पुरुगुप्त | कुमारगुप्त द्वितीय | बुद्धगुप्त | अंतिम गुप्त शासक | Gupt Vansh Ke Antim shasak

 पुरुगुप्त |  कुमारगुप्त द्वितीय | बुद्धगुप्त

पुरुगुप्त |  कुमारगुप्त द्वितीय | बुद्धगुप्त | अंतिम गुप्त शासक | Gupt Vansh Ke Antim shasak



पुरुगुप्त तथा कुमारगुप्त द्वितीय

 

  • स्कन्दगुप्त की मृत्यु 467 ई. के लगभग हुई। उसके बाद पुरुगुप्त सिंहासन पर बैठा। वह संभवतः स्कन्दगुप्त का सौतेला भाई था और कुमारगुप्त की मुख्य रानी अनन्तदेवी से उत्पन्न हुआ था। उसके सिक्कों से विदित होता है कि उसने 'श्रीविक्रमऔर 'प्राकाशादित्यके विरुद धारण किये थे।
  • इसी काल में कुमारगुप्त द्वितीय नाम के एक और गुप्त राजा का उल्लेख आया है। वह 474 ई. में शासन कर रहा था। इन दोनों का एक-दूसरे से क्या सम्बन्ध थायह कहना कठिन है। कुछ विद्वानों का अनुमान है कि वह स्कन्दगुप्त का पुत्र और उत्तराधिकारी था। उसे हटाकर पुरुगुप्त ने सिंहासन प्राप्त कर लिया था। अन्य विद्वानों की कल्पना है कि वह पुरुगुप्त का पुत्र रहा होगा और उसके बाद सिंहासन पर बैठा। इन दोनों राजाओं का शासनकाल अत्यन्त सीमित था।

 

बुद्धगुप्त कौन था 

 

  • पुरुगुप्त के बाद बुद्धगुप्त सिंहासन पर बैठा। उसके अनेक उत्कीर्ण लेख मिले हैं। वह 477 ई. में शासन कर रहा था। उसने सम्भवतः बीस वर्ष अथवा उससे कुछ अधिक काल तक शासन किया। उसने साम्राज्य में शान्ति और व्यवस्था कायम रखी। मालवागुजरात और बंगाल आदि प्रांतों पर उसका आधिपत्य कायम रहा। फिर भी उसके काल में गुप्त साम्राज्य की शक्ति और प्रतिष्ठा कम होने लगी थी। दूरस्थ प्रान्तों के शासकों ने अपनी शक्ति बढ़ा ली थी और उनमें से अनेक केवल नाममात्र के लिए गुप्त सम्राट का प्रभुत्व स्वीकार करते थे। बुद्धगुप्त की मृत्यु 500 ई. के लगभग हुई होगी।

 

अंतिम गुप्त शासक

 

  • बुद्धगुप्त के बाद उसका भाई नरसिंहगुप्त सिंहासन पर बैठा। उसके बाद कुमारगुप्त तृतीय तथा विष्णुगुप्त शासक हुए। इन तीनों ने मिलकर लगभग 570 ई. तक राज्य किया होगा। 
  • इसी काल में वैन्यगुप्त तथा भानुगुप्त दो अन्य गुप्त हुए। उनका गुप्त वंश की मुख्य शाखा से क्या सम्बन्ध थायह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता। 
  • भानुगुप्त का केवल एक उत्कीर्ण लेख एरन (मध्य प्रदेश के सागर जिले में) मिला है। उससे पता चलता है कि भानुगुप्त तथा उसके एक करद सामन्त गोपराज ने एक युद्ध में महान पराक्रम का परिचय दिया। सम्भवतः यह युद्ध हूणों के विरुद्ध लड़ा गया था युद्ध में गोपराज मारा गया और उसकी पत्नी सती हो गयी। 
  • गुप्तों को मुख्य शाखा में नरसिंह गुप्त जिसका उल्लेख ऊपर किया गया है, अन्तिम महान् शासक हुआ। उसने बालादित्य की उपाधि धारण की।
  • नरसिंहगुप्त के शासनकाल में गुप्त साम्राज्य पर अनेक विपत्तियाँ आयीं। मालवा में यशोधर्मन नाम का एक प्रतापी विजेता हुआजिसने गुप्त साम्राज्य को भारी क्षति पहुँचायी और अनेक प्रदेशों पर अधिकार कर लिया। उसके सम्बन्ध में अधिक विस्तार से हम आगे बतायेंगे। 
  • इसी काल में मिहिरकुल हूण ने भी साम्राज्य पर बार-बार आक्रमण किये और नरसिंहगुप्त को कर देने पर बाध्य किया। हूण विजेता ने जनता पर भयंकर अत्याचार भी किये। विक्रमादित्य और स्कन्दगुप्त का वंशज इस अपमान को कैसे सहन कर सकता था। युवान च्वांग के वर्णन से मालूम होता है कि नरसिंहगुप्त बालादित्य ने मिहिरकुल पर पूर्ण विजय प्राप्त की और उसको बन्दी बना लियाकिन्तु अन्त में उसे छोड़ दिया।
  • युवान च्वांग के वर्णन से मालूम होता है कि नरसिंह बौद्ध धर्म का संरक्षक था। उसने नालन्दा में एक बौद्ध विहार का निर्माण कराया। न
  • रसिंह गुप्त के उत्तराधिकारी दुर्बल निकले और पतन की प्रक्रिया को न रोक सके। उनके समय में गुप्तों का भाग्य पूर्ण तेजी से अस्ताचल की ओर जाने लगा। चारों ओर आन्तरिक विद्रोह उठ खड़े हुए। परिणामस्वरूपसमुद्रगुप्त और चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के बाहुबल से निर्मित गुप्त साम्राज्य पतन के गर्त में डूब गया।

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पुरुगुप्त |  कुमारगुप्त द्वितीय | बुद्धगुप्त | अंतिम गुप्त शासक

गुप्त साम्राज्य के पतन के कारण

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