वैदिक साहित्य | Vedik Sahitya

 वैदिक साहित्य Vedik Sahitya

वैदिक साहित्य Vedik Sahitya


 वैदिक साहित्य के भेद

विद्वानों ने वैदिक साहित्य को दो भागों श्रुति साहित्य एवं स्मृति साहित्य में विभाजित किया है। इनका अध्ययन अग्रांकित शीर्षकों के अंतर्गत किया जा सकता है

 

श्रुति साहित्य

 

श्रुति साहित्य के अर्न्तगत चार संहिताऐं, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद् को सम्मिलित किया जाता है, इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है:

संहिताऐं 

वेद शब्द 'विद्' धातु से बना है जिसका अर्थ है "जानना' सामान्यतः इसका अर्थ 'ज्ञान' से है।

वेदों की संख्या चार है, यथा' ऋग, साम, यजुः और अथर्व प्रथम तीन कभी कभी त्रयी कहे जाते हैं और सर्वप्रथम यही धर्म ग्रन्थ माने गये। 


  • ऋग्वेद प्राचीनतम है इसमें 10 मण्डल तथा कुल मिलाकर 1028 सूक्त है। प्रत्येक सूक्त में रचयिता ऋषि का नाम अथवा गोत्र, स्तुति की जाने वाले देवता का नाम तथा विनियोग मिलता है। 
  • होता नामक पुरोहित इनका पाठ करते थे।
  • 2 से 7 तक मण्डल सर्वाधिक प्राचीन हैं जबकि 10 वां मण्डल उत्तर- वैदिक काल में जुड़ा प्रतीत होता है। 
  • सामवेद में ही कोई स्वतन्त्र विषय है केवल 75 मन्त्रों को छोड़कर इसके सभी मन्त्र सीधे ऋग्वेद से लिये गये हैं। 
  • इसके मन्त्र सोमयज्ञ के अवसर पर उद्गात नामक एक विशेष वर्ग के पुरोहितों द्वारा गाये जाते थे। 
  • सामवेद, गायन से सम्बन्धित है और भारतीय संगीत का जन्म सामवेद से ही माना जाता है।
  • यजुः का अर्थ यज्ञ है, इस वेद में अनेक प्रकार की यज्ञ विधियों का प्रतिपादन किया गया है इसीलिए यह यजुर्वेद कहलाया। 
  • यजुर्वेद में ऋग्वेद की ऋचाओं के अतिरिक्त मौलिक गद्य के मन्त्र भी थे जिन्हें अध्वर्यु नामक पुरोहित पढ़ते थे। इस संहिता में दो भिन्न पाठ हैं- तैत्तिरीय, मैत्रायनी और काठक पाठान्तर ग्रन्थों में सुरक्षित कृष्णयजुर्वेदसंहिता और वाजसनेयी पाठान्तर ग्रन्थ में सुरक्षित शुक्लयजुर्वेद संहिता । 
  • उपरोक्त संहिताओं के बहुत समय बाद अथर्ववेद ने धर्म ग्रन्थ की स्वीकृति प्राप्त की। इसमें 40 अध्याय हैं। इसके विषय में ब्रहम ज्ञान, समाज निष्ठा, औषधि प्रयोग, शत्रु दमन, रोग निवारण जन्त्र मन्त्र, रोना टोटका आदि सम्मिलित है। 
  • विषय विवेचन से स्पष्ट होता है कि इस समय तक आर्य और अनार्य विचारधाराओं का समन्वय हो गया था।

ब्राह्मण-साहित्य

  • दूसरे वर्ग के ग्रन्थ ब्राह्मण-साहित्य के नाम से विख्यात है, ब्रह्म का अर्थ यज्ञ है, अतः यज्ञ विषयों का प्रतिपादन करने वाले ग्रन्थ ब्राहमण कहलाये। 
  • ये वेदों पर आधारित है और वैदिक मन्त्रों की व्याख्या करते हुए ही ये अपने यज्ञों का प्रतिपादन करते हैं। ये मूलतः गद्य ग्रन्थ हैं यद्यपि कहीं कहीं पद्य भी मिलता है। 
  • प्रत्येक वेद के अपने अपने ब्राहमण हैं, यथा-ऋग्वेद का ऐतरेय और कौषीतकि ब्राहमण, यजुर्वेद का शतपथ ब्राहमण, सामवेद का पंचविंश ब्राहमण तथा अथर्वर्वेद का गोपथ ब्राहमण

