कौटिल्य का अर्थशास्त्र | Kautilya Ka Arthshashtra

 कौटिल्य का अर्थशास्त्र | Kautilya Ka Arthshashtra

कौटिल्य का अर्थशास्त्र | Kautilya Ka Arthshashtra


 

  • कौटिल्य का अर्थशास्त्र (1909) में प्राप्त हुआ था और डा. शाम शास्त्री ने इसका अनुवाद किया था। इसकी रचना शासन के हित की दृष्टि में रखकर की गई थी। 
  • कौटिल्य का अर्थशास्त्र पन्द्रह भागों और एक सौ अस्सी उपभागों में विभाजित है और इसमें छः हजार के लगभग श्लोक हैं।
  • इस पुस्तक की रचना के समय सम्बन्ध में इतिहासकारों के बीच घोर मतभेद हैं। कुछ इतिहासकारों का कथन है कि इसका रचयिता चन्द्रगुप्त का प्रधानमंत्री कौटिल्य था, पर अन्य विद्वानों का कहना है कि इसकी रचना अत्यन्त प्राचीन काल में हुई थी। इनके तर्क का आधार यह है कि यदि इस ग्रन्थ की रचना कौटिल्य के हाथों हुई रहती तो वह चन्द्रगुप्त का मंत्री होने के नाते चन्द्रगुप्त की विजयों और शासन व्यवस्था का उल्लेख अवश्य करता। कम से कम इसमें मौर्यवंश का उल्लेख अवश्य रहता लेकिन अन्य विद्वान इस बात को नहीं मानते हैं। 
  • कौटिल्य का अर्थशास्त्र भी मौर्यकाल का इतिहास जानने का एक प्रमुख स्रोत है। 
  • कौटिल्य का वास्तविक नाम विष्णुगुप्त अथवा चाणक्य था। यह चन्द्रगुप्त का प्रधानमंत्री था।
  • चन्द्रगुप्त की शानदार सफलता का एक प्रमुख कारण चाणक्य की अनमोल सहायता थी।
  • कौटिल्य राजनीति और शासन प्रबन्ध की कला में बहुत निपुण था। राजनीति के मामलों में कोई भी उसका मुकाबला नहीं कर सकता था। उसे शारीरिक सुन्दरता प्राप्त नहीं थी परन्तु बुद्धि और योग्यता में वह अपनी सानी नहीं रखता था। उसका जीवन सादा था। वह जाति का ब्राह्मण था और अपने निश्चय पर सदैव अटल रहता था। राजनीतिक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए वह भले-बुरे सभी प्रकार के साधनों का प्रयोग कर लेता था। 

  • नन्द वंश का नाश तथा चन्द्रगुप्त द्वारा मगध विजय में उसका बहुत बड़ा हाथ था। कहा जाता है कि एक बार नन्द शासक ने किसी कारणवश चाणक्य को भरी राजसभा में अपमानित किया था। तभी से वह नंद वंश का जानी दुश्मन बन गया था और उसने प्रतिज्ञा की थी कि वह नन्द वंश का नाश किये बिना चैन नहीं लेगा। चन्द्रगुप्त भी नन्दशासक से रुष्ट था। अत: दोनों का उद्देश्य समान होने के कारण उनमें घनिष्ठ मित्रता स्थापित हो गयी। बाद में कौटिल्य सदैव चन्द्रगुप्त का राजनीतिक क्षेत्र में पथप्रदर्शन करता रहा और उसके प्रधानमंत्री के रूप में उसे अमूल्य परामर्श देता रहा। 

