भारत में यूरोपीय कंपनियों का आगमन |यूरोपीय कंपनियों का आगमन | Bharat Me European Company ka aagman
भारत में यूरोपीय कंपनियों का आगमन
यूरोपीय कंपनियों का आगमन
1453 ई. में कुस्तुनतुनिया पर तुर्कों का अधिकार हो गया, जिससे यूरोप व एशिया के मध्य के पुराने व्यापारिक मार्ग तुर्कों के नियंत्रण में आ गए। यूरोप के अधिकांश देश भारत तथा दक्षिणी पूर्वी एशियाई देशों के साथ मुख्यतः गरम मसालों का व्यापार करना चाहते थे अतः यूरोपीय देशों द्वारा नवीन व्यापारिक मार्गों की खोज को प्रोत्साहन दिया गया। नवीन देशों एवं व्यापारिक मार्गों की खोज में पुर्तगाल और स्पेन अग्रणी थे।
- पुर्तगाल के नाविक बार्थोलोमोडियाज ने 1487 ई. में उत्तमाशा अन्तरीप (Cape of Good Hope) खोज निकाला।
- स्पेन निवासी क्रिस्टोफर कोलम्बस ने 1494 ई. में भारत पहुंचने का मार्ग ढूंढ़ते हुए अमेरिका को खोज निकाला।
- 1498 ई. में पुर्तगाली वास्कोडिगामा ने उत्तमाशा का चक्कर काटकर भारत पहुंचने में सफलता पाई। इसी प्रकार ग्रेट ब्रिटेन के निवासी कैप्टन कुक ने आस्ट्रेलिया तथा हॉलैण्ड निवासी तस्मान ने तस्मानिया व न्यूजीलैंड को खोज निकाला।
- भारत में यूरोपियों के आने के क्रम में
सर्वप्रथम पुर्तगीज थे, इसके बाद डच, अंग्रेज, डेनिश और फ्रांसीसी आए। इन यूरोपियों में यद्यपि अंग्रेज डच के बाद
आए थे, लेकिन इनकी ईस्ट इंडिया कंपनी की
स्थापना डच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना से पहले ही हो चुकी थी।
भारत में यूरोपियों के आने का क्रम
- पुर्तगाली 1498 ई.
- डच 1595 ई
- ब्रिटिश 1600 ई.
- डेन 1616 ई
- फ्रेंचे 1664 ई
यूरोपीय कंपनी के गठन का क्रम
- पुर्तगाली
- ब्रिटिश
- डच
- डेन
- फ्रेंच
भारत में पुर्तगाली पुर्तगीज
- यूरोपवासियों में सर्वप्रथम पुर्तगीज भारत आए 17 मई, 1498 ई. में वास्को-डि-गामा एक हिन्दुस्तानी गुजराती व्यापारी अब्दुल मनीद की सहायता से कालीकट (केरल) पहुंचा था। कालीकट के हिन्दू राजा, जिसकी पैतृक उपाधि जमोरिन थी, ने वास्को-डि-गामा का स्वागत किया और उसे मसाले व जड़ी-बुटियां इत्यादि ले जानी की आज्ञा प्रदान की।
- वास्को डि गामा की इस सफल यात्रा से उत्साहित होकर पुर्तगालियों ने 1500 ई. में पेड्रो अल्वेरज केब्रल के नेतृत्व में द्वितीय पुर्तगाली अभियान कालीकट भेजा।
- 1502 ई. वास्कोडिगामा पुनः भारत आया। 1503 ई. में पुर्तगालियों ने कोचीन में पहली फैक्ट्री बनाई तथा 1505 ई. में फ्रांसिस्को डी अल्मोडा को प्रथम पुर्तगाली वायसराय बनाकर भारत भेजा।
फ्रांसिस्को डी अल्मीडा (1505-1509 ई.)
- अल्मीडा को भारत का प्रथम पुर्तगाली गवर्नर बनाया गया। उसका प्रमुख उद्देश्य हिन्द महासागर के व्यापार पर पुर्तगाली नियंत्रण स्थापित करना था। इसके लिए उसने ब्लू वॉटर पॉलिसी (शांत जल को नीति अपनाई। भारत सहित संपूर्ण हिन्द महासागर के पुर्तगाली साम्राज्य को एस्तादो द इंडिया नाम दिया गया।
अलफांसो डी अलबुकर्क (1509-1515 ई.)
- अलबुकर्क को भारत में पुर्तगीज शक्ति का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। इसने कोचीन को अपना मुख्यालय बनाया। अलबुककं ने 1510 ई. में बीजापुर के आदिल शाही सुल्तान से गोवा जीत लिया। इसके साथ ही भारत में क्षेत्रीय पुर्तगाली राज्य की स्थापना हुई। अलबुकर्क भारत में स्थायी पुर्तगीज आबादी बसाना चाहता था, इसलिए उसने पुर्तगालियों को भारतीय स्त्रियों से विवाह करने के लिए प्रोत्साहित किया।
नीनो डी कुन्हा (1529-1538 ई.)