 आरण्यक

  • तृतीय वर्ग में 'आरण्यक' है। ये जंगलों में दिये जाने वाले उपदेशों या जंगलों में रहने वाले ऋषियों के लिए रचित ग्रन्थ हैं। 
  • आरण्यकों में कोरे यज्ञवाद के स्थान पर चिन्तनशील ज्ञान के पक्ष को अधिक महत्व दिया गया है। 
  • प्रमुख आरण्यकों में ऐतरेय आरण्यक, शांखायन आरण्यक, तैतरीय आरण्यक, मैत्रायनी आरण्यक तथा तलवकार आरण्यक है।

 उपनिषद्

  • अन्त में 'उपनिषद्' हैं जिनका अर्थ है 'समीप पर बैठकर कहने योग्य सिद्धान्त या रहस्य ग्रन्थ।' उपनिषदों में दार्शनिक ढंग की गंभीर विवेचना है जो 'ब्रहमन् या आत्मन्' के दो विचारों के चारों ओर चक्कर काटती है। 
  • प्राचीनतम उपनिषदों साधारणतः बौद्ध धर्म के उदय के पूर्व की समझी जाती है, किन्तु कुछ निश्चय ही बहुत बाद की है। 
  • उपनिषदों की संख्या 108 मानी जाती है। 
  • प्रमुख उपनिषदों में ईशावास्य, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डुक्य, ऐतरेय, तैत्तरीय, श्वेताश्वतर, छान्दोग्य, वृहदारण्यक और कौषितिकी हैं। 
  • केवल उपरोक्त साहित्यिक रचनाऐं ही श्रुति कहलाती हैं।
 

स्मृति साहित्य

 

हांलाकि इन रचनाओं से घनिष्ट रूप से सम्बन्धित सहायक ग्रन्थों को वेदांग कहते हैं और उन्हें स्मृति के अन्तर्गत रक्खा जाता है।

वेदांग, संख्या में 6 हैं- शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरूक्त, छन्दस् और ज्योतिष |

 शिक्षा 

  • शिक्षा में शुद्ध उच्चारण और वैदिक मन्त्रों के जोर से उच्चारण के चिन्हों पर विचार किया गया है। शिक्षा में ऋग्वेद के संहिता पाठ के साथ साथ पद पाठ भी दिया गया है जो पदों को एक पूर्ण व्याकरण सम्बन्धी विश्लेषण प्रदान करता हैं शिक्षा की सबसे प्रधान रचना प्रातिशाख्य सूत्र' है।

 कल्प 

  • कल्प के अन्तर्गत श्रौत सूत्र जो बडे बडे यज्ञों के सम्पादन के लिए नियम बनाते हैं, गृह्य सूत्र जो दैनिक जीवन के छोटे छोटे उत्सवों के लिए नियम बनाते हैं तथा धर्म सूत्र जो पवित्र और धर्म निरपेक्ष नियमों और प्रशासन पर विचार करते हैं, सम्मिलित है। श्रौत सूत्र के अन्तर्गत शुल्व सूत्र नाम की रचना है जो भारतीय ज्यामिती पर सबसे प्राचीन पुस्तक है।

 व्याकरणनिरूक्त और छन्दस् 

  • व्याकरण, निरूक्त और छन्दस् में क्रमशः पाणिनी, यास्क, और पिंगल के महान् ग्रन्थ हैं, ज्योतिष का एक छन्दोबद्ध ग्रन्थ प्राप्त है, किन्तु यह तुलनात्मक दृष्टि से बाद का है।
Also Read....










No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.