सिन्धु सभ्यता का विस्तार तथा क्षेत्र |Sindhu Sabhyata Ka Vistar
सिन्धु सभ्यता का विस्तार तथा क्षेत्र
Sindhu Sabhyata Ka Vistar
जैसे-जैसे पुराविद नवीन स्थलों का उत्खनन कर रहे हैं, वैसे-वैसे सिन्धु सभ्यता का विस्तार एवं प्रसार क्षेत्र बढ़ता जा रहा है। वर्तमान में यह सभ्यता आधुनिक पाकिस्तान से भी आगे तक विस्तृत हो चुकी है।
- सिन्धु सभ्यता पश्चिम दिशा से पूर्व दिशा तक लगभग 1500 किलोमीटर तथा उत्तर दिशा से दक्षिण दिशा तक लगभग 1200 किलोमीटर के क्षेत्र में विस्तृत है।
- बीसवीं सदी के सातवें दशक के प्रारंभ तक लगभग 250 स्थलों की गिनती की गयी थी किन्तु हाल के एक अनुमान के अनुसार सिन्धु सभ्यता के उत्खनित स्थलों की संख्या अब 1000 को पार कर गयी है और उल्लेखनीय है कि इनमें से अधिकांश लगभग दो-तिहाई स्थल वर्तमान भारतीय क्षेत्र में स्थित हैं।
- सिन्धु सभ्यता के स्थलों का संकेन्द्रण सिन्धु तथा उसकी सहायक नदियों के मैदानों में है और इस क्षेत्र में हमें लगभग 250 स्थल विद्यमान मिलते हैं।
- पिछले दशकों में हुए उत्खनन से अनेक महत्वपूर्ण स्थलों की जानकारी प्रकाश में आयी है।
- इनमे से से एक स्थल उत्तरी-पूर्व अफगानिस्तान में ओक्सस के दक्षिणी मैदानों में स्थित शौर्टूघई है, इस स्थल में शायद बख्शाँ की खानों से प्राप्त लेपिस लजुली का व्यापार और अन्य चीजों जैसे तांबे आदि का व्यापार भी होता था।
- इसी प्रकार सौराष्ट्र में रोजदी तथा कच्छ क्षेत्र में देसालपुर को उत्खनित किया गया है।
- दक्षिणी सिन्ध तथा बलूचिस्तान में अल्लाहदीनों एवं लासबेला के निकट बालाकोट की खोज भी महत्वपूर्ण उपलब्धियां हैं। इनमें से अनेक स्थलों की प्राप्तियां इन्हें परिपक्व हड़प्पा सभ्यता के अंतर्गत रखती हैं।
- रोपड़ और आलमगीरपुर के अवशेष इस सभ्यता का पूर्व दिशा में दोआब क्षेत्र की ओर विस्तार को बतलाते हैं।
- सिन्धु सभ्यता के दो प्रमुख नगरों मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के अलावा वर्तमान में अनेक छोटे-छोटे स्थलों का उत्खनन भी हुआ है। ऐसे स्थलों को शासन के प्रांतीय केन्द्रों के रूप में माना जा सकता है।
- ऐसा ही एक स्थल कालीबंगन है, जिसका नगर विन्यास बिल्कुल हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसा ही है।
- लोथल नामक स्थल भी महत्वपूर्ण है, यह गुजरात में खंबात की खाड़ी पर स्थित है।
- मोहनजोदड़ो से लगभग 130 किलोमीटर दक्षिण में विद्यमान चन्हुदाड़ो भी महत्वपूर्ण केन्द्र रहा होगा। इसी प्रकार बनवाली का उल्लेख भी किया जा सकता है।
- हाल ही के वर्षों की एक महत्वपूर्ण खोज धौलावीरा नामक स्थल है, जो सिन्धु संस्कृति के तीसरे बढ़े केन्द्र के रूप में प्रकाश आया है।
