संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन |UNFCCC GK in Hindi

 संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन |UNFCCC GK in Hindi

संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन |UNFCCC GK in Hindi

संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन  UNFCCC के बारे में

 

  • वर्ष 1992 में पर्यावरण और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन' (United Nations Framework Convention on Climate Change- UNFCCC) पर हस्ताक्षर  किये गए, जिसे पृथ्वी शिखर सम्मेलन (Earth Summit), रियो शिखर सम्मेलन या रियो सम्मेलन के रूप में भी जाना जाता है।
  • भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल है जिसने जलवायु परिवर्तन (UNFCCC), जैव विविधता (जैविक विविधता पर सम्मेलन) और भूमि (संयुक्‍त राष्‍ट्र मरुस्‍थलीकरण रोकथाम कन्‍वेंशन) पर तीनों रियो सम्मेलनों के COP की मेज़बानी की है।
  • 21 मार्च, 1994 से UNFCCC लागू हुआ और 197 देशों द्वारा इसकी पुष्टि की गई।
  • यह वर्ष 2015 के पेरिस समझौते की मूल संधि (Parent Treaty) है। UNFCCC वर्ष 1997 के क्योटो प्रोटोकॉल (Kyoto Protocol) की मूल संधि भी है।
  • UNFCCC सचिवालय (यूएन क्लाइमेट चेंज) संयुक्त राष्ट्र की एक इकाई है जो जलवायु परिवर्तन के खतरे पर वैश्विक प्रतिक्रिया का समर्थन करती है।

 

संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन के उद्देश्य:

 

  • वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता को एक स्तर पर स्थिर करना जिससे  एक समय-सीमा के भीतर खतरनाक नतीजों को रोका जा सके ताकि पारिस्थितिक तंत्र को स्वाभाविक रूप से अनुकूलित कर सतत् विकास के लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके।


COP क्या है -कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (COP)

 

  • यह UNFCCC सम्मेलन का सर्वोच्च निकाय है।
  • प्रत्येक वर्ष COP की बैठक सम्पन्न होती  है, COP की पहली बैठक मार्च 1995 में जर्मनी के बर्लिन में आयोजित की गई थी।
  • यदि कोई पार्टी सत्र की मेज़बानी करने की पेशकश नहीं करती है तो COP का आयोजन बॉन, जर्मनी में (सचिवालय) में किया जाता है।
  • COP अध्यक्ष का कार्यकाल सामान्यतः पांँच संयुक्त राष्ट्र क्षेत्रीय समूहों के मध्य निर्धारित किया जाता  है जिनमें - अफ्रीका, एशिया, लैटिन अमेरिका और कैरिबियन, मध्य और पूर्वी यूरोप तथा पश्चिमी यूरोप शामिल हैं।
  • COP का अध्यक्ष आमतौर पर अपने देश का पर्यावरण मंत्री होता है। जिसे COP सत्र के उद्घाटन के तुरंत बाद चुना जाता है।


अब तक हुये COP और उनकी जानकारी 

वर्ष 1995: COP1 (बर्लिन, जर्मनी) 


वर्ष 1997: COP 3 (क्योटो प्रोटोकॉल) 

  • यह कानूनी रूप से विकसित देशों को उत्सर्जन में कमी के लक्ष्यों हेतु बाध्य करता है।

वर्ष 2002: COP 8 (नई दिल्ली, भारत) दिल्ली घोषणा। 

  • सबसे गरीब देशों की विकास आवश्यकताओं और जलवायु परिवर्तन को  कम करने  हेतु प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित करता है।


वर्ष 2007: COP 13 (बाली, इंडोनेशिया) 

  • पार्टियों ने बाली रोडमैप और बाली कार्ययोजना पर सहमति व्यक्त की, जिसने वर्ष 2012 के बाद के परिणाम की ओर तीव्रता  प्रदान की। इस योजना में पाँच मुख्य श्रेणियांँ- साझा दृष्टि, शमन, अनुकूलन, प्रौद्योगिकी और वित्तपोषण शामिल हैं।


