जाति की प्रकृति में बदलाव जाति के परंपरागत रीति-रिवाजों में परिवर्तन जिसे हम धर्मनिरपेक्षीकरण के रूप में जानते हैं, इसने विभिन्न जातियों के बीच राजनीतिक गठबंधन को संभव बना दिया था। इन गठबंधनों को हम जातिवादी गठबंधन भी कह सकते हैं। जिन जातियों ने ऐसे गठबंधन किये हैं, वे विभिन्न सामाजिक श्रेणियों से संबंधित है। लेकिन उनका सामान्य हित (विशेषकर दलितों एवं अन्य पिछड़े वर्गों के), राजनीतिक सत्ता में हिस्सेदारी, आर्थिक अवसर या सामाजिक न्याय, उनको अपने जातिगत संगठन बनाने में हौंसला बढ़ाते हैं।
जातिवादी संगठन के प्रकार
जातिवादी संगठन दो प्रकार के होते हैं, एकल जाति संगठन, या दूसरा विभिन्न जातियों को मिलाकर बनाए गए संगठन या संघ। लेकिन जातिगत गठबंधन हमेशा जातिय संगठनों से नहीं बनाया जाते हैं। उन्हें बिना जातीय संगठनों के भी बनाया जा सकता है। ये गठबंधन प्रायः चुनावी राजनीति के संदर्भ में बनाये जाते हैं।
चुनाव जीतने के मकसद से ऐसे गठबंधन बनाये जाते हैं। यहाँ यह जानना जरूरी है कि राजनीतिक पार्टियों विभिन्न जातियों का समर्थन प्राप्त करने के लिये जातिवादी संगठनों को बनाने को प्रेरित करते हैं। शैक्षिक एवं लोकप्रिय संदर्भ में, जातिवादी संगठन जातियों के प्रथम नामों से बनाए जाते हैं, जो इन गठबंधनों के भाग होते हैं।
स्वतंत्रता पूर्व एवं स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जाति संगठनों ने भारत में राजनीति को बहुत प्रभावित किया। यहाँ कुछ ऐसे उदाहरण है जो कि जातिवादी संगठनों से संबंधित है।
स्वतंत्रता पूर्व दो जातिवादी संगठनों के उदाहरण मिलते हैं। प्रथम, बिहार में 1930 में बनाया गया त्रिवेणी संघ तथा दूसरा अजगर (AJGAR) अंग्रेजी के प्रथम में जातियों के प्रथम अक्षरों से बनाया गया है: A-अहीर, J-जाट, G- गुर्जर, R-राजपूत से मिलकर बनाया गया संगठन है। इसे पंजाब के किसान नेता छोटूराम ने प्रस्तावित किया था। यद्यपि ये सभी जातियाँ, मध्यम अथवा उच्च वर्ग से संबंध रखती है परंतु इनकी समस्याएं समान हैं और इनक समानताओं के कारण उन्होंने अपने गठबंधन बनाए ।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद 1960-1970 के दशक में फिर से अजगर ( AJGAR) नाम से एक संगठन बनाया था। इन जातियों को संगठित करके चरण सिंह ने भारतीय क्रांति दल (बी.के.डी) बनाया जिसने काँग्रेस पार्टी को उत्तर भारत में कड़ी चुनौती पेश की। इस गठबंधन ने चरण सिंह 1967 में उत्तर प्रदेश में प्रथम गैर काँग्रेसी मुख्यमंत्री बनने में योगदान दिया।
इन सबमें सबसे महत्वपूर्ण उदाहरण है बामसेफ का एवं DS4 का बामसेफ का अर्थ है बैकवर्ड एण्ड माइनोरिटी क्लासेज एम्पलायीज फेडरेशन (पिछड़े एवं अल्पसंख्यक वर्गों के कर्मचारियों का संघ) । इसी प्रकार DS4 का मतलब है, दलित, शोषित, समाज संघर्ष समिति (S4 माने अंग्रेजी अक्षर S से चार बार प्रयोग ) । इन दोनों संगठनों का गठन काशीराम ने किया था ।
बामसेफ का गठन 1978 में हुआ था। बामसेफ में अन्य जाति के कर्मचारियों को शामिल करने के लिये इसका दायरा बढ़ाया गया। अंबेडकर के विचारों के आधार पर DS4 ने एक प्रकाशन शुरू किया। इसका नाम था "आप्रेस्ड इंडियन" । इस पत्रिका के माध्यम से काशीराम ने एक कैंपेन चलाया जिसमें डा. अम्बेडकर के मैसेज शोषित वर्गों के लिए दिये। गये थे। इनमें आत्म-सम्मान प्राप्त करने के लिए तथा सामाजिक समानता प्राप्त करने के लिये "शिक्षित बनो, संगठित रहो तथा संघर्ष करो' का नारा दिया।
1984 में काशीराम ने एक राजनीतिक दल का गठन किया, जिसका नाम था बी. एस. पी. (बहुजन समाज पार्टी) । बी.एस.पी. उत्तर भारत में एक मजबूत पार्टी बनकर उभरी विशेषकर उत्तर प्रदेश में जहाँ इसकी नेता मायावती वहाँ की चार बार मुख्यमंत्री भी बनी। वास्तव में जाति का उदय एक सतत प्रक्रिया है, समय के अनुसार नए गठबंधन बनते हैं तथा पुराने गायब हो जाते हैं तथा फिर नए गठबंधन पैदा हो जाते हैं।
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