मौर्य साम्राज्य का पतन | मौर्य साम्राज्य के पतन के कारण | Maurya Vansh Ke Patan Ke karan
मौर्य साम्राज्य का पतन | मौर्य साम्राज्य के पतन के कारण
मौर्य साम्राज्य का पतन
मौर्यवंश के प्रति ब्राह्मणों के विद्रोह
- कुछ विद्वानों का विशेषकर महामहोपाध्याय हरि प्रसाद शास्त्री का विचार है कि मौर्यवंश के प्रति ब्राह्मणों के विद्रोह ने ही मौर्यवंश को जड़ से उखाड़ फेंका। वे मौर्यवंश के पतन का कारण अशोक के उन शिलालेखों को समझते हैं जिनमें पशुवध को वर्जित ठहराया गया है। ब्राह्मणों के लिए यह विशेष रूप से आपत्तिजनक बात थी कि ये शिलालेख एक शूद्र राजा अशोक द्वारा लगाये गये थे।
- अशोक ने लोगों के नैतिक जीवन का निरीक्षण करने के लिए धर्म महामात्र नियुक्त किये थे और सबके लिए एक-सा दण्ड विधान तथा न्यायिक प्रक्रिया की स्थापना की थी।
- ब्राह्मण लोगों का समाज में पहले से विशिष्ट स्थान चला आया था और दण्ड आदि के मामलों में वे कुछ विशेष अधिकारों का उपयोग करते आये थे। अत: अशोक के सुधारों से ब्राह्मणों के धार्मिक विश्वासों और विशिष्ट सामाजिक स्थिति को आघात पहुँचा होगा। इसलिए अशोक के बाद उन्होंने मौर्यवंश का विरोध किया। अन्त में मौर्यवंश का नाश भी ब्राह्मणों के ही हाथों हुआ। इसलिए इतिहासकारों ने ब्राह्मणों के विरोध को मौर्यवंश के पतन के लिए उत्तरदायी ठहराया है। किन्तु यह मत स्वीकार करने योग्य नहीं हैं।
डॉ. राय चौधरी और नीलकंठ शास्त्री के अनुसार
- डॉ. राय चौधरी और नीलकंठ शास्त्री जैसे विद्वानों ने इस विचार का विरोध किया है। पहले तो हमें यह मानना पड़ेगा कि अशोक ने जिन नैतिक तथा आध्यात्मिक आदर्शों का प्रचार किया वे वैदिक धर्म के विरोधी नहीं थे। अहिंसा आदि सिद्धांत भी वैदिक धर्म के नितान्त प्रतिकूल नहीं थे। उनका प्रतिपादन उपनिषदों में किया जा चुका था। इसलिए अशोक को वैदिक धर्म का शत्रु ठहराना अनुचित है। वास्तव में सहिष्णुता उसके धर्म का प्राण थी ब्राह्मण इतिहासकार कल्हण ने अशोक की उदारता तथा सहृदयता की प्रशंसा की है। वह यह भी लिखता है कि अशोक तथा उसकी ब्राह्मण प्रजा में मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध थे।
- दूसरी विचारणीय बात यह है कि मौर्यवंश का पतन अशोक की मृत्यु के पचास वर्ष बाद हुआ। तब तक तो लोग अशोक की नीति और कार्यों को बहुत कुछ भूल भी गये होंगे और यदि ब्राह्मण अशोक की नीति से अप्रसन्न होते तो वे उसी के जीवनकाल में विद्रोह करते अथवा उसके मरने के बाद तुरन्त ही मौर्यवंश नाश करने का प्रयत्न करते। उन्होंने कभी ऐसा प्रयत्न किया हो, इसका कोई निश्चित प्रमाण उपलब्ध नहीं है। यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि यदि ब्राह्मणों और मौर्यो के बीच शत्रुता होती तो मौर्य सम्राट ब्राह्मण पुष्यमित्र को अपना सेनापति क्यों बनाता?
