भारत के इतिहास के साहित्यिक स्रोत Literary Sources of History of India

भारत के इतिहास के  साहित्यिक स्रोत

Literary Sources of History of India
भारतीय इतिहास के गैर साहित्यिक स्रोत |Non-literary sources of Indian History




 

इतिहास के  साहित्यिक स्रोत के रूप में धार्मिक साहित्य

 

  • भारत की अधिकतम प्राचीन रचनाएँ धर्म से संबद्ध रही हैं। इन्हें वेद कहा जाता है। इनका रचनाकाल 1500 ई.पू. से 500 ई.पू.श्के लगभग माना जाता है। वेदों की संख्या चार है ।
  • ऋग्वेद में मुख्य रूप से प्रार्थनाएँ ही हैं। अन्य तीन वेदों- सामयजुर और अथर्व में प्रार्थनाएँअनुष्ठानमंत्र और पुराण कथाएँ हैं। 
  • उपनिषदों में आत्मा और परमात्मा संबंधी दार्शनिक विवेचन है। इन्हें वेदांत भी कहा जाता है। 
  • रामायण और महाभारतइन दो महाकाव्यों का संकलन अनुमानतः ईस्वी सन 400 तक जाकर पूरा हुआ होगा। इनमें से 'महाभारतके रचनाकार व्यास मुनि माने जाते हैं। इसमें मूलतः 8800 श्लोक थे और इसका नाम 'जय-गीतअर्थात विजय गान था। आगे चलकर इसका विस्तार 24,000 श्लोकों में हो गया और इसे 'भारतकहा जाने लगा क्योंकि इसमें प्राचीनतम वैदिक वंशो में से एक - भरतवंश के उत्तराधिकारियों की गाथाएँ हैं। 
  • इसके एक और विस्ततृत संस्करण 'महाभारतमें 1,00,000 श्लोक हैं। इसी प्रकार मूलतः वाल्मीकि द्वारा रचित 'रामायणमें 6000 श्लोक थेमगर आगे चलकर इसका विस्तार 12000 और फिर 24000 श्लोकों में हो गया। 
  • उत्तर- वैदिक (वेदों के बाद वाले) काल (600 ई. पू. के बाद) में हमें अनुष्ठान संबंधी ढेर सारा धार्मिक साहित्य मिलता है जिसे सूत्र कहते हैं।
  • राजाओं द्वारा बड़े-बड़े बलि यज्ञ आदि के विधान 'श्रौतसूत्र में मिलते हैं जबकि जन्मनामकरणयज्ञोपवीतविवाहअंत्येष्टि आदि संस्कारों से जुड़े घरेलू अनुष्ठानों का विधान गह्यसूत्रमें मिलता है इस साहित्य का संकलन लगभग 600 से 300 ई.पू. के बीच हुआ। 
  • जैनों और बौद्धों के धार्मिक ग्रंथ इन धर्मो से जुड़े ऐतिहासिक व्यक्तित्वों और घटनाओं का विवरण देते हैं। आंरभिक बौद्ध रचनाएँ पालि में लिखी गई थीं। इन्हें 'त्रिपिटक' (तीन पिटारे) कहा जाता है – 'सुत्तपिटक' 'विनयपिटकऔर 'अभिधम्म पिटक 
  • धर्म से इतर बौद्ध साहित्य में सबसे महत्त्वपूर्ण स्थान 'जातकों का है। इनमें गौतम बुद्ध के पूर्व जन्मों की कहानियाँ हैं। माना जाता है कि गौतम के रूप में जन्म लेने के पहले बुद्ध के 550 जन्म और हुए थे। हर जन्म की कहानी एक जातक कहलाती है। 
  • ये कहानियाँ ईसा पूर्व पाँचवीं से दूसरी शताब्दी के बीच के काल की सामाजिक और आर्थिक स्थितियों पर बहुत महत्त्वपूर्ण प्रकाश डालती हैं। जैन पाठों की रचना प्राकृत भाषा में हुई और आगे चलकर इनका संकलन ईसा की छठी शताब्दी में गुजरात के वल्लभी नामक स्थान पर हुआ। इन्हें 'अंगकहा जाता है और इनमें जैनों की दार्शनिक अवधारणाएँ मिलती हैं

