जैनधर्म तथा हिन्दूधर्म में तुलना |जैन धर्म और हिंदू धर्म में क्या अंतर है | Jain Dharm evam Hindu Dharm Me Tulna

 जैनधर्म तथा हिन्दूधर्म में तुलना |जैन धर्म और हिंदू धर्म में क्या अंतर है

जैनधर्म तथा हिन्दूधर्म में तुलना |जैन धर्म और हिंदू धर्म में क्या अंतर है | Jain Dharm evam Hindu Dharm Me Tulna



जैनधर्म तथा हिन्दूधर्म में तुलना

 

  • जैनधर्म वास्तव में नया धर्म नहीं था। इसे हम हिन्दू धर्म की शाखा ही मान सकते हैं। क्योंकि यह कई दृष्टियों से प्राचीन धर्म से मिलता-जुलता है। 
  • जैन तीर्थकरों ने धर्म के रूप में किसी नवीन धर्म की स्थापना न करके प्राचीन वैदिक धर्म को ही सुधारने का प्रयत्न किया था। उस समय वैदिक धर्म में तरह-तरह की बुराइयाँ घुस गयी थीं। वह आडम्बर और हिंसा से पूर्ण अनेक प्रकार के जटिल कर्मकांडों से युक्त हो उठा था।
  • वैदिक धर्म में बलि पर विशेष जोर दिया जाने लगा था। अतएव अनेक लोग इसके विरोधी बन गये। महावीर के पहले जैनधर्म 'निर्ग्रन्थमतकहलाता था जो हिन्दू धर्म का विरोधी नहीं था। इस कारण जैनधर्म को हिन्दूधर्म का विरोधी नहीं माना जाना चाहिए। 
  • वैदिक धर्म की तरह ही जैन धर्म में भी आत्मा की सर्वव्यापकतापुनर्जन्म तथा अच्छे-बुरे कर्मों के फलों को भोगना स्वीकार किया गया है। 
  • वैदिक धर्म के नियम और प्रमुख सिद्धांत जैन धर्म से मिलते हैं। जैनधर्म में चार्वाकों की वेदविरुद्धता और नास्तिकता के सिद्धान्तों को भी स्थान दिया गया है। 
  • जैनधर्म वर्णव्यवस्था का विरोधी नहीं है। अन्तर केवल इतना ही है कि जैनी कर्म को ही जाति व्यवस्था का आधार मानते हैं।
  • हिन्दू धर्म के गृहसंस्कार जैनियों में उसी प्रकार मनाये जाते हैं जिस प्रकार हिन्दू घरों में वे राम और कृष्ण को हिन्दुओं की भांति ही पूजनीय मानते हैं। वर्तमान काल में तो जैनी हिन्दू जाति के वैश्यों के साथ विवाह आदि भी करने लगे हैं। 
  • अपने अर्थशास्त्र में संन्यासियों के कर्त्तव्यों की विवेचना करते हुए चाणक्य ने लिखा है कि संन्यासियों का प्रमुख कर्त्तव्य अपनी इन्द्रियों को वश में रखनासांसारिक पदार्थों का त्याग भिक्षा मांग कर उदरपूर्ति ग्रामों तथा नगरों से दूर वनों में निवास अपने निवास स्थान को बदलते रहनाजीवों पर दया दिखलानाहिंसावृत्ति से दूर रहनाईष्यां आदि का त्याग करके दयाक्षमा और सन्तोष आदि का पालन तथा बाह्य एवं आन्तरिक स्वच्छता रखते हुए शुद्धपवित्र और सात्त्विक जीवन व्यतीत करना है। ये सब नियम प्रायः सभी जैनग्रन्थों में लिखे हुए हैं। 
  • कई इतिहासकारों ने इसीलिए अपना मत प्रकट करते हुए व्यक्त किया है कि जैन साधुओं और ब्राह्मण संन्यासियों की जीवनचर्या प्रायः बहुत कुछ एक-दूसरे से मिलती-जुलती है। अन्तर केवल इतना ही है कि जैनधर्म नास्तिक धर्म है और हिन्दू धर्म आस्तिक धर्म है। 
  • हिन्दू धर्म ईश्वर की सर्वव्यापकता में आस्था रखते हुए उसे विश्व का रचयितापालक और संहारकर्ता मानता है तथा वेदों को प्रमाण मानते हुए यज्ञ और बलिदानों में आस्था रखता है। इसके विपरीत जैनधर्म ईश्वर को संसार का कर्ताभर्ता और हर्ता नहीं मानता। 
  • जैनधर्म के अनुसार जगत् अनादि और अनन्त है। जैनी वेदों को प्रमाण नहीं मानते है और न यज्ञ तथा बलिदानों में ही आस्था रखते हैं।

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