2021 के चर्चित स्थल : माह जनवरी एवं फरवरी | 2021 Ke Charchit Sthal
2021 के चर्चित स्थल : माह जनवरी एवं फरवरी
राजकोट में एम्स
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 31 दिसंबर, 2020 को गुजरात के राजकोट में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) की आधारशिला रखी। इस परियोजना के लिये राज्य में लगभग 201 एकड़ भूमि आवंटित की गई है। राजकोट के इस एम्स को तकरीबन 1,195 करोड़ रुपए की लागत से बनाया जाएगा, और अनुमान के अनुसार, यह वर्ष 2022 के मध्य तक पूरा हो जाएगा। 750 बेड के इस अत्याधुनिक अस्पताल में 30 बेड का एक आयुष ब्लॉक भी होगा। इस मेडिकल कॉलेज में 125 MBBS सीटें और 60 नर्सिंग सीटें भी होंगी। वर्तमान में पूरे भारत में कुल 15 एम्स अस्पताल हैं। इस तरह राजकोट एम्स अपने निर्माण के बाद भारत का 16वाँ सार्वजनिक मेडिकल संस्थान होगा। वर्ष 2025 तक आठ और मेडिकल संस्थानों के शुरू होने की उम्मीद की जा रही है, जिससे देश में मेडिकल अवसंरचना और चिकित्सकों की कमी की समस्या से निपटा जा सकेगा।
अंटार्कटिका में भारत का 40वाँ वैज्ञानिक अभियान
- भारत ने हाल ही में अंटार्कटिका में 40वाँ वैज्ञानिक अभियान शुरू किया है। इसके साथ ही अंटार्कटिका में भारत के वैज्ञानिक अभियान के चार दशक पूरे हो गए हैं। इस नए अभियान के 43 सदस्योंइ वाले दल को गोवा तट से रवाना किया गया। चार्टर्ड आइस-क्लास पोत एमवी वासिली गोलोवनिन (MV Vasiliy Golovnin) में सवार यह दल 30 दिन में अंटार्कटिका पहुँच जाएगा। 43 में से 40 सदस्यों को वहाँ छोड़ने के बाद यह पोत अप्रैल माह में भारत वापस लौटेगा। साथ ही यह पोत वहाँ पहले से मौजूद वैज्ञानिक दल को भी भारत वापस लाएगा। राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र (NCPOR), जो कि संपूर्ण भारतीय अंटार्कटिक कार्यक्रम का प्रबंधन करता है, के अनुसार यह अभियान जलवायु परिवर्तन, भू-विज्ञान, समुद्री अवलोकन, विद्युत एवं चुंबकीय प्रवाह मापन, पर्यावरण की निगरानी आदि से संबंधित वैज्ञानिक परियोजनाओं में सहयोग करने तक ही सीमित है; साथ ही यह वहाँ मौजूद वैज्ञानिकों के लिये भोजन, ईंधन तथा अन्य आवश्यक वस्तुओं को पहुँचाने में भी मदद करेगा। भारतीय अंटार्कटिक अभियान की शुरुआत वर्ष 1981 में हुई जिसमें डॉ. एस.ज़ेड. कासिम के नेतृत्व में 21 वैज्ञानिकों और सहायक कर्मचारियों का समूह शामिल था। वर्तमान में अंटार्कटिका में भारत के तीन स्थायी अनुसंधान बेस हैं- दक्षिण गंगोत्री, मैत्री और भारती, जिनमें से मैत्री और भारती संचालित हैं।
कोच्चि-मंगलुरु प्राकृतिक गैस पाइपलाइन परियोजना
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कोच्चि-मंगलुरु प्राकृतिक गैस पाइपलाइन राष्ट्र को समर्पित की। कोच्चि-मंगलुरु प्राकृतिक गैस पाइपलाइन ‘एक राष्ट्र-एक गैस ग्रिड’ स्थापित करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम है। 