणों में मिलने वाली गुप्तवंश सम्बन्धी सूचनाओं से भी सिद्ध होता है कि गुप्त पूर्वी उत्तर प्रदेश के ही थे। वायुपुराण के अनुसार "गुप्तवंशीय नरेश अनुगंगा, प्रयाग, साकेत और मगध को भोगेंगे।"
- विष्णुपुराण में भी कहा गया है कि " अनुगंगा प्रयाग मागधागुन्तापश्च भौक्ष्यन्ति" अर्थात् प्रयाग तक विस्तृत गया के तटवर्ती प्रदेश को मागध और गुप्त भोगेंगे, इसमें गुप्तों और लिच्छवियों के संयुक्त राज्य का वर्णन है और लिच्छवियों को मागध कहा गया है।
- इससे स्पष्ट है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रयाग तक विस्तृत भूखण्ड और मागधों के साह-शासक होने की वजह से मगध और प्रयाग- दोनों प्रदेश संयुक्त राज्य के अंग थे अतः गोयल महोदय का कहना है कि गुप्तादिराज्य मगध के पश्चिम में था और उसका केन्द्र प्रयाग था।
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