सिंधु घाटी सभ्यता का अंत कैसे हुआ |सिन्धु सभ्यता के पतन कारण | Sindhu Sabhyata Ke Patan Ke Karan
सिंधु घाटी सभ्यता का अंत कैसे हुआ सिन्धु सभ्यता का पतन
लिपि की अनभिज्ञता के कारण हम स्पष्ट रूप से यह
नहीं कह सकते कि सिन्धु सभ्यता का पतन किन कारणों से हुआ लेकिन उत्खनन के फलस्वरूप
जो तथ्य प्रकाश में आये उनके आधार पर इस सभ्यता के पतन के लिए जिम्मेदार कारणों का
विश्लेषण विद्वानों ने किया है। इनके अन्तर्गत विद्वानों ने सिन्धु सभ्यता के पतन
में आत्मघाती कमजोरियों का योगदान, आर्यों का उत्तरदायित्व, विदेशी तत्वों की भूमिका और प्राकृतिक
आपदाओं के योगदान को शामिल किया है। इन कारणों को अध्ययन की सुविधा के लिए
शीर्षकवार समझा जा सकता है
सिन्धु सभ्यता के पतन कारण
1 सिन्धु नागरिकों की आत्मघाती कमजोरियां
- 1. सुमेर के साथ व्यापारिक संबंध के बावजूद भी सिन्धु नागरिकों ने तत्कालीन सर्वाधिक विकासवादी सभ्यता से अपने विकास के लिए किसी भी प्रकार के तकनीकी ज्ञान को सीखने का प्रयास नहीं किया, जो कि प्रत्येक विकासशील सभ्यता के लिए आवश्यक हैं।
- 2. हड़प्पा नागरिकों की मानसिक स्थिरता का पता उनकी लिपि से लगता है, जिसमें 20 चिन्हों से अधिक नहीं मिलते हैं और बहुधा 10 चिन्हों से अधिक प्रयोग नहीं किया गया है। दीर्घ काल में भी इसमें परिवर्तन न होना सिन्धु नागरिकों के अत्यधिक कम मानसिक परिवर्तन के दोष का द्योतक है।
- 3. हड़प्पा से प्राप्त फलक चौरस और आसानी से मोड़े जा सकते हैं, जबकि सुमेर निवासियों ने बहुत पहले ही ऐसे चाकू तथा भाले बनाये थे जिनके मध्यभाग में अतिरिक्त शक्ति के लिए तीलियां लगायी गयी थीं और कुठारों के सिर सछिद्र बनाये थे जिनमें दण्ड डाला जा सकता था। यह सत्य है कि हड़प्पा वासियों ने भी ऐसे आरे का निर्माण कर लिया था जिसमें लहरदार दांत थे। यह बढ़ई के लिए तो उपयोगी था किन्तु सुरक्षा के रूप में उसका कोई उपयोग नहीं था।
ये कुछ उदाहरण हैं जो सिन्धु सभ्यता में गति या
बदलती हुई परिस्थितियों के साथ सामन्जस्य बैठाने में असमर्थता के दोष को बतलाती
हैं। सिन्धु नागरिकों ने अपनी रक्षा के विषय में कोई विशेष आविष्कार नहीं किये थे, यही कारण है कि जब उनपर आक्रमण हुआ तो
वे अपने से अविकसित लोगों से भी पराजित हो गये।
2 आर्यों का उत्तरदायित्व
- आर्यों ने भारत आगमन से पूर्व अनेक नगरीय संस्कृतियों को क्षति पहुंचायी थी। इन्द्र ने हरियूपिया के ध्वंसावशोषों को समाप्त किया था, जिस जाति को समाप्त किया गया था उससे यवजावति नदी (आधुनिक रावी नदी के किनारे सामना हुआ था। इससे हड़प्पा में किसी वास्तविक युद्ध की संभावना होती है। अतः प्रतीत होता है कि हड़प्पा में स्थित कब्रिस्तान 'एच' जो कि बाद का , अवश्य ही आर्यों से संबंधित होगा।
- ऋग्वेद में यह उल्लेख प्राप्त है कि इन्द्र ने अनेक नदियों को मुक्त किया था, अवरोधकों द्वारा रोकी गयी थीं। “चुड़ैल वृत्र पहाड़ी ढलान में एक बड़े सांप के समान लेटी थी, जब इन्द्र द्वारा इस चुड़ैल को चूर दिया गया तो पत्थर गाड़ी के पहियों की भांति लुड़कने लगे।“ इस कथन का आशय किसी बांध के विनाश से ही हो सकता है। अनेक भाषाशास्त्रियों के अनुसार “वृत्र “ शब्द का अर्थ “ अवरोधक" होता है। अगर इस विचार को मान लिया जाय तो आर्यों ने सिन्धु नागरिकों द्वारा सिन्धु नदी पर खड़े किये अवरोधकों को समाप्त कर सैंधव्यों को भूखे मरने को छोड़ दिया। यह तथ्य ज्ञात है कि सिन्धु सभ्यता के इतिहास के अन्तिम चरण में दरिद्रता की स्थिति पैदा हो गयी थी।
