भारत की राजनीति में धर्म | मतदाता को प्रभावित करने वाला कारक धर्म |Bharat Ki Rajniti Me Dharm
भारत की राजनीति में धर्म
- भारत एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है। यह सभी धर्मों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है तथा सभी धर्मों के साथ समानता का व्यवहार करता है।
- भारत में धर्म के आधर पर अपील करना या राजनीतिक समर्थन प्राप्त करना कानूनी तौर पर प्रतिबंधित है। क्योंकि धर्म लोगों के जीवन या प्रमुख भाग है इसलिए व्यवहार में धर्म को राजनीति से अलग करना असंभव है।
- धर्म न केवल लोगों के राजनीतिक व्यवहार पर प्रभाव डालता है बल्कि राजनीतिक दल एवं नेता धार्मिक प्रतीकों का इस्तेमाल करते हैं ताकि उन्हें राजनीतिक समर्थन प्राप्त हो सके।
- कुछ राजनीतिक शास्त्रियों ने धर्म एवं राजनीति के बीच संबंधों के महत्व को रेखांकित किया है। शकिर (2019 ) ने यह दलील दी कि भारत में धर्म पश्चिम से कहीं अधिक लोकप्रिय है।
- भांभरी और वर्मा (1972) ने यह दलील पेश की कि विकासशील समाजों में धर्म और राजनीतिक में अंर्तसंबंध होता हैं।
- कई राजनीतिक दल विभिन्न धार्मिक समूहों के हितों का प्रतिनिधित्व करते है। यहाँ तक कि राजनीतिक एकगुटता एवं सरकार के निर्णय निर्माण प्रक्रिया में भी चर्चा महत्वूपर्ण भूमिका अदा करता है।
- भारत में विभिन्न राजनीतिक दलों ने धार्मिक प्रतीकों के आधार पर राजनीतिक समर्थन हासिल करने की कोशिश की है।
- ये दल धार्मिक पहचान के आधार पर अपने प्रत्याक्षियों का भी चयन चुनाव लड़ने के लिये करते हैं, तथा जनता भी प्रायः धार्मिक आधार पर अपना मत देती है। इस प्रकार, धर्म भारत में मतदान व्यवहार में एक प्रमुख कारक का कार्य करता है।
- भारत में कुछ ऐसे दल हैं जो धार्मिक प्रतीकों का इस्तेमाल अपने राजनीतिक समर्थन के लिए करती है। बी.जे.पी., शिव-सेना, शिरोमणी अकाली दल तथा एम.आई.एम. इसके उदाहरण हैं।
- राजनीतिक दल, नेता और संगठन धार्मिक मुद्दों और गैर-धार्मिक मुद्दों को साथ मिलाते है यद्यपि मतदान व्यवहार के निर्धारक के रूप भूमिका रखता है, हमेशा केवल धर्म निर्णायक नहीं होता।
धर्म राजनीति में कब प्रभावी होता है
- धर्म तब प्रभावी होता है जब इसे समुदाय की गैर-धार्मिक जरूरतों के साथ मिलाया जाता है। ये गैर-धार्मिक जरूरते हैं: शासन के मुद्दे, भ्रष्टाचार को दूर करना, सांस्कृतिक समस्याऐं, धार्मिक समुदायों के आम मुद्दे है ।
- मतदाताओं का मानना है कि उनके एक पार्टी का उम्मीदवार चुनावों में चयन न केवल उनके धर्म की रक्षा करेंगे बल्कि, संस्कृति और आर्थिक हितों की भी रक्षा करेंगे तथा एक अच्छा शासन प्रदान करेंगे।
- धार्मिक लाभबंदीकरण में अकसर, एक धार्मिक समुदाय को ऐसा लगता है कि दूसरे समुदाय के साथ पक्षपात करने से उसके हितों की अनदेखी की जाती है।
- प्रतिस्पर्धात्मक राजनीति में ये दोनों आपस में प्रतिद्वंदी बन जाते है। ऐसी स्थिति में धार्मिक, ध्रुवीकरण के कारण विभिन्न धार्मिक समुदाय अलग-अलग प्रतिद्वंदी दल अथवा नेता को मत देते हैं
भारत में धर्म मतदान का आचरण
- भारत में, 1980 के दशक से धर्म मतदान के आचरण का नियमित निर्णायक बन गया है। इससे पहले, 1960 के दशक में यह प्रभावी हो गया था। यह वह समय था, जब देश को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा, जो सूखे, खादयान समस्या तथा कांग्रेस के विरूद्ध आम जनता का विरोध में परिलक्षित हुआ था।
- विश्व हिन्दू परिषद और जनसंघ द्वारा गोवध पर प्रतिबंध लगाने के अलावा समाजवादी दल और कम्युनिस्टों ने भी जनता को सूखे और खाद्यान संकट पर लामबंद किया। इसका प्रभाव और 1967 और 1969 के विधानसभा चुनावों में कई राज्यों में कांग्रेस की पराजय में हुआ । जनसंघ की विजय में, धर्म मतदान के आचरण का एक महत्वपूर्ण निर्धारक था। लेकिन धर्म ही एकमात्र तत्व नहीं था बल्कि इसका संचालन आर्थिक मुद्दों के साथ-साथ होता था।
