1996 का पेसा अधिनियम ( विस्तार अधिनियम ) |पेसा अधिनियम के उद्देश्य एवं विशेषताएँ |Objectives and Features of PESA Act
1996 का पेसा अधिनियम ( विस्तार अधिनियम )
1996 का पेसा (विस्तार अधिनियम) पंचायतों से संबंधित संविधान का भाग-9 पाँचवीं अनुसूची में वर्णित क्षेत्रों पर लागू नहीं होता। हालाँकि संसद इन प्रावधानों को कुछ अपवादों तथा संशोधनों सहित उक्त क्षेत्रों पर लागू कर सकती है। इस प्रावधान के अंतर्गत संसद ने पंचायत के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तारित) अधिनियम 1996 पारित किया, जिसे पेसा एक्ट अथवा विस्तार अधिनियम कहा जाता है।
वर्तमान (2016) में दस राज्यों में पाँचवीं अनुसूची क्षेत्र आ हैं- आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओड़िशा और राजस्थान। इन दस राज्यों में अपने पंचायती राज अधिनियमों में संशोधन कर अपेक्षित अनुपालन कानून अधिनियमित किए हैं।
पेसा अधिनियम ( विस्तार अधिनियम ) के उद्देश्य
पेसा अधिनियम के उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
1. संविधान के भाग 9 के पंचायतों से जुड़े प्रावधानों को जरूरी संशोधनों के साथ अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तारित करना।
2. जनजातीय जनसंख्या को स्वशासन प्रदान करना
3. सहयात्री लोकतंत्र के तहत ग्राम प्रशासन स्थापित करना तथा ग्राम सभा को सभी गतिविधियों का केन्द्र बनाना ।
4. पारंपरिक परिपाटियों की सुसंगतता में उपयुक्त प्रशासनिक ढाँचा विकसित करना ।
5. जनजातीय समुदायों की परम्पराओं एवं रिवाजों की सुरक्षा तथा संरक्षण करना।
6. जनजातीय लोगों की आवश्यकताओं के अनुरूप उपयुक्त स्तरों पर पंचायतों को विशिष्ट शक्तियों से युक्त करना
7. उच्च स्तर पर पंचायतों को निचले स्तर की ग्राम सभा की शक्तियों एवं अधिकारों के छिनने से रोकना।
पेसा अधिनियम ( विस्तार अधिनियम ) की विशेषताएँ
अधिनियम की विशेषताएँ पेसा अधिनियम की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
1. अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायतों पर राज्य विधायन वहाँ के प्रथागत कानूनों, सामाजिक एवं धार्मिक प्रचलनों तथा सामुदायिक संसाधनों के पारंपरिक प्रबंधन परिपाटियों के अनुरूप होगा।
2. एक गाँव के अंतर्गत एक समुदाय का वास स्थल अथवा वास स्थलों का एक समूह अथवा एक टोला अथवा का समूह होगा, जहाँ वह समुदाय अपनी परंपराओं एवं रिवाजों के अनुसार अपना जीवनयापन कर रहा हो ।
3. प्रत्येक गाँव में एक ग्राम सभा होगी जिसमें ऐसे लोग होंगे जिनके नाम ग्राम स्तर पर पंचायत के लिए निर्वाचक सूची में दर्ज हों।
4. प्रत्येक ग्राम सभा अपने लोगों की परंपराओं एवं प्रथाओं, उनकी सांस्कृतिक पहचान, सामुदायिक संसाधन तथा विवाद निवारण के परंपरागत तरीकों की सुरक्षा एवं संरक्षण के लिए सक्षम होगी ।
5- प्रत्येक ग्राम सभा:
- (i) सामाजिक एवं आर्थिक विकास के कार्यक्रमों एवं परियोजनाओं को स्वीकृति देगी, इसके पहले कि वे ग्राम स्तरीय पंचायत द्वारा कार्यान्वयन के लिए हाथ में लिए जाएँ।
- (ii) गरीबी उन्मूलन एवं अन्य कार्यक्रमों के लाभार्थियों की पहचान के लिए जिम्मेदार होगी।
6. प्रत्येक पंचायत उपरोक्त योजनाओं, कार्यक्रमों एवं परियोजनाओं के लिए निधि में उपयोग संबंधी प्रमाण पत्र ग्राम सभा से प्राप्त करेगी ।
7. प्रत्येक पंचायत में अनुसूचित क्षेत्रों में सीटों का आरक्षण उन समुदायों की जनसंख्या के अनुपात में होगा, जिनके लिए संविधान में भाग 9 में आरक्षण की व्यवस्था की गई है। हालाँकि अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण कुल सीटों के आधे (one - half) से कम नहीं होगा। इसके अतिरिक्त पंचायतों के हर स्तर पर अध्यक्षों की सभी सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित होंगी।
