इस अत्यधिक विस्तृत संस्कृति में अत्यल्प
परिवर्तन मिलता है।
इस सभ्यता की प्रमुख विशेषता इसका नगर विन्यास है, जो समकोणीय संरचना पर आधारित है।
भवन
पकी मिट्टी की ईंटों से बनाये गये हैं, सड़कें
तथा गलियां सुनियोजित हैं। अधिकतर भवनों में उत्कृष्ट भूमिगत जल निकास व्यवस्था
मिलती है।
सिन्धु सभ्यता के लगभग एक हजार से अधिक स्थलों में से आठ नगरों को
प्रमुख माना गया है।
1
मोहनजोदड़ो
यह नगर सिन्ध के लरकाना जिले अब पाकिस्तानमें
सिन्धु नदी के तट पर स्थित है। इसका नगर- विन्यास समकोणीय संरचना पर आधारित है।
गढ़ी एक टीले पर स्थित है जिसके नीचे नगर विस्तृत है। नगर की मुख्य सड़कें 33 फीट तक चौड़ी हैं और एक-दूसरे को
समकोण पर काटती हुई नगर को आयताकार खण्डों में विभाजित करती हैं।
इस प्रकार की
योजना प्रणाली समकालीन मिस्र या मेसोपोटामिया में अज्ञात थीं।
नगर में सुनियोजित
गलियों की व्यवस्था मिलती है। सड़कों तथा भवनों में पकी ईंटों से निर्मित उत्कृष्ट
भूमिगत जल निकास व्यवस्था मिलती है।
भवनों में कूड़ेदान या कूड़ापात्र तथा
स्नानागार भी मिले हैं, स्नानागारों को नालियों की सहायता से
सड़कों में बनी मुख्य जल निकास व्यवस्था से जोड़ा गया है।
यहां भवन निर्माण में
निश्चित माप की ईंटों का प्रयोग किया गया है लेकिन पत्थर के भवन का कोई चिह्न नहीं
मिलता है।
अधिकतर भवनों में दो या अधिक मंजिल मिलती हैं किन्तु सामान्यतः योजना एक
सी ही है-एक वर्गाकार आंगन उसके चारों ओर कमरे, प्रवेश-द्वार
पिछले हिस्से से, सड़क की ओर खिड़कियों का ना होना, भवन में स्नानागार तथा कूऐं का
प्रावधान होना।
मोहनजोदड़ो में दो कमरे के भवन भी मिले हैं ये संभवतः समाज के गरीब
वर्ग से संबंधित थे।
मोहनजोदड़ो का मुख्य आकर्षणय हां स्थित वृहत स्नानागार है, यह ईंटों से निर्मित है और इसमें जल
भरने तथा निकासी का प्रावधान मिलता है।
वृहत स्नानागार के समीप ही एक विशाल
अन्नागार मिला है जो उस समय का प्रमुख भण्डारगृह रहा होगा।
अन्नागार के पास ही एकल
कक्षों की बैरक प्रकार कतारें मिलती हैं, ये
संभवतः दासों के आवास रहे होंगे।
खुदाई से पता चला है कि मोहनजोदड़ो कम से कम सात
बार बाढ़ से क्षतिग्रस्त और पुनर्निमित हुआ था।
यहां से कांस्य औजारों के विभिन्न
प्रकार प्राप्त हुए हैं और छोटे आकार की ग्यारह प्रस्तर प्रतिमाऐं भी मिली हैं।
संदिग्ध स्तर से घोड़े के प्रमाण भी मिले हैं।
मोहनजोदड़ो से बुना हुआ सूत का
टुकड़ा तथा कपड़े की छाप अनेक वस्तुओं में मिली है।
मोहनजोदड़ो में असुरक्षा के कुछ
चिह्न मिलते हैं जिनमें विभिन्न स्थानों में आभूषणों का दबाया जाना, एक स्थान में कटे हुए मुंडों का
प्राप्त होना और नये प्रकार के हथियारों का मिलना शामिल हैं, यहां बाद के काल के आधे दर्जन से अधिक
अस्थिपंजर इंगित करते हैं कि मोहनजोदड़ो में संभवतः आक्रमण हुआ