- 1967 से पहले हुए चुनावों में धर्म ने मतदान की प्रवृत्ति को निर्धारित करने में बहुत कम भूमिका निभाई। यह कांग्रेस के वर्चस्व का युग था, जिसमें राष्ट्र निर्माण, राष्ट्रीय आंदोलन की निराशा, जाति और जाति आधारित संरक्षण प्रमुख निर्धारक तत्व थे।
केन्द्र में सरकार जनता पार्टी (1977-1980) के पश्चात 1980 में कांग्रेस ने नया नाम कांग्रेस (आई) रखा और इसने राजनीतिक लाभ के लिये धार्मिक चिन्हों का प्रयोग किया। इसने लोगों का समर्थन खो देने के बाद नई रणनीति अपनाई खासकर मुसलमानों के लिये जिसने आपातकाल में की गई ज्यादतियों के कारण उनका समर्थन खो दिया था। कांग्रेस को 1985-86 के उप-चुनावों में भी जबरदस्त झटका लगा था। उसने हिदुओं और मुसलमानों के बीच संतुलन स्थापित करके अपनी स्थिति को मजबूत बनाने का प्रयास किया।
- कांग्रेस ने हिंदुओं का समर्थन लेने के उद्देश्य से अयोध्या में राम मंदिर की प्रस्तावित जगह पर शिलान्यास रखने की विश्व हिन्दू परिषद को अनुमति दी । कांग्रेस का यह कदम विहिप की उस मांग के उत्तर में था जिसमें यह माँग की गई थी कि मस्जिद के स्थान पर मंदिर के निर्माण के लिये बाबरी मस्जिद से ताला हटा दिया जाये। इंदिरा गांधी की हत्या के परिणामस्वरूप आंदोलन को अस्थायी रूप से बंद कर दिया गया।
- कांग्रेसी सरकार ने फरवरी, 1986 में राम मंदिर के दर्शन के लिए भी मंदिर का द्वारा खोल दिया। दरवाजा कोर्ट के आदेश से खोला गय था ।
- मुसलमानों के समर्थन के लिये कांग्रेस ने 1985 में मुस्लिम महिला अधिकार और तलाक) विधेयक प्रस्तुत किया। इस विधेयक का प्रमुख उद्देश्य था शाह बानो केस के प्रभाव को विफल करना था। शाह बानो केस उच्चतम न्यायालय के श बानो नामक मुस्लिम महिला से संबंधित निर्णय के बारे में था।
- शाह बानो अपने पति के निर्णय के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय के पास पहुँची, जिन्होंने उसे तलाक दे दिया था। सर्वोच्च न्यायालय ने 1985 में शाह बानों के पक्ष में निर्णय दिया कि उसे भरणपोषण के लिये भुगतान होना चाहिये। इससे मुस्लिम समुदाय का एक मुखर गुट उत्तेजित हो गया जिसने अदालत द्वारा दी गई मुस्लिम महिलाओं को मिलने वाले लाभ से वंचित करने वाले कानून पारित करने पर दबाव डाला।
- मुसलमानों का समर्थन खोने के डर से कांग्रेस सरकार ने अदालत के आदेश से तलाकशुदा महिलाओं के लाभों को नकारने वाले विधेयक को पेश किया। सरकार के निर्णय ने नारीवादियों और समाज के अन्य लोकतांत्रिक वर्गों को नाराज कर दिया। उसने भाजपा को एक मसला भी मुहैया कराया जिसने कांग्रेस अल्पसंख्यकों की तुष्टीकरण का आरोप लगाया।
- कांग्रेस के इस कदम को चुनावों में मुस्लिम समर्थन को प्राप्त करने के प्रयास का समझा गया। साथ ही हिंदुओं को सर्मथन लेने के लिये राजीव गांधी ने अयोध्या में मंदिर का ताला खुलवा दिया इससे कांग्रेस और भाजपा के बीच धर्म के नाम पर समुदायों को संगठित करने की प्रतिस्पर्धात्मक राजनीति हुई। तब से भाजपा 1984 में लोकसभा की मात्र दो सीट से बढ़कर 2019 में 303 सीट हो गई। इसने कई राज्यों में भी स्वयं या अपने सहयोगियों के साथ मिलकर सरकारें बनाई।
- भाजपा की तीन दशकों में हुई तीव्र वृद्धि इस बात का प्रतीक है कि धर्म चुनावी राजनीति में एक महत्वपूर्ण निर्णायक तत्व है। लेकिन जैसी कि पहले ही कहा गया है, धर्म अकेला कार्य नहीं करता है। यह तभी प्रभावी होता है जब अन्य मुद्दे धर्म के साथ जुड़ जाते हैं।