 

इतिहास के  साहित्यिक स्रोत के रूप में धार्मिकेतर साहित्य

 

  • इस कोटि के साहित्य का विषय धर्म नहीं होता। इस वर्ग में धर्मशास्त्र या वे संहिताएँ आती हैं जो विभिन्न सामाजिक समुदायों के कर्त्तव्यों का विधान करती हैं। वे चोरीहत्याव्यभिचार आदि के अपराधियों के लिए दंड निर्धारित करती हैं। इनमें सबसे पहला ग्रंथ है 'मनु स्म ति ।
  • यह वह पहला ग्रंथ था जिसका अनुवाद करके अंग्रेजों ने उसे भारतीय विधि संहिता (कोड) का आधार बनाया। कौटिल्य के 'अर्थशास्त्र में मौर्य काल की भारतीय अर्थव्यवस्था और राजनीति के अध्ययन के लिए बड़ी महत्त्वपूर्ण सामग्री मिलती है। 
  • इतिहास की पुनः संरचना के लिए कभी-कभी व्याकरण ग्रंथ भी बड़े काम के साबित होते हैं। व्याकरण पर सबसे पहला और सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रंथ पाणिनि रचित 'अष्टाध्यायी है जिसका रचना काल विद्वानों ने 700 ई.पू. के लगभग माना है। 
  • कालिदास गुप्तकाल में हुए और उन्होने कविताओं और नाटकों की रचना की। इनमें सबसे अधिक प्रसिद्ध है 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्', 'ऋतुसंहारऔर 'मेघदूतम्महान रचनाएँ होने के साथ ही ये हमें गुप्तकाल के सामाजिक और सांस्क तिक जीवन की झलकियाँ भी दिखलाती हैं। 
  • कश्मीर का इतिहास जानने के लिए हमारे पास राज तरंगिणीनामक एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ हैं जिसकी रचना कल्हण ( 12वीं सदी ईस्वी) ने की थी। 
  • इतिहास लेखन में सहायता के लिए धर्मेतर ग्रंथों में जीवनियाँ या चरित बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। इनकी रचना दरबारी कवि अपने आश्रयदाता शासकों के गुणगान के लिए करते थे। वे चूँकि अपने आश्रयदाताओं की उपलब्धियों का बहुत अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन किया करते थेइसलिए उनका अध्ययन ज़रा सावधानी से करना चाहिए । इस तरह की एक महत्त्वपूर्ण कृति है 'हर्षचरित्रजिसकी रचना बाणभट्टने हर्षवर्धन की प्रशंसा में की थी। 
  • दक्षिण भारत का सबसे प्रारंभिक साहित्य संगम साहित्य कहलाता है । इसकी रचना तमिल में हुई थी और यह धर्मेतर साहित्य की श्रेणी में आता है । इसके रचयिता वे कवि थे जो ईसा की पहली चार शताब्दियों के दौरान राजाओं और सामंतों के द्वारा प्रायोजित सम्मेलनों (संगम) में एकत्रित होते थे । 
  • इस साहित्य में विभिन्न नायकों की प्रशस्ति में रचित छोटी और लंबी कविताएँ मिलती हैं शायद इन्हें राजदरबारों में सुनाने के लिए रचा जाता था। इस साहित्य के अंतर्गत 'शिल्पदिकारम्और 'मणिमेकलीजैसे महाकाव्य भी आते हैं। 
  • 300 ई.पू. से लेकर ईस्वी सन् 300 की अवधि में दक्षिण भारतीय समाजअर्थव्यवस्था और राजनीति के अध्ययन के लिए संगम साहित्य ही हमारा प्रमुख स्रोत है। इस साहित्य में मिले वर्णनों की पुष्टि पुरातात्त्विक खोजों से और विदेशी यात्रियों के वृत्तांतों से होती है।
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