पूर्व पाषाण काल | Palaeolithic or Old Stone Age
पूर्व पाषाण काल Palaeolithic or Old Stone Age
पूर्व-पाषाण काल मानव सभ्यता का पहला युग
- पूर्व-पाषाण काल मानव सभ्यता का पहला युग था जिसमें वह पशुओं के समान व्यवहार करता था और बर्बर व असभ्य था। भूख व सुरक्षा जैसी दो मूल प्रवृत्तियों पर उसका व्यवहार निर्भर करता था।
- वह अपना अधिकांश समय भोजन की खोज व जंगली पशुओं से रक्षा करने में व्यतीत करता था। वह हिंसक था और पशुओं को मार कर खाता था।
- इतिहासकारों की दृष्टि में यह काल आज से छः लाख वर्ष पूर्व प्रारम्भ हुआ और इसका अन्त दस हजार ई. पूर्व हुआ होगा।
पूर्व पाषाण काल का विभाजन
इस लम्बे पूर्व पाषाण काल को भी अध्ययन की सुविधा के लिए तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है, जिसका आधार उस काल के हथियारों व औजारों की बनावट है
(1) प्रारम्भिक पूर्व पाषाण काल (Early Old Stone Age)
(2) मध्य पूर्व पाषाण काल (Middle Old Stone Age)
(3) उत्तर पूर्व-पाषाण काल (Later Old Stone Age)
प्रारम्भिक पूर्व पाषाण काल Early Old Stone Age in Hindi
- प्रारम्भिक पूर्व-पाषाण काल सम्भवतः इस काल में अधिकांश भाग बर्फ से ढका रहता था। मनुष्य पूर्णतः प्रकृति पर आश्रित था।
- वह सामान्यतः पशुओं के समान व्यवहार करता था। किन्तु मस्तिष्क की चंचलता के कारण उसने पत्थर के कुछ औजार बना लिए। ये औजार पशुओं को मारने और जंगली पशुओं से रक्षा में उसकी सहायता करते थे।
- इस काल के कोर्स औजारों (Cores) की मुख्य पहचान यह है कि मनुष्य ने पत्थर को घिसकर व रगड़कर हाथ से ही उन्हें बनाया था और एक पत्थर के टुकड़े की परत उतारकर में लाया विभिन्न स्थानों पर मिले इन औजारों का रूप कुल्हाड़ी या गंडासे (Choppers) के समान है जो काटने के काम आते होंगे।
- भारत में प्रारम्भिक पूर्व-पाषाण काल के अवशेष पंजाब में प्राप्त हुए हैं। उसके अतिरिक्त नर्मदा व गोदावरी नदियों के किनारों पर व सोन नदी की घाटी में भी प्राप्त हुए हैं।
मध्य पूर्व-पाषाण काल
- मध्य पूर्व-पाषाण काल इस काल में औजारों में थोड़ा-सा सुधार होता हुआ दिखाई देता है। ये फ्लेक (Flake) औजार एक बड़े पत्थर में से एक बड़ी परत उतार कर उस परत को गढ़ कर बनाए जाते थे। इस प्रकार के औजार भारत के विभिन्न क्षेत्रों में पाए गए हैं।
- ये अवशेष मुख्यतः सोन नदी की घाटी में प्राप्त हुए हैं। तुंगभद्रा नदी के दक्षिणी भाग में भी ये औजार मिले हैं।
उत्तर पूर्व-पाषाण काल
उत्तर पूर्व-पाषाण काल पूर्व-पाषाण काल के अन्तिम चरण में मानव ने विकास की एक और सीढ़ी पार की। यह बात इस काल के औजारों की बनावट से पता चलती है। अब जलवायु में भी पर्याप्त बदलाव हो गया था और मौसम कम नम था।
इस काल में मानव तेज धार वाले पत्थर के हथियार प्रयोग में लाता था। इन हथियारों के अवशेष महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश, छोटा नागपुर के पर्वतीय क्षेत्र तथा कर्नाटक में प्राप्त हुए हैं।