- ऋग्वेद में सौ स्तभों वाले शत्रु के किलों का वर्णन है, जिनसे कि आर्यों का मुकाबला हुआ। इसके अलावा ऋग्वेद में लिंग पूजकों के भय का भी वर्णन है। लिंग पूजकों का यह भय यजुर्वेद का में समाप्त हो गया, जब इसको मान्यता दे दी गयी । उत्तर वैदिक काल में शिव प्रमुखता पाने लगे और यजुर्वेद में तो शिव, महेश्वर या महान् देव के रूप में पूजे जाने लगे। उत्तर वैदिक कालीन ग्रन्थों में मातृदेवी का उल्लेख मिलता है। उपनिषद के ऋषियों द्वारा किया गये चिन्तन में वैदिक देवताओं को प्रमुखता नहीं दी गयी है, वरन् इसमें सिन्धु सभ्यता के धार्मिक तत्वों का समावेश मिलता है। इन तथ्यों से पता चलता है कि आर्यों ने सिन्धु सभ्यता को क्षति पहुंचायी लेकिन आने वाले युगों में आर्यों ने लिंग पूजा और दस्युओं को अपनी सभ्यता में आत्मसात कर लिया।
इन तथ्यों के बावजूद भी सिन्धु सभ्यता के पतन
में आर्यों का उत्तरदायित्व सन्देहास्पद प्रतीत होता है, क्योंकि यदि हड़प्पा को आर्यों द्वारा
ध्वंस या समाप्त किया गया तथा कब्रिस्तान "एच" को आर्यों से संबंधित
किया जाये तो यह तार्किक दृष्टि से अटपता लगता है कि हड़प्पा के समीप ही स्थित
कालीबंगन पर आक्रमण नहीं किया गया। इसके अलावा सरस्वती और पंजाब क्षेत्र की अनेक
हड़प्पीय बस्तियां, इन्द्र और अग्नि के आक्रमण के पूर्व ही पतनोन्मुख हो चुकी थीं। और यह
ज्ञात है कि काली चमड़ी वाले लोग अन्य स्थानों को पलायन कर गये थे। पुरातात्विक
सामग्री से भी यह प्रमाणित होता है कि नवागंतुकों द्वारा इन स्थानों को अधिगृहित
नहीं किया गया वरन् इन्हें त्याज्य समझ कर छोड़ दिया गया। यह अजीब है कि कोई इन
स्थानों की जीतकर इन्हें अधिकृत न कर छोड़ दें ।
3 विदेशी तत्वों की भूमिका
- रानाघुण्डई के प्राचीनतम स्तर से पता चलता है कि अश्वारोही आक्रामकों के दल वहां 3000 ई0 पू0 में विद्यमान थे, वे वहां कृषि सभयता को स्थान देकर शीघ्र ही लुप्त हो गये।
- यह कृषि सभ्यता, सिन्धु सभ्यता के समकालीन थी। लेकिन 2000 ई० पू० के आसपास गावों को जलाने तथा एक नवीन, भद्दे आकार के मृत्तिका पात्रों की प्राप्ति से पुनः आक्रामकों की उपस्थिति का पता चलता है।
- इसके बाद अन्य आक्रामक आये जो अरंजित ढक्कनदार मृतिका पात्रों का प्रयोग करते थे। ऐसे ही प्रमाण उत्तरी बलूचिस्तान में भी मिलते हैं जबकि दक्षिणी बलूचिस्तान में एक अनैतिक संस्कृति ने सुत्कजेन्डोर के समीप शाही टंप में बस्ती बना ली थी।
- प्रतीत होता है कि बलूचिस्तान के आक्रामकों ने वहां के ग्रामीण लोगों के सिन्धु नगरों में शरण लेने पर बाध्य किया। विदेशी तत्वों का प्रभाव और उनके द्वारा सिन्धु नगरों में उत्पन्न अस्थिरता का पता कुछ तथ्यों से लगता है। हड़प्पा में बाद की बस्तियों की संरचना निकृष्ट कोटि की है। भवनों के स्थान पर झोपड़ियां बनायी जाने लगीं। जल वितरण प्रणाली को त्याग दिया गया, मृणभाण्डों के निर्माण में प्रयुक्त तकनीकी परिवर्तित हो गयी। बाद के आभूषण निम्न स्तर के हैं। शहर के मध्य में और कभी कभी सड़क के बीच में ईंट के बनाये जाने लगे। इसी प्रकार के पतनोन्मुख चिन्ह काठियावाढ़ प्रायद्वीप के स्थलों में भी मिलते हैं। लोथल का अन्य नगरों के साथ सम्बन्ध धीरे धीरे कमजोर और फिर टूट गया।
4 प्राकृतिक आपदाएँ
कुछ प्राकृतिक आपदायें एव कमजोरियां भी सिन्धु
सभ्यता के पतन में जिम्मेदार रहीं थीं, यथा -
- 1. सिन्धु सभ्यता के नगरों की बढ़ती जनसंख्या की भोजन आपूर्ति के लिए कृषकों की उत्पादन बढ़ाने में असमर्थता।
- 2. सिन्धु सभ्यता के नगरों में लगातार आने वाली बाढ़ें ।
- 3. एक प्रमुख हाइड्रोलोजिस्ट के अनुसार एक टेक्टोनिक किया से समुद्र का जल स्तर उठ गया, जिससे सिन्धु नगर जल स्तर के नीचे आ गये और उनमें बाढ़ आ गयी, मोहनजोदड़ो में जल स्तर के नीचे भी बस्ती के प्रमाण मिलते हैं।
- 4. सिन्धु का बहाव नील नदी से दुगुना है।
- 5. मिटटी के लवणीकरण की गति बढ़ना, राजपुताना के मरूस्थल का फैलाव तथा सिन्धु द्वारा अपना मार्ग परिवर्तित करना भी ऐसे कुछ कारण हैं जिन्होंने सिन्धु संस्कृति के पतन में योगदान दिया।
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