450 किलोमीटर लंबी इस गैस पाइपलाइन का निर्माण ‘गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड’ (GAIL) द्वारा किया गया है। तकरीबन 12 मिलियन मीट्रिक मानक घन मीटर प्रतिदिन परिवहन क्षमता वाली इस प्राकृतिक गैस पाइपलाइन के माध्यम से कोच्चि स्थित तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) रीगैसीफिकेशन टर्मिनल से मंगलुरु में प्राकृतिक गैस ले जाई जाएगी। इस परियोजना की कुल लागत लगभग 3,000 करोड़ रुपए थी और इसके निर्माण के दौरान तकरीबन 1.2 मिलियन लोगों के लिये रोज़गार सृजित किया गया। इस प्राकृतिक गैस पाइपलाइन के माध्यम से घरों के लिये पाइप्ड नेचुरल गैस (PNG) और परिवहन क्षेत्र के लिये संपीड़ित प्राकृतिक गैस (CNG) के रूप में पर्यावरण-अनुकूल एवं सस्ती ईंधन की आपूर्ति की जाएगी। साथ ही यह वाणिज्यिक एवं औद्योगिक इकाइयों को भी प्राकृतिक गैस की आपूर्ति करेगा। इस तरह स्वच्छ ईंधन के उपयोग से वायु प्रदूषण को कम कर वायु गुणवत्ता में सुधार लाने में सहायता मिलेगी।
कज़ाख्स्तान में मृत्युदंड की समाप्ति
- हाल ही में कज़ाख्स्तान के राष्ट्रपति ने नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय नियम (ICCPR) के दूसरे वैकल्पिक प्रोटोकॉल की पुष्टि करने संबंधी प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर दिये हैं, जिसके साथ ही कज़ाख्स्तान में मौत की सज़ा को पूर्णतः समाप्त कर दिया गया है। ज्ञात हो कि कज़ाख्स्तान में फाँसी की सज़ा पर वर्ष 2003 में रोक लगा दी गई थी, किंतु इसके बावजूद न्यायालयों द्वारा कुछ विशिष्ट मामलों जैसे- ‘आतंकी कृत्यों’ में दोषियों को मौत की सज़ा दी जा रही थी, जिसे अब पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया है। कज़ाख्स्तान में आजीवन कारावास को वर्ष 2004 में वैकल्पिक सज़ा के रूप में पेश किया गया था। नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय नियम (ICCPR) को वर्ष 1966 में अपनाया गया और वर्ष 1976 से लागू किया गया, इसे अब तक कुल 173 देशों द्वारा स्वीकृति दी गई है। इससे संबंधित दूसरे वैकल्पिक प्रोटोकॉल, जो कि मृत्युदंड के उन्मूलन से संबंद्ध है, को 15 दिसंबर, 1989 को अपनाया गया था और यह वर्ष 1991 में लागू हुआ। इस प्रोटोकॉल के तहत सभी देश मृत्युदंड की सज़ा का प्रावधान नहीं करेंगे और अपने क्षेत्राधिकार में उसे समाप्त करने का प्रयास करेंगे। प्रोटोकॉल के अंतर्गत मृत्युदंड की अनुमति केवल युद्ध काल में होगी।
भारत का पहला फायर पार्क
- हाल ही में ओडिशा के मुख्यमंत्री ने राज्य में अपनी तरह के पहले ‘फायर पार्क’ का उद्घाटन किया, जिसका उद्देश्य आम लोगों के बीच अग्नि सुरक्षा से संबंधित उपायों पर जागरूकता पैदा करना है। भुवनेश्वर में ‘ओडिशा फायर एंड डिजास्टर’ अकादमी परिसर में स्थित फायर पार्क प्रत्येक शनिवार को दोपहर 3.30 से शाम 5.30 बजे तक आम जनता के लिये खुला रहेगा। अपनी तरह का यह पहला ‘फायर पार्क’ आम लोगों, विशेषकर विद्यालय और विश्विद्यालय के छात्रों के बीच बुनियादी अग्नि सुरक्षा उपायों के बारे में जागरूकता पैदा करने में सहायक होगा। इस ‘फायर पार्क’ में प्राथमिक चिकित्सा, अग्निशमन उपकरणों के उपयोग संबंधी प्रदर्शन, बचाव और आपदा प्रबंधन पर डेमो और अग्नि सुरक्षा से संबंधित फिल्मों की स्क्रीनिंग आदि गतिविधियाँ की जाएंगीं।
‘द लाइन’ शहर