- कुछ अन्य महत्वपूर्ण स्थलों के अंतर्गत कोटदीजी, रोजदी, देसालपुर, रंगपुर, डाबरकोट, बालाकोट इत्यादि को सम्मिलित किया जा सकता है।
- सिन्धु सभ्यता के कुछ स्थल पश्चिम दिशा में बलूचिस्तान में मकरान समुद्र तट के पास प्राप्त होते हैं, इनमें सबसे दूर स्थित स्थल आधुनिक पाकिस्तान-ईरान सीमाप्रांत में स्थित सुत्कजैंडोर है, यह स्थल एक व्यापारिक चौकी या बंदरगाह रहा होगा।
- सिन्धु के पूर्व में कच्छ के समीप समुद्रतट के आसपास भी स्थल मिलते हैं, इनमें सबसे महत्वपूर्ण केम्बे की खाड़ी में विद्यमान लोथल नामक स्थल है।
- पूर्व दिशा में भी सिन्धु सभ्यता का व्यापक प्रसार दिखता है। यहां हमें मेरठ जिले के आलमगीरपुर नामक स्थान में सिन्धु सभ्यता के अवशेष मिले हैं। इस संदर्भ में शाहजहाँपुर जनपद का हुलास नामक स्थल भी महत्वपूर्ण है, यहां हुआ उत्खनन भी सिन्धु सभ्यता के यहां तक के प्रसार को दर्शाता है। उत्तर दिशा में भी सिन्धु संस्कृति पर्याप्त विस्तृत थी।
- उत्तर दिशा में पहले इस सभ्यता की सीमा पंजाब में स्थित रोपड़ नामक स्थल तक मानी थी परंतु अब जम्मू-काश्मीर राज्य में स्थित मांड तक इस सभ्यता के स्थल मिल चुके हैं।
- दक्षिण दिशा में भी सिन्धु सभ्यता का व्यापक प्रसार हुआ था। पूर्व की खोजों के अनुसार पहले इस सभ्यता की दक्षिणी सीमा गुजरात प्रांत में स्थित एक छोटी सी नदी किम के समीप स्थित भगव नामक स्थल तक मानी जाती थी लेकिन बाद के उत्खनन ने सभ्यता की सीमा महाराष्ट्र राज्य के अहमदनगर जिले में स्थित दैमाबाद तक विस्तृत कर दी है।
- इस प्रकार सिन्धु सभ्यता का सम्पूर्ण क्षेत्र एक विशाल त्रिभुज की भांति है और लगभग 13 लाख वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र समेटे हुए है।
- यह क्षेत्रफल आधुनिक पाकिस्तान से तो बढ़ा है ही प्राचीन मिस्र और मेसोपोटामिया के संयुक्त क्षेत्रफल से भी बढ़ा है।
- सिन्धु सभ्यता के इस विस्तृत विस्तार को देखने के बाद भी लिपि की अनभिज्ञता हमें सिन्धु-संस्कृति के प्रारम्भिक ज्ञान तक ही सीमित कर देती है।
- यह जानना अत्यंत कठिन है कि सिन्धु सभ्यता की कौन-कौन सी बस्तियां एक निश्चित समय में समकालीन थीं।
- रेडियो कार्बन परीक्षण से पता चलता है कि कच्छ, सौराष्ट्र और दोआब क्षेत्र की बस्तियां सिन्धु घाटी से लोगों के बाद के आवागमन को बतलाती हैं।
- शायद सिन्धु नागरिकों का पूर्व दिशा और दक्षिण दिशा की ओर प्रथम प्रसरण का कारण उनकी बढ़ती जनता की आर्थिक आवश्यकताऐं थीं जबकि द्वितीय प्रसरण के पीछे सिन्ध क्षेत्र में आर्थिक समस्याऐं और सांस्कृतिक अधःपतन, मिट्टी की उर्वरता में कमी तथा सिन्धु क्षेत्र में नये लोगों का आगमन था।
Post a Comment