द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध (1780-84) | Second Aangl Maysoor Yudh

द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध (1780-84)

द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध (1780-84) | Second Aangl Maysoor Yudh


 

द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध

  • 1780 में हैदर अली को अंग्रेजों से दूसरा युद्ध लड़ना पड़ा । वस्तुत हैदर अली की हुई शक्ति तथा दक्षिण भारतीय राजनीति में उसके बढ़ते हुए प्रभाव से अंग्रेज भयभीत हो चुके थे। अंगेजों के हैदर अली तथा फ्रासीसियों के बीच की मित्रता भी पंसद नहीं थी। वह मैसूर राज्य को मराठों की सहायता से ब्रफर स्टेट में बदलना चाहते थे। 
  • मद्रास की संन्धि में यह स्पष्ट रूप से लिखा हुआ था कि यदि दोनों में से किसी के क्षेत्र पर भी यदि कोई भी बाहरी शक्ति आक्रमण करती है तो उन्हें एक दूसरे का साथ देना होगा। परन्तु जब मराठों ने मैसूर पर आक्रमण किया तो संधि की शर्त के अनुसार अंग्रेजों ने हैदर का साथ नहीं दिया। 
  • अंग्रेजों की यह मंशा थी कि मैसूर किसी भी तरह से सैनिक दृष्टि से कमजोर हो जाये 1770 में हैदर ने मुब्बई के साथ एक संन्धि की थी जिसके अंतर्गत ब्रिटिशों ने ओजोर में एक फैक्ट्री स्थापित की तथा मालावार तट पर चन्दन की लकड़ी और कालीमिर्च खरीदने को अधिकार प्राप्त किया। इसके बदले में वे आवश्यकता पड़ने पर हैदर को युद्ध सामग्री देने को तैयार हुए। 
  • मराठों के संघर्ष के समय हैदर ने बार-बार युद्ध सामग्री की मांग की पर बम्बई के अधिकारी इस मांग की पूर्ति में असफल रहे जिसके कारण हैदर ने फ्रासीसियों से सहायता मांगी।

 

  • निजाम के भाई सलाबत जंग को गटूर की जागीर प्राप्त थी। चूँकि सलाबत जंग का अंग्रेजों से साथ धनिष्ट सम्बन्ध था इसलिए अंग्रेजों ने गुटूंर पर अधिकार कर लिया। सामरिक दृष्टि के र बहुत महत्वपूर्ण था क्योंकि इसका रास्ता हैदर तथा निजाम के राज्य से होकर गुजरता अंग्रेजों ने इन रास्तों से सेना भेजने से पूर्ण हैदर तथा निजाम से स्वीकृति नहीं ली थी। 
  • अत: हैदर तथा निजाम दोनों ने ही इस कार्यवाही की कड़ी आलोचना की तथा इसका विरोध किया। इससे न केवल निजाम क्रोधित हुआ बल्कि हैदर तथा अंगेजों के बीच भी कुटता बढ़ी।
  • यही नहीं अंग्रेजों ने 1768 में निजाम से साथ की गई एक संन्धि के अनुसार उत्तरी सरकार के बढ़ते 7 लाख रूपया देने से भी इनकार कर दिया। इन सभी परिस्थितियों ने अंग्रेजों तथा निजाम को एक दूसरे से दूर कर दिया। 
  • अतः एक ओर जब अंगेज मराठों के साथ युद्ध मे लगे हुए थें वही दूसरी ओर हैदर तथा निजाम भी अंग्रेजों के विरूद्ध कदम उठाने की सोचने लगे। मराठा अंग्रेजों के विरूद्ध हैदर अली का समर्थन प्राप्त करना चाहते थें इस पृष्ठभूमि में हैदर ने कूटनीतिक चाल चली तथा मराठों एवं निजाम को मिलाकर अंग्रेजों के विरूद्ध एक संघ का निर्माण किया। अब यह निश्चय किया गया कि मराठे मध्य भारत से होते हुए अंग्रेजों पर आक्रमण करेंगे।
  • निजाम उत्तरी सरकार पर तथा हैदर मद्रास तथा उसके और प्रान्त के प्रदेशों पर आक्रमण करेगी। जब अंग्रेजों ने देखा कि उनके विरूद्ध इतना शक्तिशाली मोर्चे का निर्माण हुआ है तो उन्होने घबराकर निजाम के साथ समझोता कर लिया उन्होंने निजाम को गुटूंर लौटा दिया। इतना ही नहीं निजाम को कुछ भेंट भी भेजा गयाजिसके कारण निजाम ने स्वंय को हैदर तथा मराठों के इस मोर्चे से अलग कर लिया।