- बी. जे. पी. की विजय के पीछे कोई एक कारण नहीं है। जैसा पहले कहा गया है धर्म तब प्रभावित हो जाता है जब यह अन्य मुद्दों के साथ जुड़ जाता है। शासन के अलावा, आवश्यक जरूरतें, चुनाव प्रचार के तरीके, नेतृत्व का क्षेत्र, नौकरियों को देने का वादा करना, काला धन वापस लाना, विचारधारा या राष्ट्रवाद इत्यादि अन्य मुद्दे भी प्रमुख कारण है ।
क्षेत्रीय अंतर
- चुनावी अध्ययन यह दर्शाते है कि धर्म के आधार पर चुनावी लामबंदी में क्षेत्रीय अंतर होते हैं। ये अंतर मतदान व्यवहार के समय भी परिलक्षित होते हैं। लेकिन जैसा कि पहले बताया जा चुका है, धार्मिक प्रतीक तभी प्रभावी होते है जब धार्मिक समुदायों की आर्थिक और सांस्कृतिक समस्याओं को उसके साथ जोड़ा जाता है।
- कुछ उदाहरण यहाँ पर दिये गये हैं। चुनावी राजनीति में हिंदू धर्म के प्रतीक का प्रभाव उत्तर और पश्चिम को भारत में और दक्षिण भारत, कर्नाटक में अब तक अधिक प्रभावशाली हैं।
- तेलंगाना के संगाबाद, निजामाबाद और मेहबूब नगर जिलों में मुसलमानों की बड़ी संख्या एम.आई.एम. (मजलिस इहटेदूल मुस्लिमीन) के उम्मीदवारों को वोट देती हैं, जबकि हिंदू इससे विरोधी दलों को समर्थन करते हैं।
- पंजाब में, सिख धर्म के धार्मिक प्रतीकों ने राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है शिरोमणी अकाली दल ने धार्मिक, सांस्कृतिक और आर्थिक मुद्दों को उठाया विशेषकर किसानों के मुद्दों को, जैसे संघवाद या पड़ोसी राज्यों के साथ जल विवाद या पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ बनावा इत्यादि । इसका समर्थन पंजाब के ग्रामीण क्षेत्रों के अंतर्गत लिख समुदाय प्रमुख रूप से है। सिख धर्म से जुड़े प्रतीक मुख्यत गाँवों में एक निर्धारक कारण रहे हैं, लेकिन पंजाब के शहरी क्षेत्रों में हिंदुओं से जुड़े धार्मिक प्रतीक अधिक प्रभावशाली रहे हैं।
- शिरोमणी अकाली दल को मुख्य रूप से गाँवों में सिखों का समर्थन तथा भारतीय जनता पार्टी को हिन्दुओं का शहरों में समर्थन मिलता है।
- महाराष्ट्र में शिव सेना मराठी और हिन्दुओं को लामबंद करती है और यह हिन्दुओं की पहचान से जुड़े प्रतीकों पर लामबंदी करती है। इससे धर्म और क्षेत्र की मतदान के आचरण के निर्धारक के रूप में महत्ता प्रतीत होती है।
धर्म मतदान का स्वरूप कारक
- धर्म एक महत्वपूर्ण कारक है जो भारत में मतदान का स्वरूप निर्धारित करता है।
- धर्म लोगों के जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, क्योंकि धर्म को राजनीति से अलग करने का अभ्यास आमतौर पर असंभव है।
- धर्म न केवल राजनीति को प्रभावित करता है बल्कि जनता के आचरण पर राजनीतिक समर्थन के लिये राजनीतिक दलों और नेताओं द्वारा धार्मिक प्रतीकों का भी उपयोग किया जाता है।
- भारत में भाजपा, शिवसेना, शिरोमणी अकाली दल और एम.आई.एम. जैसे राजनीतिक दल राजनीतिक संस्थाओं में धार्मिक प्रतीकों का इस्तेमाल करते हैं।
- फिर भी, जब धार्मिक प्रतीक गैर धार्मिक मुद्दों से जुड़े होते हैं तो धार्मिक प्रतीक प्रभावी हो जाते हैं।
- भारत में धर्म 1980 के दशक से मतदान आचरण के नियमित निर्णायक तत्व बन गया है।
- जनता पार्टी (1977-1980) के बाद काँग्रेस ने राजनीतिक लाभ के लिये, धार्मिक प्रतीकों का प्रयोग किया।
- जनता का समर्थन खोने के बाद, खासकर मुसलमानों का क्योंकि 1977 के लोकसभा चुनावों आपातकाल में की गयी ज्याजतियों के कारण कांग्रेस ने जनता का समर्थन खो दिया था।
- पंजाब में सिख धर्म के धार्मिक संकेतों ने पंजाब की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाई है। शिरोमणी अकाली दल धार्मिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक मुद्दों की तरफ ध्यान देता है, विशेषकर किसानों के मुद्दों को और संघवाद को विशेषकर पड़ोसी राज्यों के साथ जल-विवाद जैसे मसलों को हल करना एवं चंडीगढ़ को पंजाब की राजधानी बनाना।
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