भारत के क्षेत्रीय राजनैतिक दल |क्षेत्रीय राजनैतिक दलों की विचारधारा |Regional Political Party
भारत के क्षेत्रीय राजनैतिक दल
- 1960 के दशक से लेकर अब तक क्षेत्रीय राजनैतिक दल अनेक राज्यों की राजनीतिक में प्रभावशाली भूमिका निभा रहे है। वस्तुतः कई अवसरों पर वे संयुक्त राजनीति के माध्यम से वे राष्ट्रीय सरकारों को चलाने में सहभागी रहे हैं।
- उत्तर और दक्षिण तथा पूर्व और पश्चिम में प्रादेशिक या क्षेत्रीय दलों के उद्धव का कोई एक स्वरूप नहीं है। क्षेत्रीय दल समाज में कुछ घटनाक्रम का प्रतिबिंब है। ये घटनाक्रम भाषाई राज्य का निर्माण कांग्रेस प्रणाली का पतन, असमान आर्थिक विकास, लामंबदी, जातीयता, राजनीति में नये गुटों का प्रदेश तथा पहचान की राजनीति इत्यादि हैं। इन पार्टियों का उदय उत्तर से दक्षिण तक अलग-अलग रहा है।
- क्षेत्रीय राजनीतिक दल क्षेत्रीय पहचान और अपेक्षाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं जिनमें उनकी संस्कृति, सामाजिक समूह, विकास का तरीका, नेतृत्व, लामबंदी का तरीका तथा अन्य कई मुद्दे शामिल हैं। विभिन्न क्षेत्रों में क्षेत्रीय दलों का उदय तथा उनका समर्थन आधार वहाँ की सामाजिक प्रकृति एवं परिवर्तन को इंगित करता है।
- भूमि सुधारों का प्रभाव, 1950-1960 के दशक की हरित क्रांति, पिछड़े वर्गों के लिये आरक्षण, इन सबने क्षेत्रीय नेताओं को उभरने का मौका दिया खासकर उत्तर भारत में। इनमें प्रमुख नेता हैं जैसे चरण सिंह, कर्पूरी ठाकुर, मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार। उन्होंने कई क्षेत्रीय दलों का गठन किया जैसे, बी. के. डी. बी. एल. डी., एल.डी., एस.पी., आर.जे.डी. जे.डी. (यू) इत्यादि।
- इन पार्टियों ने किसानों की माँगों एवं पिछड़े वर्गों की माँगों को प्रमुखता से उठाया इन पार्टियों ने अन्य क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर पिछड़े वर्गों के लिये आरक्षण को लागू करवाया विशेषकर मंडल आयोग को लागू करके जिसने केंद्र में सरकारी नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था की थी। इन पार्टियों का नेतृत्व भी इन्हीं पिछड़ी जातियों के एवं वर्गों के पास था।
- भारत में इस प्रकार की 36 मान्यता प्राप्त पार्टियों राज्यों में मौजूद हैं। इस अखंड में, आप इन दलों के कार्यक्रमों, नेतृत्व, सामाजिक आधार लामबंद का तरीका, उनकी विचारधारा के बारे में पढ़ेंगे।
क्षेत्रीय राजनैतिक दलों की विचारधारा
एस. पी., बी. के. डी. / बी. एल. डी तथा जनता दल (यूनाइटेड)
- समाजवादी पार्टी एवं राष्ट्रीय जनता दल बिहार और यू.पी. में सामाजिक-सांस्कृतिक प्रक्रिया की उपज है तथा दोनों पार्टी के नेताओं ने जे. पी. आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था । बाद में उन्होंने अपना दल गठित कर लिया एवं अन्य पिछड़े वर्गों के प्रतिनिधि बन गये। राष्ट्रीय जनता दल को बिहार में पिछड़े वर्गों के अलावा मुस्लिम समुदाय का भी समर्थन मिला था। लाल प्रसाद जो कि राष्ट्रीय जनता दल को बिहार में पिछड़े वर्गों के अलावा मुस्लिम समुदाय का भी समर्थन मिला था। लालू प्रसाद जो कि राष्ट्रीय जनता दल के जनक, पिछड़ी जातियों की पहचान एवं उनके सम्मान की जिंदगी पर बल दिया।
डी. एम.के, ए.आई.ए. डी. एम. के. तथा टी. डी. पी.
