प्रथम मैसूर युद्ध 1767-1769 |अंग्रेज़ और हैदर के बीच संधि | Pratham Maysoor Yudh
प्रथम मैसूर युद्ध 1767-1769
⦿ 1760 तक हैदर अली ने अपनी शक्ति संगठित कर ली थी। जब स्वयं को मैसूर में पूर्ण रूप से स्थापित करने के लिए हैदर अली संघर्ष कर रहा था उस समय फ्रांसीसियों ने उसका साथ दिया।
⦿ अतः जब यूरोप में चल रहे सप्तवर्षीय युद्ध के कारण दक्षिण में अंग्रेज तथा फ्रासीसियों के संबंध बिगड़ गए फ्रांसीसी अधिकारी लैली ने दक्षिण भारत में सहयोग की मांग की। हैदर अली ने भी मित्रता निभाई तथा 4000 घुड़सवार अंग्रेजों के विरूद्ध फ्रांसीसियों की मदद के लिए भेजा।
⦿ इसके पूर्व की वह आंग्ल फ्रांसीसी युद्ध में अपना प्रत्यक्ष हस्तक्षेप कर सके, मैसूर में उसके विरोधियों ने मराठों का समर्थन प्राप्त कर हैदर अली पर आक्रमण कर दिया। हैदर अली को वहाँ से भाग कर बैंगलोर जाना पड़ा। जब तक वह अपनी स्थिति फिर से मजबूत करता फ्रासीसियों की शक्ति दक्षिण भारत में अपने पतन की ओर बढ़ चुकी थी। इसके बावजूद भी हैदर अली ने फ्रासीसियों का प्रभाव अपने दरबार में बनाए रखा।
⦿ हैदर अली तथा अंग्रेजों के बीच शत्रुता का प्रमुख कारण दक्षिण भारत की राजनीति थी। हैदर अली ने मुहम्मद अली के शत्रु महफूज खां को संरक्षण प्रदान किया। मुहम्मद अली का मुख्य झगड़ा कुछ क्षेत्रों को लेकर था, जैसे करूर, विरूपाक्षी आदि । यही हैदर अली ने चंदा साहब के बेटे को भी अपने यहाँ नौकरी दी थी जिसे अंग्रेज पसंद नहीं करते थे। दूसरी तरह अंग्रेजों ने भी वेरनौर में सैनिक केन्द्र बनया जो हैदर को पसंद नहीं था। इस प्रकार हम देखते है कि अंग्रेजों तथा हैदर के बीच पहले से ही शत्रुता थी, बस प्रतिक्षा एक चिंगारी की थी जो युद्ध में बदल सकती थी।
⦿ पहले से ही तैयार पृष्ठभूमि में युद्ध की आशंका तब और बढ़ा दी जब यह अफवाह फैली कि हैदर निजाम अली के साथ मिलकर कर्नाटक में प्रवेश करने वाला है। इससे अंग्रेज घबरा गए तथा निजाम अली को अपनी तरफ कर लिया।
⦿ 1766 में अंग्रेजों तक निजाम के बीच एक संधि हो गई। माधव राव पहले से ही मैसूर के क्षेत्र में लूटपाट करने में लगा हुआ था। अतः निजाम, मराठों तथा अंग्रेजों के मध्य एक संधि हुई। फलस्वरूप इस त्रिगुट ने हैदर अली पर आक्रमण कर दिया। हैदर अली इससे निराश नहीं हुआ। उसने स्थिति का बड़ी बहादुरी से सामना किया। वह अच्छी तरह से यह जानता था कि ये तीनों शक्तियाँ अपने हितों के कारण एक दूसरे के साथ हुई हैं अतः उन्हें अलग भी किया जा सकता है।
⦿अब हैदर अली ने कूटनीतिक चाल चलनी शुरू कर दी। उसने निजाम को भूमि की लालच देकर तथा मराठों को धन देकर अपने में मिला लिया। इस प्रकार राजनीति एक बार फिर से हैदर अली की ओर मुड़ गई। हैदर अली और निजाम की सेनाओं ने कर्नाटक में प्रवेश किया। दोनों सेनाओं के बीच कई झगड़े हुई लेकिन इसका कोई निर्णय नहीं निकल पाया। इसी बीच निजाम ने हैदर अली का साथ छोड़ दिया परन्तु कुछ ही समय बाद युद्ध की नियती हैदर के पक्ष में मुड़ने लगी। उसकी एक बाद एक सफलताओं से घबराकर अंग्रेजों ने उससे संधि कर ली। इस संधि के मुख्य बिन्दु थे
अंग्रेज़ और हैदर के बीच संधि
1. दोनों पक्षों ने एक दूसरे के विजित प्रदेशों को लौटा दिया।
2. कोलार का भंडार हैदर को प्राप्त हुआ।
3. तीसरी संधि आने वाले समय के लिए सबसे महत्वपूर्ण साबित हुई। क्योंकि यही आंग्ल मैसूर युद्ध का एक कारण बनी। इस संधि की शर्तो के अनुसार, यदि कोई भी शक्ति इन दोनों में से किसी के प्रदेश पर आक्रमण करती है तो इन्हें एक दूसरे का साथ देना होगा। मद्रास की संधि ने न केवल हैदर अली का मनोबल बढ़ाया बल्कि मैसूर को दक्षिण भारतीय राजनीति में सर्वश्रेष्ठ स्थान भी दिलाया। जीत से उत्साहित हैदर अली ने इस अवसर पर एक चित्र बनाने का आदेश दिया, जिसमें अंग्रेज गवर्नर तथा उसके कौंसिल के सदस्य उसके सामने झुक कर बैठे हैं। स्मिथ को संधि पत्र हाथ में लिए तथा तलवार को दो टुकड़ों में तोड़ता हुआ दिखाया गया था। अतः प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध ने यह साफ कर दिया था कि न केवल वीरता बल्कि कुटनीति के क्षेत्र में भी हैदर अली अंग्रेजों से काफी आगे था.
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