भारत की राजनीति में नृजातीयता | Ethnicity in Indian Politics

 

वोटिंग व्यवहार में नृजातीयता की भूमिका 

भारत की राजनीति में नृजातीयता |  Ethnicity in Indian Politics


 वोटिंग व्यवहार के निर्धारण तत्व 

भारत में वोटिंग व्यवहार को निर्धारित करने वाले कारकों नृजातीयता, धर्म और भाषा की भूमिका के बारे में अध्ययन करेंगे :

 

भारत की राजनीति में नृजातीयता Ethnicity in Indian Politics

 

नृजातीयता क्या है

साहित्य में नृजातीयता का प्रयोग दो तरह से किया जाता है : एक, पहचान बनने का आधार एक से अधिक कारक होते है, जैसे जाति, धर्म, भाषा, संस्कृति इत्यादि के रूप में करना तथा दूसरा, पहचान बनने का आधार केवल एक ही कारक होता है।  

  • नृजातीयता न केवल चुनावों में ही नहीं बल्कि यह राजनीति दलों के गठन में भी भूमिका रखती है। 


  • चंद्रा (2000) के अनुसार उत्तर भारत में बहुजन समाज पार्टी एक नृजातीयता पर आधारित पार्टी है। बहुजन समाज पार्टी का उदय दलितों एवं पिछड़े वर्गों के सामाजिक आंदोलन में से हुआ था। बाद में ये वर्ग ही इस पार्टी का प्रमुख जनाधार बन गये थे। चंद्रा नृजातीयता पार्टी को परिभाषित करते हुए लिखती हैं कि यह पार्टी प्रमुखता नृजातीयता समूहों के हितों की बात करती है। उनका मानना है कि बी.एस.पी का समर्थन प्रमुख रूप से दलित वर्ग करता है। और इसमें अन्य समूह शामिल नहीं है। 

किसी भी नृजातीयता पार्टी की तीन प्रमुख विशेषताऐं होती है-

 (i) इसमें एक समूह का निमार्ण किसी मौलिक कारक जैसे जाति के आधार पर होता है। 

(ii) यह समूहों के सदस्यों को लामबंद करती है तथा समूहों, बाहरी लोगों को लाभबंद नहीं करती है

(iii) तथा यह जातीय समूहों के हितों की ही महत्ता देती है। 


  • जहाँ तक पार्टी के आंतरिक ढाँचे का सवाल है चंद्रा मानती है कि जो पार्टी केन्द्रिकृत नियमों का पालन करती है वह नये जातीय समूहों को शामिल करने में दिक्कत महसूस करती है लेकिन जो पार्टी इन नियमों से दूर है वह उन्हें शामिल करने में समर्थ होती है। यहाँ पर इसका मतलब यह है कि ऐसी पार्टी की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि वह उन जातीय समूहों को किस तरह से अपने साथ रखती है और उन्हें उच्च पदों पर किस तरह से संजोकर रखती है।

 

  • कई कारकों के आधारों पर जातीयता का सबसे उपयुक्त उदाहरण, जिसने मतदान के व्यवहार का निर्धारण किया जाता है। भारत के पूर्वोत्तर भारत तथा अन्य आदिवासी क्षेत्रों में किया जा सकता है। पूर्वोत्तर भारतीय राज्य जातीयता आधारित निर्वाचक राजनीति और मतदान के व्यवहार के महत्वपूर्ण उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। 


  • इन क्षेत्रों में मौटे तौर पर दो प्रकार के नृजातीय समूह हैं: एक, जो अति प्राचीन काल से इन क्षेत्रों में रह रहे है, और दो, जो लोग विभिन्न कारणों से रोजगार व्यापार या खेती के लिये समय अवधि में इन क्षेत्रों में प्रवास करते है । 


  • पहचान के निर्माण के आधार हैं, संस्कृति, भाषा, पोशाक, खान-पान तथा लोक कला, आदि) इतिहास, अर्थव्यवस्था, भेदभाव और शोषक की वास्तविक या कथित भावना। इन चिन्हों पर विभिन्न जातीय समूहों का गठन किया गया है। राजनैतिक प्रतिस्पर्धा या राजनीतिक संघर्ष के समय ये राजनैतिक लामबंदी के प्रतीक बन जाते हैं। ठोस शब्दावली में जातीय चिन्ह को संकेतों के आधार पहचाना जाता है जैसे, प्रवास, नागरिकता, पहचान संरक्षण तथा संस्कृति तथा भूमि की रक्षा के आधार पर व्यक्त किया जाता है ।

 

  • इन मुद्दों पर एकजुटता क्षेत्रीय स्वायत्ता आत्मनिर्णय, आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकार की सुरक्षा की माँग के लिये नहीं बल्कि इस अवधि में भी होती है जब चुनाव हो सके ये मुद्दे संयुक्त रूप से मतदान का व्यवहार काफी हद तक तय करते हैं। विभिन्न क्षेत्रों से समर्थन प्राप्त करने वाले क्षेत्रीय दलों की जीत नस्लीय समूहों ने इस क्षेत्रों में मतदान के आचरण के निर्धारण के रूप में कई मार्करों पर गठित जातीयता के तथ्य को इंगित किया है।

Also Read....

No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.