सिन्धु सभ्यता के निवासी एवं निर्माता -Resident and creator of Indus civilization

 सिन्धु सभ्यता के निवासी एवं निर्माता -Resident and creator of Indus civilization

सिंधु और वैदिक सभ्यता में अंतर 

सिन्धु सभ्यता के निवासी एवं निर्माता -Resident and creator of Indus civilization सिंधु और वैदिक सभ्यता में अंतर


  • सिन्धु घाटी की सभ्यता के निवासी एवं निर्माता के बारे में विद्वानों में एक मत नहीं है। यहां के नगरों से पाये गये पुरातात्विक सामानों में भी यहां के निवासियों एवं निर्माताओं के बारे में निश्चित रूप से बताना मुश्किल है। 
  • कुछ इतिहासकारों ने इस सभ्यता को आर्येत्तर सभ्यता कहा है तो कुछ दूसरे विद्वान ने इसे द्रविड़ सभ्यता कहा है। सुमेरिया की सभ्यता से मिलता-जुलता रहने के कारण कुछ विद्वान इस सभ्यता को विकसित करने का श्रेय सुमेरियन लोगों को देते हैं। 


  • उपर्युक्त तथ्य अभी तक सच्चाई की कसौटी पर पूर्णतः सत्य नहीं साबित हो सके हैं। हाल के शोधों से ऐसा लगता है कि वे आर्य नहीं थे। आर्य तो सैन्धवों के शत्रु और संहारक थे। फिर हम पाते हैं कि सिन्धु सभ्यता के लोगों को लोहे तथा घोड़े की जानकारी नहीं थी। दूसरी तरफ हम पाते हैं कि आर्य लोग घोड़ा तथा लोहा से परिचित थे खुदाई से प्राप्त सामग्री के आधार पर हम पाते हैं कि सिन्धु सभ्यता के लोगों का जीवन नागरीय था। 
  • उनके समाज में व्यापार की काफी प्रधानता थी। आर्यों के समाज में ग्रामीण व्यवस्था का मुख्य स्थान था। ऋग्वैदिक काल में इनके द्वारा व्यापार करने की कोई चर्चा नहीं पायी जाती है। हमें यह भी पता चलता है कि युद्ध में सुरक्षा की दृष्टि से सिन्धुवासी कवच एवं शिरस्त्राण नहीं रखते थे लेकिन आर्यों के पास कवच एवं शिरस्त्राण थे। 
  • पुरातात्विक दृष्टिकोण से हम पाते हैं कि सिन्धु घाटी में मूर्तिपूजा की प्रथा थी। खुदाई से शिवलिंग मिले हैं। अतः वे लोग ज्यादातर शिव के भक्त थे। किन्तु आर्यों के काल में हम वायुजलअग्नि आदि की पूजा की चर्चा पाते हैं लेकिन शिव की नहीं। 
  • सिन्धु घाटी सभ्यता में देवी पूजा का स्थान भी ऋग्वैदिक काल की देवी पूजा की तुलना में अधिक ऊँचा था। अग्नि की पूजा का महत्त्व अगर वैदिक काल में ज्यादा था तो सिन्धु काल में कम। इस तरह उपर्युक्त दृष्टिकोण से हम सिन्धु सभ्यता एवं वैदिक सभ्यता में काफी अन्तर पाते हैं।
  • कहा जाता है कि भारत के पश्चिम उत्तर प्रदेश में असुर रहा करते थे। इन्हीं असुरों की लड़ाई आर्यों के साथ हुई थी। ये असुर पश्चिम एशिया में भी जाकर निवास करने लगे। इस तरह सैन्धव असुर या द्रविड़ थे। उपर्युक्त विचार पर भी आधुनिक विद्वान एकमत नहीं हैं। बहुत से विद्वानों का कहना है कि ये अनार्य नहीं थे। सैन्धव को विद्वान सुमेरिया के रहने वाले भी नहीं मानते हैं। उनका विचार है कि सुमेरिया की सभ्यता सिन्धु सभ्यता से अधिक प्राचीन है।
  • अगर खुदाई से दोनों स्थानों में एक ही तरह के सामान मिलते हैं तो इससे यह अनुमान किया जा सकता है कि दोनों क्षेत्रों के बीच व्यापारिक सम्बंध था। अधिकांश विद्वान तो सिन्धु लोगों को द्रविड़ मानते ही हैं। 
  • असल में द्रविड़ों की एक भाषा ब्राहुर्द भी है और हम पाते हैं कि भारत के पश्चिमोत्तर भाग में आज भी कुछ लोग यह भाषा बोलते हैं। कहते हैं कि बहुत से लोग उत्तर भारत में आर्यों से युद्ध में परास्त होने के फलस्वरूप दक्षिण भारत में चले गए। बाकी जो लोग बच गए पश्चिमोत्तर भारत में वे ही ब्राहुई भाषा का प्रयोग बोलचाल में करते रहे। अतः कहा जा सकता है कि सैन्धव अवश्य ही द्रविड़ थे। 
  • कुछ विद्वान सैन्धव सभ्यता के निवासियों का सम्बंध मंगोलों से भी जोड़ते हैंकिन्तु इस तथ्य में जान नहीं है। उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सिन्धु क्षेत्र में विभिन्न क्षेत्रों के लोग रहते थे और उनके सम्मिलित प्रयास के फलस्वरूप ही इस महान सभ्यता का विकास हुआ। 
  • सिन्धु सभ्यता के विकास से पूर्व ही इस इलाके में कृषि का विकास हो चुका था। ईसा के तीन हजार वर्ष पूर्व ही सिन्धु और पंजाब के क्षेत्रों में कृषि का विकास हो चुका था। उसके बाद यह कृषि व्यवस्था पूर्व की ओर प्रसारित हुई। जिस कारण प्राचीन सरस्वती घाटी भी सिन्धु घाटी की सभ्यता की सीमा के अन्दर आ गई।
  •  निःसंदेह ही बलूचिस्तान एवं बृहत्तर सिन्धु घाटी में आरम्भ के इस कृषि व्यवस्था तथा बाद में चलकर उसी क्षेत्र में सिन्धु सभ्यता के विकास में निकट सम्बंध रहा है। सिन्धु सभ्यता इस प्राचीन आधार पर क्यों और कैसे विकसित हुईयह आज भी बताना सम्भव नहीं हो सकता हैलेकिन नये शोधों के आधार पर हम इतना अवश्य कह सकते हैं कि इस सभ्यता की जड़ें स्थानीय भूमि पर गहरी जमी थीं। सभ्यता वाली बस्तियों के विस्तार के सम्बंध में अभी भी बहुत कुछ अज्ञात है।

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