था।
झुंड में पड़े अस्थिपंजर तथा कूऐं की सीढ़ियों में पड़ी एक स्त्री का
अस्थिपंजर स्पष्ट करता है कि इन मौतों के पीछे आक्रमणकारी थे।
2
हड़प्पा
यह नगर पंजाब प्रांत अब पाकिस्तान के मोण्टगोमरी
जिले में रावी नदी के किनारे स्थित है। है।
मोहनजोदड़ो की भांति इसका नगर विन्यास
भी समकोणीय संरचना पर आधारित है।
गढ़ी एक टीले पर स्थित है जिसके नीचे नगर विस्तृत
है। नगर की मुख्य सड़कें 33 फीट तक चौड़ी हैं और एक-दूसरे को
समकोण पर काटती हुई नगर को आयताकार खण्डों में विभाजित करती हैं। इस प्रकार की
योजना प्रणाली समकालीन मिस्र या मेसोपोटामिया में अज्ञात थीं।
नगर में सुनियोजित
गलियों की व्यवस्था मिलती है। सड़कों तथा भवनों में पकी ईंटों से निर्मित उत्कृष्ट
भूमिगत जल निकास व्यवस्था मिलती है।
भवनों में कूड़ेदान या कूड़ापात्र तथा स्नानागार
भी मिले हैं, स्नानागारों को नालियों की सहायता से
सड़कों में बनी मुख्य जल निकास व्यवस्था से जोड़ा गया है।
यहां भवन निर्माण में
निश्चित माप की ईंटों का प्रयोग किया गया है लेकिन पत्थर के भवन का कोई चिह्न नहीं
मिलता है। अधिकतर भवनों में दो या अधिक मंजिल मिलती हैं किन्तु सामान्यतः योजना एक
सी ही है।
हड़प्पा के अन्नागार की कतारें उल्लेखनीय हैं यहां छह-छह अन्नागारों की
दो कतारें मिली हैं, और यहां भी मोहनजोदड़ो की भांति समीप
ही छोटे कक्ष निर्मित मिलते हैं।
गढ़ी के दक्षिण-पश्चिम में स्थित कब्रिस्तान
इंगित करता है कि एक विदेशी समूह ने हड़प्पा को नष्ट किया था।
3 चन्हूदाड़ो
यह नगर मोहनजोदड़ो से 80 मील दक्षिण में स्थित है। यहां गढ़ी
नहीं मिली है। चन्हूदाड़ो मनके बनानेवालों की कला का केन्द्र था यहां सोने, चांदी, तांबे, स्टेटाइट तथा शैल के मनके बनाये जाते
थे जिनका उपयोग सिन्धु नागरिक तो करते ही थे संभवतः ये व्यापार की भी महत्वपूर्ण
सामग्री थे।
पुरातात्विक प्रमाणों से पता चलता है कि चन्हूदाड़ो में दो बार भीषण
बाढ़ आयी थी जिसने नगर को काफी क्षति पहुचायी थी।
चन्हूदाड़ो के उत्खनन एक छोटी दवात
मिली है जिसे पुराविदों ने स्याहीदान से समीकृत किया है।
मोर की आकृति वाले
मृणभाण्ड भी चनहूदाड़ो की विशेषता रही है।
4 कालीबंगन
यह नगर राजस्थान में वर्तमान में सूखी हुई घगगर
नदी के किनारे स्थित था ।
कालीबंगन में गढ़ी तथा निचला नगर दोनों ही प्राचीरयुक्त
हैं।
गढ़ी में स्थित एक प्लेटफॉर्म में मिट्टी के गढ्ढे या अग्निवेदी की कतारें
हैं जिनमें राख तथा कोयला भरा है जबकि दूसरे प्लेटफॉर्म में पकी मिट्टी की ईंटों
से निर्मित गढ्ढे में हड्डियां मिलती हैं।
ये उदाहरण सिन्धु सभ्यता में अग्निपूजा
तथा बलिप्रथा की ओर संकेत करते हैं। कालीबंगन सिन्धु सभ्यता का एक प्रमुख नगर था, नगरीय जीवन की सभी सुविधाऐं यहां मिलती हैं अनेक भवनों में अपने
कूऐं थे।
