सम्राट अशोक | सम्राट अशोक का जीवन | Samrat Ashok Ke Baare Me Jaankari
सम्राट अशोक | अशोक का प्रारम्भिक जीवन Samrat Ashok Ke Baare Me Jaankari
अशोक का प्रारम्भिक जीवन
- अशोक संसार के सबसे महान् राजाओं में से एक है। उसने जिस साम्राज्य पर शासन किया वह भारत का सबसे बड़ा साम्राज्य था। साम्राज्य के विस्तार, शासन की व्यवस्था, प्रजावत्सलता, धर्म की संरक्षता तथा हृदय की उदारता आदि के दृष्टिकोण से भारत के इतिहास में वह अद्वितीय माना जाता है। विश्व में विशालता के दृष्टिकोण से अनेक साम्राज्य तथा उसके शासक प्राप्त हो सकते हैं, किन्तु विस्तृत साम्राज्य का सर्वश्रेष्ठ सम्राट होने के साथ-साथ सर्वश्रेष्ठ मानव होना बड़ा कठिन होता है, पर अशोक में यह बात पायी जाती है और इसी कारण वह भारतीय इतिहास का अद्वितीय व्यक्ति हो जाता है।
- अशोककालीन इतिहास पर पुराणों एवं अन्य ग्रन्थों में प्रचुर सामग्री उपलब्ध है, परन्तु स्वयं उसके अभिलेखों से जो ऐतिहासिक तथ्य प्राप्त होते हैं वे प्रामाणिकता की दृष्टि से बेजोड़ हैं। यदि उसके उत्कीर्ण लेख आज हमारे सामने नहीं होते तो उसकी कीर्ति और उसके आदर्शों की हमें कोई जानकारी नहीं होती। बौद्धगाथाओं के एकपक्षीय होने के कारण उन पर पूरा पूरा विश्वास नहीं किया जा सकता था।
सम्राट अशोक की माँ का क्या नाम था
अशोक का जन्म
- अशोक के जन्म तथा प्रारम्भिक जीवन के सम्बन्ध में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। उसके पिता बिन्दुसार की कई पत्नियां थीं। अशोक की माता के सम्बन्ध में भी इतिहासकारों में मतभेद हैं। कुछ विद्वानों का मत है कि अशोक सम्राट बिन्दुसार के एक यूनानी रानी से उत्पन्न हुआ था। परन्तु इस मत को सिद्ध करने के लिए कोई विश्वसनीय प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं। दिव्यावदान में उल्लेख आता है कि अशोक की माता का नाम जनपदकल्याणी था। कहीं-कहीं उसका नाम सुभद्रांगी भी आता है। कहते हैं कि वह चम्पा के ब्राह्मण की पुत्री थी और परम सुन्दरी थी। उसी से अशोक तथा विगताशोक (तिष्य) नामक दो पुत्र पैदा हुए थे। सुसीम अशोक का सौतेला भाई था।
अशोक की शिक्षा
- शिक्षा दीक्षा अपने सहोदर भाई तिष्य तथा अन्य सौतेले भाइयों के साथ ही हुई थी। वह पढ़ने-लिखने, हथियार चलाने, आदि में अन्य सभी राजकुमारों से अधिक चुस्त, चालाक और योग्य था। उसकी प्रतिभा, योग्यता और बुद्धि अपने सभी भाइयों से अधिक बढ़ी-चढ़ी थी। उसका सौतेला बड़ा भाई सुसीम इसीलिए उससे भारी द्वेष रखता था। सम्राट बिन्दुसार ने अशोक को उज्जैन तथा बाद में तक्षशिला का कुमार (राज्यपाल) बनाया। तक्षशिला के विद्रोह को जब अशोक का बड़ा भाई सुसीम न दबा सका तो बिन्दुसार ने अशोक को तक्षशिला भेजा। अशोक ने इस विद्रोह को शान्त करने में सफलता हासिल की। बिन्दुसार अशोक की प्रतिभा और योग्यता से बहुत प्रभावित था। अतएव उसने उसे युवराज का पद प्रदान किया।
अशोक का विवाह
- अशोक के प्रारम्भिक जीवन का एक और उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि जब वह उज्जैयनी की सूबेदारी का कार्यभार संभालने जा रहा था तो मार्ग में विदिशा में ठहरा। वहां एक व्यापारी की देवी नामक पुत्री पर आसक्त हो गया और उससे विवाह कर लिया। इस पत्नी से अशोक को महेन्द्र नामक पुत्र तथा संघमित्रा नामक एक पुत्री हुई। बौद्ध धर्म के इतिहास में इन दोनों को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।
अशोक का साम्राज्य के लिए संघर्ष
