मनोवृत्ति का निर्माण | मनोवृत्ति निर्माण के कारकों व प्रक्रिया | Formation of Attitude in Hindi
मनोवृत्ति का निर्माण | Formation of Attitude
- मनोवृत्तियाँ व्यक्तिगत अनुभव एवं समाज के साथ अन्तक्रिया द्वारा सीखी जाती है। साथ ही कुछ आनुवांशिक कारक भी मनोवृत्ति निर्माण में छोटी किंतु महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
मनोवृत्ति के निर्माण को निम्नलिखित कारकों व प्रक्रियाओं के अंतर्गत समझा जा सकता है-
1) 1990 के पहले ऐसा माना जाता था कि समान मनोवृत्तियाँ समाजीकरण के माध्यम से सीखी जाती हैं परंतु इसके बाद अनुसंधान के बाद निष्कर्ष निकाला गया कि सीमित मात्रा में अनुवांशिक कारक की भूमिका होती है। जैसे- समरूपी जुड़वाँ बच्चों (Identical Twins) तथा गैर समरूपी जुड़वाँ बच्चों (non Identical Twins) पर अनुसंधान में पाया गया कि समरूपी जुडवा बच्चों में अन्य की तुलना में अधिक सहसंबंध पाया जाता है।
2) आनुवांशिक कारकों का प्रभाव उन्हीं मनोवृत्तियों पर पड़ता है जिनका संबंध आंतरिक प्रेरणाओं से है जैसे किसी विशेष भोजन के प्रति सकारात्मक या नकारात्मक मनोवृत्ति अर्थात मनोवृत्ति सकारात्मक होगी या नकारात्मक ये आनुवांशिक कारकों के द्वारा निर्धारित होता है।
3) जो मनोवृत्तियाँ आनुवांशिक होती हैं उनमें परिवर्तन करना, सीखी हुई मनोवृत्तियों में परिवर्तन करने की तुलना में कठिन होता है।
4) सीखी गई मनोवृत्तियों की तुलना में आनुवंशिक मनोवृत्तियों का व्यवहार पर ज्यादा गहरा और तीव्र प्रभाव होता है।
5) कुछ मनोवैज्ञानिक बालक और बालिका की मनोवृत्तियों के अंतर पर भी ध्यान देते हैं। जैसे बालक-बालिका में अंतर शत-प्रतिशत सामाजिक कारक ही नहीं बल्कि कुछ प्रतिशत जैविक कारकों पर आधारित है।
6) जिस व्यक्ति, वस्तु, घटना एवं क्रिया से हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति एवं लक्ष्य की सिद्धि होती है, उनके प्रति हमारी मनोवृत्ति अनुकूल होती है तथा इसमें बाधक तत्वों के प्रति हमारी मनोवृत्ति प्रतिकूल हो जाती है।
जैसे- परीक्षा हॉल में जो वीक्षक छात्रों को नकल करने से रोकते नहीं उनके प्रति छात्रों की मनोवृत्ति सकारात्मक जबकि नकल का विरोध एवं नकल प्रकरण बनाने पर छात्रों की उस वीक्षक के प्रति मनोवृत्ति नकारात्मक होती है।
7) व्यक्ति को मिलने वाली सूचनाएँ उसकी मनोवृत्ति को प्रभावित करती हैं। सूचनाएँ प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से प्राप्त होती है, विश्वसनीय स्रोत से मिलने वाली सूचनाएँ मनोवृत्ति के निर्माण में अधिक महत्वपूर्ण होती हैं जैसे परिवार के माध्यम से प्रत्यक्ष प्राप्ति होती है। जबकि मोबाइल, फेसबुक, ट्विटर, मैसेज, इंटरनेट, रेडियो, टेलीविजन, सिनेमा के माध्यम से अप्रत्यक्ष प्राप्त होती है।
8) ज्ञानवर्धक पुस्तकों एवं महान व्यक्तियों की जीवनी और उपदेश पढ़ने से भी जीवन और समाज के प्रति सकारात्मक मनोवृत्ति विकसित होती है। अच्छी पुस्तकों के अध्ययन से भी मनोवृत्ति के निर्माण पर असर पड़ता है जैसे मुंशी प्रेमचन्द की रचनाओं को पढ़ने से उपदेशात्मक मनोवृत्ति का निर्माण होता है।
9) संस्कृति में जिन मूल्यों को उचित माना जाता है। उनके प्रति समाज में सकारात्मक मनोवृत्ति विकसित हो जाती है। जैसे कुछ संस्कृति में पशु बलि को उचित मानते हैं, उन समाजों में पशु बलि के प्रति सकारात्मक मनोवृत्ति होती है जबकि पशु बलि का विरोध करने वालों में पशु बलि के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण विकसित हो जाता है। प्रत्येक संस्कृति की अपनी परम्परा, धर्म, भाषा, मानदंड, मूल्य एवं विश्वास होते हैं उनके अनुकूल व्यवहार करना व्यक्ति का कर्त्तव्य माना जाता है। विशिष्ट परिस्थितियों में उनके पालन की अपेक्षा सभी से की जाती है। इसी कारण एक संस्कृति के लोगों की मनोवृत्ति में समानता का तत्व पाया जाता है। उदाहरण के तौर पर भारतीय संस्कृति में वधू से अपेक्षा की जाती है कि सास-ससुर के सम्मुख जाने पर उसे घूँघट करना चाहिए।