वर्ष 2010: COP 16 (कैनकन) 

  • कैनकन समझौतों के परिणामस्वरूप, जलवायु परिवर्तन से निपटने में विकासशील देशों की सहायता हेतु सरकारों द्वारा एक व्यापक पैकेज प्रस्तुत किया गया।
  • हरित जलवायु कोष, प्रौद्योगिकी तंत्र और कैनकन अनुकूलन ढांँचे की स्थापना की गई।

वर्ष 2011: COP17 (डरबन) 

  • सरकारें 2015 तक वर्ष 2020 से आगे की अवधि हेतु एक नए सार्वभौमिक जलवायु परिवर्तन समझौते के लिये प्रतिबद्ध हैं (जिसके परिणामस्वरूप 2015 का पेरिस समझौता हुआ)।


वर्ष 2015: COP 21 (पेरिस) 

  • वैश्विक तापमान को पूर्व-औद्योगिक समय से 2.0oC से नीचे रखना तथा   और अधिक सीमित (1.5oC तक) करने का प्रयास करना।
  • इसके लिए अमीर देशों को वर्ष 2020 के बाद भी सालाना 100 अरब डॉलर की फंडिंग प्रतिज्ञा बनाए रखने की आवश्यकता है।

वर्ष 2016: COP22 (माराकेश) 

  • पेरिस समझौते की नियम पुस्तिका लिखने की दिशा में आगे बढ़ना।
  • जलवायु कार्रवाई हेतु माराकेश साझेदारी की शुरुआत की।

2017: COP23, बॉन (जर्मनी) 

  • देशों द्वारा इस बारे में बातचीत करना जारी रखा गया कि समझौता 2020 से कैसे कार्य करेगा।
  • डोनाल्ड ट्रम्प ने इस वर्ष की शुरुआत में पेरिस समझौते से हटने के अपने इरादे की घोषणा की।
  • यह एक छोटे द्वीपीय विकासशील राज्य द्वारा आयोजित किया जाने वाला पहला COP था, जिसमें फिजी ने राष्ट्रपति पद संभाला था।

वर्ष 2018: COP24,  काटोवाइस (पोलैंड) 

  • इसके तहत वर्ष 2015 के पेरिस समझौते को लागू करने के लिये एक नियम पुस्तिकाको अंतिम रूप दिया गया था।
  • नियम पुस्तिका में जलवायु वित्तपोषण सुविधाएँ और राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) के अनुसार की जाने वाली कार्रवाइयाँ शामिल हैं।


वर्ष 2019: COP25,  मैड्रिड (स्पेन) 

  • इसे मैड्रिड (स्पेन) में आयोजित किया गया था।
  • इस दौरान बढ़ती जलवायु तात्कालिकता के संबंध में कोई ठोस योजना मौजूद नहीं थी।


COP-28

  • संयुक्त अरब अमीरात ने वर्ष 2023 में अबू धाबी में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन' (United Nations Framework Convention on Climate Change- UNFCCC) के कोप-28 (COP-28) की मेज़बानी करने की पेशकश की घोषणा की है। 
  • COP26 को वर्ष 2020 में स्थगित कर दिया गया जो नवंबर 2021 में ब्रिटेन के ग्लासगो में होगा।

यूएनएफसीसीसी (UNFCC) का इतिहास 

पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र का प्रथम सम्मेलन( स्टॉकहोम सम्मेलन-1972)

 