- हाल ही में सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस, मोहम्मद बिन सलमान ने एक फ्यूचर सिटी 'द लाइन' का अनावरण किया है, जो कि सऊदी अरब की 500 बिलियन डॉलर की ‘नियोम’ (NEOM) परियोजना का हिस्सा है। इस संबंध में घोषणा करते हुए सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस ने बताया कि इस नए शहर में किसी भी तरह का कार्बन उत्सर्जन नहीं होगा, साथ ही इस शहर में सड़क और कारें भी नहीं होंगी। इस शहर के निर्माण का प्राथमिक उद्देश्य यह दिखाना है कि किस प्रकार मनुष्य अपने गृह पृथ्वी के साथ सामंजस्य बना कर रह सकता है। तकरीबन 170 किलोमीटर लंबी इस परियोजना के कारण अकेले सऊदी अरब में वर्ष 2030 तक 3,80,000 नौकरियों का सृजन होगा, जिससे देश की अर्थव्यवस्था पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इस शहर का निर्माण कार्य इसी वर्ष की पहली तिमाही में शुरू हो जाएगा और उम्मीद जताई जा रही है कि परियोजना के पूरा होने के बाद यह सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था में 48 बिलियन डॉलर का योगदान देगा। सऊदी अरब के इस अत्याधुनिक ‘द लाइन’ शहर में कुल एक मिलियन लोग रह सकेंगे और इस शहर का बुनियादी ढाँचा बनाने में कुल 100-200 बिलियन डॉलर तक की लागत आएगी। इस शहर में आवाजाही के लिये ‘अल्ट्रा-हाई स्पीड ट्रांज़िट’ प्रणाली विकसित की जाएगी और इस अत्याधुनिक शहर में किसी एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिये 20 मिनट से अधिक समय नहीं लगेगा। ज्ञात हो कि सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था मुख्य तौर पर तेल पर निर्भर है और ‘नियोम’ (NEOM) परियोजना के माध्यम से सऊदी अरब अपनी अर्थव्यवस्था में विविधता लाने का प्रयास कर रहा है।
विस्टाडोम कोच
- हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के विभिन्न हिस्सों से नर्मदा ज़िले के केवड़िया, जहाँ स्टैच्यू ऑफ यूनिटी स्थित है, तक संचालन हेतु आठ ट्रेनों को हरी झंडी दिखाई। इस कदम का प्राथमिक उद्देश्य आदिवासी बेल्ट में पर्यटन को आकर्षित करना है। इन आठ ट्रेनों में से अहमदाबाद-केवड़िया के बीच चलने वाली जनशताब्दी एक्सप्रेस में विस्टाडोम कोच का प्रयोग किया गया है। ‘विस्टाडोम कोच’ भारतीय रेलवे द्वारा निर्मित एक प्रकार के अत्याधुनिक कोच हैं, जिन्हें मुख्य तौर पर यात्रा के दौरान यात्रियों के लिये आराम के साथ-साथ उन्हें आसपास के क्षेत्रों का अनुभव प्रदान करने हेतु बनाया गया है। इस कोच का निर्माण तमिलनाडु स्थित इंटीग्रल कोच फैक्ट्री में किया गया है। भारतीय रेलवे द्वारा निर्मित इन नए और अत्याधुनिक कोचों में हवाई जहाज़ों के समान फोल्डेबल स्नैक टेबल हैं, साथ ही इनमें ब्रेल भाषा में सीट नंबर, डिजिटल डिस्प्ले स्क्रीन तथा स्पीकर के साथ इंटीग्रेटेड इन-बिल्ट एंटरटेनमेंट सिस्टम भी शामिल है। विस्टाडोम कोच की मुख्य विशेषता यह है कि इसमें यात्रा के दौरान आसपास के माहौल का लुत्फ उठाने के लिये बड़ी खिड़की के साथ एक ऑब्ज़रवेशन लाउंज बनाया गया है। साथ ही इस कोच में CCTV सर्विलांस, फायर अलार्म सिस्टम और एक LED बोर्ड भी लगाया गया है।
इंडोनेशिया का सेमरू ज्वालामुखी
हाल ही में इंडोनेशिया के पूर्वी जावा प्रांत
में स्थित सेमरू ज्वालामुखी (Semeru Volcano) में
विस्फोट हुआ है। इंडोनेशिया में स्थित अन्य ज्वालामुखी जिनमें मेरापी ज्वालामुखी (जावा) और सिनाबंग
ज्वालामुखी (सुमात्रा) शामिल हैं, में
कुछ समय पूर्व ही विस्फोट हुआ था।
सेमरू
ज्वालामुखी:
- सेमरू- जिसे "द ग्रेट माउंटेन" के रूप में भी जाना जाता है जावा का सबसे उच्चतम ज्वालामुखी शिखर है तथा सर्वाधिक सक्रिय ज्वालामुखियों में से एक है।