- पुष्यमित्र ने अपने स्वामी का वध करके जो सिंहासन पर अधिकार किया वह तो उसमें व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षा का परिचायक था। इस आधार पर मौर्य साम्राज्य के पतन के लिए ब्राह्मण प्रतिक्रिया को विशेष महत्त्व नहीं दिया जा सकता है। फिर भी यह बात तो माननी ही पड़ेगी कि अशोक ने बौद्ध धर्म को राजधर्म के पद पर बिठाकर उसके महत्त्व को बहुत अधिक बढ़ा दिया और इस कारण ब्राह्मणों में कुछ असंतोष अवश्य हुआ, क्योंकि पहले की भांति समाज में उनका सर्वोच्च स्थान नहीं रह गया।
अ शोक की अहिंसा नीति
- कुछ इतिहासकार अशोक की अहिंसा नीति को भी साम्राज्य के पतन के लिए उत्तरदायी ठहराते हैं। उनका कहना है कि उसने सैनिक बल और प्रतिष्ठा का नहीं बल्कि उदारता, दया और सहिष्णुता को अपने साम्राज्य का आधार बनाया। साम्राज्य की समस्त शक्ति लोकहित के कार्यों में जुटा दी और सैनिक शक्ति के महत्व को भुला दिया। परिणाम यह हुआ कि साम्राज्य में सैनिक दुर्बलता आ गयी और युद्ध की प्रवृत्ति जाती रही। सेना अकर्मण्य हो गयी और उनका पतन तय हो गया।
मौर्यवंश के पतन के कारणों में अशोक स्वयं
- आर. डी. बनर्जी ने लिखा है- "मौर्यवंश के पतन के कारणों में अशोक स्वयं भी एक भारी कारण था। उसके आदर्शवाद और धार्मिक भावना ने सेना के अनुशासन को कड़ी चोट पहुँचायी। जब उसने धर्मविजय की भावना को जनता के समक्ष रखा और कहा कि उसके समय में भेरिघोष ने धर्मघोष का रूप ले लिया है तो उसने स्वयं ही अपने साम्राज्य के पतन की घण्टी बजा दी थी।
- " अन्य इतिहासकारों ने भी अशोक की नीति की बड़ी कड़ी आलोचना की है। डॉ. राय चौधरी का कहना है कि “कलिंग युद्ध के पश्चात् मगध ने धार्मिक क्रान्ति के प्रयत्न में अपनी विजयिनी शक्ति को बर्बाद कर दिया, जैसा कि मिस्र में अखनाटन ने किया।" डॉ. जायसवाल इसीलिए कहते हैं कि "अशोक वास्तव में महन्त की गद्दी के लिए उपयुक्त था।"
- इन लेखकों के अनुसार, अशोक की धर्मनीति से भारत की राजनीतिक शक्ति को गहरा धक्का लगा कलिंग विजय के बाद साम्राज्य इतना विस्तृत हो गया था कि उसमें बिना सैनिक शक्ति के शान्ति स्थापित नहीं रह सकती थी। इस पर ध्यान नहीं दिया। जिस समय उसने तलवार फेंककर भिक्षा पात्र हाथ में लिया और सैनिक अफसरों को युद्धक्षेत्र की व्यवस्था के बदले धर्म प्रचार की व्यवस्था में लगाया उसी समय उसने साम्राज्य पतन के बीज बो दिये।लेकिन मौर्य साम्राज्य के पतन के लिए इस कारण को भी अधिक महत्त्व नहीं दिया जा सकता है; क्योंकि हिंसा और सैनिक शक्ति पर आधारित साम्राज्यों का भी इतिहास में पतन हुआ है। ऐसे सैकड़ों उदाहरण इतिहास में मौजूद हैं। अहिंसा के बिना भी मौर्य साम्राज्य का कभी न कभी पतन अवश्य होता है। सैद्धान्तिक रूप में यह कारण निश्चय ही ठीक प्रतीत होता है लेकिन वास्तव में यह कोई महत्त्वपूर्ण कारण नहीं था। पहले तो यही धारणा सर्वथा सही नहीं है कि अशोक ने सैनिक शक्ति की उपेक्षा की थी। उसने आक्रमण युद्ध बन्द कर दिये थे। इससे यह