  • जलवायु परिवर्तन की दिशा में बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में सभी देशों के मध्य आपस में सहमति बननी प्रारंभ हुई। पहली बार संयुक्त राष्ट्र के द्वारा 1972 में स्वीडन के शहर स्टाकहोम में विश्व का पहला अन्तरराष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन आयोजित हुआ। इस सम्मेलन में 119 देशों ने एक धरतीके सिद्धान्त को लेकर संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) को प्रारम्भ किया और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में स्टाकहोम घोषणाप्रस्तुत किया। इसी सम्मेलन में सम्पूर्ण विश्व में 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवसके रूप में मनाने की भी स्वीकृति प्रदान की गई।

नवंबर 1988 : इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) की स्थापना

 

  • विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के द्वारा इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) की स्थापना की गई।आईपीसीसी द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट अंतरराष्ट्रीय वार्ता/ संधियों को ना केवल वैज्ञानिक आधार प्रदान करते हैं बल्कि जलवायु परिवर्तन से संबंधित चरम आपदाओं और जोखिम के प्रबंधन के संदर्भ में उचित दृष्टिकोण विकसित करने में भी मदद करते हैं।


नवंबर 1990 : IPCC और जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में वैश्विक संधि हेतु द्वितीय वैश्विक जलवायु सम्मेलन का आह्वान

 

  • IPCC के द्वारा पहली मूल्यांकन रिपोर्ट प्रस्तुत की गई जिसमें यह कहा गया कि 'मानवीय गतिविधियों से होने वाले उत्सर्जन के कारण ग्रीन हाउस गैसों की सांद्रता में काफी वृद्धि हो रही है जिसका प्रभाव वैश्विक जलवायु पर पड़ रहा है। उपरोक्त कारणों से आईपीसीसी के द्वारा वैश्विक संधि हेतु द्वितीय वैश्विक जलवायु सम्मेलन का आह्वान किया गया।


दिसंबर 1990 : संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा एक कन्वेंशन के फ्रेमवर्क हेतु वार्ता शुरू

 

  • 11 दिसंबर 1990 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने जलवायु परिवर्तन पर एक कन्वेंशन के फ्रेमवर्क की स्थापना के लिए अंतर सरकारी वार्ता समिति (INC) की स्थापना की गयी। अंतर सरकारी वार्ता समिति में 5 सत्रों के माध्यम से 150 से ज्यादा देशों के प्रतिनिधियों ने उत्सर्जन में कटौती, वित्तीय तंत्र, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, विकसित और विकासशील देशों के लिए 'सामान्य लेकिन विभेदित' जिम्मेदारियों के साथ बाध्यकारी प्रतिबद्धताओं, लक्ष्यों और समय-सीमा पर चर्चा की।


मई 1992 : कन्वेंशन को अपनाया जाना 

  • जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन की मूल विषय वस्तु को संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में अपनाया गया।


1992: पृथ्वी शिखर सम्मेलन (रियो) और UNFCCC 

  • 1992 में पर्यावरण और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन का आयोजन ब्राजील की राजधानी रियो डी जनेरियो में किया गया। यह शिखर सम्मेलन 'रियो शिखर सम्मेलन या पृथ्वी शिखर' सम्मेलन के रूप में जाना जाता है।
  • रियो पृथ्वी सम्मेलन में पर्यावरण की रक्षा करने के लिए एक व्यापक संधि पर सहमति बनी जिसे 'युनाइटेड नेशन्स फ़्रेमवर्क कन्वेन्शन ऑन क्लाइमेट चेंज' या यूएनएफ़सीसीसी (UNFCCC) कहा जाता है। इसी सम्मेलन में 'युनाइटेड नेशन्स फ़्रेमवर्क कन्वेन्शन ऑन क्लाइमेट चेंज को सभी देशों के समक्ष हस्ताक्षर हेतु रखा गया। रियो सम्मेलन में UNFCCC के साथ इसकी बहनों के रूप में दो और कन्वेंशन की परिकल्पना की गई जिसमें एक था, जैव विविधता पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन और दूसरा था मरुस्थलीकरण पर संयुक्त राष्ट्र का कन्वेंशन।