- 1529 ई. में नीनो डी कुन्हा पुर्तगाली गवर्नर बना। इसने 1530 ई. में सरकारी कार्यालय कोचीन से गोवा स्थानान्तरित कर दिया, जो 1961 ई. तक भारत में पुर्तगाली राज्य की औपचारिक राजधानी बनी रही। धीरे-धीरे पुर्तगालियों ने भारत में समुद्र के समीप कई बस्तियां बसाई। बंगाल में पुर्तगालियों की सबसे महत्वपूर्ण बस्ती हुगली थी।
पुर्तगाली नियंत्रण की विधि
- पुर्तगालियों ने हिन्द महासागर से होने वाले व्यापार को नियंत्रित करने के लिए कार्टेज-ऑर्मेडा-काफिला व्यवस्था को अपनाया। इस व्यवस्था के तहत कोई भी भारतीय या अरबी जहाज पुर्तगालियों से कार्टेज (परमिट) लिए बिना अरब सागर नहीं जा सकता था। कार्टेज के लिए शुल्क देना पड़ता था। व्यापार नियंत्रण का एक अन्य तरीका काफिला व्यवस्था थी। इसमें स्थानीय व्यापारियों के जहाजों का एक काफिला होता था, जिसकी रक्षा के लिए पुर्तगाली नौ सैनिक बेड़ा साथ-साथ चलता था।
पुर्तगाली प्रभुत्व का पतन
- पुर्तगालियों का 1595 ई. तक हिन्द महासागर पर एकाधिकार बना रहा, परन्तु उसके बाद उसका पतन हो गया। पुर्तगालियों के पतन के अनेक कारण थे। प्रथम, उन्होंने धार्मिक असहिष्णुता की नीति अपनाई, जिससे भारतीय शक्तियां असंतुष्ट हो गई। द्वितीय, ब्राजील का पता लग जाने से पुर्तगाल की औपनिवेशिक प्राथमिकता पश्चिम की ओर उन्मुख हो गई। तृतीय, यूरोपीय कंपनियों से उनकी प्रतिस्पर्धा थी, जिसमें पुर्तगाली पिछड़ गए। 1617 ई. में सूरत के निकट स्वाल्ली के युद्ध में अंग्रेज सेनापति कैप्टन मिडल्टन व थॉमस वेस्ट ने पुर्तगालियों को हराया। चतुर्थ, पुर्तगालियों ने व्यापार के साथ लूटमार की नीति भी जारी रखी। उन्होंने हुगली को बंगाल की खाड़ी में समुद्री लूटपाट के लिए अड्डा बनाया था। 1632 ई. में शाहजहां ने हुगली में पुर्तगाली बस्तियों को नष्ट कर दिया।
- यहां उल्लेखनीय है कि भारत में तम्बाकू, आलू, लाल मिर्च तथा मक्का मध्य अमेरिका से पुर्तगाली ही लेकर आए थे। पुतंगालियों ने ही भारत में गोवा में प्रथम प्रिंटिंग प्रेस की शुरूआत की थी।
भारत में डच
- डच नीदरलैण्ड या हॉलैण्ड के निवासी थे। पुर्तगीजों के बाद 1595-1596 ई. में डच भारत आए। 1602 ई. में विभिन्न डच कंपनियों ने पूरब में व्यापार करने के लिए यूनाईटेड ईस्ट इंडिया कंपनी ऑफ नीदरलैण्ड के नाम से एक व्यापारिक संस्थान की स्थापना की, जिसका मूल नाम VOC (Vereenigde Oost Indische Compagnie) था।
- डच व्यापारिक व्यवस्था सहकारिता अर्थात् कार्टल पर आधारित थी। भारत के साथ व्यापार के लिए सर्वप्रथम संयुक्त पूंजी कंपनी डचों ने ही आरंभ की थी।
- डच मूलरूप से काली मिर्च व अन्य मसालों के व्यापार में ही रूचि रखते थे। ये मसाले मूलत: इण्डोनेशिया में मिलते थे, इसलिए डच कंपनी का वह प्रमुख केन्द्र बन गया था।
- डचों ने भारत में मसालों के स्थान पर भारतीय कपड़ों के व्यापार को अधिक महत्व दिया, क्योंकि यह मसालों के व्यापार से अधिक लाभप्रद था। भारतीय वस्त्रों को निर्यात की वस्तु बनाने का श्रेय डचों को जाता है।