- तीन राजनीतिक दल - डी. एम.के., ए.आई.डी.एम. के. तथा टी.डी.पी. भारत के दक्षिण भारतीय राज्यों क्षेत्रीय दलों के उदाहरणों में आते हैं। द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डी. एम. के.) तमिलनाडु में द्रविड़ आंदोलन में से विकसित हुआ सिजका उद्देश्य द्रविड़ों अथवा गैर-ब्राह्मण को आत्म सम्मान दिलाना था।
- बाद में 1972 में डी.एम. के. का भी विभाजन हो गया और लोकप्रिय फिल्म अभिनेता एम. जी. रामचंद्रन ने एक अलग पार्टी बनाई जिसका नाम था ए.आई.ए.डी. एम. के. । यद्यपि तमिलनाडु में अनेक राजनीतिक दल हैं. डी. एम. के. तथा ए.आई.डी.एम. के. उनमें सबसे अधिक प्रभावशाली हैं। ये दोनों दल राज्य में सरकारें बनाते रहें हैं।
- डी.एम. के... सत्ता में होता है तो ए.आई.डी., ए.डी.एम. के विरोधी होता है तथा जब ए.आई.डी.एम. के सत्ता में होता है तो डी. एन. के विरोधी होता है।
- डी. एम. के. ने 1967 में काँग्रेस को पराजित करके राज्य में अपनी सरकार बनायी और यह पहली सरकार थी।
- 1977 के चुनावों में डी. एम. के. की हार हुई तथा ए.आई.ए.डी.एम.के. की जीत हुई। इस प्रकार 1970 के दशक से लेकर आज तक इन्हीं दोनों पार्टियों ने राज्य की राजनीति में अपना प्रभुत्व कायम किया है।
- आंध्र प्रदेश में तेलगू देशम पार्टी (टी.डी.पी.) सक्रिय है। इसका का गठन 1982 में तेलगू अभिमान पर फिल्म अभिनेता एन. टी. रामाराव ने किया था। इस पार्टी का प्रमुख लक्ष्य था तेलगू गौरव को पुनः प्राप्त करना जो कि काँग्रेस के शासन में खो गया था क्योंकि आंध्रप्रदेश की राजनीति में उस वक्त तक काँग्रेस का ही दबदबा रहा था। टी. डी. पी. ने प्रमुख रूप से इन मुद्दों को उठाया जैसे भूमि सुधारों को लागू करना, शहरी आय पर रोक, सस्ते दामों पर चावल मुहैया कराना तथा अन्य लुभावने मुद्दे भी शामिल थे।
- एन. टी. रामाराव की मृत्यु के पश्चात् उनका दामाद चंद्रबाबू नायडू टी. डी. पी का मुखिया बन गया। 1995 में चंद्रबाबू नायडू आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री बन गये थे। टी.डी. पी. का समर्थन किसानों एवं कामा समुदाय के लोगों द्वारा किया जाता है। 2
- 014 में तेलंगाना राज्य के गठन के बाद टी. डी. पी. का आधार सिकुड़ कर आंध्रप्रदेश तक ही सीमित रह गया है।
- यह रायलसीमा और आंध्रप्रदेश दोनों तक सीमित है। टी.डी.पी. को प्रमुख चुनौती अन्य क्षेत्रीय पार्टी वाई.एस.आर. (काँग्रेस) द्वारा मिली है।
- 2019 के विधान सभा चुनावों में इसी पार्टी ने टी. डी. पी. को बुरी तरह पराजित किया और इसके नेता जगनमोह रेडी आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री बने।
ए.जी.पी. असम गण परिषद
- असम गण परिषद का गठन 1985 में किया गया था। यह आस्म (ऑल असम स्टूडेंट) यूनियन) के तौर पर राज्य में काफी सक्रिय रही थी। आस ने असम गण संग्राम परिषद के साथ मिलकर 1979 से 1985 तक आंदोलन चलाया, जिसमें और कानूनी रूप से रह रहे । शरणार्थियों विशेषकर बाँग्लादेशी शरणार्थियों के खिलाफ यह आंदोलन था।