- इसमें अंतिम बार दिसंबर, 2019 में विस्फोट हुआ था।
- इंडोनेशिया में विश्व के सक्रिय ज्वालामुखियों की सर्वाधिक संख्या होने के साथ-साथ इसके पैसिफिक रिंग ऑफ फायर (Pacific’s Ring of Fire) में अवस्थित होने के कारण यहाँ भूकंपीय उथल-पुथल का खतरा भी बना रहता है।
- सेमरू ज्वालामुखी भी सूंडा प्लेट (यूरेशियन प्लेट का हिस्सा) के नीचे स्थित इंडो-ऑस्ट्रेलियाई प्लेट के उप-भाग के रूप में निर्मित द्वीपीय चाप (Island Arcs) का हिस्सा है। यहांँ निर्मित खाई को सुंडा खाई के नाम से जाना है जावा खाई (Java Trench) इसका प्रमुख खंड/भाग
लखनऊ में AI-संचालित कैमरे
- उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में पुलिस सार्वजनिक स्थानों पर स्मार्ट कैमरे लगाने जा रही है, जो संकट की स्थिति में महिलाओं के चेहरे के भावों को समझकर उनकी तस्वीरों को स्वचालित रूप से क्लिक करेंगे और एस संबंध में निकटतम पुलिस वाहन को सतर्क करेंगे। लखनऊ शहर में पुलिस द्वारा पहचाने गए 200 ‘हॉटस्पॉट’ स्थलों में से प्रत्येक में ऐसे पाँच-पाँच AI-संचालित कैमरे लगाए जाएंगे। ‘हॉटस्पॉट’ स्थलों में मुख्यतः वे क्षेत्र शामिल हैं, जहाँ प्रायः लड़कियों और महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार की सबसे अधिक शिकायतें दर्ज होती हैं। इन AI-संचालित कैमरों को कुछ विशिष्ट 40-45 घटनाओं और संभावनाओं पर प्रतिक्रिया करने के लिये सेट किया जाएगा। लखनऊ पुलिस द्वारा किया जा रहा यह प्रयास राजधानी लखनऊ में महिलाओं के लिये सुरक्षित माहौल बनाने में मददगार साबित होगा और इससे महिलाओं के साथ होने वाले दुर्व्यवहार की घटनाओं में भी कमी आएगी।
भारत की पहली भू-तापीय बिजली परियोजना
- पूर्वी लद्दाख के पूगा गाँव में भारत की पहली भू-तापीय बिजली परियोजना शुरू की जाएगी। वैज्ञानिकों ने पूगा की पहचान देश में भू-तापीय ऊर्जा के हॉटस्पॉट के रूप में की है। इस परियोजना के पहले चरण में तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम लिमिटेड (ONGC) द्वारा एक मेगावाट की क्षमता वाले बिजली संयंत्र चलाने के लिये 500 मीटर तक की खुदाई की जाएगी। चीन की सीमा के करीब और लेह से पूर्व में 170 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस परियोजना के दूसरे चरण में भू-तापीय जलाशय की क्षमता का पता लगाने के लिये और अधिक गहरी खुदाई की जाएगी। वहीं इस परियोजना के तीसरे चरण में एक वाणिज्यिक पावर प्लांट भी स्थापित किया जाएगा। अनुमान के मुताबिक, इस क्षेत्र से तकरीबन 250 मेगावाट बिजली का उत्पादन किया जा सकता है। शुरुआती चरणों में इस प्लांट की मदद से पास के ही तिब्बती शरणार्थी बस्तियों में बिजली पहुँचाने की योजना बनाई गई है। लद्दाख के पूगा और चुमाथांग को भारत में सबसे महत्त्वपूर्ण भू-तापीय क्षेत्रों में से एक माना जाता है। इन क्षेत्रों की पहचान सर्वप्रथम 1970 के दशक में की गई थी।
विश्व का पहला ‘एनर्जी आइलैंड’