अनुमान लगा लेना ठीक नहीं है कि वह सैनिक बल के महत्त्व को भूल गया था। यदि ऐसा होता तो उसी के शासनकाल में विद्रोह फूट पड़ते अथवा विदेशियों के आक्रमण होने लगते लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सच तो यह है कि अशोक के शासनकाल में राज्य में पूर्ण शान्ति बनी रही। सभी उसके मित्र थे और देश-देशान्तर में उसका यश फैला हुआ था। किसी ने उसके विरूद्ध उँगली उठाने का साहस नहीं किया और जीवन के सभी क्षेत्रों में अद्भुत उन्नति हुई।
- आर. के. मुखर्जी के अनुसार “यह कारण सिद्धांततः तो ठीक और युक्तियुक्त प्रतीत होता है, मौर्य साम्राज्य के पतन का केवल यह कारण किस सीमा तक उत्तरदायी है, यह निश्चित करना कठिन है। " प्रोफसर नीकलान्त शास्त्री का विचार है कि “ अशोक का शान्तिवाद, युद्धत्याग और उत्तराधिकारियों को उसका अनुसरण करने का उपदेश इत्यादि अव्यावहारिक बातें न थीं। उस समय के मानवीय उद्देश्यों और स्थिति के अनुसार अशोक ने ठीक ही किया था। इसका कोई प्रमाण नहीं है कि अशोक ने सेना में कमी कर दी या साम्राज्य की प्रतिष्ठा के साधनों को कम कर दिया।"
मौर्यवंश के राजनीतिक संगठन पतन का कारण
- डॉ. मुखर्जी के विचार में मौर्यवंश के पतन का कारण सैनिक और धार्मिक नहीं हैं, परन्तु मौर्यवंश के राजनीतिक संगठन की कोई अन्दरूनी और स्वाभाविक कमजोरी हो सकती है। यह साम्राज्य निरंकुश राजतन्त्र था। इस प्रकार की राज्यप्रणाली में मुख्य दोष यह रहता है कि कोई राजा अपने उत्तराधिकारी राजाओं में उन गुणों के होने का यकीन नहीं दिला सकता जिनका निजी शासन के लिए आवश्यक है।
- कोई भी व्यक्ति अपने बच्चों में अपने व्यक्तिगत गुणों का समावेश नहीं कर सकता। यही कारण है कि जिस धर्मराज्य की स्थापना अशोक ने की थी वह उसके जीवन काल में ही लड़खड़ाने लगा, क्योंकि यह राज्य अधिकांश जनता की इच्छा पर निर्भर था। उपर्युक्त लेखक का विचार है कि स्वयं अशोक के द्वारा ही उसके साम्राज्य में कुछ स्वतन्त्र और असंगत तत्वों को बढ़ने से रोका गया, जिन्होंने आगे चलकर साम्राज्य के पतन के कारणों का रूप धारण कर लिया। सभी राष्ट्र और लोग बराबर हैं, का सिद्धांत भी पतन का एक कारण बना।
- शत्रुओं को दबाने के स्थान पर उन्हें उनकी सत्ता और देश लौटा दिये जाते थे। उनके नामों का उल्लेख अशोक के शिलालेखों में प्रकार मिलता हैं; गन्धार, कम्बोज, यवन, नाभपन्थी, राष्ट्रिक भोज, पिटिनक, पुलिन्द, आंध्र, चोल, पाण्ड्य, सत्यपुत्र और केरलपुत्र। ये ही उपर्युक्त लोग अशोक की मृत्यु के पश्चात् शक्तिशाली बन गये और मौर्य साम्राज्य के पतन का कारण बने ।
- इन सारी बातों से यह स्पष्ट हो जाता है कि मौर्य साम्राज्य के पतन के लिए अशोक का कोई विशेष उत्तरदायित्व नहीं था। यदि अशोक के मरने के बाद साम्राज्य में कोई कमजोरी आयी तो इसके लिए अशोक को उत्तरदायी ठहराना गलत होगा।
मौर्य साम्राज्य के पतन के कारण
मौर्य साम्राज्य के पतन के कई कारण थे। इनमें निम्नलिखित उल्लेखनीय हैं
साम्राज्य की विशालता
