कर्नाटक का प्रथम युद्ध | अडियार का युद्ध |Karnatak First War in Hindi
प्रथम कर्नाटक युद्ध | Karnatak First War in Hindi
इतिहासकारों का मानना है कि प्रथम एवं तृतीय कर्नाटक युद्ध का कारण भारतीय राजनीति एवं यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों द्वारा व्यापारिक लाभ कमाना नहीं था, बल्कि इसका कारण यूरोप में होने वाली घटनाएं थी, परन्तु यह समझना जरुरी है कि यूरोपीय राजनीति कर्नाटक में होने वाले मुद्दों का कारण नहीं, बल्कि एक तात्कालिक बहाना थी, क्योंकि युद्ध का मुख्य कारण यूरोपीय कम्पनियों द्वारा व्यापारिक एकाधिकार प्राप्त करना था, ताकि व्यापार अधिक से अधिक लाभ मिल सके और यह तभी सम्भव था, जब अन्य व्यापारिक कम्पनियों इस व्यापारिक लाभ की प्रतिस्पर्धा से बाहर हो जाए। आस्ट्रियन उत्तराधिकार के युद्ध की खबर भारत में 1744 में पहुंची, परन्तु दोनों कम्पनियों के बीच युद्ध का वातावरण काफी पहले बन चुका था, जिसमें बदलती राजनीतिक घटनाओं को लेकर 1740 से तेजी आई।
कर्नाटक युद्ध का का तत्कालीन कारण
- कर्नाटक युद्ध का तात्कालिक बहाना आस्ट्रिया का उत्तराधिकार युद्ध था।
- यह युद्ध यूरोप में आस्ट्रिया की राजगद्दी पर मोरिया थरेसा के उत्तराधिकार के सम्बन्ध में हुआ।
- इस युद्ध ने इंग्लैण्ड और फ्रांस दोनों को युद्ध में उलझा दिया।
- इस आपातकालीन स्थिति में डुप्ले को 1741 में पांडिचेरी का गवर्नर नियुक्त किया गया।
- डुप्ले नहीं चाहता था कि यूरोप में जलने वाली आग की चिंगारी कर्नाटक पहुंचे। उसका यह मानना था कि यह दोनों कम्पनियों के व्यापारिक हित के विरुद्ध होगा। उसने मद्रास के ब्रिटिश गवर्नर से अपील की कि भारत को यूरोप में युद्ध से बाहर रखा जाए, लेकिन अंग्रेजों ने तटस्थ बने रहने की कोई गारंटी नहीं है, क्योंकि वे जाने थे कि समुद्र में जो अंग्रेजी नावें थी उस पर उनका कोई नियन्त्रण नहीं है।
- मद्रास के गर्वनर मोर्स ने डूप्ले का उत्तर देते हुए कहा था कि यदि इंग्लैण्ड से युद्धपोत आ जाते हैं, तो उसका उन पर नियन्त्रण नहीं रहेगा। अंग्रेजों की ओर से निश्चित आश्वासन मिलने के बाद डूप्ले ने कर्नाटक के नबाब अनवरुद्दीन से वार्तालाप किया। देश की शांति भंग न हो इसके लिए नबाब ने अंग्रेज तथा फ्रांसीसी दोनों कम्पनियों को युद्ध न लड़ने की सलाह दी।
- दोनों कम्पनियों ने अपनी-अपनी सरकारों से यह अपील की कि वह भारत में युद्ध करना नहीं चाहती। फ्रांस की सरकार के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया, परन्तु इंग्लैण्ड की सरकार ने ऐसा नहीं किया। इंग्लैण्ड की सरकार ने बार्नेट के नेतृत्व में एक बेड़ा फ्रांसीसी कम्पनी पर आक्रमण करने के लिए भेज दिया, इस जहाजी बेड़े ने कई फ्रांसीसी जहाजों को डूबो दिया। ऐसी स्थिति में डूप्ले ने मॉरिशस के फ्रांसीसी गवर्नर ला बार्डिगो से सहायता मांगी, इसी समय बार्नेट की मृत्यु हो गई तथा उसके स्थान पर कर्नल पैटन आया।
