बक्सर युद्ध की पृष्टभूमि और परिणाम | Buxar Yudh GK in Hindi
मीर जाफर, मीर कासिम तथा बक्सर युद्ध
- सिराजुद्दौला की हत्या के बाद मीर जाफर को बंगाल का नबाब बनाया गया। वह एक दुर्बल एवं राजनैतिक तथा प्रशासनिक दृष्टि से कमजोर व्यक्ति था, अतः बंगाल की वास्तविक सत्ता अंग्रेजों के हाथ में ही रही । कम्पनी ने कलकत्ता में टकसाल की स्थापना की तथा पुराने भू-स्वामी तथा पट्टेदारों के विरोध कर बावजूद 24 परगना की जमीदारी को भू-अनुदान के रुप में प्राप्त कर लिया।
- अंग्रेजों द्वारा किए जाने वाले आर्थिक शोषण के कारण नबाब की आर्थिक स्थिति चरमरा गई। कम्पनी द्वारा बार-बार किए जाने वाले धनराशि की मॉग को देने में असमर्थ हो गया, इसलिए उसने बर्द्धमान, मिदनापुर तथा चटगाँव कम्पनी को दे दिया। इसके बावजूद कम्पनी ने उसे नबाब के पद से हटाकर उसके स्थान पर मीर कासिम को नबाब घोषित किया।
- मीर कासिम ने राज्य की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिए कई कदम उठाए, जैसे भू-राजस्व की दरें बढ़ाई, राजस्व की वसूली के लिए कठोर कदम उठाए। सेना में भी सुधार किए तथा गुर्गिन खॉ में अधि यूरोपीय सेना की भाँति बंगाल की सेना का पुनर्गठन किया।
- मुंगेर जहाँ मिर कासिम ने अपना एक प्रशासन केन्द्र स्थापित किया था, जिसमें हथियारों तथा गोला बारूद की फैक्ट्री स्थापित की।
- अंग्रेजी कम्पनी तथा अधिकारियों को ब्यापार में विशेष छूट थी, इसके विरोध में मीर काि असाधारण कदम उठाते हुए दो वर्षों के लिए समस्त ब्यापारिक करों एंव चुंगियों को ही समाप्त कर दिया। इसे कम्पनी ने अपने विशेषाधिकारों की अवहेलना माना। परिणामस्वरूप पटना की अंग्रेजी फैक्ट्री के प्रमुख एलिस ने पटना पर आक्रमण करके सशस्त्र संघर्ष को बढ़ा दिया।
- जुलाई 1763 में मीर कासिम के विरूद्ध औपचारिक युद्ध की घोषणा कर दी गई तथा मीर जाफर को पुनः नबाव बनाया गया। लगातार पराजय के बाद मीर कासिम ने भाग कर अवध में शरण ली।
- मीर कासिम अवध के नवाब शुजाउद्धौला तथा मुगल शासक शाह आलम के बीच समझौता हुआ। बक्सर के मैदान में 23 अक्टूबर 1964 ई0 को तीनो शासकों की संयुक्त सेनाओं का मुकाबला अंग्रेजों की सेना से हुआ।
- मुगल शासक ने युद्ध में बहुत अधिक हस्तक्षेप नही किया। इस युद्ध में अंग्रेजो के हाथों तीनों संयुक्त सेनाओ की बुरी तरह पराजय हुई। इस युद्ध में शुजा के दो हजार तथा अंग्रेजो के 825 सैनिक मारे गए। मीर कासिम रणक्षेत्र से भाग निकला। शुजाउद्दौला भी भाग कर रुहेलखण्ड चला गया। मुगल शासक शाह आलम अंग्रेजों से मिल गया।
- शुजाउद्दौला जनवरी, 1765 में बनारस के निकट पुनः अंग्रेजों से परास्त हुआ। इसके बाद अंग्रेजों ने चुनार तथा इलाहाबाद के दुर्गो पर अधिकार कर लिया।
- अंत में शुजाउद्दौला ने अंग्रेजों के सामने आत्म समर्पण कर दिया। मीर कासिम काफी समय तक इधर-उधर भटकता रहा था। अंततः 1777 में उसकी मृत्यु हो गई।
बक्सर का युद्ध का वर्णन कीजिये ?
बक्सर का युद्ध 1764 में लड़ा गया था। इस युद्ध में
ब्रिटिश सेना के विरुद्ध अवध के नवाब शुजाउद्दौला की सेना, उसके साथ मुगल सम्राट शाहआलम द्वितीय और बंगाल का नवाब मीर कासिम थे।
इस युद्ध में अंततः ब्रिटिश सेना की जीत हुई। बक्सर के युद्ध का महत्त्व
निम्नलिखित कारणों से समझा जा सकता है-
- इस युद्ध में अंग्रेज़ों ने उत्तर भारत के तत्कालीन सबसे शक्तिशाली नवाब को हराया था। अतः अंग्रेज़ों की यह जीत राजनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण थी।
- इस युद्ध के परिणामस्वरूप अंग्रेज़ों का न केवल बंगाल और बिहार पर अधिकार हो गया, बल्कि उनके लिये दिल्ली तक का मार्ग खुल गया।
- इस युद्ध के बाद ब्रिटिश सेना पर मुगल सम्राट की निर्भरता और अधिक बढ़ गई। अब वह अंग्रेज़ों से किसी भी प्रकार के समझौते को मानने के लिये विवश था।
- चूँकि मीर कासिम ने शासन में अपनी स्वायत्तता दिखाने का प्रयत्न किया था, इसलिये अंग्रेज़ों ने युद्ध के पश्चात बंगाल के नवाब के अधिकार बिल्कुल सीमित कर दिये थे।
- इस युद्ध के पश्चात् बंगाल और बिहार की दीवानी अंग्रेज़ों को मिल गई थी। अंग्रेज़ों ने बंगाल की लगान-व्यवस्था, उद्योग-धंधों और व्यापार को बहुत हानि पहुँचाई। इस प्रकार आर्थिक दृष्टि से इस युद्ध के नतीज़े भारतीयों के लिये और भी घातक सिद्ध हुए।
- बक्सर के युद्ध के बाद हुई 1765 की संधि ने कंपनी को बंगाल का स्वामी ही बना दिया था। इस प्रकार स्पष्ट है कि बक्सर के युद्ध का महत्त्व प्लासी के युद्ध से कहीं अधिक था।
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