संस्कार और विवाह व्यक्ति के जीवन को व्यवस्थित
और संगठित करके व्यक्ति के जीवन का नैतिक और सामाजिक रूप से समाज में उत्कर्ष करते
थे। संस्कार व्यक्ति को नैतिक, व्यक्तिगत
और आध्यात्मिक गुणों से अलंकृत करते थे। सोलह संस्कार व्यक्ति के जन्म के पूर्व से
लेकर मृत्यु के बाद तक व्यक्ति के लौकिक और पारलौकिक सुख समृद्धि की कामना करते
थे। संस्कार व्यक्ति के जीवन को परिष्कृत करके उसे सुयोग्य एवं सभ्य नागरिक बनाते
थे। संस्कारों के द्वारा व्यक्ति और समाज के बीच उत्तम समन्वय स्थापित हो जाता था, इससे व्यक्ति का न केवल समाजीकरण होता
था, बल्कि व्यक्ति समाज का अभिन्न उपयोगी
सदस्य भी बन जाता था।
विवाह एक सार्वभौमिक संस्था हैं, यह सभी स्थानों एवं समाजों में पायी
जाती है। हिन्दू विवाह एक धार्मिक संस्कार हैं। हिन्दू विवाह पूरे धार्मिक विधि
विधान से अग्नि को साक्षी मानकर संपन्न होता हैं। हिन्दू विवाह जन्म जन्मातर का
पवित्र अटूट बंधन माना जाता है, जिसको
तोड़ना धार्मिक एवं सामाजिक दोनों ही दृष्टिकोण वर्जित माना जाता है। विवाह के बाद
व्यक्ति को यौन संबंधों की धार्मिक एवं सामाजिक स्वीकृति मिल जाती है।
इस आर्टिकल में आपको संस्कार का अर्थ एवं अवधारणा
की जानकारी प्राप्त होगी। इस इकाई में आपको संस्कार के प्रकार एवं महत्व की भी
जानकारी प्राप्त होगी। इस इकाई में आपको विवाह का अर्थ, परिभाषा एवं अवधारणा की जानकारी
प्राप्त होगी।
संस्कार से अभिप्राय एवं अवधारणा
भारतीयों के सामाजिक एवं साँस्कृतिक लौकिक विकास
के लिए संस्कारों का सृजन प्राचीन हिन्दू मनीषियों ने किया।
संस्कार मनुष्य के
जीवन को सुसंस्कृत करते थे,
जिससे मनुष्य का व्यक्तित्व निखर कर
नैतिक एवं आध्यात्मिक रूप से उन्नति प्राप्त करके समाज का विकसित, अनुशासित जागरूक एवं योग्य नागरिक बनता
थे।
प्राचीन हिन्दू ऋषि मुनियों ने मनुष्य को कुसंस्कारों एवं अशुभ शक्तियों से
मुक्त करने तथा नैतिक एवं आध्यात्मिक गुणों का विकास करके मनुष्यों के व्यक्तित्व
का अच्छे संस्कारों से गढ़ने के लिए संस्कारों का विधान किया था।
संस्कार, समाज के लिए एक ऐसी सामाजिक एवं
साँस्कृतिक पृष्ठभूमि का निर्माण करते थे, जो
मनुष्य के लौकिक एवं अलौकिक उत्थान का मार्ग प्रशस्त करते थे। इस प्रकार संस्कार
मनुष्य के व्यक्तित्व का निर्माण एवं विकास करके सुसभ्य समाज की स्थापना में
महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे|
संस्कार का शाब्दिक अर्थ
संस्कार
शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा की 'कृ' धातु में 'ध' प्रत्यय
को जोड़कर हुई हैं, जिसका अर्थ शुद्धता या पवित्रता' है। इस प्रकार संस्कार शब्द की जननी
संस्कृत भाषा है।
अंग्रेजी भाषा में संस्कार के लिए ‘सैक्रामेंट' शब्द प्रयोग किया जाता है, जिसका शाब्दिक अर्थ 'धार्मिक विधान' होता हैं।
संस्कार क्या होते हैं
संस्कार वे धार्मिक विधि
विधान है, जो मनुष्य के जीवन को शुद्ध करके उन
उच्च विचाr की शिक्षा - प्रशिक्षण प्रदान करते थे, जिनसे मनुष्य समाज के लिए एक उपयोगी तत्व बन जाता था और समाज को
सुदृढ़ता प्रदान करता था। संस्कारवान बनकर मनुष्य अशुभ अमंगलकारी तत्वों पर विजय
प्राप्त कर शुभ और मंगलकारी जीवन का निर्माण करता था।
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