21 मार्च, 1994: UNFCCC का अस्तित्व में आना 

  • रियो शिखर सम्मेलन में प्रारंभ हुए जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन(UNFCCC) अस्तित्व में आता है। इस संधि पर हस्ताक्षर करने वाले देशों को 'पार्टियों' के रूप में जाना जाता है।जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में समन्वित दृष्टिकोण एवं कार्रवाई विकसित करने के लिए प्रतिवर्ष कॉन्फ्रेंस आफ पार्टीज (COP) के तत्वाधान में सम्मेलन का आयोजन किया जाता है।

अप्रैल 1995 : बर्लिन 

  • जर्मनी की तत्कालीन पर्यावरण मंत्री एंजेला मर्केल ने बर्लिन में आयोजित COP- 1 के प्रथम सम्मेलन की अध्यक्षता की। इस कन्वेंशन में सभी सदस्य देशों के मध्य यह सहमति बनी कि 'कन्वेंशन के उद्देश्यों की पूर्ति हेतु कन्वेंशन में निहित प्रतिबद्धता पर्याप्त नहीं है।' बर्लिन जनादेश सदस्य देशों के मध्य प्रतिबद्धता को मजबूत करने हेतु एक सम्यक प्रक्रिया स्थापित करने पर बल देता है जिसने कालांतर में क्योटो प्रोटोकॉल की पृष्ठभूमि तैयार की।


अगस्त 1996: UNFCCC सचिवालय का बॉन में स्थानांतरण 

  • यूएनएफसीसीसी सचिवालय का स्थानांतरण बॉन(जिनेवा) में किया गया।


11 दिसंबर, 1997: क्योटो प्रोटोकॉल को अपनाया जाना 

  • कॉन्फ्रेंस आफ पार्टीज का तृतीय सम्मेलन (COP-3) में जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में एक मील का पत्थर साबित हुआ। इस सम्मेलन में क्योटो प्रोटोकॉल को अपनाया गया जो ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी करने की दिशा में प्रथम वैश्विक संधि है।


जुलाई 2001: बॉन 

  • कॉन्फ्रेंस आफ पार्टीज के छठे सम्मेलन (COP-6) में एक बड़ी सफलता हासिल की गई। इस सम्मेलन में सभी सदस्य देशों की सरकार के मध्य एक व्यापक राजनीतिक समझौते के फलस्वरूप 1997 के क्योटो प्रोटोकोल के संदर्भ में संचालन नियम पुस्तिका पर सहमति बनी।


नवंबर 2001 : मराकेश

  •  मराकेश (मोरक्को) में आयोजित हुए कॉन्फ्रेंस आफ पार्टीज के सातवें सम्मेलन में (COP-7) क्योटो प्रोटोकॉल के समर्थन में विस्तृत नियम अपनाए गए। इसे मराकेश अकॉर्ड भी कहा जाता है। इस सम्मेलन के तहत क्योटो प्रोटोकॉल के अनुपालन हेतु संचालन नियमों के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय उत्सर्जन व्यापार (इंटरनेशनल एमिशन ट्रेडिंग), स्वच्छ विकास तंत्र (क्लीन डेवलपमेंट मेकैनिज्म) और संयुक्त कार्यान्वयन (जॉइंट इंप्लीकेशन) इत्यादि को औपचारिक आधार प्रदान किया गया।


जनवरी 2005: यूरोपीय संघ के द्वारा उत्सर्जन व्यापार की शुरूआत

 

  • यूरोपीय संघ उत्सर्जन व्यापार योजना, दुनिया की प्रथम एवं सबसे बड़ी उत्सर्जन व्यापार योजना है।इस योजना को यूरोपीय संघ की जलवायु नीति के आधार प्रमुख स्तंभ के रूप में लॉन्च किया गया। इस योजना के तहत यूरोपीय संघ में सामूहिक रुप से कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में लगभग आधी भूमिका निभाने वाले प्रतिष्ठानों को विनियमित किया गया।

