आर्थिक राष्ट्रवादी इतिहास लेखन का विश्लेषण | Analysis of Economic Nationalist Historiography
आर्थिक राष्ट्रवादी इतिहास लेखन का विश्लेषणAnalysis of Economic Nationalist Historiography
आर्थिक राष्ट्रवादी इतिहास लेखन
- आर्थिक राष्ट्रवादी इतिहास लेखन आरम्भिक राष्ट्रवादियों की सबसे बड़ी उपलब्धि थी. इन लेखकों ने औपनिवेशिक शासन की गहन पड़ताल की तथा ब्रिटिश राज की 'कल्याणकारी राज' की अवधारणा को गहरा धक्का लगाया. इसप्रकार उन्होंने उभरते भारतीय राष्ट्रवाद को तर्क एवं आधार दिया. राष्ट्रवादी नेताओं ने इन आर्थिक विश्लेषणों को राष्ट्रवादी प्रचार का मुख्य हथियार बनाया. न केवल आरम्भिक राष्ट्रवादियों बल्कि महात्मा गाँधी ने भी भारतीय हस्तशिल्प के पतन एवं सम्पत्ति के दोहन को भारत मे राष्ट्रवाद के प्रचार का मुख्य माध्यम बनाया. यदि ये अध्ययन न होते तो संभवत: 'स्वदेशी एवं बहिष्कार' की रणनीति का जन्म ही न होता.
- महात्मा गाँधी ने विदेशी कपड़ों के बहिष्कार को महत्वपूर्ण मुद्दा बनाकर राष्ट्रीय आन्दोलन को एक जनआन्दोलन मे तबदील कर दिया. फिर भी, हमें यह स्वीकार करना होगा कि औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था के ये आरम्भिक अध्ययन काफी कमजोर थे.
- दादाभाई नौरोजी ने अक्सर विश्लेषण के स्थान पर राजनीतिक बयानबाज़ी का सहारा लिया था. वहीं आर. सी. दत्त के तर्क आकड़ों पर आधारित होने के बावजूद काफी कमजोर थे. फिर भी इन आरम्भिक आर्थिक अध्ययनों के महत्व को कम करके नही आंका जा सकता क्योंकि इन्होंने भारत में आर्थिक इतिहास लेखन की एक परम्परा डाली. कालांतर मे भारतीय इतिहासकारों - जिसमें मुख्यत: मार्क्सवादी इतिहासकार थे – ने औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था के विभन्न पहलुओं पर उत्कृष्ट इतिहास लेखन किया है.
इतिहास लेखन सारांश
- हमने देखा कि राष्ट्रवादी इतिहास लेखन का उदय औपनिवेशिक इतिहास लेखन की गलत धारणाओं को ख़ारिज करने के लिये हुआ. इसका मुख्य लक्ष्य भारत में राष्ट्रवादी प्रचार भी था.
- राष्ट्रवादी इतिहास लेखकों के एक वर्ग ने प्राचीन भारतीय संस्कृति की उत्कृष्टता पर जोर दिया. इनके लेखन को हम सांस्कृतिक राष्ट्रवादी इतिहास लेखन की श्रेणी में रख सकते हैं. इस परम्परा के स्पष्ट खतरे सामने आए क्योंकि इसने कालांतर में साम्प्रदायिक इतिहास लेखन को सामग्री उपलब्ध कराई.
- गाँधीवादी राष्ट्रवाद के उदय के साथ ही राष्ट्रवादी इतिहास लेखन की उदार परम्परा का आरम्भ हुआ. इस परम्परा ने राष्ट्रीय एकता को इतिहास लेखन के मुख्य उद्देश्य के रूप में देखा. तीसरी परम्परा आर्थिक इतिहास लेखन के रूप में आरम्भ हुई.
- इस परम्परा के लेखकों ने बिटिश औपनिवेशिक शोषण को अपने लेखनों का मुख्य बिन्दु बनाया तथा ब्रिटिश राज की भारत में उपस्थिति के ब्रिटिश उद्देश्यों पर सवालिया निशान लगाए. इन तीनों ही परम्पराओं ने भारत मे राष्ट्रवादी इतिहास लेखन की नीव रखी.
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