उलेमा का अर्थ क्या होता है | Ulema Kaun The
उलेमा कौन थे ,उलेमा का अर्थ क्या होता है
उलेमा वर्ग क्या है Ulema Kya hai
- इस्लाम धर्म में उलेमा को सर्वश्रेष्ठ स्थान दिया गया है।
- मुस्लिम वर्गों में सबसे अधिक प्रभावशाली लोग जो धर्माधिकारी होते हैं उन्हें उलेमा कहते हैं।
- अलाउद्दीन पहला सुल्तान था जिसने स्वतंत्र नीति अपनायी और उनकी राय की उपेक्षा की।
- वे विद्वान जो ज्ञान की प्राप्ति में रत रहते थे उलेमा और जो राजा के सलाहकार के रूप में चुने जाते थे उन्हें शेखुल इस्लाम कहते थे।
- उलेमा वर्ग में क्रमबद्ध पदाधिकारी मिलते हैं, जिनमें से प्रान्तों में सद्र, मीरअदल, मुफती और काजी की नियुक्ति की जाती थीं।
- दिल्ली और आगरा धर्माधिकारी कट्टर सुन्नी होते थे, जिनका मुख्य उद्देश्य सम्राट पर अपना प्रभाव बनाये रखना था, उलेमा बहुत शक्तिशाली होते थे। मुस्लिम शासकों में अलाउद्दीन खिलजी और अकबर ने नियंत्रित रखा।
उलेमाओं का उत्तरदायित्व
- उलेमाओं का उत्तरदायित्व था कि राजनैतिक परिवर्तनों की उपेक्षा करते हुए धार्मिक संस्थाओं को ज्यों का त्यों बनाये रखा जाय।
- एक तरफ उलेमा धार्मिक क्रिया-कलापों में मस्जिदों के निर्माण में और दान की समुचित व्यवस्था में अपना योग देते थे।
- दूसरी तरफ उन धार्मिक संस्थाओं पर अपने द्वारा नियुक्त किये गये अधिकारियों के माध्यम से नियंत्रण रखते थे।
- उलेमा का प्रमुख उद्देश्य इस्लामी संप्रदाय की एकता बनाये रखना था। इस कार्य में वे किसी तरह के जातिभेद को स्थान नहीं देते थे और वे अपना कार्य करने में राजनीतिक संस्थाओं से पूर्णतया स्वतंत्र थे।
- उलेमा का कर्तव्य था कि वे ज्ञान प्राप्त करने में रत रहें और इस्लामी कानून का प्रभाव क्षेत्र बढ़ाये राज्य की तरफ से प्रार्थना व अन्य धार्मिक समारोहों में भी उलेमा की प्रधानता थी। सन्त, धर्माचार्य, सैयद, पीर और उनके वंशज आदि धार्मिक श्रेणी मे कई वर्गों के लोग शामिल थे।
सल्तनतकाल में उलेमा
- सल्तनतकाल में उलेमा मुस्लिम बहुत प्रभावशाली रहे। वे पैगम्बर के उत्तराधिकारी समझे जाते थे।
- पैगम्बर साहब का कहना था कि सभी अच्छे बादशाह और अभिजात वर्ग के लोग उलेमा निवास स्थान पर जाते थे।
- बादशाह का स्थान उलेमा के बाद आता था। सभी उलेमा का आदर करते थे जिन्हें धार्मिक ज्ञान प्राप्त होता था वह उलेमा कहलाते थे। उलेमा का राजनीति में भाग लेना राज्य के लिए हानिकारक समझा जाता था।
कुरान में उलेमा
- कुरान में उलेमा को मुस्लिम समाज में पृथक श्रेणी में रखा गया है और उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे अच्छाई के मार्ग पर चलें इसके अतिरिक्त कुरान में उलेमा वर्ग के लिए व्यवस्था नहीं है।
- मुहम्मद साहब का निर्देश था कि उलेमा का सम्मान करना चाहिए क्योंकि वे पैगम्बर व अल्लाह का आदर करता हैं ऐसी परिस्थिति में उलेमा के प्रभाव क्षेत्र का विस्तार स्वाभाविक था।
उलेमा वर्ग
- उलेमा दो वर्गों में विभाजित थे, उलेमा-ए-अखरात और उलेमा-ए-दुनिया।
- उलेमा-ए अखरात,त्याग और तपस्या का जीवन व्यतीत करना पसन्द करते थे।
- दूसरे उलेमा-ए-दुनिया थे जो राजाओं और विशिष्ट प्रशासनिक अधिकारियों के सम्पर्क में सदैव रहते थे और राजाओं के अच्छे बुरे कार्यों में अपना सहयोग देते थे।
- लोग इनको अधिक आदर की दृष्टि से नहीं देखते थे और मुस्लिम समाज की समस्त बुराइयों के लिए इनको उत्तरदायी समझते थे।
- प्रमुख उलेमा मौलाना कमालुद्दीन जाहीद को पैगम्बर साहब की परम्पराओं हदीस का अच्छा ज्ञान था। बलवन ने उनसे इमाम के पद पर कार्य करने की प्रार्थना की। जिसको इन्होंने अस्वीकार कर दिया।
- मौलाना जाहिद ने अपना सारा जीवन हदीस की शिक्षा देने में लगाया। उलेमा को जिन पदों पर नियुक्त किया जाता था वे वंशानुगत नहीं थे परन्तु परम्परागत कुछ परिवार काजियों, मुक्तियों और खातिबों के नाम से जाने जाते थे। शुखूल इस्लाम के परिवार के सदस्य अधिक धन लोलुप होते थे जिसके कारण वे घृणा के पात्र थे।
उलेमा वर्ग की विशेषता
- उलेमा वर्ग की विशेषता थी कि किसी विषय में वे अपना विचार तब तक प्रकट नहीं करते थे जब तक कि वे उन्हें उस व्यक्ति के विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त नहीं हो जाती थी।
- मुस्लिम शासकों ने उलेमा वर्ग से कुछ विद्वानों को मुजक्किर के पद पर नियुक्त किया। ये मुजक्किर रहमान और मुहर्रम के महीनों में तजकीर सभाओं में भाग लेते थे, जो राजदरबार में आयोजित की जाती थी।
- 13 वीं सदी में उलेमा ने राजनीति में अपने प्रभाव का विकास किया। वे राजनीति में अमीरों के गुटों का अपने स्वार्थ के लिए समर्थन करने लगे।
- कुतुबुद्दीन ऐबक उलेमा का सम्मान करता था।
- इल्तुतमिश के शासनकाल में उलेमा राजनीति में सक्रिय हो गये। इल्तुतमिश ने उलेमा को इतना सम्मान दिया जिससे वे दंभी हो गये।
- सल्तनतकाल में उलेमा ने दिल्ली के सुल्तानों की शक्ति और प्रतिष्ठा बढाने में सहयोग दिया।
- उलेमा ने दिल्ली के सुल्तानों को पैगम्बर के समान लोगों को आदर देने को कहा। उलेमा ने सुल्तान को पैगम्बर की संज्ञा दी ।
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