गौतम बुद्ध का जीवन परिचय |महात्मा बुद्ध | Mahatma Gautam Buddha GK in Hindi
गौतम बुद्ध का जीवन परिचय महात्मा बुद्ध Mahatma Gautam Buddha GK in Hindi
गौतम बुद्ध का जीवन परिचय लिखिए ?
महात्मा बुद्ध की जीवनी
- धर्म के क्षेत्र में ईसवी छठी शताब्दी में बौद्धधर्म का अभ्युदय एक क्रांति था। यह वैदिक कर्मकांड के विरूद्ध प्रतिक्रिया तथा उपनिषदों द्वारा प्रारम्भ किये आंदोलन का तार्किक प्रतिफल था।
- बौद्धधर्म के प्रवर्त्तक गौतम बुद्ध थे जो महावीर के समकालीन थे। ये जाति के क्षत्रिय थे। इनका प्रारम्भिक नाम गौतम या सिद्धार्थ था। उनका जन्म एक राजकुल में हुआ था।
- शाक्यवंशीय क्षत्रियों का एक अति प्रसिद्ध गणराज्य हिमालय की तराई में नेपाल राज्य की सीमा में स्थित था। छठी शताब्दी ईसा पूर्व में इस जनपद के शासक महाराज शुद्धोधन थे।
- बुद्ध का जन्म 563 ई. पू. के लगभग कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी नामक एक उद्यान में हुआ था। उनके जन्म के कुछ ही दिनों के बाद उनकी माता का देहान्त हो गया। इसलिए उनका पालन पोषण उनकी सौतली माता प्रजापति गौतमी ने किया।
- गौतम उनके गोत्र का नाम था और जब उनको बोध हुआ तब से बुद्ध कहलाये।
- सिद्धार्थ बचपन से ही चिन्तनमग्न, शांत और गम्भीर रहते थे और राजपाट, धन-दौलत तथा स्त्री, पुत्र या परिवार में कोई रुचि नहीं रखते थे। प्रायः वे जीवन की गूढ़ समस्याओं पर विचार किया करते थे। उनके पिता ने उनके एकांतप्रेमी और चिन्तनशील प्रवृत्ति को देखकर उन्हें शीघ्र ही गृहस्थ जीवन में फंसा देना चाहा जिससे संसार में उनका मन रम जाये।
- जन्म के समय ज्योतिषियों ने यह भविष्यवाणी की थी कि यह बालक या तो चक्रवर्ती सम्राट बनेगा या गृहत्याग कर संन्यासी बनेगा। इस कारण उनके पिता और भी चिन्तित थे। उन्होंने शीघ्र ही सिद्धार्थ का विवाह यशोधरा नामक एक परम सुन्दरी से कर दिया और भोगविलास की सारी वस्तुएं उनके लिए जुटा दीं। कुछ समय पश्चात् एक पुत्र का भी जन्म हुआ।
- लेकिन विलासपूर्ण वैवाहिक जीवन से गौतम के जीवन में कोई परिवर्तन नहीं आया। उन्होंने चार दृश्यों को देखा जिनका प्रभाव उनके जीवन पर पड़े बिना नहीं रह सका।
- प्रातः काल के समय भ्रमण के लिए निकले हुए राजकुमार सिद्धार्थ को क्रमश: एक अति कृशकाय रोगी, कठिनता से चल सकने योग्य वृद्ध पुरुष, एक मृत व्यक्ति और अन्त में एक शंति स्वरूप साधु पुरुष के दर्शन हुए। इन चारों दृश्यों ने उनके जीवन में एक महान् उथल-पुथल पैदा कर दी। उन्हें मनुष्य की इन अवस्थाओं का जरा भी ज्ञान न था।
- सिद्धार्थ (महात्मा बुद्ध) के सारथी छंदक ने उन्हें बतलाया कि संसार के सभी मनुष्यों को एक न एक दिन रोगों का शिकार बन कर दारूण दुःख सहन करने पड़ते हैं। बुढ़ापे में भीषण यातनाएं भोगनी पड़ती हैं और अन्त में मृत्यु अवश्यम्भावी होती है।
- सिद्धार्थ इन बातों पर जितना ही अधिक विचार करते थे उन्हें उतनी ही अधिक व्याकुलता होती थी लेकिन साधु पुरुष का ध्यान आते ही उनके दग्ध हृदय को कुछ शांति मिलती थी। अंत में उन्होंने राजसी सुखों का त्याग कर संसार के कष्टों को दूर करने के उपाय ढूंढने का दृढ़ निश्चय किया।
