भारत में डचों का आगमन |Arrival of Dutch in India
भारत में डचों का आगमन
- आरंभ में डच व्यापारियों को गरम मसाले के व्यापार के लिए पुर्तगालियों पर निर्भर रहना पड़ता था। वे पुर्तगाल के लिस्बन बन्दरगाह से गर्म मसाले खरीद कर यूरोप के अन्य देशों को उपलब्ध कराते थे| इस प्रकार यूरोप में गर्म मसालों की आपूर्ति मुख्यतः डचों द्वारा की जाती थी ।
- 16 वीं शाताब्दी के आरम्भिक दशक में हुए राजनैतिक परिवर्तन ने इस व्यापार के स्वरूप को पूरी तरह से बदल दिया ।
- 1580 में पुर्तगाल पर स्पेन का कब्जा हो जाने के कारण डच व्यापारियों के लिए लिस्बन का द्वार हमेशा के लिए बन्द हो गया। व्यापार की इन आवश्यकताओं ने एक नए राजनैतिक समीकरण को जन्म दिया| अब इन व्यापारियों ने सीधे व्यापार करने के नीति अपनाई।
- डच व्यापारियों को यह लगने लगा कि जब तक पुर्तगालियों के समुद्री शक्ति एवं अधिपत्य को समाप्त नहीं किया जाएगा, भारत द्वारा गर्म मसालों की आपूर्ति संभव नहीं है।
- डच पर्यटक लींस कूटिन पुर्तगालियों के संपर्क में रह चुका था तथा उसे भारत के व्यापार की पर्याप्त जानकारी थी| उसने एक योजना बनाई जिसके अनुसार 1595 में हाउटमन एक व्यापारिक बेड़ा लेकर इन्डोनेशिया के बैटम क्षेत्र में पहुंचा यहाँ पुर्तगालियों के द्वारा व्यापार तो किया जा रहा था लेकिन सैनिक दृष्टि से वे मजबूत नहीं थे। जल्द ही डचो ने उस पर अपना अधिकार जमा लिया ।
- 1602 में बानीवेल्ट ने कई छोटी कम्पनियों को मिलाकर एक यूनाइटेड डच ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना की जिसे डच शासन द्वारा व्यापार करने का अधिकार प्रदान किया गया । जल्द ही डचों ने न केवल मलक्का तथा इन्डोनेशिया बल्कि भारत के पुलिकट पर भी अपना कब्जा जमा लिया।
- 1636 में डच व्यापारियों ने मालाबार तथा सीलोन के कालीमिर्च तथा इलाइची के व्यापार पर एकाधिकार करने के उद्देश्य से पुर्तगालियों के व्यापारिक अड्डों पर आक्रमण करना आरंभ कर दिया।
- 1661 में डचों द्वारा पुर्तगाली व्यापारियों से मालाबार छीन लिया गया . शीघ्र ही गोवा, दमन एवं दीयु छोड़कर पुर्तगालियों के अधीन शेष सभी भाग डचों के अधिकार में आ गए।
- नेत्र पांडे के अनुसार “वास्तव में डच लोगों ने अन्य यूरोपीय जातियों के लिए भारत के व्यापार का द्वार खोल दिया|”
- 17 वीं शताब्दी तक पूर्वी समुद्र के व्यापार पर डचों का एकाधिकार बना रहा| उन्होंने अंग्रेजों तथा अन्य यूरोपीय व्यापारियों को अपना प्रभाव स्थापित नहीं करने दिया।
- आरंभ में पुर्तगालियों को इस मसाले के व्यापार से बाहर करने के लिए डचों ने अंग्रेज़ व्यापारियों का समर्थन प्राप्त किया परंतु जल्द ही उन्होंने इन व्यापारियों को भी स्वाइस आइलैण्ड से निकाल बाहर किया भारत में उन्होंने पुलिकट, कोचीन, कासिमबाजार, नागापट्म तथा बालासोर इत्यादि में अपनी व्यापारिक फैक्ट्रीयां स्थापित की डचों ने भारत पर राजनैतिक अधिकार प्राप्त करने का कभी कोई प्रयत्न नहीं किया क्योंकि उनका मुख्य उद्धेश्य व्यापार अथवा व्यापारिक एकाधिकार प्राप्त करना था न की राजनैतिक सत्ता की स्थापना |
डचों की सफलता के कारण
- डचों की सफलता का एक मुख्य कारण यह था की डच व्यापारियों ने अपने व्यापारिक बस्तियों की स्थापना के लिए उन स्थानों को चुना जहां मसालों का उत्पादन बहुत अधिक मात्रा में होता था ।
- दूसरा कारण व्यापार के स्वरूप में परिवर्तन लाना था| पुर्तगाली व्यापारियों ने स्वयं को केवल मसालों के व्यापार तक ही सीमित रखा परन्तु इसके विपरीत डचों ने मसालों के साथ कपड़ों के व्यापार को भी महत्ता दी।
- इससे उन्हें अधिक मुनाफा हुआ जिससे उनकी सैनिक शक्ति को बल मिला| तीसरा पुर्तगालियों की तुलना में डचों की समुद्री शक्ति अधिक श्रेष्ट थी |
- चौथा पुर्तगालियों के विपरीत डचों द्वारा धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनाई गई उनका उद्देश्य व्यापार द्वारा आर्थिक मुनाफा कमाना था न कि धर्म परिवर्तन के द्वारा इसाई धर्म का प्रचार |
डचों की असफलता के कारण
- डचों कि व्यापारिक दिलचस्पी दक्षिण पूर्वी एशिया के स्पाइस आइलैंड में थी न कि भारत कि मुख्य भूमि में।
- बगैर राजनैतिक सत्ता की स्थापना के व्यापारिक एकाधिकार सम्भव नहीं था|
- डच मुख्य रूप से व्यापारी ही बने रहे, इसलिए वे भारत में बहुत अधिक दिनों तक नहीं टिक सके ।
- असफलता का दूसरा कारण कम्पनी और डच शासन का संबंध था | डच व्यापारिक कम्पनी कभी भी स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं करती थी बल्कि इस पर सरकार का सीधा नियंत्रण था।
- तीसरा कारण ब्रिटिश नौसैनिक शक्ति का डच नौसैनिक शक्ति से अधिक मजबूत होना था|
- चौथा, यूरोपिय राजनीति के बदलते समीकरण तथा फ्रांस और इंग्लैंड से लगातार होने बाले युद्धों ने डचों को न केवल आर्थिक रूप से बल्कि सैनिक शक्ति के रूप में भी कमजोर कर दिया था।
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