अंग्रेज़ और मैसूर राज्य |हैदर अली का उत्थान | Haidar Ali Ka Uthaan

 अंग्रेज़ और मैसूर राज्य हैदर अली का उत्थान 

 

अंग्रेज़ और मैसूर राज्य |हैदर अली का उत्थान | Haidar Ali Ka Uthaan

विषय सूची 


 अंग्रेज़ और मैसूर राज्य सामान्य परिचय 

 

  • 18वीं शताब्दी का राजनैतिक परिवेश साहसी व्यक्तियों के लिए अनुकूल था। हैदर अली के रूप में इसी प्रकार का एक साहसी व्यक्ति मैसूर में उदित हुआ। पूर्वी तथा पश्चिमी घाटों के संगम पर स्थित मैसूर राज्य का वास्तविक शासक चक्का कृष्ण राज्य था। उसकी निर्बलता का लाभ उठाकर नंद राज तथा देवराज ने मैसूर पर अपना कबजा कर लिया। इस अवधि के दौरान दक्कन में मराठों, निजाम, अंग्रेज तथा फ्रासीसियों के बीच अपना-अपना प्रभुत्व स्थापित करने की होड़ मची हुई थी। 


  • मराठों ने मैसूर पर लगातार आक्रमण किए और वित्तीय दृष्टि से इसे दिवालिया और राजनैतिक दृष्टि से बहुत कमजोर बना दिया। दूसरी ओर निजामुलमुल्क मैसूर को मुगल प्रदेश मानता था और इस कारण मैसूर को अपनी प्रादेशिक विरासत मानता था। इस प्रकार मैसूर को अपनी प्रादेशिक विरासत मानता था। इस प्रकार मैसूर निजाम और मराठों के मध्य विवाद का स्त्रोत था। 


  • इसी बीच अंग्रेजों तथा फ्रासीसियों के बीच शुरू हुआ क्योंकि त्रिचुरापल्ली पर अधिकार करने के लिए नानराज (नन्द राज) ने अंग्रेजों के साथ संधि कर ली थी, परन्तु बाद में नानराज ने अंग्रेजों को छोड़कर फ्रासीसियों के साथ समझौता कर लिया।

 

  • मैसूर सेना के सेनापति हैदर अली को त्रिचुरापल्ली के सैन्य अभियानों के दौरान पर्याप्त ख्याति मिली। 1758 के बाद जब मराठे मैसूर पर आक्रमण कर रहे थे तब तक हैदर अली पहले से कहीं अधिक शक्तिशाली हो गया था। उसने नानराज को पेंशन देकर पदमुक्त कर दिया तथा मैसूर का शासन अपने हाथों में ले लिया।

 

हैदर अली का उत्थान Haidar Ali ka Uthaan

 

⦿ हैदर अली का जन्म 17220 में हुआ। उसका पिता मुहम्मद एक सैनिक अधिकारी था 1728 में हुए एक लड़ाई में मारा गया। कुछ वर्षों बाद वह मैसूर की सेना में शामिल हो गया। हैदर में साहसी व्यक्ति के गुण थे। वह बौद्धिक दृष्टि से जागरूक था तथा उसमें वह योग्यता थी कि वह के अवसर का लाभ उठा सके। 

⦿ नानराज ने उसकी वीरता से प्रसन्न होकर उसे 500 सिपाहियों की कमान्ड पर नियुक्त कर दिया था। मैसूर हैदराबाद राज्य के अधिन था।

⦿ 17480 में नासिर जंग के सिंहासन ग्रहण करने के अवसर पर मैसूर की ओर से हैदर अली दरबार में उपस्थित था। नासिरजंग की हत्या के पश्चात हैदर अली बहुत अधिक धन लूटकर ले गया। बताया जाता है कि प्लासी के युद्ध के पश्चात अंग्रेजों को जो धन हाथ लगा उससे कहीं अधिक हैदर अली को हाथ लगया था। उस धन से हैदर अली ने अपनी सेना को बढ़ावा तथा अपनी सेना का प्रशिक्षण फ्रासीसियों से कराया। 

⦿ कर्नाटक के दूसरे युद्ध में नानराज ने मुहम्मद अली का साथ दिया। मुहम्मद अली ने इस सहायता के बदले त्रियनापल्ली (त्रिचरापल्ली) का क्षेत्र देने का वचन दिया। युद्ध के बाद मुहम्मद अली ने इस क्षेत्र को देने से इन्कार कर दिया।

⦿ मैसूर को विवश होकर कर्नाटक पर आक्रमण करना पड़। अंगेज तथा तंजोर की सेनाएं मोहम्मद अली की सहायता के लिए जा रही थी। 

⦿ 14 अगस्त 17540 को हैदर अली ने इन सेनाओं पर पीछे से आक्रमण करके उन्हें पराजित कर दिया। इस सफलता से प्रसन्न होकर नन्दराज ने हैदर अली डंडीगुल के क्षेत्र का दीवान नियुक्त कर दिया। 

⦿ जब वह डंडीगुल की दीवानी ग्रहण करने जा रहा था तो उस क्षेत्र के पोलीगारो ने नन्दराज के विरूद्ध विद्रोह कर दिया तथा लगान देने से इन्कार कर दिया। हैदर अली ने उनसे मित्रता की तथा लगान क्षमा कराने का वचन दिया।

⦿ डंडीगुल पहुच कर सैनिक तैयारी करके 3000 पोलीगारों पर आक्रमण कर दिया। हैदर अली ने उन्हें पराजित कर इन सभी क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया। पोलीगार हैदर अली से प्रभावित होकर उसकी सेना में भर्ती हो गए। 


⦿ 17580 के पश्चात मैसूर के राजा तथा मंत्री नानराज में आत्यधिक मतभेद हो गया। राजा की सेना तथा नानराज की सेना के मध्य युद्ध हुआ जिसमें राजा को पराजय का मुंह देखना पड़ा। इसके पश्चात नानराज तथा उसके भाई देवराज में भी मतभेद उत्पन्न हो गया। मैसूर को मराठों से भी अत्यन्त भय था। इन परिस्थितियों के कारण मैसूर की आर्थिक लड़खड़ाने लगी। सेना के सिपाहियों का वेतन लम्बे समय से भुगतान नहीं किया जा सका था। सेना विद्रोह ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राजा तथा नानराज के बीच भी समझौता हो गया। वहीं देवराज तथा नानराज के बीच भी मेल हो गया।


⦿ हैदर अली की कार्यकुशलता को देखते हुए मैसूर साम्राज्य के तमाम शासन का प्रबंध हैदर अली के हाथों में सौंप दिया गया। हैदर अली ने बड़ी कुशलता से मैसूर के शासन में सुधार लाकर सैनिकों के वेतन का भुगतान कर दिया। कुछ ही समय बाद राज्य की स्थिति पुनः बिगड़ने लगी। 

⦿ सेना के सिपाही हैदर अली के पास आएं, इस बदलती स्थिति का फायदा उठाकर हैदर अली ने नानराज को पेंशन पर रखकर राज्य  का पूरा कार्यभार अपने हाथों में ले लिया। उसने राजा के पद को बनाए रखा तथा स्वयं पद ग्रहण नहीं किया, परन्तु राज्य की वास्तविक शक्ति उसी के हाथ में थी तथा राजा केवल प्रतिछाया मात्र था।

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