- यह आंदोलन तब समाप्त हुआ जब आसू और केन्द्र सरकार के बीच एक समझौता हुआ इस समझौते के अनुसार जो विदेशी 31 मार्च 1977 को असम में आये उन्हें बाहर भेजा जायेगा, उन्हें मतदाता सूची से निकाला जायेगा एवं भारत से बेदखल किया जायेगा। इस समझौते के पश्चात् आसू भारत से बेदखल किया जायेगा। इस समझौते के पश्चात आसू और असम गण संग्राम परिषद में मिलकर ए. जी. पी. का गठन किया।
- इसका मुख्य मकसद था चुनाव में भाग लेना और सरकार बनाना। ए.जी.पी. ने 1986 में चुनाव लड़ा तथा चुनावों में इसे भारी जीत मिली एवं इसके नेता प्रफुलकुमार महांता असम के मुख्यमंत्री बने जिन्होंने विदेशियों के खिलाफ आंदोलन चलाया था। ए. जी. पी. ने प्रफुल कुमार महाता के नेतृत्व में असम में दो बार सरकार बनाई थी।
आम आदमी पार्टी (आप)
- आम आदमी पार्टी (आप) का गठन भ्रष्टाचार के खिलाफ हुए आंदोलन के बाद हुआ था। यह आंदोलन अन्ना हजारे ने 2011 में चलाया था जिसमें मध्यम वर्ग ने जाति एवं भाषा को दरकिनार करके बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था।
- अरविन्द केजरीवाल जो कि आम आदमी पार्टी के जनक थे भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के प्रमुख चेहरे के रूप में उभर कर सामने आये।
- आम आदमी पार्टी अन्य पार्टियों से भिन्न है। क्योंकि यह विचारधारा पर आधारित नहीं है तथा यह किसी सामाजिक-सांस्कृतिक आंदोलन को प्रतिबंधित नहीं करती है।
- आम आदमी पार्टी ने दो बार दिल्ली में सरकार बनाई 2013 एवं 2015 इसने 2015 में हुए चुनावों में ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी जब इसने 70 में से 67 सीटें जीत थी। 2020 के विधान सभा चुनाव इसने दिल्ली की 62 सीटें जीती थी।
शिरोमणी अकाली दल
- शिरोमणी अकाली दल सिख आंदोलन की उपज है जो कि 1950 में गुरुद्वारों में महन्तों के खिलाफ उनके भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन चलाया था। इस आंदोलन के चलते सरकार ने 1925 में एक कानून पारित किया जिसमें गुरूदारों का नियंत्रण और प्रबंध शामिल था। इस कानून के द्वारा गुरूदारों का नियंत्रण एक प्रबंध सांमती को दिया गया जिसे शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एस. जी. पी. सी.) के नाम से जाना जाता है।
- अकाली दल ने इस समिति पर अपनी पकड़ मजबूत बना ली थी। इसने सिख समुदायों के हितों पर अमल करना शुरू कर दिया था। स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व थी। इसने ब्रिटिश सरकार के अन्याय के विरुद्ध लड़ाई लड़ी थी ।
- स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इसने पंजाबी सूबा के गठन की माँग की थी, तथा 1966 नवम्बर में केन्द्र सरकार ने पंजाब राज्य का गठन किया जिसमें सिख समुदाय बाहुल्य में है तथा हरियाणा को इससे अलग किया गया। अकाली दल पंजाब के लोगों की माँगों के लिये उन्हें लामबंद करती आ रही है। उसके प्रमुख मुद्दों में शामिल है। जैसे पंजाब को पूर्ण क्षेत्रीय स्वायत्ता प्रदान की जाये, किसानों के हितों की रक्षा की जाये, नदियों के जल का बंटवारा किया जाये तथा अमृतसर के पवित्र शहर घोषित किया जाये।
