फ्रांसीसियों का आगमन |Arrival of french into India
फ्रांसीसियों का आगमन Arrival of french into India
सभी यूरोपीय शक्तियों में फ्रांसीसी सबसे अंतिम थे जिन्होंने भारत में चल रहे व्यापार के एकाधिकार के युद्ध में अपनी उपस्थिति दर्ज की .
- 1664 में फ्रांस की ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना हुई। इसका मुख्य श्रेय लुई चौदह के मंत्री कोलबर्ट को जाता है।
- फ्रांसीसियों ने जल्द ही मुगल सम्राट से आज्ञा प्राप्त कर सूरत में अपनी पहली फैक्ट्री स्थापित की .
- चाइल्ड और औरंगजेब के बीच हुए संघर्ष के परिणामस्वरूप जो मनमुटाव पैदा फ्रांसीसी कम्पनी को सम्राट का विश्वास जीतने का एक अच्छा अवसर प्रदान किया था| पर्सीवल हुआ, इस स्थिति ने भी ग्रीफिथ ने भारत में फ्रांसीसी कम्पनी के विकास को तीन चरणों में बांटा है। प्रथम चरण मुख्य रूप से शांतिपूर्ण रहा | यह चरण 1715 में समाप्त होता है, इसमें फ्रांस के मुख्य शत्रु डच थे| दूसरा चरण 1740 में समाप्त होता है, पुनर्गठन एवं वाणिज्यिक विकास इस चरण की मुख् गतिविधि थी
- 1667 में सूरत में अपनी प्रथम फैक्ट्री स्थापित करने के 2 वर्ष के अंदर ही फ्रांसीसियों ने मसुलीपट्टनम् में भी फैक्ट्री स्थापित की|
- 1674 में फ्रांसिस मार्टिन ने बीजापुर के सुल्तान से पाण्डिचेरी प्राप्त किया जो आगे चलकर भारत में उनकी राजधानी बनी डूप्ले के फ्रांसीसी गवर्नर बनने से पहले फ्रांसीसी कम्पनी ने माहे, कारिकल, कासिमबाजार तथा बालासोर में अपनी फैक्ट्री स्थापित कर ली थी |
- डूप्ले के काल में कम्पनी अपने शिखर पर पहुँच गई डूप्ले ने भारत में कम्पनी के राजनैतिक हस्तक्षेप को बढ़ावा दिया। अतः जिस समय मुगल साम्राज्य अपने पतन की ओर बढ़ रहा था तथा क्षेत्रीय शक्तियों का उदय हो रहा था, फ्रांसीसियों ने भी स्वयं को राजनैतिक रूप से स्थापित करने की पूरी कोशिश की इस तरह का हस्तक्षेप निःसंदेह रूप से अंग्रेज़ कम्पनी को गवारा नहीं था। व्यापारिक एकाधिकार की अंतिम लड़ाई तीसरे कर्नाटक युद्ध में समाप्त होती है| कर्नाटक युद्ध सफलता ने अंग्रेजों के लिए भारत में राजनैतिक सत्ता स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त किया की
Quick Overview
- फ्रांसीसी पर्यटक बर्नियर के अनुसार, “उस समय का भारत एक ऐसा गहरा कुआँ था, जिसमें चारों ओर से संसार भर का सोना-चाँदी आकर एकत्रित हो जाता था, पर जिसमें से बाहर जाने का कोई रास्ता नहीं था |”
- बर्नियर की टिप्पणी का कारण यह था कि, यूरोप में भारतीय उत्पादों की मांग बहुत अधिक थी, परन्तु यूरोपीय उत्पादों की भारत में मांग बहुत अधिक नहीं थी |
- अतः भारतीय उत्पादों को खरीदने का एकमात्र जरिया बुलियन था |
- भारत में व्यापारिक हित की संभावनाओं को देखते हुए यूरोपीय जातियों ने भारत में प्रवेश किया जिससे व्यापारिक एकाधिकार के युद्ध को जन्म दिया |
- मार्क्सवादी इतिहासकर आर. पी. दत्त ने भारत में उपनिवेशवाद को तीन चरणों में बाँटा था, जिससे प्रथम चरण वाणिज्यिक पूंजीवाद था | यही चरण व्यापारिक एकाधिकार के काल का प्रतिनिधित्व करता था। इसकी शुरुआत वास्को डी गामा के आगमन से होती है। प्रत्येक यूरोपीय जाति भारतीय व्यापार पर एकाधिकार कर अधिक मुनाफा कमाना चाहती थी.
- व्यापारिक एकाधिकार के मुख्यतः तीन सिद्धातं थे, प्रथम, व्यापार करने वाले देश का व्यापार पर एकाधिकार हो ताकि देश का अधिक से अधिक मुनाफा हो सके दूसरा, देश के प्रमुख उद्योगों की सुरक्षा करना तथा तीसरा व्यापारिक देश को वित्तीय लाभ हो जिससे देश के बुलियन को बचाया जा सके |
- ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने इन्हीं सिद्धांतों को अपनाकर भारत से अन्य यूरोपीय शक्तियों को समाप्त किया तथा ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना की ।
Read Also....
भारत में आंग्ल फ्रांसीसी संघर्ष |अंग्रेज़ एवं फ्रांसीसी कम्पनियों का स्वरुप एवं स्थिति
कर्नाटक युद्धों से पूर्व हैदराबाद एवं कर्नाटक की स्थिति
कर्नाटक का प्रथम युद्ध | अडियार का युद्ध
द्धितीय कर्नाटक युद्ध 1749-1754 | गाडेहू संधि |दूसरे कर्नाटक युद्ध के परिणाम
कर्नाटक युद्ध में अंग्रेजों की सफलता के कारण
अंग्रेजों का भारत में प्रवेश | ईस्ट इण्डिया कम्पनी की प्रकृति
Post a Comment