- डेनमार्क में तकरीबन 3 मिलियन घरों की ऊर्जा संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये एक विशाल ऊर्जा द्वीप के निर्माण को मंज़ूरी दी गई है। डेनमार्क का यह ऊर्जा द्वीप विश्व का पहला पहला ऊर्जा द्वीप होगा, जो कि तकरीबन 18 फुटबॉल मैदानों के बराबर होगा। इस परियोजना को तकरीबन 210 बिलियन डेनिश क्रोन की अनुमानित लागत से पूरा किया जाएगा और इसे डेनमार्क के इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी निर्माण परियोजना में से एक माना जा रहा है। यह आइलैंड 200 विशाल अपतटीय पवन टर्बाइनों के लिये एक केंद्र के रूप में काम करेगा। समुद्र से तकरीबन 80 किलोमीटर (50 मील) की दूरी पर स्थित इस कृत्रिम ऊर्जा द्वीप में लगभग 50 प्रतिशत हिस्सेदारी डेनमार्क की सरकार की होगी। डेनमार्क के जलवायु अधिनियम के तहत, वर्ष 1990 के दशक से वर्ष 2030 के दशक तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन स्तर में तकरीबन 70 प्रतिशत की कमी लाने और वर्ष 2050 तक CO2 तटस्थ बनने की प्रतिबद्धता ज़ाहिर की गई है। दिसंबर 2020 में डेनमार्क ने घोषणा की थी कि वह उत्तरी सागर में सभी प्रकार के नए तेल और गैस अन्वेषण कार्यक्रमों को समाप्त कर देगा। यह ‘एनर्जी आइलैंड’ डेनमार्क के ऊर्जा उद्योग के लिये भी काफी महत्त्वपूर्ण साबित होगा।
मांडू महोत्सव-2021
- मध्य प्रदेश में धार ज़िले के ऐतिहासिक शहर मांडू में तीन दिवसीय मांडू महोत्सव की शुरुआत हो गई है। महोत्सव में ‘वोकल फॉर लोकल’ के विचार को साकार करने के लिये स्थानीय हस्तनिर्मित उत्पादों को प्रदर्शित किया जा रहा है। इस उत्सव का आयोजन मध्य प्रदेश सरकार और राज्य पर्यटन बोर्ड द्वारा संयुक्त तौर पर किया जा रहा है। मांडू उत्सव के दौरान योग सत्र, साइकिल यात्रा, हेरिटेज वॉक और ग्रामीण भ्रमण आदि शामिल हैं, जिसके पश्चात् स्थानीय कलाकारों द्वारा संगीत समारोह का भी आयोजन किया जाएगा। महोत्सव में मध्य प्रदेश की प्राचीन कला और शिल्प का प्रदर्शन होगा। मांडू, मध्य प्रदेश स्थित एक प्राचीन शहर है। मांडू, पश्चिमी मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र के धार ज़िले में स्थित है। इस ऐतिहासिक शहर को परमार राजवंश के राजा भोज द्वारा स्थापित किया गया था, जिसके बाद 1304 ईस्वी में दिल्ली के मुस्लिम शासकों द्वारा इस पर कब्ज़ा कर लिया गया।
मध्य प्रदेश में डाकुओं पर आधारित संग्रहालय
- जल्द ही मध्य प्रदेश के भिंड में स्थित पुलिस मुख्यालय में डाकुओं पर एक अनूठा संग्रहालय स्थापित किया जाएगा। मध्य प्रदेश के इस संग्रहालय में कई अनोखी वस्तुओं का प्रदर्शन किया जाएगा, जिसमें फूलन देवी और निर्भय गुज्जर आदि से संबंधित वस्तुएँ शामिल हैं। इस संग्रहालय का उद्देश्य डाकुओं का सम्मान करना अथवा उनकी प्रशंसा करना नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य डाकुओं के अपराधों को प्रमुखता से प्रदर्शित करना और अपराधों को रोकने के लिये पुलिस द्वारा किये गए बलिदानों को उजागर करना है। इस संग्रहालय में कुख्यात डाकुओं द्वारा की गई हत्याओं, लूट और अपहरण के मामलों में पिछले पाँच दशकों में पुलिस द्वारा एकत्र किये गए कम-से-कम 2,000 डिजिटल रिकॉर्ड और सामग्री को संकलित किया जाएगा।
कोविड वाॅरियर मेमोरियल
