बंगाल में ब्रिटिश सत्ता की स्थापना | 1756-57 से पूर्व बंगाल की राजनैतिक स्थिति | Bengal Ki Rajnitik Sthiti 1756 Ke Purv

 बंगाल में ब्रिटिश सत्ता की स्थापना 

बंगाल में ब्रिटिश सत्ता की स्थापना | 1756-57 से पूर्व बंगाल की राजनैतिक स्थिति | Bengal Ki Rajnitik Sthiti 1756 Ke Purv


1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद घटित घटनाओं ने स्वायत्त राज्यों के उदय का मार्ग प्रशस्त कर दिया था। अपने पतन की ओर बढ़ते हुए मुगल साम्राज्य के खण्डरों पर जिन राज्यों का जन्म हुआ, उनमें एक महत्वपूर्ण राज्य बंगाल था। बंगाल की समृद्धि तथा राजनैतिक कमजोरी ने अंग्रेजी को उसकी और आकर्षित किया। अंग्रेज, जो अभी तक एक व्यापारी के रुप में थे, उन्होंने साम्राज्य निर्माता के सपने देखने शुरु कर दिए। वह भलीभॉति यह जानते थे कि बगैर राजनैतिक सत्ता की स्थापना के अधिक व्यापारिक लाभ सम्भव नहीं है। 1757 में हुए प्लासी के युद्ध ने नाटकीय रुप से अंग्रेजों को बंगाल की सत्ता पर स्थापित किया और शीघ्र ही वह पूरे भारत के मालिक बन गए।

 

1756-57 से पूर्व बंगाल की राजनैतिक स्थिति 

 

  • औरंगजेब की मृत्यु के बाद से ही बंगाल का सूबेदार मुर्शिद कुली खॉ ने अपनी स्वतन्त्रता के लक्षण दिखाने शुरु कर दिए, परन्तु वह मुगल सम्राट के प्रति अपनी निष्ठा का प्रदर्शन करता रहा तथा उन्हें वार्षिक कर राशि एवं नजराने देता रहा। इसका कारण यह था कि कुछ समय के लिए वह मुगलों के साथ अपने अच्छे सम्बन्ध तथा उनका विश्वास बनाए रखना चाहता था। 
  • बहादुर शाह प्रथम के सम्पूर्ण शासनकाल में मुर्शिद कुली खां बंगाल का शासन बना रहा। बाद के मुगलशासक फर्रुखसियर तथा जहाँदारशाह ने मुर्शिद कुली खाँ को हटाने की कोशिश की परन्तु वे असफल रहे। 
  • 1772 में कुली खाँ ने मुगल सेना को पराजित कर सेनानायक रशीद खाँ की हत्या कर दी। इस पराजय के बाद फर्रुखशियर ने मुर्शिद कुली खाँ की स्वतन्त्रता को मान्यता दे दी, लेकिन फिर भी मुर्शिद कुली खाँ मुगल साम्राज्य के प्रति अपनी निष्ठा का प्रदर्शन करता रहा। 
  • उसकी मृत्यु के बाद उसका दामाद शुजाउद्दीन की मृत्यु हुई तो उसके पुत्र सरफराज ने बंगाल की गद्दी सभाली, परन्तु वह स्वंय को इस गद्दी का उचित हकदार साबित नहीं कर सका। वह बहुत शक्तिहीन था। उसकी निष्क्रियता और अयोग्यता के कारण राज्य के अधिकारियों में सत्ता हथियानें के लिए होड़ मच गई, जिसके परिणामस्वरुप बंगाल में एक क्रांति हुई, जिसमें सरफराज को अपने गद्दी तथा जीवन दोनों से हाथ धोना पड़ा। 
  • सरफराज को गद्दी से हटाकर अलीवर्दी खाँ ने बंगाल की सत्ता संभाली। उसने 1740 से 1756 तक बंगाल पर शासन किया। बंगाल उसके शासन काल में आर्थिक दृष्टि से वैभवशाली तथा राजनैतिक दृष्टि से मजबूत था। उसके शासनकाल में मराठों के कई आक्रमण हुए, जिसका उसने बड़ी वीरता मुकाबला से किया। 
  • 1751 में बंगाल के नबाब तथा मराठों के बीच एक समझौता हुआ, जिसके अनुसार नबाब मराठों का 12 लाख रुपए वार्षिक चौथ प्रदान करने के लिए इस शर्त पर सहमत हो गया कि भविष्य में मराठे उसके राज्य में कदम नहीं रखेंगे। 
  • अलीवर्दी खाँ ने बंगाल में अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों द्वारा क्रमशः कलकत्ता एवं चन्द्रनगर की अपनी-अपनी बस्तियों की किलेबन्दी करने का भी विरोध किया, क्योंकि वह उनकी शक्तियों में वृद्धि के प्रति आशंकित था। 
  • 1756 में अलीवर्दी खाँ की मृत्यु हो गई, जिसके उपरान्त उसका नाती सिराज-उद-दौला उसका उत्तराधिकारी बना। 
  • सिराजुद्दौला के सिंहासन पर बैठते ही अंग्रेजों ने बंगाल की राजनीति में हस्तक्षेप करना आरम्भ कर दिया। एक प्रबल और कार्याधिकारी शासक का बंगाल की गद्दी पर बैठना अंग्रेजों के हित में नही था। वह किसी दुर्बल व्यक्ति को नबाब बनाना चाहते थे, जो उनकी आर्थिक एवं राजनैतिक हितों की पूर्ती कर सके।

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