16 फरवरी, 2005: क्योटो प्रोटोकॉल का प्रवर्तन में आना 

  • यह जलवायु परिवर्तन की दिशा में एक ऐतिहासिक दिन है क्योंकि , रूसी संघ के अनुसमर्थन करते ही क्योटो प्रोटोकॉल अस्तित्व में आ गया।


दिसंबर 2005: मॉन्ट्रियल 

  • क्योटो प्रोटोकॉल के अस्तित्व में आने एवं इसके एक वर्ष होने के पूर्व पहली बार कॉन्फ्रेंस आफ पार्टीज के ग्यारहवां सम्मेलन (COP-11) को first Conference of the Parties serving as the Meeting of the Parties (CMP1) के रूप में आयोजित किया गया।


नवंबर 2006 : नैरोबी 

  • नैरोबी कीनिया में आयोजित कॉन्फ्रेंस आफ पार्टीज के 12 वें सम्मेलन (COP- 12) में यूएनएफसीसीसी की सहायक संस्था सब्सिडियरी बॉडी फॉर साइंटिफिक एंड टेक्नोलॉजिकल एडवाइस (SBSTA) को जलवायु परिवर्तन प्रभावों, सुभेधता और जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन हेतु नैरोबी वर्क प्रोग्राम (NWP) हेतु अनिवार्य किया गया।


दिसंबर 2007: बाली

 

  • COP-13 सम्मेलन में बाली रोड मैप के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को संबोधित करने हेतु बाली एक्शन प्लान को अपनाया गया। इस कार्यक्रम को पांच मुख्य श्रेणियों में विभाजित किया गया: साझा दृष्टि, शमन, अनुकूलन, प्रौद्योगिकी और वित्तपोषण।


जनवरी 2008: संयुक्त कार्यान्वयन तंत्र का प्रारंभ

 

  • क्योटो प्रोटोकॉल तंत्र के अनुपालन में 'संयुक्त कार्यान्वयन' शुरू होता है। यह एक देश को प्रोटोकॉल के तहत उत्सर्जन में कमी/कटौती के संदर्भ में किसी दूसरे देश में उत्सर्जन-कटौती या उत्सर्जन कम करने की परियोजनाओं से एमिशन रिडक्शन यूनिट (ERU) को अर्जित करने की अनुमति प्रदान करता है।


दिसंबर 2008: पॉज़्नान,पोलैंड

 

  • पॉज़्नान, पोलैंड के COP- 14 सम्मेलन में क्योटो प्रोटोकॉल के तहत विकासशील देशों हेतु महत्वपूर्ण कदम उठाए गए। इसमें क्योटो प्रोटोकॉल के संदर्भ में अनुकूलन कोष (अडॉप्टेशन फंड) का शुभारंभ करने के साथ-साथ तकनीकी हस्तांतरण के संदर्भ में पॉज़्नान रणनीतिक कार्यक्रम (Poznan Strategic Programme on Technology Transfer) की शुरुआत की गई।


दिसंबर 2009: कोपेनहेगन

 

  • डेनमार्क के कोपेनहेगन में COP-15 का आयोजन किया गया जिसमें 'कोपेनहेगन एकॉर्ड' को अपनाया गया। इसके तहत विकसित देशों ने 2010-2012 की अवधि के दौरान 30 बिलियन अमरीकी डालर की वित्तीय सहायता उपलब्ध करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की गई।


दिसंबर 2010: कानकुन 

  • कानकुन में COP-16 के आयोजन की परिणिति कानकुन समझौते के रूप में सामने आती है। इसके द्वारा जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए विकासशील देशों को एक व्यापक पैकेज की घोषणा की गई। इसके तहत ग्रीन क्लाइमेट फंड, प्रौद्योगिकी तंत्र और कानकुन अडॉप्टेशन फ्रेमवर्क की स्थापना की गई।