  • विशाखदत्त के नाटक मुद्राराक्षस से हमें नंद वंश के नाश तथा चन्द्रगुप्त के उत्कर्ष का विस्तृत हाल मालूम होता हैं और यह भी पता लग जाता है कि इस कार्य में चाणक्य ने कितना महत्त्वपूर्ण भाग लिया था। 
  • अर्थशास्त्र एक ऐसी विस्तृत रचना है जिसमें केवल राजनीतिक सिद्धांतों का ही उल्लेख नहीं बल्कि प्रशासन के संगठन तथा राज्य और समाज की बहुत सी समस्याओं का भी उल्लेख है। चाणक्य की विलक्षण बुद्धि तथा राजनीतिक चतुरता का प्रमाण हमें उसके इसी प्रसिद्ध ग्रंथ में मिलता है। 
  • राजनीतिक सिद्धांतों पर भारत की यह सबसे प्राचीन और महत्त्वपूर्ण पुस्तक है। इसमें उसने राजप्रबंध के विभिन्न विषयों की विवेचना की है, जैसे राजकुमारों की शिक्षा, शासन के दैनिक कर्त्तव्य मंत्रियों का चुनाव तथा उनकी वफादारी या ईमानदारी की परीक्षा, सरकार के विभिन्न विभागों का संगठन, न्याय, कर, राजस्व के सिद्धांत शासक की विदेश नीति इत्यादि। 
  • कौटिल्य द्वारा रचित इस अर्थशास्त्र में न केवल उपर्युक्त राजनीतिक सिद्धांतों की विवेचना की गई है बल्कि उस समय की ऐतिहासिक घटनाओं का वर्णन भी मिलता है। इसी विशेषता के कारण अर्थशास्त्र को प्राचीन भारत के साहित्य में राजनीतिशास्त्र तथा इतिहास का अपने ढंग पर लिखी जाने वाली एक अद्वितीय पुस्तक कही जा सकती है। 


 कौटिल्य का अर्थशास्त्र में दी गयी मुख्य बातें निम्नलिखित हैं

 

राजा

  • अर्थशास्त्र में कौटिल्य ने राजस्व पर अपने बहुत सुन्दर विचार प्रकट किये हैं। उसके अनुसार राजा का स्थान सर्वोच्च तथा उसकी शक्तियाँ असीमित एवं निरंकुश होनी चाहिए, परन्तु उसे सफल बनने के लिए लोकहितकारी प्रबुद्ध राजा बनना चाहिए। प्रजा के साथ राजा का संबंध पिता और सन्तान की तरह होना चाहिए। प्रजा का हित और उसकी खुशी राजा का हित और उसकी खुशी होनी चाहिए। उसे जनमत, प्रथाओं तथा परम्पराओं का पूरा ध्यान रखना चाहिए। राजस्व के प्रत्येक कार्य में उसे अपने मंत्रियों की सलाह लेनी चाहिए। उसने इस बात पर बहुत जोर दिया है कि राजा को शिक्षित और विनयशील होना चाहिए क्योंकि अगर राजा सभ्य और सुसंस्कृत नहीं होगा तो उसकी प्रजा भी उन्नति नहीं कर सकेगी। प्रजा की सांस्कृतिक और भौतिक उन्नति उसके राजा पर ही निर्भर करती है। 


  • राजा के चरित्र को ऊँचा बनाने के लिए कौटिल्य ने उसे छः शत्रुओं के प्रति सचेत किया है काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार और उच्छृंखलता। यदि राजा इन शत्रुओं से अपना बचाव नहीं करेगा तो वह पतन की खाई में गिरेगा। कौटिल्य का उद्देश्य आदर्श राजा को विजेता बनाना था। उसका विचार था कि जब तक राजा विजेता बनकर अपने साम्राज्य का विस्तार नहीं करता तब तक वह अपने लक्ष्य को पूरा नहीं कर सकता। परन्तु यह आवश्यक था कि सफलता प्राप्त करने के लिए सैनिकों में धार्मिक भावना उत्पन्न कर दी जाये ताकि वे अधिक जोश और वीरता से लड़ सकें।

 