 

द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध की शुरूआत

  • 1780 में द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध की शुरूआत उस समय हुई जब हैदर अली ने कर्नाटक पर आक्रमण कर दिया अंग्रेजों ने इसे अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया क्योंकि कर्नाटक का नवाब अंग्रेजों का मित्र था। 
  • कर्नल बैली के नेतृत्व में एक फौज अंग्रेजों ने पहले से ही कर्नाटक की रक्षा के लिए वहाँ छोड़ रखी थी। हैदर ने बैली के नेतृत्व वाली अंग्रेजी सेना को बुरी तरह पराजित किया तथा कर्नल बैली बन्दी बना लिया गया।
  • आगे बढ़ते हुए हैदर अली ने अर्काट पर अधिकार कर लिया जो उस समय कर्नाटक की राजधारी थी। हैदर की इन विजयों ने अंग्रेजों की प्रतिष्ठा को उनके न्यूनतम बिन्दु तक पहुंचा दिया। 
  • इस संदर्भ में अल्फ्रेड लायल कहते हैं, “भारत में अंग्रेजों का भाग्य सबसे नीचे गिर चुका था। “ अब हैदर अली की इन विजायों पर रोक लगाने के लिए आयरकूट को एक विशाल सेना के साथ मद्रास भेजा गया। 
  • आयकूट ने अपनी कूटनीतिक चाल द्वारा मराठों को हैदर से अलग कर दिया। अब हैदर अली बिलकुल अकेला पड़ गया था। इसका परिणाम यह हुआ कि पोर्टोनोवा ने हैदर अली को आयरकूट के हाथों पराजय का मुंह देखना पड़ा। इसी समय फ्रांसीसियों ने हैदर अली की सहायता के लिए 2000 फ्रासीसी सैनिक मद्रास भेज दिए। 
  • जून 1782 में हैदर तथा फ्रांसीसी सेना का मुकाबला आयरकूट के नेतृत्व वाली अंग्रेजी सेना से हुआ। परन्तु यह युद्ध अनिर्णायक रहा। युद्ध के दौरान ही 1782 ई0 में हैदर अली की मृत्यु हो गई।
  • अब मैसूर को बचाने का पूरा दायित्व हैदर के उत्तराधिकारी टीपू पर आ गया था। टीपू ने यह युद्ध जारी रखा। परन्तु यूरोप में इंग्लैण्ड तथा फ्रांस के बीच 1784 से हुए पुत्र तथा से ए शांति समझौते के कारण टीपू को फ्रांस से सहायता मिलनी बन्द हो गई। इसी समय वारेन हेस्टिंग ने मद्रास प्रेसीडेन्सी की सहायता की। अब दोनों पक्षों को यह लगने लगा कि युद्ध को जारी रखना उनके परस्पर हितों में नहीं है। 
  • अतः दोनों पक्षों ने समझौता कर लिया। इस संधि को मंगलौर की संधि कहा जाता है। इस समझौते के अनुसार दो पक्षों ने एक दूसरे के जीते हुए प्रदेश को वापस कर दिया ! अग्रेजो ने टीपू से मित्रतापूर्ण संबंध रखने तक कठिनाई के समय उसकी सहायता करने का वचन दिया ।

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