दिसंबर 2011:डरबन

 

  • डरबन COP-17 सम्मेलन में, सदस्य राष्ट्रों के द्वारा 2020 के आगे की अवधि के लिए 2015 तक एक नए यूनिवर्सल क्लाइमेट चेंज एग्रीमेंट को स्थापित करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की गई। इसके तहत 'डरबन प्लेटफॉर्म फॉर इनहैंस' या 'एडहॉक वर्किंग ग्रुप' को स्थापित किया गया।


दिसंबर 2012: दोहा

 

  • दोहा में आयोजित हुए COP-18 सम्मेलन में सदस्य देशों के द्वारा वर्तमान प्रतिबद्धताओं से परे 2020 से आगे की रणनीति के संदर्भ में एक नए सार्वभौमिक जलवायु परिवर्तन समझौते पर तेजी से कार्य करने एवं 2015 से पूर्व इसे पूरा करने की सहमति बनी। इसके तहत दोहा संशोधन को भी अपनाया गया जिसके तहत क्योटो प्रोटोकॉल के अंतर्गत समयबद्ध प्रतिबद्धता वाले दूसरे कार्यकाल को भी मंजूरी प्रदान की गई।


नवंबर 2013:वारसा

 

  • पोलैंड के वारसा में आयोजित हुए COP-19 सम्मेलन में वनों की कटाई एवं वनों के क्षरण को रोक लगाकर उत्सर्जन को कम करने की दिशा में नियम बनाए गए। इसके साथ ही इनके नुकसान और क्षति के संदर्भ में होने वाले दीर्घकालिक जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से निपटने हेतु एक तंत्र की स्थापना की गई।


31 मार्च 2014:

  •  IPCC ने पांचवें आकलन रिपोर्ट का दूसरा भाग जारी किया।
  • मार्च 2014: UNFCCC की 20 वीं वर्षगांठ 
  • जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) की स्थापना की 20 वीं वर्षगांठ मनाई जाती है।


सितंबर 2014: संयुक्त राष्ट्र महासचिव का जलवायु शिखर सम्मेलन

 

  • संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून द्वारा 2015 में पेरिस में आयोजित होने वाली सीओपी-21 सम्मेलन से पहले के जलवायु परिवर्तन पर कार्रवाई और रणनीति को आगे बढ़ाने के लिए सभी देशों के प्रमुखों, व्यापार और वित्तीय क्षेत्र के प्रतिनिधियों के साथ-साथ नागरिक समाज को न्यूयॉर्क में आयोजित हुए जलवायु शिखर सम्मेलन में आमंत्रित किया गया।


दिसंबर 2014: लीमा

 

  • COP-20 सम्मेलन में पुनः एक बार सभी देशों की सरकारों को 2015 में आयोजित होने वाले सार्वभौमिक वैश्विक समझौते के संदर्भ में सामूहिक रूप से आखरी प्रयास करने का आवाहन किया जाता है।


दिसंबर 2015: ऐतिहासिक पेरिस समझौते को अपनाया जाना

 

  • पेरिस में आयोजित हुए सीओपी-21 सम्मेलन में ऐतिहासिक पेरिस समझौते को अपनाया जाता है। 195 देशों ने जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए कम कार्बन उत्सर्जन और धारणीय विकास की दिशा में निवेश करने पर सहमति व्यक्त की गई।
  • पहली बार पेरिस समझौता के अंतर्गत जलवायु परिवर्तन की दिशा में सभी राष्ट्रों को उनकी ऐतिहासिक, वर्तमान और भविष्य की जिम्मेदारियों के आधार पर एक साथ लाया जाता है।


नवंबर 2016:वैश्विक जलवायु कार्य नीति के लिए मराकेश उद्घोषणा

 

