सम्राट अशोक और ब्राह्मण धर्म | Samrat Ashok Aur Bramhan Dharm
सम्राट अशोक और ब्राह्मण धर्म
अशोक द्वारा पशुबलि पर प्रतिबंध
- अशोक की धार्मिक नीति के कारण उस पर यह आक्षेप लगाया जाता है कि उसने बलपूर्वक यज्ञों की मनाही करके ब्राह्मण मतावलम्बियों की धार्मिक भावना को ठेस पहुँचायी। किन्तु यह आरोप तर्कसंगत नहीं माना जा सकता। कोई भी सरकार अपने राज्य में बहुत बड़े पैमाने पर पशु बलि की प्रथा को स्वीकार नहीं कर सकती।
- अशोक नर और पशु सब में समान आत्मा समझता था और हत्या को समान हत्या समझता था। ऐसी हालत में वह पशुबलि के प्रश्न पर ब्राह्मणों से किसी प्रकार समझौता करने के लिए तैयार नहीं था। उसने पशुबलि निषेध बौद्ध धर्म के सिद्धांत के अनुसार ही नहीं किया; इस निश्चय के मूल में उसका व्यक्तिगत चरित्र भी था।
- कलिंग युद्ध के कारुणिक दृश्य को देखकर अशोक पर जो प्रतिक्रिया हुई थी वह सर्वविदित है। इसके बाद उसने अपने हितों पर जरा भी ध्यान न देते हुए रणघोष के स्थान पर धर्मघोष की प्रतिज्ञा की। ऐसे सम्राट ने यदि पशु बलि को बन्द ही करा दिया तो इसमें किसी प्रकार का आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
- अशोक की धार्मिक नीति की एक दूसरी विशेषता यह थी कि साम्प्रदायिकता का अन्त हो जाये और सम्पूर्ण विश्व में बन्धुत्व की भावना का प्रसार हो। इसीलिए उसने अपनी प्रजा को प्रत्येक धर्म के विषय में जानकारी रखने की अनुमति दी।
- विदेशियों से मैत्री भाव स्थापित करने में उसकी धार्मिक नीति ने बहुत कुछ योगदान दिया। इस प्रकार हम देखते हैं कि ब्राह्मण, श्रमण, आजीविक आदि को प्रसन्न रखते हुए अशोक ने सफलतापूर्वक अपने धर्म का प्रचार किया। उसकी धार्मिक नीति की सफलता का सबसे बड़ा प्रमाण तो बौद्ध धर्म का प्रचार तथा ब्राह्मणों आदि का कोई विद्रोह न करना ही है। अशोक, जैसा कि हम जानते हैं पशु वध निषेध करके ब्राह्मणों यज्ञों की अवहेलना कर चुका था। ऐसी दशा में ब्राह्मण का विरोध करना कोई कठिन कार्य न था, किन्तु अशोक ने अपनी प्रजा प्रियता तथा अन्य चारित्रिक गुणों द्वारा अपनी धार्मिक नीति को सफल बनाया।
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