सिन्धु घाटी की सभ्यता (3250 ई. से 1750 पू० तक
) (Indus Valley Civilization)
हड़प्पा सभ्यता Haddapa Sabhyata
सिन्धु घाटी की सभ्यता सामान्य परिचय
सिन्धु घाटी की सभ्यता जिसे हड़प्पा सभ्यता और
सिन्धु सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है, के काल निर्धारण के संबंध में कुछ
विद्वानों का मत है कि यह सभ्यता नागरीय तथा व्यापार प्रधान होने के कारण वैदिक
सभ्यता का परिवर्द्धित स्वरूप है। उपर्युक्त मत का विरोध करते हुए कुछ अन्य
इतिहासकारों का कहना है कि यह सभ्यता वैदिक काल से बहुत प्राचीन है।
सिन्धु घाटी की सभ्यता का नाम एवं खोज (Name and
Search of Indus Valley Civilization)
सिन्धु घाटी की सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता क्यों कहा जाता है ?
“सिन्धु सभ्यता”, “सिन्धु घाटी की सभ्यता" और
"हड़प्पा सभ्यता" ये तीनों पर्यायवाची नाम साधारण तौर से इसी सभ्यता के
लिए प्रयोग किये जाते हैं।
1921 से पहले प्रायः यही माना जाता था कि आर्यों के समय
से ही भारतीय सभ्यता की कहानी शुरू होती है। लेकिन कुछ विद्वानों एवं भारतीय
पुरातत्व विभाग के सहयोग से एक ऐसी प्राचीनतम सभ्यता की जानकारी हुई जिसने भारतीय
इतिहास को और प्राचीन बना दिया।
आरम्भ में जब 1921 ई. में आधुनिक पंजाब के पश्चिमी
भाग में स्थित हड़प्पा नामक स्थान से इस प्राचीन सभ्यता की जानकारी हुई तो इसी
स्थान के दक्षिण में स्थित मोहनजोदड़ो (मुर्दों का नगर) की खुदाई भी हुई। इसके
फलस्वरूप यह मान लिया गया कि इस सभ्यता का प्रसार सिन्धु घाटी तक था। अतः शुरू में
इसे सिन्धु घाटी की सभ्यता कहकर पुकारा गया। लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई इस
सभ्यता पर खोज जारी रही।
कुछ दिनों के बाद फिर पता चला कि यह सभ्यता सिन्धु घाटी
तक ही नहीं बल्कि इस घाटी की सीमाओं से पार भी दूर-दूर तक फैली थी। इसका फैलाव
आधुनिक राजस्थान, हरियाणा, पूर्व पंजाब और गुजरात तक पाया गया। इस भौगोलिक विस्तार को ध्यान में
रखने के पश्चात ऐसा लगने लगा कि इसे केवल सिन्धु घाटी की सभ्यता कहना पर्याप्त
नहीं। तब इसके लिए "हड़प्पा सभ्यता" का प्रयोग किया गया।
हड़प्पा एक
स्थान का नाम है जो आधुनिक पंजाब में रावी नदी के बायें तट पर स्थित है। यह सभ्यता
लगभग नौ सौ पचास मील उत्तर से दक्षिण तक फैली थी। हड़प्पा नामक स्थल में ही सबसे
पहले इस सभ्यता की जानकारी मिली। अत: इस सभ्यता का नाम हड़प्पा सभ्यता रख दिया गया।
सिन्धु घाटी की सभ्यता के विदेशों से सम्बंध
सिन्धु घाटी की सभ्यता के
सम्बंध में जितने भी प्रश्न उठते हैं उनमें सबसे महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह है कि
क्या इस सभ्यता के काल (2300 ई० पूर्व से 1750 ई० पू० तक) में जो दूसरी सभ्यताएं
विश्व में थीं उससे इसका कोई सम्बंध था ?
जब हम इस सभ्यता की तुलना सुमेर की
सभ्यता से करते हैं तो दोनों में काफी मेल पाते हैं। दोनों क्षेत्रों का आपसी
सम्बंध ही इसका प्रधान कारण हो सकता है। मिट्टी एवं अस्थि की बनी हुई अनेक प्रकार
की वस्तुएं तथा मुहरें दोनों प्रदेशों में एक ही जैसी मिली हैं। फलतः हम निष्कर्ष
निकाल सकते हैं कि सिन्धु घाटी एवं सुमेर के बीच काफी घनिष्ठ सम्बंध रहा होगा।
प्रसिद्ध इतिहासकारों का भी यही मत है। हॉल नामक विद्वान के अनुसार सभ्यता के
क्षेत्र में सुमेर भारत का ऋणी है। लेकिन कुछ दूसरे विद्वान जैसे गोर्डन चाइल्ड
तथा मैक्डोनल्ड आदि का कहना है कि सिन्धु सभ्यता ही ऋणी है सुमेर सभ्यता की।
इन क्षेत्रों से प्राप्त ताम्बे की
कुल्हाड़ियों के आधार पर ही इन क्षेत्रों के बीच एक दूसरे से सम्बंध की बात
इतिहासकारों के द्वारा बतायी गयी है।
सिन्धु घाटी में पाये गये पिनों के समान इटली
में भी खुदाई से ताम्बे की अत्यन्त प्राचीन पिन मिली है। खुदाई से प्राप्त इसी तरह
की वस्तुओं के आधार पर विद्वानों का मत है कि सिन्धु क्षेत्र का सम्बंध मिस्र से
भी था। उपर्युक्त देशों का सम्बंध सिन्धु क्षेत्र के साथ, जैसा कि पुरातात्त्विकों का कहना है, व्यापार के माध्यम से था। फलतः ये
क्षेत्र निश्चित रूप से एक दूसरे की संस्कृति से भी प्रभावित हुए होंगे।
सिन्धु सभ्यता का काल सिन्धु घाटी में प्राप्त
प्राचीन सामानों में ताम्बे और पत्थर के बने सामानों की मात्रा बहुत ज्यादा रहने
के कारण इसे ताम्र पाषाणकालीन सभ्यता भी कहा जाता है।
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