  • मराकेश में आयोजित हुई COP 22 सम्मेलन में पेरिस समझौते के नियमों के कार्यान्वयन की दिशा में आगे बढ़ा गया। इस सम्मेलन के द्वारा दुनिया के समक्ष यह प्रदर्शित किया गया कि 'पेरिस समझौते के क्रियान्वयन की दिशा में प्रगति करते हुए जलवायु कार्य नीति के रूप में मराकेश पार्टनरशिप को शुरू किया गया है।'


नवंबर 2017: यूएन क्लाइमेट चेंज कॉन्फ्रेंस 

  • 6 से 17 नवंबर तक जर्मनी के बॉन शहर में यूएन क्लाइमेट चेंज कॉन्फ्रेंस का आयोजन हुआ। इस सम्मेलन की अध्यक्षता एक छोटे से विकासशील देश फिजी के राष्ट्रपति द्वारा किया गया।


नवंबर 2017:बॉन, जर्मनी 

  • बॉन, जर्मनी में आयोजित हुए COP23 सम्मेलन में सदस्य राष्ट्रों के द्वारा 2020 से पहले जलवायु परिवर्तन कार्ययोजना की दिशा में उच्च महत्वाकांक्षा वाली रणनीतिक कदमों पर सहमति बनी। सदस्य देशों के द्वारा राष्ट्रीय जलवायु कार्रवाई कार्यक्रम के पुनरीक्षण के लिए 'तालानो संवाद' को शुरू किया गया जिससे 2020 के पूर्व पेरिस समझौते के दीर्घकालिक लक्ष्यों को पूरा करने की दिशा में रणनीतिक कदम उठाया जा सके।


दिसंबर 2017: वन प्लेनेट समिट (One Planet Summit) 

  • पेरिस में वैश्विक नेताओं की अगुवाई में हुए इस सम्मेलन में इस दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास किया गया कि किस प्रकार लो कार्बन फ्यूचरकी दिशा में वित्त को हस्तांतरित किया जाए। पेरिस समझौते के तहत देशों की राष्ट्रीय जलवायु कार्रवाई योजनाओं के लिए वित्तीय हस्तांतरण एक महत्वपूर्ण घटक हैं।


अक्टूबर 2018: IPCC के द्वारा 1.5C लक्ष्य के महत्व की पुष्टि करना 

  • जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल द्वारा (IPCC) की 1.5C रिपोर्ट ग्लोबल वार्मिंग के संदर्भ में पेरिस जलवायु समझौता को व्यापक रूप से अनुसमर्थन की प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है। इसमें ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करते हुए जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों जैसे अत्यधिक सूखा, बाढ़ और तूफान इत्यादि को कम करने पैर बल दिया गया।


दिसंबर 2018: 'कटोविस क्लाइमेट पैकेज' (Katowice Climate Package) 

  • कटोविस पोलैंड में आयोजित हुए COP- 24 सम्मेलन में पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते को लागू करने की दिशा में एक सशक्त दिशानिर्देशों को अपनाया गया। कटोविस क्लाइमेट पैकेज-Katowice Climate Package पर सहमति बनी जिसके द्वारा जलवायु परिवर्तन की कार्य-योजना और अधिशासन की दिशा में पेरिस समझौते के तहत अंतरराष्ट्रीय सहयोग और उच्च महत्वाकांक्षा को प्रोत्साहित किया गया जा सके।


23 सितंबर, 2019: UNSG का क्लाइमेट एक्शन समिट टू बूस्ट एंबिशन

 

  • पेरिस समझौते को लागू करने के प्रयासों में तेजी लाने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस की अध्यक्षता में न्यूयॉर्क में एक शिखर सम्मलेन का आयोजन किया गया। पेरिस समझौते के तहत प्रत्येक देश के द्वारा अपनी राष्ट्रीय जलवायु प्रतिबद्धताओं को बढ़ाने से एक वर्ष पूर्व इस शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया जिससे जलवायु परिवर्तन की दिशा में समन्वित प्रयास को बढ़ाया जा सके।

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