- भारत में प्रथम डच फैक्ट्री 1605 ई. में मछलीपट्टनम (आन्ध्र प्रदेश) में स्थापित की 1610 ई. में डचों ने पुलीकट (तमिलनाडु) में एक अन्य फैक्ट्री की स्थापना की और उसे अपना मुख्यालय बनाया। बंगाल में डचों ने पीपली एवं चिनसुरा में फैक्ट्री स्थापित की थी। 1759 ई. में बेदारा के युद्ध में डच अंग्रेज से पराजित हुए। इसी पराजय के साथ भारत से उनकी शक्ति समाप्त हो गई।
भारत में अंग्रेजों का आगमन
- भारत में अंग्रेजों का आगमन डचों के बाद हुआ। सितम्बर 1599 ई. में लन्दन के कुछ व्यापारियों ने पूर्वी द्वीप समूह के साथ व्यापार करने के लिए एक कंपनी का गठन किया। इस कंपनी का नाम 'गवर्नर एण्ड कंपनी ऑफ मर्चेन्ट्स ऑफ लन्दन ट्रेडिंग इन टू द ईस्ट इंडीज' रखा गया, जिसे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी भी कहा जाता था।
- इंग्लैण्ड की महारानी एलिजाबेथ प्रथम ने 31 दिसम्बर, 1600 ई. (मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल में) में एक चार्टर (आज्ञापत्र) द्वारा कंपनी को 15 वर्षों के लिए पूरब के साथ व्यापार करने का एकाधिकार प्रदान किया। इस कंपनी का तात्कालिक उद्देश्य पूर्वी द्वीप समूह से काली मिर्च व मसालों की प्राप्ति था।
अंग्रेजों का भारत में प्रवेश | ईस्ट इण्डिया कम्पनी की प्रकृति
अंग्रेजों की व्यापारिक सफलताएं
- 1608 ई. में ब्रिटिश प्रतिनिधि विलियम हॉकिंस हेक्टर नामक जहाज से जहांगीर के दरबार में अकबर के नाम का जेम्स प्रथम का पत्र लेकर आया था। हॉकिंस ने अंग्रेजों के लिए सूरत में एक फैक्ट्री खोलने की अनुमति मांगी, किन्तु पुर्तगीज के शत्रुतापूर्ण कारनामे और सूरत के सौदागारों के विरोध के कारण यह अनुमति रद्द कर दी गई।
- 1611 ई. में अंग्रेजों ने स्वाल्ली में पुर्तगालियों के जहाजों को परास्त कर दिया। इस घटना से जहांगीर अंग्रेजों से प्रभावित हुआ और उसने 1613 ई. में सूरत में प्रथम ब्रिटिश व्यापारिक केन्द्र खोलने की अनुमति दे दी। हालांकि इसके पहले 1611 ई. में मछलीपट्टनम में अंग्रेजों ने एक अस्थायी व्यापारिक केन्द्र की स्थापना की थी।
- 1615 ई. से 1619 ई. तक सर टॉमस रो जहांगीर के दरबार में रहा और अंग्रेज ब्रिटिश व्यापार के लिए कुछ सुविधाएं प्राप्त की।
- 1632 ई. में गोलकुण्डा के सुल्तान ने अंग्रेजों को एक सुनहरा फरमान दिया इस फरमान के अनुसार 500 पैगोडा सालाना कर देकर वे गोलकुण्डा राज्य के बंदगाहों में स्वतंत्रतापूर्वक व्यापार कर सकते थे।
- 1639 ई. में फ्रांसिस डे ने चन्द्रगिरी के राजा से मद्रास को पट्टे पर लिया तथा वहां एक किलाबंद कोठी बनाई, जिसका नाम फोर्ट सेन्ट जार्ज पड़ा।
- 1651 ई. में बंगाल के सूबेदार शाहशुजा ने मुगल राजवंश की स्त्री की डॉ. बोटन द्वारा चिकित्सा करने पर कंपनी को 3000 रुपए वार्षिक कर के बदले बंगाल, बिहार व उड़ीसा में मुक्त व्यापार की अनुमति दे दी।
- 1661 ई. में इंग्लैण्ड के राजा चार्ल्स द्वितीय का विवाह पुर्तगाली राजकुमारी कैथरीन के साथ हुआ। इस अवसर पर पुर्तगालियों ने चार्ल्स द्वितीय को दहेज के रूप में बम्बई का द्वीप प्रदान किया। 1668 ई. में चार्ल्स द्वितीय ने बम्बई का द्वीप 10 पौण्ड वार्षिक किराया लेकर ईस्ट इंडिया कंपनी को दे दिया।
