मराठों का उत्थान |महाराष्ट्र का राजनीतिक-सैनिक इतिहास Rise of Maratha in Hindi
मराठों का उत्थान Rise of Maratha in Hindi
शिवाजी के उदय से पूर्व महाराष्ट्र का राजनीतिक-सैनिक इतिहास
महाराष्ट्र की भौगोलिक स्थिति
- महाराष्ट्र भारत के पश्चिम में स्थित दुर्गम पठारी, खाद्योत्पादन की दृष्टि से सामान्यतः अनुपजाऊ क्षेत्र है। मध्यकाल में इस क्षेत्र में व्यापार और वाणिज्य का अधिक विकास भी सम्भव नहीं था।
- प्राचीन तथा मध्यकाल में इस क्षेत्र की दुर्गम भौगोलिक स्थिति के कारण बाहरी शक्तियों का इस पर प्रभुत्व स्थापित कर पाना कठिन था।
- प्रसिद्ध इतिहासकार सर जदुनाथ सरकार मराठा जाति के साहस, आत्मनिर्भरता, सामाजिक समानता के भाव तथा सादगी पसन्द स्वभाव को उसकी वीरता और स्वतन्त्र प्रकृति का श्रेय देते हैं।
- कठिनाइयों से भरा चुनौतीपूर्ण जीवन व्यतीत करने वाले मराठों ने जंगलों और पर्वतीय दुर्गों में अपने सैनिक ठिकाने बना लिए थे जहां छिप-छिप कर लड़ते हुए वे बड़े से बड़े से आक्रमण को विफल कर सकते थे।
- उत्तर भारत की प्रमुख शक्तियों ने इस क्षेत्र पर सीधे प्रभुत्व स्थापित करने का बार-बार प्रयास किया किन्तु उनको इस विषय में कभी भी स्थायी सफलता नहीं मिली।
- अलाउद्दीन खिलजी से पहले किसी भी मुस्लिम शासन ने यहां पर सैनिक और राजनीतिक सफलता प्राप्त नहीं की।
- अलाउद्दीन खिलजी ने देवगिरि राज्य के शासकों को पराजित कर उन्हें अपनी आधीनता स्वीकार करने के लिए विवश किया किन्तु वार्षिक भेंट लेने के बाद वास्तविक सत्ता उन्हीं के हाथों में रहने दी।
- मुहम्मद बिन तुगलक ने दिल्ली से दौलताबाद में अपनी राजधानी परिवर्तित कर दक्षिण पर अपना सीधा प्रभुत्व। स्थापित करना चाहा तो उसको असफलता मिली। इस प्रकार लम्बे समय तक यह क्षेत्र मुस्लिम आधिपत्य से मुक्त रहा।
- देवगिरि राज्य के पतन तथा दक्षिण में बहमनी राज्य की स्थापना के बाद मराठा सरदार अपने सैनिकों के साथ उसमें शामिल हो गए और बहमनी राज्य के विघटन के बाद नवोदित राज्यों अहमदनगर, बीजापुर तथा गोलकुण्डा की प्रशासनिक एवं सैनिक सेवा में सम्मिलित हो गए।
- पंढरपुर के सन्तों के नेतृत्व में महाराष्ट्र में भक्ति आन्दोलन के विकास से मराठों को अपनी एक अलग धार्मिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और सैनिक पहचान बनाने की प्रेरणा मिली |
- समर्थ गुरु रामदास ने महाराष्ट्र-धर्म की अवधारणा का विकास कर मराठा जाति को एकजुट कर उसमें राष्ट्रीय चेतना का संचार कर उसकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा का विकास किया।
- अहमदनगर के मलिक अम्बर ने मराठों को अपनी प्रशासनिक एवं सैनिक सेवा में शामिल किया।
- मलिक अम्बर मराठों को गुरुल्ला युद्ध नीति में प्रशिक्षित किया और उनकी सहायता से उसने मुगलों को अहमदनगर में अपने पाँव आगे नहीं पसारने दिए।
- मलिक अम्बर के बाद शाह जी भोंसले ने अहमदनगर राज्य की ओर से मुगलों का सामना किया किन्तु सन् 1636 में अहमदनगर के मुगल साम्राज्य में शामिल किए जाने के बाद उसने बीजापुर राज्य में एक उच्च पद प्राप्त कर लिया।
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