8. जिन अनुसूचित जनजातियों का प्रतिनिधित्व मध्यवर्ती स्तर की पंचायत या जिला स्तर की पंचायत में नहीं है। उन्हें सरकार द्वारा नामित किया जाएगा। किन्तु नामित सदस्यों की संख्या पंचायत में निर्वाचित कुल सदस्यों की संख्या के 1/10 वें भाग से अधिक नहीं होगी।
9. अनुसुचित क्षेत्रों में विकास परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण के पहले अथवा अनुसूचित क्षेत्रों में इन परियोजनाओं से प्रभावित व्यक्तियों के पुनर्स्थापन अथवा पुनर्वास के पहले ग्राम सभा अथवा उपयुक्त स्तर की पंचायत से सलाह की जाएगी। हालाँकि परियोजनाओं की आयोजना एवं कार्यान्वयन अनुसूचित क्षेत्रों में राज्य स्तर पर समन्वयीकृत किया जाएगा।
10. अधिसूचित क्षेत्रों में लघु जल स्रोतों के लिए आयोजना एवं प्रबंधन की जिम्मेदारी उपयुक्त स्तर के पंचायत दी जाएगी ।
11. अधिसूचित क्षेत्रों में छोटे स्तर पर खनिजों का खनन संबंधी लाइसेंस अथवा खनन पट्टा प्राप्त करने के लिए ग्राम सभा अथवा उपयुक्त स्तर की पंचायत की अनुशंसा प्राप्त करना अनिवार्य होगा।
12. छोटे स्तर पर खनिजों की नीलामी द्वारा दोहन के लिए रियायत प्राप्त करने के लिए ग्राम सभा अथवा उपयुक्त स्तर की पंचायत की पूर्व अनुशंसा अनिवार्य होगी।
13. जबकि अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायतों को स्वशासन की संस्थाओं के रूप में कार्य करने के लिए अधिभार सम्पन्न बनाया जा रहा है, राज्य विधायिका यह सुनिश्चित करेगी कि उपयुक्त स्तर पर पंचायत तथा ग्राम सभा को :
- (i) किसी नशीले पदार्थ की बिक्री अथवा उपयोग को रोकने अथवा नियमित करने अथवा प्रतिबंधित करने का अधिकार होगा।
- (ii) छोटे स्तर पर वन उपज पर स्वामित्व होगा
- (iii) अनुसूचित क्षेत्रों में भूमि अलगाव को रोकने की शक्ति होगी। साथ ही किसी अनुसूचित जनजाति की गैर कानूनी ढंग से बेदखली के पश्चात् वापस भूमि प्राप्त करने के लिए आवश्यक कार्रवाई का अधिकार होगा।
- (iv) ग्रामीण हाट बाजारों के प्रबंधन की शक्ति होगी।
- (v) अनुसूचित जनजातियों को पैसा उधार देने के मामले में नियंत्रण रखने की शक्ति होगी।
- (vi) सभी सामाजिक क्षेत्रों में कार्यरत संस्थाओं एवं पदाधिकारियों पर नियंत्रण रखने की शक्ति होगी, तथा
- (vii) स्थानीय आयोजनाओं तथा ऐसी आयोजनाओं, जिनमें जनजातीय उप-आयोजनाएँ शामिल हैं, पर नियंत्रण की शक्ति होगी।
14. राज्य विधायन के अन्तर्गत ऐसी व्यवस्था होगी जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि उच्च स्तर की पंचायतें निचले स्तर की किसी पंचायत या ग्राम सभा के अधिकारों का हनन अथवा उपयोग नहीं कर रही हैं।
15. अनुसूचित क्षेत्रों में जिला स्तर पर प्रशासकीय व्यवस्था बनाते समय राज्य विधायिका संविधान की छठी अनुसूची का अनुसरण करेगी।
16. अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायतों से संबंधित किसी कानून का कोई प्रावधान यदि इस अधिनियम की संगति में नहीं है तो वह राष्ट्रपति द्वारा इस अधिनियम की स्वीकृति प्राप्त होने की तिथि के एक वर्ष की समाप्ति के पश्चात् लागू होने से रह जाएगा। हालाँकि उक्त तिथि के तत्काल पहले अस्तित्व में रहीं सभी पंचायतें अपने कार्यकाल की समाप्ति तक चलती रहेंगी बशर्ते कि उन्हें राज्य विधायिका द्वारा पहले ही भंग न कर दिया जाए।
Also Read....
पंचायती राज का विकास , पंचायती राज से संबन्धित समितियां
73वां संविधान संशोधन अधिनियम 1992
73वें संविधान संशोधन अधिनियम के अनिवार्य एवं स्वैच्छिक प्रावधान
1996 का पेसा अधिनियम ( विस्तार अधिनियम )
पंचायती राज के वित्तीय स्त्रोत
पंचायती राज व्यवस्था की असफलता के कारण
Post a Comment