- 1688 ई. में सर जॉन चाइल्ड ने बम्बई व पश्चिमी समुद्र तट पर मुगल जहाजों को पकड़ लिया था, जिससे क्रुद्ध होकर औरंगजेब ने उन्हें वहां से निष्कासित कर दिया था। अन्ततः सर जॉन चाइल्ड को औरंगजेब से मांफी मांगनी पड़ी थी। 1691 ई. में बंगाल के सूबेदार शाइस्ता खां ने शाहशुजा के फरमान की मोहर लगा दी एवं ब्रिटिश को पुनः सारी सुविधाएं प्राप्त हो गई।
- 1698 ई. में बंगाल के सूबेदार अजीम-उस-सान ने अंग्रेजों को सूतीनाता, कालीकाटा व गोविन्दपुर नामक 3 गांवों की जमींदारी प्रदान की, जिसे मिलाकर जॉब चारनाक ने कलकत्ता की स्थापना की थी। इंग्लैण्ड के सम्राट के सम्मान में इसका नाम फोर्ट विलियम रखा गया। 1700 ई. में फोर्ट विलियम (कलकत्ता) पहला प्रेसीडेंसी नगर घोषित किया गया, जो 1911 ई. तक ब्रिटिश भारत की राजधानी बनी रही। इसका पहला प्रेसिडेंट सर चार्ल्स आयर हुआ।
- 1715 ई. में कंपनी ने जॉन सरमन की अध्यक्षता में एक दूतमण्डल मुगल दरबार में भेजा। इस दूतमण्डल में हेमिल्टन नामक सर्जन तथा ख्वाजा सेहूंद नामक एक आर्मीनियन दुभाषिया भी था।
- हेमिल्टन ने मुगल बादशाह फुरखशियर की एक दर्दनाक बीमारी का इलाज किया, जिससे खुश होकर 1717 ई. में फर्रूखसियर ने कंपनी को व्यापार हेतु एक शाही फरमान जारी किया। इसके अनुसार कंपनी को 3000 रुपए वार्षिक कर के बदले बंगाल में मुक्त व्यापार करने की छूट मिल गई। 10,000 रुपए वार्षिक कर के बदले कंपनी को सूरत में सभी करों से मुक्ति तथा बम्बई में कंपनी द्वारा ढाले गए सिक्कों को सम्पूर्ण मुगल राज्य में चलाने का अधिकार मिल गया। ब्रिटिश इतिहासकार ओर्म्स ने इस शाही फरमान को कंपनी का मैग्नाकार्टा की संज्ञा दी है।
डेन का भारत में आगमन
- अंग्रेजों के बाद 1616 ई. में डेन भारत आए। इन्होंने तंजौर में प्रथम फैक्ट्री स्थापित की। 1745 ई. तक उन्होंने अपनी सभी फैक्ट्रियां ब्रिटिश कंपनी को बेच दी और वे भारत से चले गए।
फ्रेंच का भारत आगमन
- फ्रांस के सम्राट लुई XIV के समय उसके प्रसिद्ध मंत्री कोलबर्ट के प्रयासों के फलस्वरूप 1664 ई. में एक फ्रांसीसी व्यापारिक कंपनी 'कम्पनी द इण्ड ओरिएण्टल की स्थापना हुई।
- फ्रांसीसी कंपनी का निर्माण सरकार द्वारा हुआ और इसका सारा खर्च भी सरकार ही वहन करती थी।
- भारत में फ्रांसीसियों ने प्रथम व्यापारिक केन्द्र फ्रैंकोकैरो द्वारा 1668 ई. में सूरत में स्थापित किया गया।
- 1669 ई. में मसूलीपट्टनम में द्वितीय व्यापारिक केन्द्र की स्थापना की।
- 1673 ई. में फ्रैंकोमार्टिन ने एक फ्रांसीसी बस्तीकी स्थापना की, जिसे पांडिचेरी के नाम से जाना जाता है। इसी तरह बंगाल में चन्द्रनगर में दक्षिण भारत में माहे व कारीकल में व्यापारिक केन्द्र की स्थापना की गई।
- 1701 ई. में पांडिचेरी को सभी फ्रांसीसी बस्तियों का मुख्यालय बनाया गया तथा फ्रेन्को मार्टिन को इसका प्रथम महानिदेशक बनाया गया।
- भारत में फ्रांसीसी प्रभुत्व की स्थापना गवर्नर डुप्ले के काल में हुई। डुप्ले ही प्रथम यूरोपीय व्यक्ति था, जिसने भू-क्षेत्र अर्जित करने के उद्देश्य से भारतीय राजाओं के झगड़ों में भाग लेने की नीति आरंभ की।
- आंग्ल-कर्नाटकयुद्ध में पराजय के पश्चात् फ्रांसीसियों का चन्द्रनगर, माहे, कारिकाल, यनम व पांडिचेरी में शासन रहा, किन्तु 1 नवम्बर, 1954 ई. में इन क्षेत्रों पर भारत का अधिकार हो गया।
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