विवाह का महत्व | भारतीय विवाह का महत्व | Vivah Ka Mahtav Kya Hai

 विवाह का महत्व
 भारतीय विवाह का महत्व
विवाह का महत्व |  भारतीय विवाह का महत्व | Vivah Ka Mahtav Kya Hai



  • विवाह का व्यक्ति एवं समाज दोनों के लिए बहुत महत्व हैं। विवाह के बाद व्यक्ति का जीवन संगठित हो जाता हैं। व्यक्ति अपना जीवन सामाजिक रूप से व्यवस्थित होकर जीने लगता है, वह सामाजिक रीति रिवाजों एवं परंपराओ का पालन करने लगता है। 


  • विवाह के बाद व्यक्ति का परिवार बन जाता है, व्यक्ति परिवार की आवश्यकताओं एवं समाज में परिवार की स्थिति के अनुसार अपने आप को व्यवस्थित करने लगता है, वह समाज में परिवार की प्रतिष्ठा एवं उचित स्थान के लिए कार्य करने लगता हैं। 


  • विवाह का एक सबसे बड़ा महत्व यह भी है कि, यह व्यक्ति पर सामाजिक नियंत्रण स्थापित करता है। विवाह के बाद व्यक्ति समाज के प्रचलित नियमों का कठोरता से पालन करता है तथा वह अपने आचार विचार सामाजिक मान्यताओं के दायरे में रखता है।

 

  • भारतीय समाज का सबसे बड़ा महत्व धर्मानुसार जीवन यापन करना है। विवाह के बाद व्यक्ति से अपेक्षा की जाती है कि, वह निर्धारित धार्मिक संस्कारों का पालन करेगा। विवाह के बाद देव ऋण, व्यक्ति गृहस्थ जीवन में प्रवेश करता हैं और गृहस्थ जीवन में ही सोलह संस्कारों को पूर्ण भी करता है। इसके साथ ही, पंचमहायज्ञों ब्रह्म यज्ञ, देव यज्ञ, पितृ यज्ञ, नृयज्ञ को सपत्निक संपन्न करके अपने धार्मिक दायित्वों की पूर्ति करता है। 


  • विवाह के बाद गृहस्थ जीवन में त्रि ऋणों - ऋषि ऋण, पितृ ऋण से मुक्ति प्राप्त करता है। विवाह के बाद ही व्यक्ति पुरूषार्थों धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की कामना कर सकता है, अतः पुरूषार्थों की पूर्ति हेतु विवाह का बड़ा महत्व है।

 

  • विवाह के बाद ही व्यक्ति के परिवार का गठन होता है और परिवारिक कर्त्तव्यों एवं दायित्वों की पूर्ति करता है वह संतान का भरण पोषण एवं संस्कारित शिक्षा की व्यवस्था करता है। विवाह के बाद व्यक्ति सामंजस्य का जीवन जीना प्रारंभ कर देता हैं। 


  • विवाह के बाद व्यक्ति संतान उत्पत्ति करके समाज एवं परिवार को आगे बढ़ाता है। हिन्दू धर्मशास्त्रों में पुत्र संतान को बड़ा महत्व दिया गया है, अतः व्यक्ति से पुत्र संतान उत्पन्न करने की इच्छा की जाती है। पुत्र सामाजिक धार्मिक कार्यों में परिवार एवं पिता का भविष्य में प्रतिनिधित्व भी करता हैं। साथ ही, पुत्र को पिता एवं कुल का उद्दारक भी माना जाता हैं।


 समाजशास्त्रियों के अनुसारविवाह का उद्देश्य

  • समाजशास्त्रियों के अनुसार, विवाह का प्रमुख उद्देश्य 'यौन इच्छाओं की संतुष्टि' होता है। यौन क्रियाएँ व्यक्ति की शारीरिक एवं मानसिक आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं। विवाह के बाद यौन क्रियाओं को सामाजिक स्वीकृति प्राप्त हो जाती है और व्यक्ति सामाजिक - धार्मिक दायरे में अपनी यौन इच्छाओं की पूर्ति के लिए स्वतंत्र हो जाता है, इससे सामाजिक अव्यवस्थाओं पर भी नियंत्रण स्थापित होता है, यदि सामाजिक स्वीकृति और दायरे में यौन क्रियाएँ पूरी न हों, तो सामाजिक रूप से अपसंस्कृति के फैलने लगती है।

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