पूर्व-पाषाण काल की विशेषताएँ Pre-Stone Age Features
भारत के विभिन्न क्षेत्रों में पूर्व-पाषाण कालीन पत्थर के औजारों व हथियारों के अध्ययन से इतिहासकारों ने अनेक निष्कर्ष निकाले हैं। ये निष्कर्ष इस काल की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हैं, जो निम्नलिखित हैं-
पूर्व पाषाण काल के औज़ार Old Stone Age Tools
- इस काल का मानव असभ्य था और पशुओं समान व्यवहार करता था। उसे न कृषि का ज्ञान था न पशुपालन का। छोटे-छोटे पशुओं को मार कर उसका माँस ही उसका मुख्य भोजन था।
- इन पशुओं को मारने के लिए और जंगली जानवरों से अपनी रक्षा करने के लिए उसने कुछ औजार व हथियार बना लिए थे। ये सभी औजार व हथियार क्वार्टजाइट (Quartzite) नामक सख्त पत्थर के बने होते थे, जो उसे रास्ते में इधर-उधर पड़े मिल जाते थे।
- ये औजार दो प्रकार के थे-कोर (Core) तथा फ्लेक (Flake) कोर औजार बनाने के लिए एक पत्थर के दो टुकड़ों को घिसकर या तोड़-फोड़कर इस प्रकार उसकी परत उतारी जाती थी कि शेष पत्थर का टुकड़ा एक उपयोगी औजार के रूप में प्रयोग किया जा सके।
- फ्लेक औजार सम्भवतः अधिक परिष्कृत थे क्योंकि एक बड़े पत्थर में से एक बड़ी परत उतार कर उसे घिस कर व रगड़ कर तथा पैनी बनाकर औजार के रूप में इस्तेमाल किया जाता था।
- उनके हथियारों में कुल्हाड़ी गंडासे, भाले तीर के फल काटने फेंकने व छीलने के औजार आदि सम्मिलित थे।
- ये सभी औजार देखने में भद्दे थे। ऐसा प्रतीत होता है कि मानव ने पशुओं की हड्डियों का भी औजार बनाने में प्रयोग किया था। यह भी हो सकता है कि आवश्यकतानुसार पेड़ की बड़ी टहनियों का भी इस्तेमाल किया हो क्योंकि वह पेड़ के ऊपर व नीचे रहता था।
पूर्व पाषाण काल सभ्यता के केन्द्र
- भारत में पूर्व पाषाण काल के मानव की सभ्यता के केन्द्र अनेक स्थानों पर थे। पुरातत्व विशारदों ने इन केन्द्रों को खोज निकाला है। इन मानवों के द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले पत्थर के औजारों के आधार कहा जा सकता है कि मदुरा, त्रिचनापल्ली, धारवाड़, गुजरात, रीवा, तंजौर, मध्य प्रदेश व राजस्थान आदि प्रदेशों में ये लोग केन्द्रित थे।
- उत्तरी व पूर्वी भारत में इस काल के अवशेष प्राप्त न होने से यह अनुमान लगाया गया है। कि यह मानव उन क्षेत्रों में नहीं रहता था।
- एक दूसरा अनुमान यह भी लगाया जा सकता है कि इन अवशेषों को नदियों ने नष्ट कर दिया हो या समुद्र में बह गए हों।
- कुछ विद्वान इसी आधार पर यह अनुमान लगाते हैं कि पूर्व-पाषाणकाल के मानव की जीवन लीला मध्य व दक्षिण भारत में प्रारम्भ हुई और उसका विस्तार उत्तर व उत्तर पश्चिमी भारत तक हो गया।
पूर्व पाषाण काल निवास स्थान
- इस काल में आदि मानव जंगली पशुओं के समान इधर-उधर विचरण करते थे। वे वस्त्रों का भी उपयोग नहीं करते थे। उनका कोई निवास स्थान नहीं था और न घर की कल्पना ही पैदा हुई थी।