- उनतीस वर्ष की आयु में राजकुमार सिद्धार्थ रात्रि के समय अपने नवजात शिशु राहुल और पत्नी यशोधरा को सोते छोड़ यौवन, स्वास्थ्य और शरीर को अस्थायी तथा संसार को अनित्य एवं दुःखमय जान, समस्त सुख व वैभव का त्याग करके घोड़े पर सवार होकर छंदक के साथ महल से बाहर निकल पड़े।
- इस अवस्था में उनकी मुलाकात कई महात्माओं और साधुओं से हुई और इनका सत्संग हुआ। वैशाली के पड़ोस में आलार कालाम तथा राजगृह के पड़ोस में रामपुत्र रूद्रक नामक दार्शनिक के साथ इनकी बातें हुईं। जहाँ उन्होंने अपनी ज्ञापपिपासा को शांत करने का यत्न किया; किन्तु उनकी आत्मा को सन्तोष नहीं हुआ।
- अन्त में वे राजगृह से गया पहुँचे और उरुवेला नामक स्थान पर जंगल में अपने पाँच साथियों सहित कठोर तपस्या करने बैठे। छः वर्ष तक यह क्रम जारी रहा। इस बीच उनका शरीर जर्जर हो गया किन्तु आत्मा पहले की भाँति ही अतृप्त रही।
- एक दिन उनकी तपोभूमि के निकट के ग्राम की कुछ स्त्रियाँ गीत गा रहीं थीं जिनकी आवाज गौतम के कानों में पड़ी। इस गीत का सार यह था कि “वीणा के तार को इतना न कसो जिससे तार ही टूट जाये और न वीणा के तार को इतना ढीला रखो कि उनसे कोई आवाज ही न निकल सके।"
- गौतम पर इस गीत का बड़ा गहरा प्रभाव पड़ा। इस गीत से गौतम ने मध्यम मार्ग या मध्यम प्रतिपदा का पाठ सीखा। वे घोर तपस्या द्वारा अपनी जीवन वीणा के तारों को बुरी तरह कस रहे थे। अतएव, उन्होंने अब मध्यम मार्ग अपनाने का निश्चय किया और तपस्या को त्याग दिया।
- सुजाता नामक एक स्त्री वृक्ष पूजा हेतु खीर लेकर आयी थी। गौतम ने उससे खीर लेकर खा ली। इस पर उनके अन्य साथियों ने उन्हें पथभ्रष्ट मानकर उनका साथ छोड़ दिया।
- अब सिद्धार्थ अकेले मनन करने लगे। इस पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर वे घोर चिन्तन में लीन हो गये। वहीं एक दिन उन्हें ज्ञान का प्रकाश मिला वह बुद्धत्व की प्राप्ति थी। उस समय से सिद्धार्थ बुद्ध कहलाने लगे। जिस पीपल के पेड़ नीचे उन्हें बोध हुआ था वह बोध वृक्ष कहलाया।
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गौतम बुद्ध सामान्य ज्ञान प्रश्न उत्तर
बुद्ध का जन्म कहाँ हुआ ?
- बुद्ध का जन्म 563 ई. पू. के लगभग कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी नामक एक उद्यान में हुआ था।
बुद्ध को ज्ञान कैसे प्राप्त हुआ?
- पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर वे घोर चिन्तन में लीन हो गये। वहीं एक दिन उन्हें ज्ञान का प्रकाश मिला वह बुद्धत्व की प्राप्ति थी। उस समय से सिद्धार्थ बुद्ध कहलाने लगे। जिस पीपल के पेड़ नीचे उन्हें बोध हुआ था वह बोध वृक्ष कहलाया।
गौतम बुद्ध ने किसके हाथों की खीर खायी थी ?
- गौतम बुद्ध ने सुजाता नामक एक स्त्री वृक्ष पूजा हेतु खीर लेकर आयी थी। गौतम ने उससे खीर लेकर खा ली। इस पर उनके अन्य साथियों ने उन्हें पथभ्रष्ट मानकर उनका साथ छोड़ दिया।
गौतम बुद्ध का जन्म और मृत्यु कब हुआ था
जन्म : ईसवी पूर्व 563 लुंबिनी, नेपाल
निधन:: ईसवी पूर्व 483 (आयु 80 वर्ष) कुशीनगर, भारत
जीवनसाथी:राजकुमारी यशोधरा
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