- कभी-कभी साम्राज्य का विस्तार भी उसके लिए बड़ा घातक होता है। चन्द्रगुप्त और अशोक के प्रयासों से मौर्य साम्राज्य एक विस्तृत साम्राज्य हो गया था। केंन्द्र में इसकी राजधानी नहीं थी और उस समय यातायात के साधनों का समुचित विकास नहीं हो सका था। दक्षिण भारत पर शासन करने में बड़ी कठिनाई हुई। अशोक के अयोग्य उत्तराधिकारी इतने बड़े साम्राज्य को संभालने में सर्वथा असफल रहे।
अशोक के उत्तराधिकारी - मौर्य साम्राज्य के पतन के कारण
- अशोक की मृत्यु बाद मौर्य साम्राज्य पर कई राजाओं ने राज्य किया। लेकिन, उनमें कोई भी इतना योग्य नहीं था जो इतने बड़े साम्राज्य पर शासन का उचित प्रबन्ध कर सके। अशोक के विशाल साम्राज्य का भार उन उत्तराधिकारियों के कन्धों पर जा पड़ा, जिसके कन्धे इस योग्य ही न थे।
- वे उन पारस्परिक विरोधी शक्यिों को रोक न सके, जो अशोक की मृत्यु के पश्चात् उत्पन्न हो गई थीं। परिणाम यह हुआ कि मौर्य साम्राज्य के विभिन्न भाग स्वतन्त्र होते गये और अन्त में उसका पूर्ण पतन हो गया।
- “राजतरंगिणी" का लेखक कल्हण लिखता है कि अशोक की मृत्यु के पश्चात् जालौक, जो कि उसके पुत्रों में से एक था, कश्मीर में स्वतंत्र बन बैठा और उसने कन्नौज के मैदान को जीत लिया।
- तिब्बत के इतिहासज्ञ तारानाथ का विचार है कि वीरसेन ने जो मगध की गद्दी का स्वामी और अशोक के उत्तराधिकारियों में से एक था, गंधार का राज्य छीन लिया। इस तरह साम्राज्य का पतन हो गया और अशोक के उत्तराधिकारी साम्राज्य को छिन्न-भिन्न होने से नहीं रोक सके।
प्रान्तीय शासकों में स्वतन्त्रता की प्रवृत्ति
- सम्राट अशोक के मरते ही प्रांतीय शासकों में स्वतन्त्रता की प्रवृत्ति उदय हुई। अशोक के उत्तराधिकारी निर्बल थे। अतः साम्राज्य के प्रान्त एक-एक करके स्वतन्त्र होने लगे। सबसे पहले अशोक के पुत्र जलौक ने जो साम्राज्य के उत्तरी पश्चिमी प्रान्त का शासक था, अपने को स्वतन्त्र घोषित किया । उसके पश्चात् कलिंग के राजा ने अपनी स्वतन्त्रता की घोषणा कर डाली। इस प्रकार अशोक की मृत्यु के उपरान्त शीघ्र ही मौर्य साम्राज्य खंडित होकर पतन के मार्ग पर आगे बढ़ने लगा।
अशोक की धार्मिक नीति और ब्राह्मण प्रतिक्रिया
- अशोक की धार्मिक नीति के कारण हिन्दुओं में और विशेषकर ब्राह्मणों में उसके विरुद्ध भावनाएँ उत्पन्न होने लगीं; क्योंकि ये बौद्ध धर्म की उन्नति और ब्राह्मण धर्म की अवनति को सहन नहीं कर सके। उनमें इस धर्म के प्रति ईर्ष्या उत्पन्न हो गयी। बौद्ध धर्म का संरक्षण करनेवाले साम्राज्य का अन्त निश्चित देखकर ब्राह्मण लोग पुनः अपनी सत्ता स्थापित करने के लिए प्रयत्नशील हो गये। इस तरह ब्राह्मण प्रतिक्रिया भी मौर्य साम्राज्य के पतन में सहायक सिद्ध हुई।
प्रान्तपतियों के अत्याचार