- साधारणतः वह वृक्षों के नीचे निवास करता था और आवश्यकता पड़ने पर वृक्षों पर चढ़ जाता था। वास्तव में ऋतुओं के अनुसार उसके निवास स्थान में परिवर्तन हो जाता था। वर्षा धूप व शीत से बचने के लिए वह कन्दराओं में निवास करता था।
- नदियों व झीलों के किनारे भी वह रहता था। इन स्थानों पर मानव के बहुत से अवशेष व पशुओं के चित्र आदि भी मिले हैं, अतः यह अनुमान लगाया गया है कि वह इन स्थानों पर रहता होगा।
पूर्व पाषाण काल में आजीविका के साधन
- उस काल का मानव पूर्णतः प्रकृति पर आश्रित 'प्राकृत प्राणी' था पशुपालन व कृषि से अनभिज्ञ होने के कारण वह अपनी जीविका के लिए प्रकृति से प्राप्त होने वाले कन्द, मूल तथा फल पर निर्भर करता था। इसके साथ ही वह जानवरों को मारकर उनका माँस खाता था।
- आग जलाने की विद्या से अपरिचित होने के कारण वह कच्चा माँस ही खाता होगा।
पूर्व पाषाण काल वस्त्र तथा आभूषण
- प्रारम्भ में आदि मानव नग्नावस्था में रहता था, किन्तु सामूहिक जीवन की आवश्यकताओं ने तथा ठण्ड व गर्मी से बचने के लिए उसने वृक्षों की छाल, पत्ते तथा पशुओं की खाल से शरीर ढकना प्रारम्भ कर दिया।
- इस समय तक मानव की पहुँच केवल पत्थर व हड्डियों तक सीमित थी। अतः वह शंख, सीपी, पशुओं के दाँत तथा पत्थरों से बने आभूषण पहनता था। इन आभूषणों का उपयोग स्त्री व पुरुष दोनों करते थे।
- समूहों में रहना प्रारम्भ हो जाने के कारण उन्हें लज्जा अनुभव हुई होगी और उन्होंने अपने गुप्त अंगों को ढकना आरम्भ किया होगा।
पूर्व पाषाण काल कला व संगीत
- पूर्व-पाषाण काल के मानव के निवास स्थानों से कला के भी कुछ नमूने प्राप्त हुए हैं। वह मिट्टी व कोयले से पशु-पक्षियों के चित्र बनाते थे। ये चित्र उनके औजारों पर भी बने हुए प्राप्त हुए हैं।
- खुदाई में हड्डी से बने हुए कुछ वाद्य यन्त्र मिले हैं, जिससे ज्ञात होता है कि उनमें संगीत के प्रति भी रुचि रही होगी।
सरल सामाजिक जीवन
- इस काल के मानव को उसकी आवश्यकताओं ने सामूहिक जीवन व्यतीत करने के लिए बाध्य किया होगा। जंगली पशुओं से रक्षा के लिए छोटे-छोटे समूहों रहना आवश्यक हो गया होगा और सम्मिलित रूप में ही खाद्य सामग्री जुटाना सरल हो गया होगा।
- इस प्रकार छोटे-छोटे समूहों में रहना प्रारम्भ हुआ होगा। सामूहिक जीवन में लज्जा का अनुभव करके अपने गुप्त अंगों को छुपाने के लिए वृक्षों के पत्तों व छालों तथा पशुओं की छालों का उपयोग प्रारम्भ किया होगा। इस प्रकार उस काल का सामाजिक जीवन अत्यन्त सरल था।
पूर्व पाषाण काल में धार्मिक भावना का अभाव
- पूर्व-पाषाण काल के मानव में धार्मिक भावना के विकास का कोई प्रमाण नहीं मिलता। शायद अभौतिक जगत के बारे में सोचने का उसे समय ही नहीं मिलता था।
- दैनिक जीवन की कठोरता तथा व्यस्तता के कारण सोचने व मनन करने का अवसर उसके पास नहीं था। उस काल की न कोई समाधि मिली है और न कोई ऐसे चिह्न जो सिद्ध करते हों कि वह देवी देवताओं की उपासना करता हो ।
- सम्भवतः वह मृतकों को खुले मैदान में पशु-पक्षियों के खाने के लिए छोड़ देता था।
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