सल्तनत काल एवं मुगल काल में प्रचलित शब्दावली |खम्स,खिदमती,इनाम,जिम्मी ,अमरम ,मदद - ए - माश |Khams Kya Hai
सल्तनत काल एवं मुगल काल में प्रचलित शब्दावली-01
खम्स क्या होता है Khams Kya Hai
- हनीफी सिद्वान्तों के अनुसार जब सुल्तान दूसरों के शासक को हटा कर जो धन लाते थे उस पर खम्स लागू होता था। वस्तुतः खम्स लूट का धन था जो युद्ध में शत्रु राज्य की जनता से लूट में प्राप्त होता था।
- लूट का 4/5 भाग राजकोष में जमा होता था।
- सल्तनत काल में फिरोज तुगलक ही एकमात्र ऐसा शासक था जिसने इस कर को शरीयत के अनुसार वसूल किया।
- अलाउद्दीन खिलजी और मुहम्मद तुगलक ने 4/5 राजकोष में दिया और शेष 1/5 सैनिकों में बांटा।
खिदमती क्या है | Khidmai Kya Hota hai
- तुर्की के आगमन पर जो लोग बादशाह के काम काज पर अपनी सेवा प्रदान करते थे, उन्हें खिदमती के नाम से जाना जाता था। अधीनस्थ द्वारा अपने उच्च अधिकारियों को दी गई भेंट को खिदमती कहा जाता था। यह प्रचलन दिल्ली के सुल्तानों में देखने को मिलती है.
इनाम क्या होता है Inam Kya hota Hai
- लगान से मुक्त भूमि, जिसका कल्याणकारी कार्यों के लिए दान किया जाता था। इस प्रकार की भूमि सुल्तान, , राज्य के प्रति किसी की अच्छी सेवा करने पर अपनी खुशी से भूमि भेंट करता था।
जिम्मी क्या होता है | Jimmi Kya Hota Hai
- संरक्षित प्रजा, अर्थात् वह लोग जो जजिया देते थे और बदले में राज्य उन्हें जीवन, धर्म और सम्पत्ति की सुरक्षा प्रदान करता था जिम्मी कहलाते थे।
वतन किसे कहते थे | Vatan Ka Arth
- बहमनी प्रशासन में मराठा सरदारों को प्रदत्त वंशानुगत भू-अनुदान वतन या वतन जागीर कहलाते थे।
- मुगल प्रशासन में वंशानुगत भू-अनुदान जो कि गुरूमतः राजपूतों को दिये जाते थे, उन्हें भी वतन जागीर कहा जाता था ।
अमरम क्या होता है Amram Kya hota hai
- जो भूमि सैनिकों व असैनिक अधिकारियों को उनकी विशेष सेवाओं के बदले में दी जाती थी अमरम कहलाती थी। उसके ग्रहणकर्ता की अमर नायक कहा जाता था।
- विजयनगर में सामंतों/ नायकों को प्रदत्त अनुदान भूमि अमरम कहलाती थी।
मदद - ए - माश क्या है | Madad ye mash Kya hai
- भूमिकर मुक्त क्षेत्र के अनुदान की प्रथा प्राचीन काल से प्रचलित है। मुगलकाल में इस तरह के अनुदान देने का अधिकार केवल सम्राट को ही प्राप्त था । इस अनुदान को सामान्य रूप से मदद-ए माश कहते थे।
- मुगलकाल में यह अनुदान साधारणतया धार्मिक ग्रन्थों के आचार्य, मुल्ला, मौलवी तथा विद्वानों को दिया जाता था।
- व्यक्तियों के अतिरिक्त संस्थाओं को भी यह अनुदान दिया जाता था, इसे वक्फ कहा जाता था। तथा उसे पाने वाला गुतबल्ली कहलाता था।
- जहांगीर ने मदद-ए-माश के अनुरूप ही अलतमगा नाम से लोगों को जागीरें प्रदान कीं।
- यह तैमूरी परम्परा पर आधारित था तथा वंशानुगत होता था। इसे अलतमगा नामक मुहर लगाई जाती थी मदद-ए-माश की भूमि एक स्थान से दूसरे स्थान को साधारणतया स्थानांतरित नहीं की जाती थी तथा जिस व्यक्ति को दी जाती थी उसकी मृत्यु तक उसके पास रहती थी। कालान्तर में यह भूमि वंशानुगत हो गई तथा अनुदान प्राप्त परिवार के उत्तराधिकारियों में बंटने से इसके टुकड़े-टुकडे हो जाते थे । भू- राजस्व मुक्त, भू-अनुदान, जीवन-यापन के लिए दी जाने वाली जागीर थी।
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