- मौर्यों के पतन का एक और कारण था दूर के प्रान्तों में मौर्य गवर्नरों का जनता पर अन्यायपूर्वक व्यवहार। यह कहा गया है कि बिन्दुसार के समय में तक्षशिला के लोगों ने वहां के शासक के अन्यायपूर्वक व्यवहार के विरुद्ध विद्रोह का झंडा उठाया था और उसे गवर्नर का दुष्ट मन्त्री कह कर पुकारा था। अशोक के काल में एक बार पुनः तक्षशिला में विद्रोह हुआ था। इस विद्रोह का कारण भी पहले सा ही था। इस विद्रोह को दबाने के लिए अशोक ने कुणाल को भेजा। जब कुणाल वहाँ पहुँचा तो वहाँ की जनता ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि उसे सम्राट के प्रति कोई आपत्ति नहीं, केवल सम्राट् द्वारा नियुक्त यहाँ के अन्यायकारी अमात्य से ही वे अप्रसन्न थे। इस दिशा में डॉ. राय चौधरी का कथन है कि मन्त्रियों के अत्याचार का प्रमाण तो कलिंग में पाये गये अशोक के शिलालेख से भी मिलता है- "सभी लोग मेरी सन्तान हैं। जैसे कि मैं चाहता हूँ कि मेरी सन्तान फले-फूले और लोक-परलोक के सुख के भागी बने, उसी प्रकार मेरी कामना है कि मेरी जनता पर भी किसी प्रकार की विपत्ति न आये। किन्तु तुम मेरी इस सत्यता को पूरी तरह नहीं निभाते हो। तुममें से कोई-कोई अधिकारी मेरे इस सत्य की ओर ध्यान देता तो है किन्तु पूर्णरूप से नहीं। इस बात का ध्यान रखो कि तुम्हारा प्रबन्ध त्रुटिरहित हो । प्रायः ऐसा होता है कि यह किसी व्यक्ति को उसके दोष के बिना दण्ड दिया जाये तो अन्य लोग इस बात को सहन नहीं कर सकते और परिणामस्वरूप दुःखी होते हैं।"
राज परिवार में फूट और दरबार में षड्यंत्र
- अशोक के पुत्रों और पुत्रियों की स्वार्थपरता ने उन्हें एक-दूसरे का विद्रोही बना दिया। उनकी फूट ने साम्राज्य की जड़ें खोखली कर डालीं। विद्रोह और अशान्ति के चिह्न सर्वत्र प्रकट होकर साम्राज्य को पतनोन्मुख बनाने लगे। अशोक के दुर्बल और अयोग्य उत्तराधिकारियों के आपसी फूट का इतना प्राबल्य हुआ कि राज्य की समुचित व्यवस्था करने या कराने की उन्हें चिन्ता ही नहीं रही। अशोक को कई रानियाँ और पुत्र थे, जिनके कारण उसकी मृत्यु के बाद कई षड्यन्त्र हुए। फलस्वरूप, साम्राज्य पतन की ओर जाने लगा। कर्मचारियों में भी दलबन्दी शुरू हो गया। इससे साम्राज्य को क्षति पहुँची।
सेना विभाग की उदासीनता
- साम्राज्य के सेना विभाग की भी यही हालत हुई। कलिंग युद्ध के उपरान्त अशोक इस विभाग की ओर से उदासीन हो गया। फलतः सैन्य व्यवस्था में भी शिथिलता उत्पन्न हो गयी और सेना का स्तर बहुत नीचे गिर गया। उसमें अब वह पुरानी शक्ति नहीं रह गयी। लेकिन यह समय सैन्य बल का था। उसी के आधार पर साम्राज्य स्थायी बन सकता था।
गुप्तचर विभाग में संगठन का अभाव
- अशोक के समय से ही साम्राज्य का गुप्तचर विभाग शिथिल पड़ने लगा था। चन्द्रगुप्त मौर्य के समय वह विभाग काफी संगठित था। वास्तव में, साम्राज्य की विशालता को ध्यान में रखते हुए एक सुसंगठित गुप्तचर विभाग की नितान्त आवश्यकता थी। इसके अभाव में सुदूर प्रान्तों या किसी षड्यन्त्र की जानकारी नहीं प्राप्त हो सकती थी। लेकिन अशोक के काल में गुप्तचर विभाग की व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो गयी। राज्य के लिए यह बड़ा अहितकर सिद्ध हुआ।
भारत पर होने वाले यूनानी आक्रमण