- बिन्दुसार की मृत्यु के पूर्व ही उसकी बीमारी का समाचार प्राप्त करके अशोक, जो उस समय उज्जैन का प्रतिनिधि शासक था, पाटलिपुत्र चला आया। अशोक सम्राट बिन्दुसार का द्वितीय पुत्र था। बिन्दुसार की कई रानियाँ और बहुत से पुत्र थे। उसके सबसे बड़े पुत्र का नाम सुमन अथवा सुसीम था। वह अशोक का सौतेला भाई था। बिन्दुसार की दूसरी रानी से दो पुत्र उत्पन्न हुए थे जिनके नाम अशोक और तिष्य थे। इस प्रकार तिष्य अशोक का सहोदर भ्राता था। तिष्य का ही दूसरा नाम विगताशोक अथवा वीताशोक था। अशोक के एक और भाई का नाम महेन्द्र था। महेन्द्र को कुछ इतिहासकारों ने अशोक का पुत्र भी माना है। परन्तु इस विषय में अधिक जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी है।
- दिव्यावदान के अनुसार अशोक को राजसिंहासन प्राप्ति के लिए अपने बड़े भाई के साथ घोर संघर्ष करना पड़ा। इस संघर्ष में अन्ततः अशोक विजयी रहा और अपने पिता की मृत्यु के चार वर्ष उपरांत 269 ई. में वह पाटलिपुत्र के राजसिंहासन पर बैठा। इन चार वर्षों के अन्दर क्या हुआ तथा कौन यहाँ का सम्राट बना, इसके विषय में कोई निश्चित प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं। बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार बौद्ध धर्म में दीक्षित होने पूर्व अशोक बड़ा निर्दयी था। वह चण्डाशोक था उसे अपने 99 भाइयों की हत्या करने में उसे बिल्कुल संकोच नहीं हुआ। किन्तु बौद्ध धर्म का अनुयायी बनने पर वह धर्माशोक बन गया तथा उसने अहिंसा की नीति को अपना लिया।
- बौद्ध ग्रन्थों का यह कथन उपयुक्त प्रतीत नहीं होता। उन्होंने तो बौद्ध धर्म को महत्त्व प्रदान करने के लिए अशोक के पूर्व चरित्र को कलंकित बनाने का प्रयास किया है। उनके विचार में उनके धर्म के प्रभाव में आकर अशोक के समान पापी व्यक्ति भी धर्मराज बन गया। किन्तु वास्तव में अशोक के लेखों से पता चलता है कि उसके जीवन काल में उसके भाइयों का पोषण राज्य की ओर से होता था। अतः उसने अपने सब भाइयों की हत्या नहीं की। इसके अतिरिक्त यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि जो व्यक्ति युद्धभूमि में घायल एवं मृतक व्यक्तियों को देखकर इतना द्रवित हो उठा कि उसने युद्ध न करने की प्रतिज्ञा कर ली वह अपने 99 भाइयों की हत्या किस प्रकार कर सका होगा? क्या भाई के रक्त संबंध का कोई प्रभाव उस पर न पड़ा होगा? अतः सिंहल का कथन कपोल कल्पित ही कहा जा सकता है। तब फिर इन चार वर्षों में क्या हुआ जो बिन्दुसार की मृत्यु और अशोक के राज्याभिषेक के बीच में आते हैं। कुछ इतिहासकारों का कथन है कि सम्भवतः अशोक अपने पिता की मृत्यु के समय अल्पवयस्क रहा होगा तथा चार वर्ष बाद पूर्ण वयस्क होने पर उसका राज्याभिषेक हुआ होगा। किन्तु अशोक बिन्दुसार के समय में ही तक्षशिला का विद्रोह दमन करने गया था, अतः वह काफी बड़ा रहा होगा। भारत के इतिहास में अनेक ऐसे उदाहरण उपलब्ध होते हैं जब अल्पवयस्क राजकुमारों का राज्याभिषेक हुआ था। महाराजा परीक्षित का अभिषेक तो केवल पांच वर्ष की अवस्था में ही हो गया था। इस विषय पर डॉ. भण्डारकर का मत उचित प्रतीत होता है। उनका कथन है कि अशोक बिन्दुसार का सबसे बड़ा पुत्र न होने के कारण उसका उत्तराधिकारी नहीं बन सकता था। सुमन अथवा सुसीम बिन्दुसार का ज्येष्ठ पुत्र था किन्तु अशोक एक महत्त्वाकांक्षी राजकुमार था तथा वह सम्राट बनना चाहता था। इसीलिए निश्चित है कि उसे अपने बड़े भाई से संग्राम करना पड़ा हो। सम्भवतः इस संग्राम में उसे एक-दो भाइयों की हत्या करनी पड़ी हो। किन्तु 99 भाइयों की हत्या करना तो एक निर्दयी और क्रूर व्यक्ति के लिए भी शायद ही सम्भव हो। अतः अशोक ने सम्भवतः राजसिंहासन के लिए अपने भाइयों से युद्ध किया हो जो सुसीम के पक्षपाती थे। इसी युद्ध के कारण उसका राज्याभिषेक बिन्दुसार की मृत्यु के चार वर्ष उपरांत सम्भव हो सका। सिंहासन पर बैठने के समय अशोक ने 'देवानाप्रिय' तथा 'प्रियदर्शी' की उपाधियाँ धारण कीं।
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