मौर्य काल में शिक्षा, भाषा, लिपि और साहित्य | Maruya Kaal Me Shiksha Aur Sahitya

मौर्य काल में  शिक्षाभाषालिपि और साहित्य
Maruya Kaal Me Shiksha Aur Sahitya
मौर्य काल में  शिक्षा, भाषा, लिपि और साहित्य | Maruya Kaal Me Shiksha Aur Sahitya


मौर्य काल में  शिक्षा

  • शिक्षा के क्षेत्र में भी मौर्य युग भारतीय इतिहास में एक विशिष्ट स्थान रखता है। इस समय राज्य की ओर से विद्यालयों को चलाने का प्रचलन था। 
  • अशोक ने शिलाओं और स्तम्भों पर धर्मलेख खुदवाये थे। इसका उद्देश्य यह था कि साधारण जनता उसको पढ़ सके और उसके अनुरूप आचरण कर सके। इससे यह विदित होता है कि उस समय आम लोग पढ़ना-लिखना जानते थे। 
  • शिक्षा के क्षेत्र में इस समय तक्षशिला का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय था। 


मौर्यकालीन भाषा

मौर्यकालीन भाषा की दो धाराएँ थीं-


  • (1) संस्कृत जिनमें पूरी वैदिक संहिताब्राह्मणआरण्यक उपनिषद् और सूत्र साहित्य लिखा गया था। यह साहित्यिक और पढ़े-लिखे लोगों की भाषा थी। इसका स्वरूप व्याकरण के नियमों से बंधा हुआ था।


  • (2) प्राकृत अथवा पाली जो सामान्य जनता की भाषा थीइसको गौतम बुद्ध ने अपने उपदेशों का माध्यम बनाया। प्रारम्भिक बौद्ध साहित्य त्रिपिटक और जातक इसी भाषा में लिखे गये। इसी भाषा ने ही साहित्यिक रूप धारण कियाकिन्तु यह फिर भी संस्कृत की अपेक्षा जनता के निकट थी। यह उत्तर भारत के जनसाहित्य की भाषा थी और दूसरे प्रान्तों की जनभाषाओं से इसका मेल था। अशोक ने इसी को अपने साम्राज्य की राजभाषा स्वीकार किया और उसके धर्मलेखजो सारे देश में वितरित थेइसी भाषा में लिखे गए। 


मौर्यकालीन लिपि 

दो लिपियाँ थीं- 

  • 1- ब्राह्मीजो आधुनिक नागरी और भारत को विभिन्न प्रान्तोंब्रह्मालंकातिब्बत की लिपियों की जननी हैपश्चिमोत्तर सीमान्त को छोड़कर सारे भारत में प्रचलित थी। यह दाँयें से बाँयें लिखी जाती थी। यह भारत की राष्ट्रीय लिपि थी। इसका विकास स देश में हुआ था। इसकी रचना प्राचीन भारतीयों की ऊँची प्रतिमा का द्योतक है। 


  • (2) दूसरी लिपि खरोष्ठी थी. जिसका प्रचार भारत की पश्चिमोत्तर सीमा में था। यह अरबी लिपि की तरह दाँयें से बाँयें की ओर लिखी जाती थी। अशोक के जो धर्म लेख इस भाग में पाये जाते हैंउनकी भाषा पाली है लेकिन लिपि खरोष्ठी लिखने के लिए उस समय एक विशेष प्रकार का ताड़पत्र का प्रयोग किया जाता था।

 

मौर्य काल में साहित्य

  • इस समय का साहित्य तत्कालीन तीन मुख्य धार्मिक सम्प्रदायों के आधार पर तीन धाराओं में बँट गया था। वैदिक धारा में यह काल सूत्रग्रन्थों का थाजिसके कई गृह्यसूत्रधर्मसूत्र और वेदांग ग्रन्थ लिखे गये। शुद्ध साहित्य में भास के नाटकों का रचनाकाल भी यही है। सम्भवतः रामायण और महाभारत के कुछ अंशों का परिवर्द्धन इसी युग में हुआ। इस काल का सबसे प्रसिद्ध ग्रन्थ राजनीति पर कौटिल्य का अर्थशास्त्र है। 


  • कौटिल्य ने अपनी पुस्तक में अनेक शास्त्रों और विधाओं का उल्लेख किया जिन पर ग्रन्थ लिखे गये थेकिन्तु उनमें से बहुत से अब उपलब्ध नहीं हैं। इस काल में सुबन्धु नाम का प्रसिद्ध कवि हुआ। वह अन्तिम नन्द सम्राट चन्द्रगुप्त तथा बिन्दुसार का मन्त्री था। उसने वासवदत्ता नाट्यधारा नाम का नाटक लिखा था। यह वासवदत्ता उज्जैन की वही राजकुमारी थी जिसका सम्बन्ध उदयन की कहानी से है। 


  • चन्द्रगुप्त के मन्त्रियों में कवि नाम का एक मन्त्री था। सम्भवतः वह भी कवि रहा होगा । बौद्ध साहित्य की दृष्टि से यह युग काफी महत्त्व रखता है। बौद्ध त्रिपिटकों की रचना का समय तृतीय बौद्ध संगीतिजो सम्राट अशोक के राजत्व काल में हुई थीके कुछ बाद बताया जाता है। इस संगति के अध्यक्ष मोग्गलिपुत्त तिस्स ने अभिधम्मपिटक के कथावस्तु की रचना की। अन्य कई सूत्रों की रचना भी कुछ विद्वानों के अनुसारमौर्य युग में ही हुई थी।


  • जैन धर्म के प्रसिद्ध लेखकों-म्बूस्वामी प्रभस और स्वयम्भव की रचनायें इसी युग में लिखी गईं। इस काव्य के जैन लेखकों में शीर्ष स्थान अधिकृत करने वाले आचार्य भद्रबाहु द्वितीय चन्द्रगुप्त मौर्य के समकालीन थे और जैन अनुश्रुति के अनुसार उन्होंने मौर्य सम्राट को अपने धर्म में दीक्षित कर लिया था। भद्रबाहु ने निरुक्त अर्थात् प्रारम्भिक धर्म ग्रन्थों पर एक भाष्य का प्रणयन किया। जैनियों के धार्मिक साहित्य के सृजन और संकलन की दृष्टि से तो मौर्य युग और भी अधिक महत्त्वपूर्ण हैक्योंकि आचारांग सूत्रसमवाय सूत्रभगवती सूत्रउपासक दशांगप्रश्न व्याकरण आदि महत्त्वपूर्ण जैन ग्रन्थों के अधिकतर भाग इसी समय लिखे गये।

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