- भारत पर होने वाले यूनानी आक्रमण को भी मौर्य साम्राज्य के पतन का कारण बताया जा सकता है। इस आक्रमण का प्रमाण पोलिबियस की पुस्तक से भी मिलता है। “गार्गी संहिता" ने भी इसकी पुष्टि की है। “गार्गी संहिता" में इस प्रकार लिखा है-"तब अनैतिक, किन्तु बलशाली यूनानी साकेत (अवध में), पांचाल और मथुरा को विजय करते हुए कुसुमध्वज पहुँचेंगे। इसके बाद वे पुष्पपुर (पाटलिपुत्र) पहुँच कर निश्चय ही सभी प्रान्तों को अस्त-व्यस्त कर डालेंगे।" यूनानी सेना का सामना न कर सकने के कारण मौर्य राजा निश्चय ही जनता की दृष्टि में गिर गये होंगे और इसी कारण मौर्य साम्राज्य अधिक देर तक न टिक सका होगा।
पुष्यमित्र शुंग द्वारा बृहद्रथ का वध इस तरह अपने को संभालने में असमर्थ जनमत के अभाव में लड़खड़ता हुआ मौर्य साम्राज्य अब पतन के कगार पर खड़ा था, जिसे पुष्यमित्र के एक साधारण धक्के ने समाप्त कर दिया। शान्तिवादी नीति के कारण सैनिक असन्तुष्ट थे और परिवर्तन के लिए उत्सुक थे, क्योंकि उनकी सामरिक भावना की अभिव्यक्ति के लिए अवसर नहीं मिलता था। इससे प्रोत्साहित होकर सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने अन्तिम मौर्य साम्राट बृहद्रथ का वध कर दिया और मगध की गद्दी पर अधिकार कर लिया।
मौर्य साम्राज्य का पतन के कारणों का विश्लेषण
सब कारणों से मौर्य साम्राज्य का पतन हुआ। इस पतन के कारणों का विश्लेषण करते हुए "The Age of Impertal Unity में डॉ. राधाकुमुद मुखर्जी ने लिखा है-
"हम यह नहीं भूल सकते कि उन दिनों की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए यह आश्चर्य की बात नहीं है कि साम्राज्य अगले पचास वर्षों में छिन्न-भिन्न हो गया । वास्तव में आश्चर्य तो इस बात का है कि फिर इतना बड़ा साम्राज्य लगभग एक शताब्दी तक निरन्तर एक केन्द्र से शासित होता रहा। भारत में अशोक से पहले तथा उसके बाद भी अनेक साम्राज्य जो मौर्य साम्राज्य से कहीं विस्तार में छोटे थे, उठे और फिर धूल में मिल गये। इसलिए उनके पतन के कई प्राकृतिक कारण अवश्य रहे होंगे। स्थानीय स्वायत्तता की भावना दूरस्थ प्रान्तों के साथ आवागमन की कठिनाई, सूबेदारी का अत्याचारपूर्ण शासन तथा उनकी विद्रोही प्रवृत्ति, महलों के कुचक्र तथा पदाधिकारियों का विश्वासघात आदि को हम महत्त्वपूर्ण कारण मान सकते हैं। ब्राह्म आक्रमण एक अन्य तत्व है जो दूसरे कारणों को बल देता है। मौयों के सम्बन्ध में तो इस बात के निश्चित प्रमाण है कि ये सब कारण कार्य कर रहे थे। तक्षशिला के दूरस्थ प्रान्त में स्थानीय पदाधिकारियों के उत्पीड़न के कारण निरन्तर विद्रोह हुए, साम्राज्य के अन्य भागों में भी लगभग ऐसी ही अवस्था रही होगी। कलिंग के लेखों से प्रकट होता है कि अशोक स्वयं अपने पदाधिकारियों के उत्पीड़न के सम्बन्ध में जानता था और उसने उन्हें नियंत्रित करने का प्रयत्न भी किया। पुष्यमित्र के विश्वासघातपूर्ण आचरण से प्रकट है कि राजधानी के पदाधिकारी राज्य के स्वामिभक्त नौकर न थे।"
Post a Comment