मन्त्री 

  • यद्यपि कौटिल्य का शासक सर्वोच्च निरंकुश और असीमित शक्तियों वाला था तथापि उसका विश्वास था कि राज्य प्रबंध को कुशलतापूर्वक चलाने के लिए मंत्रियों का होना आवश्यक है। उसका कहना था कि एक पहिये की गाड़ी कभी नहीं चल सकती। अतः मंत्रियों को राज्य में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान देना होगा। मंत्रियों की नियुक्ति करते समय उन्हें कई प्रकार के प्रलोभन देकर उनकी ईमानदारी तथा कुशलता की जांच कर ली जानी चाहिए। राजा को प्रत्येक कार्य मंत्रियों की सलाह से करना चाहिए, परन्तु यह आवश्यक नहीं कि वह उनकी हर सलाह को माने ही प्रान्तीय तथा नागरिक शासन-शासन प्रबंध को व्यवस्थित ढंग से चलाने के लिए यह जरूरी था कि राज्य को प्रान्तों में बांट दिया जाये और वहाँ राज्यपाल नियुक्त कर दिये जाएँ जो राजा के प्रतिनिधि के रूप में वहां शासन कर सकें। नगरों का प्रबंध भी किसी परिषद को सौंप देना चाहिए, जो नगर की हर आवश्यकता को पूरा करें और वहां शासन चला सके। कौटिल्य ने यह भी लिखा है कि नगरों की जनगणना होनी चाहिए।

 

गुप्तचर प्रणाली

  • अर्थशास्त्र में गुप्तचर प्रणाली को बहुत महत्त्व दिया गया है। कौटिल्य का कहना था कि राज्य में होने वाली प्रत्येक घटना का समाचार राजा को गुप्तचरों द्वारा ही मिल सकता है, जिससे उसे विद्रोह आदि दबाने में बहुत सहायता मिल सकती है। गुप्तचरों का मुख्य कर्त्तव्य राज्य की प्रत्येक घटना का समाचार सम्राट तक पहुँचाना और लोगों में उसके प्रति प्रेम और सम्मान की भावना उत्पन्न करना था। कौटिल्य का विचार था कि गुप्तचरों में अधिक संख्या स्त्रियों की होनी चाहिए क्योंकि वे इस कार्य को अधिक निपुणता के साथ कर सकती हैं।

 

नौवाहन

  • अर्थशास्त्र से एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण जानकारी हमें नौवाहन के विषय में प्राप्त होती है। इसके अनुसार चन्द्रगुप्त के समय में इस ओर पर्याप्त ध्यान दिया जाता था। प्रत्येक बन्दरगाह पर अधिकारी होता था जो समुद्र या नदियों में जाने वाले जहाज और नावों की देखभाल करता था। सभी नावें और जहाज राज्य के अधीन होते थे। साधुओं और व्यापारियों से कर भी लिया जाता था।

 

राजनीति में धर्म और नैतिकता 

  • राजनीति में धर्म और नैतिकता कौटिल्य की एक महत्त्वपूर्ण देन यह है कि उसने राजनीति में धर्म अथवा नैतिकता को कोई स्थान नहीं दिया। उसका कहना था कि शासक को अपने राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति करते समय नैतिकता और धर्म का ख्याल नहीं करना चाहिए। राजनीति में अच्छे तथा बुरे सभी साधनों का प्रयोग किया जा सकता है। इसका यह तात्पर्य नहीं कि राजा को धर्मपरायण नहीं होना चाहिए। इसके विपरीत अर्थशास्त्र में राजा के निजी जीवन में नैतिकता और धर्म पर अत्यधिक जोर दिया गया है। उसे चरित्रवान तथा विनयशील बनने के लिए कहा गया है और छः शत्रुओं के प्रति सचेत किया गया है, परन्तु राजनीति और कूटनीति में इन बातों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा सकता। कौटिल्य का कहना है कि धर्म और कूटनीति दो विभिन्न विषय हैं, जिनका परस्पर कोई संबंध नहीं है। इस प्रकार कौटिल्य के अर्थशास्त्र में हमें बहुत सी ऐतिहासिक तथा राजनीतिक बातों की जानकारी होती है। यही कारण है कि इस ग्रन्थ को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।

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