पेशवाओं के अंतर्गत मराठा प्रशासन Maratha administration under Peshwas

पेशवाओं के अंतर्गत मराठा प्रशासन
Maratha administration under Peshwas

 

पेशवाओं के अंतर्गत मराठा प्रशासन Maratha administration under Peshwas

छत्रपति का अर्थ

 

  • पेशवाओं के काल में सैद्धान्तिक रूप से राज्य का प्रमुख पूर्ण सम्प्रभुता प्राप्त छत्रपति होता था। वह मुख्य प्रशासकसर्वोच्च सेनानायक तथा न्यायाधीश होता था। छत्रपति का पद वंशानुगत होता था।

 

पेशवा का अर्थ

 

  • शिवाजी द्वारा गठित अष्ट प्रधान में प्रधानमन्त्री पेशवा होता था तथा राजराम द्वारा गठित अष्ट प्रधान में वह प्रतिनिधि से नीचे दूसरे स्थान पर आ गया था। पहले पेशवा के पद पर छत्रपति किसी को भी नियुक्त कर सकता था किन्तु बालाजी विश्वनाथ के काल से (सन् 1713 से) यह आनुवंशिक हो गया और मराठा राज्य संघ के पतन (सन् 1818) तक उसके वंशजों का ही पेशवा पद पर अधिकार रहा। 
  • अठारहवीं शताब्दी के दूसरे दशक से व्यावहारिक दृष्टि से छत्रपति अब मात्र एक संवैधानिक राज्य प्रमुख रह गया था और वास्तविक शक्ति अब पेशवा के हाथों में आ चुकी थी। छत्रपति शाहू को तो अपने पेशवाओं की ओर से सम्मान और किंचित महत्व मिला भी किन्तु उसके उत्तराधिकारी सतारा में कठपुतली शासक बनकर रह गए। 
  • मराठा सत्ता का केन्द्र अब सतारा के स्थान पर पेशवा की जागीर पूना में स्थापित हो गया था। 
  • छत्रपति द्वारा गठित अष्टप्रधान को अब भंग कर दिया गया और राज्य की समस्त शक्तियां पेशवा के हाथों में आ गई। 
  • पेशवा को धार्मिक मामलोंयथा पुराहितों की नियुक्ति करनेधार्मिक स्थलों को आर्थिक अनुदान देने तथा सामाजिक मामलों में विधवा विवाहगोद लेने की प्रथा आदि के विषय में निर्णय लेने का अधिकार था।

 

हुज़ूर दफ़्तर का अर्थ

 

  • पूना में स्थित पेशवा के सचिवालय को हुज़ूर दफ़्तर कहा जाता था।
  • हुज़ूर दफ़्तर में प्रशासनिक विभागों के रिकॉर्ड रखे जाते थे तथा वहां से उन विभागों का संचालन भी होता था। 
  • हुज़ूर दफ़्तर के अन्तर्गत विभागों में फड़नवीस के आधीन चलते दफ़्तर में बजट बनाया जाता था और सभी लेखे जांचे जाते थे। 
  • दूसरा महत्वपूर्ण विभाग बेरिज़ दफ़्तर होता था जिसमें सभी नागरिकसैनिक तथा धार्मिक विभागों के वर्गीकृत लेखे रखे जाते थे तथा वार्षिक आय-व्यय तथा जमा-घाटे की एक तालिका तर्जुमा तैयार की जाती थी।

 

 मराठा प्रान्तीय तथा जिला प्रशासन

 

  • हुज़ूर दफ़्तर के आधीन मामलतदार / सरसूबेदार प्रान्तीय शासन के प्रभारी होते थे। उनके कामों पर नज़र रखने के लिए राज्य की ओर से देशपाण्डे तथा देशमुख रखे जाते थे। देशमुख सम्पत्तियों के हस्तान्तरण तथा विभाजन सम्बन्धी दस्तावेज़ों की देखभाल भी करते थे। मामलतदार के आधीन जिलों के प्रभारी कामविष्कार होते थे। कृषिराजस्व निर्धारणउद्योगफ़ौजदारी तथा दीवानी न्याय प्रशासनपुलिस प्रशासनसामाजिक-धार्मिक विवाद के मामलों की देखभाल का दायित्व कामिष्कार का होता था।

 

 मराठा ग्राम प्रशासन 

 

  • पेशवाओं के काल में ग्राम स्वायत्तशासी होते थे। 
  • गांव का मुखिया पाटिल कहलाता था जो कि वहां का प्रशासकराजस्व अधिकारी तथा न्यायकर्ता भी होता था। पाटिल का लेखा सहायक कुलकर्णी होता था। 
  • सिक्कों की शुद्धता 'और उनकी मापतौल का दायित्व पोतदार का होता था। ग्रामीण कारीगरों - बलूतों को फ़सल का एक भाग दिए जाने की व्यवस्था थी।

 

 मराठा जागीरों (सरंजामी) का प्रशासन

 

  • मुगल मनसबदारी व्यवस्था की भांति सरदारों को उनकी सैनिक सेवा के बदले में वेतन के स्थान पर जागीर (सरंजामी) प्रदान की जाती थी। पेशवा मराठा राज्य संघ का प्रमुख था किन्तु पुराने घरानों के सरदार (आँगरियाभोंसले तथा गायकवाड़) स्वयं को पेशवा का सेवक नहीं अपितु उसका समकक्ष समझते थे क्योंकि पेशवा भी उन्हीं की भांति छत्रपति का एक जागीरदार था। 
  • होल्करसिन्धियारस्तिया आदि पेशवा की महत्ता को स्वीकार करते थे क्योंकि उन्हें अपनी जागीरे पेशवा के प्रभुत्व काल में ही प्राप्त हुई थीं। जागीर के आन्तरिक मामलों में पेशवा को हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं था। 
  • सभी सरदार अपनी-अपनी जागीरों में स्वतन्त्र शासक की भांति कार्य करते थे परन्तु उनमें प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति का अधिकार पेशवा का होता था। पेशवा माधवराव के बाद कोई भी पेशवा समर्थ तथा योग्य सिद्ध नहीं हुआ जिस कारण सरदारों पर और उनकी जागीरों पर पेशवा का नियन्त्रण पूरी तरह समाप्त हो गया। 
  • मराठा राज्य संघ में एकजुटता नष्ट हो गई और जागीरदार अपने राज्य के प्रति निष्ठावान नहीं रहे। अब वो अपनी जागीर को ही अपना वतन मानने लगे।


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