चौथा आंग्ल-मैसूर युद्ध (1799) | Fourth Aangl Maysur Yudh
चौथा आंग्ल-मैसूर युद्ध (1799)
चौथा आंग्ल-मैसूर युद्ध (1799)
- श्रीरंगपटनम संधि की अपमान जनक संधि ने भी टीपू का मनोबल पूरी तरह से नही तोड़ा । अब यह अपनी शक्ति फिर से संगठित करने में लग गया दुर्भाग्य के बोझ से डूबने की जगह उसने युद्ध की गति से भोगी क्षति को समाप्त करने की कोशिश की । उसने अपनी राजधानी की किलेबन्दी करने की कोशिश की तथा उसे और अधिक शक्तिशाली बनाया । घुडसवारो की शक्ति बढ़ाई,पैदल सेना की संख्या में बढोत्तरी कर उन्हें अनुशासनबद्व किया ।
- राज्य की आर्थिक स्थिति में सुधार लोने के लिए उसने कृषि क्षेत्र में सुधार करने की कोशिश की । 1793 में में कार्नवालिस वापस लौट गया तथा उसके स्थान पर जॉनशोर गवर्नर जनरल बन कर आया । कार्नवालिस जैसे गुणों का जॉन शोर में अभाव था। टीपू ने इसका पूरा लाभ उठाया।
- 1796 में जब मैसूर के राजा चामराज की मृत्यु हुई तो आपू ने उसके अवयस्क पुत्र से नाममात्र की भी गद्दी छीन ली। 1796 में टीपू ने अपने दूत के माध्यम से जमानशाह से संपर्क किया ताकि अंग्रेजो तथा मराठा शक्ति को समाप्त किया जा सकें । युरोप मे जब अंग्रेजो तथा फ्रांसिसियो से सहायता की मांग की।
- टीपू ने फ्रांसिसी क्रांति से परभाषित होकर संरिगपट्टममें स्वतंत्रता का एक पौधा लगाया ।
- 1798 में जॉनशोर के स्थान पर वेलेजली भारत आया। उसे यह डर था कि फ्रांसिसी टीपू के साथ मिलकर भारत में अंग्रेजी शक्ति समाप्त करने में सफल न हो जाएं । ऐसी किसी भी स्थिति से निपटने के लिए उसने कूटनीतिक चाल चलनी शुरू कर दी । इस खतरे से निपटने के लिए वैलेजली ने जिस हथियार का इस्तेमाल किया उसे सहायक संधि कहते है। उसने निजाम को सहायक संधि स्वीकार कर लेने के लिए विवस किया ।
- हैदराबाद तथा अवध के पश्चात वेलेजली के सामने दो और राज्यों को अधीन बनाने की समस्या थी । एक मैसूर तथा दूसरा मराठों का राज्य/वैलेजली ने 1799 में टीपू के में सहायक संधि का प्रस्ताव रखा जिसे टीपू ने अस्वीकार कर दिया। वेलेजली ने टीपू पर यह आरोप लगाया कि वह फ्रांसिसीयों अरब तथा तर्क शासक के साथ मिलकर अंग्रेजों के विरूद्ध षडयंत्र कर रहा है। टीपू ने अपने उत्तर मे यह साफ कर दिया कि उसकी ऐसी कोई मंशा नही है ।
- वह अंग्रेजों के खिलाफ कोई षडयंत्र कर रहा है। वैलेजली ने उसके उत्तर को स्वीकार नही किया क्योंकि अब उसने टीपू को पूरी तरह से समाप्त करने की ठान ली थी । इसका परिणाम यह निकला कि वेलेजली ने अपने भाई आर्थ वेजली के नेतृत्व मे अंग्रेजी सेना को टीपू के राज्य पर आक्रमण करने के लिए भेज दिया ।
- बम्बई की सेनाओ ने मैसूर पर पश्चिम की ओर से आक्रमण किया। मलावस्सी में टीपू की पराजय हुई। अब टीपू ने सिरंगापट्टम के दूर्ग की घेरबंदी कर टीपू के सामने एक शर्त रखी इस शर्त में राज्य का आधा भाग तथा 20 लाख पौड की मांग थी। टीपू इस पर सहमत नही हुआ तथा अंग्रेजो की शर्त मानने से इन्कार कर दिया।
- अब अंग्रेजो ने टीपू सुलतान के मंत्री पुरनैया पण्डित के साथ मिलकर टीपू के विरूद्व षडयंत्र रचा। यही नही टीपू का सेनापति कमरूद्दीन खाँ तथा दीवान मीर सादिक भी अंग्रेजो से जा मिले इस षडयंत्र के परिणामस्वरूप् अंग्रेज दुर्ग में प्रवेश करने में सफल हुए। टीपू ने बहुत बहादुरी से युद्ध किया । परन्तु विश्वासघात के कारण लड़ते लड़ते वह शहीद हो गया । इस प्रकार भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद का सबसे बडा कॉटा हमेशा के लिए निकल गया।
इस प्रकार वेलेजली को आशा से कहीं अधिक सफलता मिली। अब उसके पास पूरा मैसूर राज्य आ चुका था । वैलेजली ने मैसूर के उपजाऊ क्षेत्रो जैसी काकीनाडा का पश्चिम क्षेत्र कोयमबटूर का दक्षिणी क्षेत्र, पूर्वी जिला तथा सिरंगपट्टम का दूर्ग अपने शासन में मिला लिया । मैसूर के कुछ क्षेत्र निजाम को उसकी सहायता के बदले दे दिए गए । शेष छोटा शिथिल राज्य मैसूर के वंशानुगत वाडियार राजा को दे दिया गया ।
Read Also .....
Post a Comment