महात्मा गांधी के आर्थिक विचार | Gandhi Ke Aarthik Vichar
महात्मा गांधी के आर्थिक विचार
आर्थिक आयामों का संबंध व्यक्ति और समाज के उत्थान के साथ जुड़ा हुआ है। जब तक समाज आर्थिक दृष्टि से प्रभावशाली नहीं होगा और अनेक प्रकार की आर्थिक समस्याएं व्याप्त होगी, तो समाज के सामने विकास और उन्नति की अनेक चुनौतियाँ उभर सकती है। इसलिए राजनीतिक चिन्तकों के द्वारा सामाजिक एवं राजनीतिक विचारों के साथ-साथ आर्थिक विचारों पर बल दिया गया है।
गांधी के आर्थिक विचार
- आर्थिक समानता को प्रोत्साहन देने में सहायक।
- समतावादी समाज की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हो सकेगा।
- बेरोजगारी, शोषण एवं पिछड़ेपन जैसी आर्थिक समस्याओं का समाधान सम्भव.
- पारस्परिक सहयोग की भावना को बल मिल सकेगा।
- ये विचार भारतीय संस्कृति एवं दर्शन के अनुरूप ही है।
- समाज के संसाधनों का उचित वितरण सम्भव हो सकेगा।
- गांधीजी ने अपने राजनीतिक चिन्तन में आर्थिक सुधार की व्यापक योजना प्रस्तुत की। उस समय अंग्रेजों की दमनकारी एवं शोषणकारी नीतियों के चलते भारतीय समाज की आर्थिक दरिद्रता स्पष्ट रूप से झलक रही थी। चारों ओर आर्थिक असमानता, भूखमरी, अन्याय, शोषण, बेराजगारी का साम्राज्य व्याप्त था।
- औद्योगीकीकरण के कारण भारतीय कुटीर उद्योग चौपट हो चुके थे। भारत में उत्पन्न होने वाला अधिकांश कच्चा माल इंग्लैण्ड भेज दिया जाता था। जिसका प्रतिकूल प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ा।
- राजनीति में समाज की अर्थव्यवस्था के संबंध में गांधीजी का विचार था कि सच्चा अर्थशास्त्र नैतिकता के नियमों के प्रतिकूल हो ही नहीं सकता। सच्चा अर्थशास्त्र सामाजिक न्याय चाहता हैं वह समाज के प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह कितना भी कमजोर क्यों न हो, का सामाजिक हित चाहता है और अच्छे जीवन के लिए यह आवश्यक भी हैं गांधीजी के ये विचार यथार्थ व व्यवहार पर आधारित हैं, जिन्हें अपनाकर कोई भी राज्य अपना उत्कर्ष कर सकता है।
गांधीजी के आर्थिक विचार निम्नलिखित हैं
1 पूंजीवाद का विरोध
- गांधीजी आर्थिक क्षेत्र में प्रचलित पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का विरोध करते है और समाजवादी अर्थव्यवस्था की स्थापना पर बल देते है। उनका कहना था कि पूंजीपति, अर्थव्यवस्था का संचालन केवल अपने लाभ के लिए। ही करते है। जिनका सामाजिक हित से कोई सरोकार नहीं। वे उद्योगों का मशीनीकरण करके बेकारी बढ़ाते है और मजदूरों का और उपभोक्ता का शोषण करते है ।
- अर्थव्यवस्था पर उनका एकाधिकार होने के कारण वे वस्तुओं का मूल्य एवं स्तर अपनी मनमर्जी से तय करते है। जिसका परिणाम यह होता है कि समाज में आर्थिक विषमता बढ़ती ही जाती है।
2 औद्योगीकीकरण का विरोध
- उनके द्वारा औद्योगिक क्रांति और इसके परिणाम स्वरूप उत्पन्न केन्द्रीय कृत अर्थव्यवस्था का विरोध किया गया। उनका कहना था कि औद्योगीकीकरण की इस प्रवृत्ति ने साम्राजयवाद व उपनिवेशवाद को बढ़ावा दिया है। क्योंकि औद्योगीकीकरण से राष्ट्रों को अपनी अर्थव्यवस्था संचालित करने के लिए बड़ी मात्रा में कच्चे माल और तैयार माल बेचने के लिए विशाल मण्डी की आवश्यकता होती हैं।
