मुगलकालीन चित्रकला | मुगल काल में चित्रकला का विकास |Mughal Painting GK
मुगलकालीन चित्रकला | Mughal Painting GK
मुगल काल से पूर्व भारत में चित्रकला का विकास
Development of painting in pre-Mughal period in India
- प्रागैतिहासिक काल के शैल चित्र, हड़प्पाकालीन सभ्यता में मृदभाण्डों का चित्रों द्वारा अलंकरण, अजन्ता और एलोरा के विश्वविख्यात चित्र आदि यह प्रदर्शित करते हैं कि भारत में चित्रकला मानवीय अनुभवों और उसकी कल्पनाशीलता की अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम रही है।
- चित्रकला को गुप्त शासकों ने संरक्षण प्रदान किया। प्राचीन काल में हिन्दू धर्म, बौद्ध तथा जैन धर्म के कथानकों पर आधारित चित्रों का प्रचुर मात्रा में निर्माण हुआ।
- इस्लाम में केवल खुदा को ही चितेरा माना गया है और शेष सभी के लिए चित्रांकन, विशेषकर जीवित प्राणियों का चित्रांकन वर्जित है।
- मुस्लिम राज्यों द्वारा चित्रकला को सामान्यतः संरक्षण नहीं दिया जाता था। दिल्ली सल्तनत काल में चित्रकला प्रायः निषिद्ध रही।
मुगल काल में चित्रकला का विकास
Development of painting during the Mughal period
बाबर और हुमायूं के शासनकाल में चित्रकला का विकास
Development of painting during the reign of Babur and Humayun
- भारत में मुगलकाल में चित्रकला का अभूतपूर्व विकास हुआ।
- प्रारम्भ से ही मुगलों में धार्मिक संकीर्णता नहीं थी उनके राजनीतिक सिद्धान्तों, तथा उनके सामाजिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों में भी उदारता तथा लचीलापन था।
- बाबर ईरानी चित्रकला से प्रभावित था और प्रसिद्ध ईरानी चित्रकारों बहज़ाद तथा शाह मुज़फ्फ़र का प्रशंसक था। परन्तु भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना के बाद अपने अल्पकालीन शासन में चित्रकला के विकास में वह कोई भी योगदान नहीं दे सका।
- हुमायूं भी अपने पिता के समान चित्रकला में अभिरुचि रखता था। अपने ईरान प्रवास के दौरान वह ईरानी चित्रकारों के सम्पर्क में रहा था।
- सन् 1555 में अपनी भारत वापसी के समय वह दो प्रसिद्ध ईरानी चित्रकार ख्वाजा अब्दुस्समद तथा सैयद मीर अली तबरेज़ी अपने साथ लाया था। इन दोनों चित्रकारों को हुमायूं द्वारा दास्तान-ए-अमीर हम्ज़ा के कथानक के चित्रांकन का तथा अपने पुत्र अकबर को चित्रकला की शिक्षा देने का दायित्व सौंपा था।
- हुमायूं के अल्पकालीन शासन के उपलब्ध चित्र मूलत: ईरानी चित्रकला का ही प्रतिनिधित्व करते हैं। इन चित्रों की विशेषता इनकी प्रभावपूर्ण पृष्ठभूमि, समृद्ध अलंकरण तथा भावों का सजीव चित्रण है।
चित्रकला के पोषक के रूप में अकबर
Akbar as Promoter for painting
- अकबर कलात्मक अभिरुचि का एक कल्पनाशील व्यक्ति था।
- बादशाह हुमायूं ने उसको चित्रकला का प्रशिक्षण देने के लिए दो प्रतिष्ठित ईरानी चित्रकारों मीर सैयद अली तबरेज़ी तथा ख्वाजा अब्दुस्समद को नियुक्त किया था। इन दो कलाकारों ने ही उसके शासनकाल में चित्रकला के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
- अकबर की उदार विचारधारा तथा उसका सौन्दर्य प्रेम उसे इस्लाम में बताए गए चित्रकला के निषेध को स्वीकार करने से रोकती थी।
- वह मानव द्वारा बनाए चित्रों को खुदा की शान में गुस्ताखी नहीं बल्कि उस सबसे बड़े चितेरे की अनुपम कलाकारिता को कलाकार द्वारा अर्पित श्रद्धा सुमन मानता था।
अकबर के समय की चित्रकला की विशेषता
- अकबर के शासनकाल के प्रारम्भ में चित्रकला का विकास मुख्यतः ईरानी चित्रकला शैली के आधार पर हुआ।
- इस काल में बने चित्रों की विषय वस्तु तथा तकनीक मूलतः ईरानी थी। इन चित्रों में त्रि-आयामीय प्रभाव का अभाव है।
- प्रसिद्ध प्रेम आख्यानों, साहसिक अभियानों, ऐतिहासिक वृतान्तों - दास्तान-ए-अमीर हम्ज़ा, दास्तान-ए-लैला मजनू, रुबाइयात-ए-उमर खैयाम, चंगेज़नामा, बाबरनामा आदि के चित्रण के अतिरिक्त प्राकृतिक दृश्यों, दरबार, हरम, आखेट, प्रेम लीलाओं तथा आमोद-प्रमोद के दृश्यों का चित्रांकन किया गया।
- अकबरकालीन चित्रों में कपड़ों पर बने चित्र व्यक्तिचित्र (बादशाह, उसके परिवारजन तथा आभिजात्य वर्ग के स्त्री-पुरुषों के चित्र), लघु-आकारीय ग्रंथ चित्र तथा भित्ति चित्र (फ़तेहपुर सीकरी के महलों की दीवारों पर) सम्मिलित हैं।
- अकबर के सरंक्षण में विकसित चित्रकला में उसकी समन्वयवादी प्रवृत्ति रामायण, महाभारत, पंचतन्त्र, बैताल पचीसी, नल-दमयन्ती, काली दहन, श्रीकृष्ण रास लीला आदि के चित्रांकन में परिलक्षित होती है.
- फ़तेहपुर सीकरी के मरियम के महल की दीवारों पर ईसाई धर्म से सम्बन्धित चित्र उपलब्ध हैं।
- अकबर के दरबार के 17 चित्रकारों में मीर सैयद अली तबरेज़ी, ख्वाजा अब्दुस्समद, फ़ारूख कलामक तथा मिसकीन के अतिरिक्त शेष सभी 13 हिन्दू थे। इनमें प्रमुख थे - दसवन्त, बसावन, केसूलाल, मुकुन्द, महेश, खेमकरन, सांवला तथा हरिवंश .
- अकबरकालीन चित्रों में ईरानी शैली में पृष्ठभूमि को फूल-पत्ती तथा पेड़-पौधों से अलंकृत किया जाता था जिनके लिए चमकदार रंगों का प्रयोग किया जाता था। चित्रों में छाया और प्रकाश योजना का ध्यान रखा जाता था।
- चित्रों में बॉर्डर की सजावट पर विशेष ध्यान दिया जाता था। चित्रांकन में भावाभिव्यक्ति पर विशेष बल दिया जाता था। अकबरकालीन चित्रकला धर्म-निर्पेक्ष थी।
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