- ओडिशा सरकार ने राज्य में ‘कोविड वाॅरियर मेमोरियल’ स्थापित करने का निर्णय लिया है। यह मेमोरियल ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में स्थित बीजू पटनायक पार्क में स्थापित किया जाएगा। इस मेमोरियल के निर्माण का उद्देश्य उन फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं के बलिदान और निस्वार्थ सेवा को पहचान प्रदान करना और उन्हें सम्मानित करना है, जिन्होंने महामारी से लड़ते हुए अपनी जान गँवा दी। जो लोग इस संकट की स्थिति से लड़ते हुए शहीद हुए, उनका नाम इस स्मारक में उनकी स्मृति को जीवित रखने के लिये अंकित किया जाएगा। राज्य के निर्माण विभाग को ‘कोविड वाॅरियर मेमोरियल’ के लिये नोडल विभाग बनाया गया है। आँकड़ों की मानें तो ओडिशा में अब तक महामारी से मुकाबला करते हुए लगभग 60 फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं और स्वास्थ्य कर्मचारियों की मृत्यु हो गई है।
हैदराबाद: ‘2020
ट्री सिटी ऑफ द वर्ल्ड’
- ‘आर्बर डे फाउंडेशन’ और संयुक्त राष्ट्र के ‘खाद्य और कृषि संगठन’ (Food and Agriculture Organisation- FAO) द्वारा हैदराबाद शहर (तेलंगाना की राजधानी) को ‘2020 ट्री सिटी ऑफ द वर्ल्ड’ के रूप में मान्यता दी गई है।
- हैदराबाद ने आर्बर डे फाउंडेशन के दूसरे वर्ष के कार्यक्रम में दुनिया के 51 अन्य शहरों के साथ यह मान्यता प्राप्त की है।
- इसमें अधिकांश शहर अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया के हैं।
- हैदराबाद यह मान्यता पाने वाला भारत का एकमात्र शहर है।
- इटली के मंटोवा में वर्ष 2018 के ‘वर्ल्ड फोरम ऑन अर्बन फॉरेस्ट्स’ में वैश्विक नेताओं ने ‘मंटोवा ग्रीन सिटीज़ चैलेंज’ और एक ‘कॉल-फॉर-एक्शन’ जारी किया। इसका एक महत्त्वपूर्ण भाग ‘ट्री प्रोग्राम ऑफ द वर्ल्ड कार्यक्रम’ में शामिल होना भी था।
खजुराहो नृत्यु महोत्सव
- हाल ही में मध्य प्रदेश के विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल खजुराहो में 47वें खजुराहो नृत्य महोत्सव की शुरुआत की गई। इस महोत्सव को भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) की अनुमति मिलने के बाद 44 वर्ष पश्चात् मंदिर परिसर में आयोजित किया जा रहा है। खजुराहो नृत्य( महोत्सनव की शुरुआत वर्ष 1975 में मध्य प्रदेश के सांस्कृतिक विरासत और पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की गई थी, हालाँकि महोत्सव के दौरान स्मारकों और मूर्तियों को नष्ट करने की घटनाओं के चलते भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण ने वर्ष 1976 में मंदिर परिसर में महोत्सव का आयोजन करने पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसकी वजह से मध्य प्रदेश के सांस्कृतिक विभाग द्वारा बीते 44 वर्षों के दौरान यह महोत्सव मंदिर के पास ही एक खुले बगीचे में आयोजित किया जाता रहा। खजुराहो को हाल ही में 19 प्रतिष्ठित विश्व पर्यटन स्थलों की सूची में शामिल किया गया है, जिसके चलते इस महोत्सव को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय लोकप्रियता प्राप्त होगी एवं लोग इसकी ओर आकर्षित होंगे। चंदेल राजवंश द्वारा 10वीं और 11वीं शताब्दी में निर्मित यह मंदिर समूह स्थापत्य कला और मूर्ति कला का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करता है। नागर शैली में बने यहाँ के मंदिरों की संख्या अब केवल 20 ही रह गई है, जिनमें कंदरिया महादेव का मंदिर विशेष रूप से प्रसिद्ध है। यहाँ के मंदिर दो धर्मों- जैन और हिंदू से संबंधित हैं।
होशंगाबाद का नाम परिवर्तन
- मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राज्य के ‘होशंगाबाद’ शहर का नाम बदलकर ‘नर्मदापुरम’ करने की घोषणा की है। मध्य प्रदेश का यह अद्भुत और सुंदर शहर होशंगाबाद, मध्य नर्मदा घाटी और सतपुड़ा पठार के उत्तरी किनारे पर स्थित है। इस शहर को प्रारंभ में ‘नर्मदापुरम’ के नाम से ही जाना जाता था, हालाँकि बाद में शहर का नाम बदलकर ‘मालवा’ के पहले शासक होशंग शाह के नाम पर ‘होशंगाबाद’ कर दिया गया। होशंगाबाद ज़िला, मध्य प्रांत और बरार के नेरबुड्डा (नर्मदा) प्रभाग का हिस्सा था, जो वर्ष 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद मध्य भारत (बाद में मध्य प्रदेश) का राज्य बन गया। यह शहर नर्मदा नदी के किनारे अपने खूबसूरत घाटों के लिये प्रसिद्ध है, सेठानी घाट एक प्रमुख आकर्षण है। यह घाट तवा और नर्मदा नदियों के संगम से लगभग 7 किमी. की दूरी पर स्थित है। होशंगाबाद की अर्थव्यवस्था काफी हद तक कृषि पर निर्भर है और यह सोयाबीन के सबसे बड़े उत्पादकों मं. से एक है। दो मुख्य नदियाँ- नर्मदा और तवा होशंगाबाद ज़िले से होकर बहती हुई बांद्राभान गाँव में मिलती हैं।
कर्नाटक में फूल प्रसंस्करण केंद्र
- कर्नाटक सरकार का बागवानी विभाग जल्द ही राज्य में ‘इंटरनेशनल फ्लावर ऑक्शन बंगलूरू (IFAB) के सहयोग से न बिके हुए फूलों को विभिन्न उपयोगी उत्पादों में बदलने के लिये एक फूल प्रसंस्करण केंद्र स्थापित करेगा। यह केंद्र फूलों को प्रसंस्करित कर उन्हें प्राकृतिक रंगों, फूलों से निर्मित कागज़, अगरबत्ती, कॉस्मेटिक उपयोग हेतु पाउडर और पुष्प कला जैसे मूल्य-वर्द्धित उत्पादों में परिवर्तित कर देगा। यह केंद्र सभी प्रकार के फूलों को प्रसंस्करित करने में सक्षम होगा। यह केंद्र इस लिहाज से काफी महत्त्वपूर्ण है कि राज्य में फूलों का उत्पादन काफी अधिक होने अथवा किसी अन्य बाज़ार व्यवधान के कारण किसानों को नुकसान का सामना नहीं करना पड़ेगा। ज्ञात हो कि कोरोना वायरस महामारी और उसके कारण लागू लॉकडाउन के कारण फूल उत्पादकों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा था तथा हज़ारों टन चमेली, गेंदा, रजनीगंधा, कनकंबरा और गुलाब आदि को फेंकना पड़ा था। कर्नाटक जहाँ तकरीबन 18,000 हेक्टेयर भूमि पर फूलों का उत्पादन किया जाता है, भारत में फूलों के कुल उत्पादन हेतु प्रयोग किये जाने वाले क्षेत्र का कुल 14 प्रतिशत हिस्सा कवर करता है।
ग्रेटर टिपरालैंड
- पूर्वोत्तर भारत के त्रिपुरा राज्य में ‘ग्रेटर टिपरालैंड’ के गठन को लेकर मांग तेज़ हो गई है। ग्रेटर टिपरालैंड दरअसल, इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (IPFT) द्वारा की जा रही ‘टिपरालैंड’ की मांग का ही विस्तार है, जिसका उद्देश्य त्रिपुरा के आदिवासियों के लिये एक अलग राज्य का गठन करना है। ‘टिपरालैंड’ के विपरीत ‘ग्रेटर टिपरालैंड’ के प्रस्तावित मॉडल के तहत ‘त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त ज़िला परिषद’ (TTAADC) के बाहर स्वदेशी क्षेत्र या गाँव में रहने वाले प्रत्येक आदिवासी को भी शामिल किया गया है। यह नया मॉडल केवल त्रिपुरा के आदिवासी परिषद क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसके तहत भारत के विभिन्न राज्यों जैसे- असम और मिज़ोरम आदि में रहने वाले त्रिपुरा के विभिन्न आदिवासी समूहों को भी शामिल किया गया है। इसके अलावा प्रस्तावित ‘ग्रेटर टिपरालैंड’ में पड़ोसी देश बांग्लादेश के सीमावर्ती क्षेत्रों- बंदरबन, चटगाँव और खगराचारी आदि में रहने वाले लोगों को भी शामिल किया गया है।
Also Read.....
Post a Comment