- 1980 के दशक से, अकाली दल को भी विभाजन का सामना करना पड़ा है जिनमें प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व में यह पार्टी आज की पंजाब की प्रमुख क्षेत्रीय पार्टी है। यह एन.डी. ए. गठबंधन का भी हिस्सा रही है तथा अटल बिहारी वाजपेयी एवं नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार में इसकी भागीदारी रही।
शिव सेना
- शिव सेना का समर्थन और गतिविधि महाराष्ट्र राज्य तक ही सीमित हैं। इसकी स्थाना, 1966 में बाल ठाकरे के द्वारा की गयी थी।
- इसका प्रमुख उद्देश्य मराठी लोगों की अस्मिता की रक्षा करना था या फिर 'मराठी मानुष' की रक्षा करना जिसमें मराठी भाषा, संस्कृति, आर्थिक मुद्दे तथा महाराष्ट्र राज्य के हित को रक्षा करना शामिल हैं। क्षेत्रीय माँगों के अलावा इसने हिन्दू अस्मिता का भी मुद्दा जोर-षोर से उठाया।
- शिव सेना में अपनी गतिविधि 1960 के दशक में शुरू की गई थी। इसका मानना था कि गैर-मराठी लोगों ने खासकर दक्षिण भारतीय लोगों ने मराठी लोगों पर अपना कब्जा कर लिया है तथा वे आर्थिक अवसरों का फायदा उठा रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप कई तमिलों को मुंबई छोड़कर जाना पड़ा था।
- 1970 के दशक में, शिव सेना का ध्यान कम्यूनिस्टो की तरफ गया जिसे वे राष्ट्र-विरोधी समझते थे। 1980 के दशक से इसने हिंदुओं को अपने पक्ष में करने का अभियान चलाया। इसने अयोध्या में राम आंदोलन मंदिर बनाने के लिए किये गये आंदोलन में भी भाग लिया था।
- शिव सेना एन. डी. पी सरकार का भी हिस्सा रही है। 2019 के विधान । सभा चुनावों के बाद इसने एम.डी.ए. को छोड़ दिया तथा एन.सी.पी. और काँग्रेस के साथ मिलकर राज्य में सरकार बनाई थी। उद्धव ठाकरे उसके मुख्यमंत्री बने थे।
पंजीकृत एवं गैर-पंजीकृत पार्टियां
- भारत में 2000 से ज्यादा पंजीकृत एवं गैर-पंजीकृत पार्टियां है। ये पार्टिया क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित है तथा इनकी कार्यप्रणाली, इनकी नेतृत्व, नीतियों एवं कार्यक्रमों में काफी अंतर है। इन पार्टियों के नेता किसी विशेष समुदाय वर्ग से संबंधित भी होते हैं, कभी-कभी ये नेता अपने पूर्व दल के साथ मनमुटाव होने पर अपनी अलग पार्टी बना लेते हैं।
- 1990 के दशक से इन पार्टियों की उपस्थिति सबसे अधिक उत्तरप्रदेश एवं बिहार में देखने को मिलती हैं। सामान्यतौर पर इन पार्टियों का गठन ऐसे नेताओं द्वारा किया गया है जो पिछड़े वर्गों में आते हों।
- ये पार्टियां पिछड़े वर्गों के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक मुद्दों को उठाती हैं। राष्ट्रीय पार्टियों की तुलना में इन क्षेत्रीय पार्टियों का चुनावी प्रदर्शन कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित रहता है। फिर भी, ये पार्टियां चुनाव जीतने पर सरकार बनाने के लिये राष्ट्रीय दलों के साथ सौदेबाजी करती हैं। कुछ दलों के उदाहरण इस प्रकार है: पूर्वी उत्तर प्रदेश में अपना दल, पी. एम. एस. पी., राजभर समुदाय के दल तथा बिहार में उपेन्द्र कुषवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी शामिल है।
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