संस्कार का महत्व | संस्कारों का महत्व क्या है | Sanskar Ka Mahtav
संस्कारों का महत्व क्या है
संस्कार का महत्व | Sanskar Ka Mahtav
सोलह संस्कार की क्या उपयोगिता है ?
- संस्कारों का सामाजिक, धार्मिक एवं साँस्कृतिक महत्व है, ये मनुष्य को अच्छे गुणों से अलंकृत कर योग्य संस्कारवान बनाते थे।
- संस्कार मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक के लौकिक एवं पारलौकिक जीवन को सुखमय बनाते थे। इनमें मनुष्य के जीवन के सर्वांगीण विकास की धारणानिहित होती थी।
- संस्कार, व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास क्रमिक रूप से जन्म के पूर्व से लेकर मृत्यु तक करते थे।
- संस्कार मनुष्य को योग्य बनाकर उसे कर्त्तव्यों के प्रति सचेत एवं जागरूक नागरिक बनाते थे|
- संस्कार मनुष्य को आचरणवान और चरित्रवान बनाते थे।
- संस्कार मनुष्य जीवन को परिष्कार एवं शुद्धि प्रदान करते थे तथा मनुष्य को पवित्रता प्रदान करके व्यक्तित्व को निखारते थे।
- संस्कार मनुष्यों को सामाजिक एवं आध्यात्मिक नागरिक बनाने में सहयोग करते थे।
- संस्कार मानव के समाजीकरण में सहयोगी होते थे।
- संस्कार क्रमिक रूप से समाज के यम नियमों से व्यक्ति को परिचित कराते थे, जिससे मनुष्य धीरे धीरे समाज में अपने आप ढलने लगता था।
- संस्कार मनुष्य के सामाजिक दायित्वों से भी उसे परिचित कराते थे। जिससे मनुष्य सामाजिक दायित्वों का सफलता के साथ निर्वहन करने लगता था तथा मनुष्य के सामाजीकरण की प्रक्रिया पूर्ण होने पर वह सामाजिक कठिनाईयों एवं समस्याओं का सामना करने के लिए अपने आप को प्रशिक्षित पाता था।
- संस्कार व्यक्ति को एक प्रकार से शिक्षित करते थे, व्यक्ति को प्रशिक्षित करके योग्य और उपयोगी नागरिक बनाते थे, जिससे व्यक्ति सामाजिक जटिलताओं और चुनौतियों का सामना करने में सफल रहता था।
- संस्कार व्यक्ति को लौकिक विधि - विधानों से सुसंपन्न करके सामाजिक एवं साँस्कृतिक रूप से सक्षम बनाते थे।
- संस्कारों का हिन्दू सामाजिक एवं धार्मिक जन जीवन में इसीलिए महत्व और बढ़ जाता था क्योंकि, ये व्यक्ति को नैतिक एवं साँस्कृतिक तत्वों से अभीभूत करते थे।
- संस्कार व्यक्ति को धार्मिक रीति रिवाजों, परंपराओं एवं आचार विचारों से परिचित कराते थे, इससे न केवल व्यक्ति का अपितु समाज का भी नैतिक एवं साँस्कृतिक रूप से उत्कर्ष होने का मार्ग प्रशस्त होता था।
- संस्कार व्यक्ति को आध्यात्मिक विकास की ओर ले जाते थे। ये व्यक्ति के ज्ञान चक्षु खोलकर वास्तविकता का ज्ञान कराते थे।
- मनुष्य को अज्ञानता से ज्ञान की ओर ले जाने का कार्य संस्कार करते थे।
- संस्कार व्यक्ति को धार्मिक बनाकर उसके मनोबल को भी ऊँचा उठाने का कार्य करते थे।
- आध्यात्मिक रूप से विकसित व्यक्ति समाज को सही दिशा में ले जाने का कार्य करते थे। इस प्रकार संस्कार मनुष्य, समाज एवं देश को संस्कारवान बनाकर मानव सभ्यता बनाने का प्रयास करते थे।
- संस्कार व्यक्ति और समाज का उत्थान एवं उत्कर्ष करते थे, यही इनका अंतिम और वास्तविक महत्व था।
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