10) व्यक्ति के शीलगुणों का भी प्रभाव मनोवृत्ति निर्माण पर पड़ता है जैसे जो व्यक्ति परिश्रमी, दृढ़ एवं विश्वसनीय होते हैं उनमें अपने कर्तव्यों के संपादन की प्रवृत्ति प्रबल होती है, खुले मन से युक्त व्यक्ति रूढ़िवादी परम्पराओं का विरोध करने लगता है ।
11) व्यक्ति की मनोवृत्ति निर्माण एवं विकास में समूह जुड़ाव का प्रभाव गहराई से होता है। समूह का दबाव व्यक्ति को समूह मूल्यों, विश्वासों, मानदण्डों को मानने या न मानने के लिए विवश करता है।
जैसे
प्राथमिक समूह (Primary group)
- प्राथमिक
द्वितीयक समूह (Secondary group)
- द्वितीयक समूह में संबंध औपचारिक होते हैं। जिनके अपने मूल्य, मानदंड विश्वास होते हैं जिनका पालन करना सदस्यों का दायित्व या कर्त्तव्य होता है। जिसमें सेना, राजनीतिक दल, व्यापारिक संगठन, मजदूर संगठन, विश्वविद्यालय इत्यादि आते हैं।
संदर्भ समूह (Reference group)
- सामान्यतः एक ऐसे समूह को संदर्भ समूह की संज्ञा दी जाती है जिनके साथ व्यक्ति अपना समीकरण बिठाता है अथवा समीकरण बिठाने की आकांक्षा रखता है तथा जिसके अनुसार एक व्यक्ति अपने मूल्यों, विश्वासों, है मनोवृत्तियों को ढालने का प्रयास करता है और उसी के अनुसार अपनी मनोवृत्ति को निर्देशित करता है।
- सर्वप्रथम संदर्भ समूह का प्रयोग हाईमैन ने 1942 में The Phychology of Status में किया था। जैसे एम.बी.बी.एस. करने वाले छात्र प्रथम सेमेस्टर से ही अपने आप की पहचान कर डॉक्टर के समूह से जोड़ने लगता है जबकि अभी वह डॉक्टर बना ही नहीं।
- 12) व्यक्तियों द्वारा किये जाने वाले व्यवहार के बदले में प्राप्त दंड या पुरस्कार की अवधारणा भी व्यक्तियों में विशेष प्रकार की मनोवृत्ति के विकास में योगदान देती है जैसे यदि जंगल में किसी बालक को शेर से जान बचाने के लिए पुरस्कार स्वरूप बाल वीरता पुरस्कार दिया जाता है तो फिर भविष्य में भी असहाय व्यक्तियों की रक्षा करने की मनोवृत्ति विकसित हो जाती है।
- प्रशंसाओं और आलोचनाओं के माध्यम से वे धीरे-धीरे वही मनोवृत्तियाँ विकसित कर लेते हैं।
13) प्रेक्षणात्मक अधिगम (Observational learning)
- यह सिद्धांत अल्वर्ट बान्दूरा द्वारा प्रतिपादित किया गया है। मनोवृत्तियाँ सीखने की प्रक्रिया में अन्य व्यक्तियों के व्यवहारों का अवलोकन गहरी भूमिका निभाता है। यह प्रक्रिया संतत चलती रहती है। सर्वाधिक प्रभाव बचपन में देखा जाता है, जैसे माता-पिता द्वारा बड़ों के प्रति आदर और सम्मान प्रकट करने के व्यवहार को देखकर बच्चा भी बड़ों के प्रति एक सम्मानपूर्वक मनोवृत्ति विकसित करता है। बड़े, अनुभवी व्यक्ति के व्यवहार, रहन सहन, खानपान इत्यादि को नमन करते हुए व्यक्ति अपने जीवन में विशेष मनोवृत्ति विकसित करता है। पार्क में टहलते समय किसी अनुभवी व्यक्ति की कार्यप्रणाली को देखकर उसका अनुसरण करने का प्रयास करता है।
(14) सामाजिक मनोविज्ञान की मान्यता है कि व्यक्तियों की अधिकांश मनोवृत्तियाँ क्लासिकल अनुबंधन की प्रक्रिया से ही निर्मित होती हैं। यदि कोई स्त्री किसी मंदिर को देखकर श्रद्धा से हाथ जोड़ लेती है और बच्चा माँ को देखकर उसकी क्रिया का अनुसरण करता है तो यह क्रिया बार-बार दोहराने का परिणाम होगा कि आगे चलकर बच्चा मंदिर को देखते ही हाथ जोड़ने की क्रिया करने लगेगा।
15) तात्कालिक अनुभव या कुछ अकस्मात घटने वाली घटनाओं तथा तात्कालिक विशेष अनुभवों के द्वारा भी मनोवृत्तियाँ जन्म लेती हैं। जैसे कोरोना में लोक डाउन एवं पूर्व में भारत बंद के दौरान किसी दुकानदार की मनोवृत्ति दुकान को क्षति पहुँचाने पर बंद करवाने वाले समूह के प्रति समाज की मनोवृति ।
16) माता-पिता, अध्यापकों, नेताओं, संतों, फकीरों, फादरों के दिए गए निर्देश विशेष प्रकार की मनोवृत्ति का निर्माण करते हैं। माता-पिता अपने बच्चों को बताते हैं कि धूम्रपान करना एवं मद्यपान अस्वास्थ्यकर है। अध्यापक भी इसी मनोवृत्ति को सुदृढ़ करते हैं। इससे शायद बच्चा धूम्रपान व मद्यपान के प्रति नकारात्मक मनोवृत्ति बना सकता है।
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