- अतः इसके लिए वे इस प्रकार की नीति का अनुसरण करते हैं, जो नैतिकता के विरूद्ध है। गांधीजी बड़ी मशीनों को मानवता के लिए अभिशाप मानते थे, क्योंकि इससे समाज में घृणा, स्पर्धा व स्वार्थ को बढ़ावा मिलता है और इससके मानव समाज का शारीरिक व नैतिक पतन भी होता है। इसके कारण समाज के अधिकांश संसाधन कुछ लोगों के साथ में आ जाते है तथ समाज का बहुसंख्यक वर्ग अभाव की जिंदगी व्यतीत करता है।
3 कुटीर उद्योगों का समर्थन
- गांधीजी के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार कुटीर उद्योग है। क्योंकि ये भारत को आत्मनिर्भर बनाते है और गांवों में स्वालम्बन की भावना विकसित करते है। अतः जिस गति से मशीनीकरण किया जा रहा है वह हमारे लिए अनुचित हैं। अंग्रेजों की दोषपूर्ण नीतियों के कारण हमारे यह उद्योग पतन के कगार पर पहुंच चुके है। उनके अनुसार भारत में जब तक राजनीतिक व सामाजिक चेतना नहीं आएगी, तब तक हम आर्थिक क्षेत्र में स्वदेश और कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन नहीं दे सकेगें।
- गांधीजी का कहना था कि किसी भी देश की अर्थव्यवस्था काफी हद तक उसकी जलवायु एवं प्राकृतिक स्थिति पर निर्भर करती है। अतः इस दृष्टि से कुटीर उद्योग उचित है।
4 अपरिग्रह का सिद्धान्तः
- इससे तात्पर्य यह है कि व्यक्ति को अपनी आवश्यकता के अनुसार सम्पत्ति या धन रखना चाहिए। गांधीजी का कहना था कि भारतीय समाज में जो आर्थिक विषमता बढ़ रही है, आर्थिक संसाधनों पर समाज के कुछ लोगों का नियंत्रण स्थापित हो गया है, उनका मूल कारण मनुष्य में अत्यधिक सम्पत्ति संकलन करने की वना है। अतः भारत में अर्थव्यवस्थ सुदृढ आधार प्रदान करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति के जीवन स्तर को ऊपर उठाने के अपरिग्रह के सिद्धान्त का अनुसरण करना चाहिए।
5 वर्ग सहयोग पर बलः
- गांधीजी अपने आर्थिक विचारों में वर्ग संघर्ष के स्थान वर्ग सहयोग की अवधारणा में विश्वास करते थे। उनका कहना था कि पूंजीपति और श्रमिकों के हित परस्पर विरोधी नहीं हो सकते। यदि इनमें पारस्परिक सहयोग एवं सामूहित प्रयत्न किए जाए तो अर्थव्यवस्था को उच्च शिखर पर पहुंचाया जा सकता है। उनके अनुसार पूंजीपतियों को समाप्त नहीं अपितु उनकी शक्तियों को कम करना है।
6 संरक्षण या ट्रस्टशिप का सिद्धान्त
- गांधीजी के आर्थिक विचारों की बुनियाद ट्रस्टीशिप के सिद्धान्त पर आधारित हैं उनका मानना है कि समाज में आर्थिक समानता लाने के लिए पूंजीपतियों एवं जमींदारों के पास जो अनाश्यक धन व भूमि है, उसको उनसे प्राप्त कर उन्हें सामाजिक संरक्षण नियुक्त कर दिया जाए तथा इसका उपयोग वे लोग करें, जो निर्धन है। यहाँ सम्पत्ति प्राप्त करने के साधन साम्यवाद पर आधारित न होकर सत्य व अहिंसा पर आधारित होंगे।
गांधी जी के आर्थिक विचारों का निष्कर्ष
उपरोक्त वर्णन के आधार पर कहा जा सकता है कि गांधीजी के विचार उच्च स्तर के हैं जिनको आधार मानकर प्रत्येक राज्य अपनी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बना सकता हैं इसलिए गांधीजी के इन विचारों को आधार मानकर भारत अर्थव्यवस्था का संचालन कर रहा है। उनके यह विचार यथार्थ व व्यवहार पर आधारित है।
- भारतीय राजनीतिक चिन्तक के रूप में महात्मा गांधी- सामान्य परिचय
- गांधी जी के राज्य सम्बन्धी विचार
- महात्मा गांधी के आर्थिक विचार
- महात्मा गांधी के सामाजिक विचार
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