भारत में आंग्ल फ्रांसीसी संघर्ष |अंग्रेज़ एवं फ्रांसीसी कम्पनियों का स्वरुप एवं स्थिति | Bharat Me Fransisi War
भारत में आंग्ल फ्रांसीसी संघर्ष
भारत में आंग्ल फ्रांसीसी संघर्ष सामान्य परिचय
वाणिज्यवाद आधारित साम्राज्यवाद का सबसे उत्तम
उदाहरण अंग्रेज और फ्रांसीसी कम्पनी के बीच 19 वीं शताब्दी में चलने वाला कर्नाटक युद्ध है। यह युद्ध अन्य यूरोपीय
कम्पनियों के बीच होने वाले युद्धों से कई सन्दर्भ में भिन्न है। युद्ध के कारण और
परिणाम से सम्बन्धित घटनाएं अपने आप में युगान्तकारी थी। वैश्विक साम्राज्यवाद और
भारत में चलने वाले वाणिज्यवादी एकाधिकार के बीच का जो सम्बन्ध है, उसे कर्नाटक युद्ध बहुत स्पष्ट रुप से
सामने रखता है। प्रथम और तृतीय कर्नाटक युद्ध का सीधा सम्बन्ध यूरोप में चलने वाली
साम्राज्यवादी लड़ाई और भारत में अंग्रेज और फ्रांसीसी कम्पनी के बीच वाणिज्यिक
एकाधिकार के संघर्ष से था। वही दूसरी तरफ दूसरे कर्नाटक युद्ध में इन दोनों
कम्पनियों ने अधिक से अधिक व्यापारिक लाभ प्राप्त करने के लिए पहली बार भारतीय
राजनीति में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप कर भारतीय राजनीति के स्वरुप को बदलने की कोशिश
की, जिसमें स्थानीय शासक इन विदेशी
कम्पनियों पर पहली बार पूर्णरुप से निर्भर दिखें। इस युद्ध ने स्पष्ट कर दिया था
कि बगैर प्रत्यक्ष राजनीतिक हस्तक्षेप के अथवा बगैर राजनीतिक शक्ति प्राप्त किए
व्यापारिक एकाधिकार सम्भव नहीं है। इस युद्ध के परिणाम ने प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष
रुप से न केवल विदेशी कम्पनियों को बल्कि भारतीय शासकों को भी ब्रिटिश प्रभुसत्ता
स्वीकार करने के लिए मजबूर किया।
कर्नाटक युद्ध Karnatak War In Hindi
- अंग्रेज और फ्रांसीसी कम्पनियों के बीच लड़े गए तीनों युद्ध कर्नाटक में हुए थे। कर्नाटक समुद्र के पूर्वी किनारे संकरे क्षेत्र की एक पट्टी थी, जो मैसूर के पश्चिमी पहाड़ी माला द्वारा अलग होती थी, इसकी उत्तरी सीमा गंडलकम्पा नदी थी वही तंजौर उसका दक्षिणी क्षेत्र था, जो 17 वीं शताब्दी में कर्नाटक में आगे बढ़कर मराठों द्वारा स्थापित जागीर थी।
- कर्नाटक का नबाब दक्षिण के सूबेदार निजामुलमुल्क का सहायक था, जिस पर निजाममुल्क ने मुगल साम्राज्य से अलग होकर एक स्वतन्त्र राज्य की स्थापना की, ठीक उसी प्रकार कर्नाटक का नबाब भी हैदराबाद से अलग होकर एक स्वतन्त्र राज्य की स्थापना करने की कोशिश करने लगा। कर्नाटक का संतानहीन नबाब सादुल्ला खाँ ने मुगल सम्राट मुहम्मद शाह से आज्ञा प्राप्त कर निजाममुल्क की स्वीकृति बिना अपने भतीजे दोस्त अली को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया।
अंग्रेज़ एवं फ्रांसीसी कम्पनियों का स्वरुप एवं स्थिति
- एक तरफ जहाँ फ्रांसीसी कम्पनी की स्थापना फ्रांसीसी सरकार के प्रत्यक्ष हस्तक्षेप का परिणाम थी, जिसमें कम्पनी न केवल अपने वित्तीय सहायता के लिए सीधे तौर पर सरकार पर निर्भर थी, बल्कि कम्पनी के अधिकारियों के चुनाव से लेकर अन्य सभी निर्णय फ्रांसीसी सत्ता ही लेती थी। 1723 के बाद से फ्रांसीसी कम्पनी के निदेशकों की नियुक्ति प्रत्यक्ष रुप से फ्रांसीसी ताज द्वारा ही होती थी। राजा एवं उसके अधिकारियों के सीधे हस्तक्षेप ने कम्पनी द्वारा निर्णय लेने की शक्ति को बहुत कम कर दिया था। इस हस्तक्षेप की नीति ने निःसंदेह रुप से फ्रांसीसी कम्पनी को अन्दर से कमजोर कर दिया, वहीं
- दूसरी ओर ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी अपने वित्त के लिए सरकार पर निर्भर नहीं थी। इसकी स्थापना ब्रिटेन के कोर्पोरेट द्वारा हुई थी। यह एक स्वतन्त्र कोर्पोरेशन था, जो फ्रांसीसी कम्पनी के विपरीत सरकारी अधिकारियों की सहायता पर निर्भर नहीं था। कम्पनी अपने कार्यों का निर्णय लेने में स्वतन्त्र थी । इनके अधिकारियों की नियुक्ति ब्रिटिश ताज के द्वारा नहीं, बल्कि कम्पनी के बोर्ड के द्वारा होती थी,।
- वहीं एक ओर फ्रांसीसी सरकार ने स्वंय को इतना अधिक यूरोपीय राजनीति में उलझा रक्खा था कि यह कम्पनी के कार्यों में बहुत अधिक ध्यान नहीं देती थी, वही दूसरी और ब्रिटिश पार्लियामेंट एवं ताज दोनों ही कम्पनी के माध्यम से व्यापारिक लाभ प्राप्त करने के लिए कम्पनी के कार्यों में अपनी पूरी दिलचस्पी रखते थे। रॉबर्ट के अनुसार- “हालांकि युद्ध शुरु होने से पहले दोनों कम्पनियों की शक्ति बिल्कुल बराबर दिख रही थी।
- लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि जहाँ तक वित्तीय शक्ति एवं संसाधन का प्रश्न है अंग्रेज कम्पनी फ्रांसीसी कम्पनी की तुलना में कहीं अधिक मजबूत थी।" इस प्रकार युद्ध के पहले की स्थिति पर यदि हम ध्यान दे तो देखते है कि ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी फ्रांसीसी कम्पनी की तुलना में काफी मजबूत स्थिति में थी। कम्पनी का व्यापारिक लाभ न केवल कम्पनी की आर्थिक स्थिति भी इस पर प्रत्यक्ष रुप से निर्भर होती है।
- ब्रिटिश कम्पनी ने अपनी इस मजबूत आर्थिक स्थिति का फायदा न केवल व्यापार के विकास में किया, बल्कि इसके द्वारा अपने सैन्य शक्ति को भी मजबूत किया। खासकर ब्रिटिश नौ सैनिक शक्ति फ्रांसीसी कम्पनी के नौसैनिक शक्ति की तुलना में कही अधिक श्रेष्ठ थी। अल्फ्रेंड लायल के अनुसार जिस देश की समुद्री शक्ति अधिक श्रेष्ठ होगी वही विश्व पर शासन करेगा।
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