कालीबंगन का पूर्व-हड़प्पीय चरण, हड़प्पाकाल
के विपरीत राजस्थान में खेत की जुताई को दर्शाता है।
5 लोथल
लोथल नामक नगर गुजरात में कैम्बे की खाड़ी के
समीप स्थित है।
लोथल सिन्धु सभ्यता का एकमात्र नगर है जहां हमें बन्दरगाह या
गोदीबाड़ा मिला है।
इस बन्दरगाह की प्राप्ति से सिन्धु नागरिकों की सामुद्रिक
गतिविधियों एवं विदेशी व्यापार की पुष्टि होती है।
धान भी केवल रंगपुर और लोथल में
ही मिला है अतः प्रमाणित होता है कि कम से कम 1800
ईसा पूर्व से चावल का प्रयोग करते थे। और रंगपुर के साथ एक अन्य समानता यह भी है
कि लोथल भी मनके बनानेवालों का केन्द्र था, यहां
सोने, चांदी, तांबे, स्टेटाइट शैल आदि के बनाये जाते थे।
लोथल के एक संदिग्ध स्तर से घोड़े की मृणमूर्ति के प्रमाण भी मिले हैं।
लोथल से
हमें कालीबंगन की भांति अग्निपूजा के संकेत भी मिले हैं।
6
सूरकोटडा
गुजरात में अहमदाबाद से लगभग 270 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में स्थित था।
यहां की गढ़ी तथा निचला नगर दोनों ही कालीबंगन की भांति प्राचीर से घिरे हुए हैं।
नगरीय जीवन की सुविधाऐं यहां भी दिखाई देती हैं। उत्खननकर्ताओं ने यहां से घोड़े
के अस्थि-अवशेष प्राप्त किये हैं। हांलाकि हम जानते हैं कि घोड़ा सिन्धु नागरिकों
को अज्ञात था पुराविदों का मानना है कि कि यह एक अपवाद था और यह किस तरह यहां आया
इस बात में अटकलें हैं।
7
बनवाली
बनवाली नामक नगर वर्तमान में सूखी हुई सरस्वती
घाटी में स्थित है।
बनवाली में भी कालीबंगन, कोटदीजी
और हड़प्पा की भांति ही दो सांस्कृतिक चरण-पूर्व हड़प्पीय और हड़प्पीय मिलते हैं।
बनवाली में सड़क तथा जल निकास प्रणाली के भी प्रमाण मिले हैं। यहां से पर्याप्त
मात्रा में जौ की प्राप्ति हुई है तथा सरसों के प्रमाण भी मिले हैं।
8 धौलावीरा
धौलावीरा नामक स्थल की खोज आर. एस. बिष्ट
द्वारा 1988-89 में की गयी थी। यह स्थल गुजरात में
भुज से लगभग 250 किलोमीटर दूर स्थित है।
इस नगर का नगर
विन्यास सिन्धु सभ्यता के अन्य नगरों से थोड़ा अलग है। यहां मध्य में गढ़ी निर्मित
मिलती है जिसके बाद मध्य का नगर और फिर निचला नगर मिलते हैं। ये सभी पृथक-पृथक रूप
से प्राचीरयुक्त हैं।
गढ़ी से बाहर की ओर योजनानुसार गलियां निकली हैं। धौलावीरा
की प्रमुख विशेषता यह है कि यहां विश्व की प्राचीनतम जल संरक्षण प्रणाली के दर्शन
होते हैं।
उपग्रह से प्राप्त तस्वीरों से पता चलता है कि यहां एक विशाल भूमिगत
जलाशय था जिसमें वर्षा का पानी इकठ्ठा होता था, हमें
नगर की प्राचीरों में ऐसे प्रमाण मिलते हैं जिनसे पता चलता है कि पानी यहां से
इकठ्ठा होकर इस जलाशय में चला जाता था।
घौलावीरा की एक अन्य विशेषता यह है कि यहां
से 10 विशाल प्रस्तर अभिलेख मिले हैं, संभवतः ये नगर की विभिन्न सड़कों को
इंगित करने वाले साइनबोर्ड रहे हों।
Post a Comment