- कोरामंडल कोस्ट पर दोनों सेनाओं के बीच कुछ झड़पें हुई, लेकिन कुछ समय बाद ही अंग्रेजी फौज लंका के लिए रवाना हो गई। स्थिति का लाभ उठाकर ला- बार्डिपसें ये मद्रास पर आक्रमण करने के लिए कहा। घबराकर अंग्रेज नबाब अनवारुद्दीन के पास पहुंचे और उनसे अपील की कि वे फ्रांसीसी सेना को मद्रास पर अधिकार करने से रोकें। जब नबाब ने हस्तक्षेप किया तब डुप्ले ने यह कह कर नबाब को समझा दिया कि वह मद्रास पर इसलिए आक्रमण कर रहा है ताकि जीत कर वह इसे नबाब को सौंप दे। फ्रांसीसी आक्रमण के सामने मोर्स बहुत अधिक समय तक नहीं टिक सका और अन्त में उसने आक्रमण कर दिया।
- 1746 की मद्रास की विजय ने जहां एक ओर फ्रांसीसी सेना के अन्दर उत्साह बढ़ाया, तो वहीं दूसरी ओर अन्दरूनी कलह की भी वजह बनी।
- ला- बार्डिनों ने अंग्रेजों के साथ एक सन्धि की, जिसके अनुसार 40,000 पौण्ड लेकर मद्रास अंग्रेजों को दे दिया। यह भी कहा जाता है कि उसने 1,00000 की रिश्वत भी ली थी।
- डॉडवेल के अनुसार “डुप्ले और ला-बर्डिनों के बीच के विवाद का सम्बन्ध राष्ट्रीय हित से नहीं था। प्रश्न यह था कि मद्रास से कौन धन अर्जित करेगा, लेकिन वहीं दूसरी ओर डुप्ले ने राष्ट्रीय मुद्दा बनाने की कोशिश की। उसने कहा “ईश्वर के नाम पर अपने सम्राट की प्रतिष्ठा में वृद्धि के लिए और अपने राष्ट्र के सामान्य हित के लिए जो आपको भारत में मानेगा उन्हें हम इस अवसर का लाभ उठाएं। लॉ बार्डिनों के मॉरिशस जाने के बाद मद्रास की पुनः स्थापक सन्धि को ठुकरा दिया। उसने महल पर आक्रमण कर अंग्रेज अधिकारियों को बंदी बना लिया।
अडियार का युद्ध
- मद्रास पर आक्रमण के समय नबाब का अपनी ओर पक्ष लेने के लिए डुप्ले ने उससे वादा किया था कि वह मद्रास इसलिए जीतना चाहता है ताकि अंग्रेजों से लेकर इसे नबाब को दे दे। जब नबाब ने मद्रास की मांग की तो डुप्ले ने इसे देने से इनकार कर दिया तथा मद्रास से लूटा गया माल भी वह अपने पास रखना चाहता था।
- क्रोधित होकर नबाब ने अपने पुत्र महफज खाँ के नेतृत्व में 10,000 घुड़सवार सेना को फ्रांसीसियों पर आक्रमण करने के लिए भेजां संख्या बल में बहुत छोटी सेना होने के बावजूद फांसीसियों ने विशाल नबाब की सेना को बुरी तरह पराजित किया। इतिहास में यह युद्ध सेंट थाम का युद्ध कहलाता है।
- एक्स ला शैपल की सन्धि के द्वारा भारत में भी दोनों कम्पनियों के बीच युद्ध बन्द हो गया। युद्ध की सन्धि के अनुसार मद्रास अंग्रेजों को लौटा दिया गया था तथा इसके बदले फ्रांसीसियों को अमेरिका में लुईसकी प्राप्त हुआ।
प्रथम कर्नाटक युद्ध का महत्व एवं परिणाम
- हालांकि प्रथम कर्नाटक युद्ध ने कोई बुनियादी क्षेत्रीय परिवर्तन नहीं किया फिर भी यह युद्ध भारतीय इतिहास में अलग महत्व रखता है।
- डा. ईश्वरीप्रसाद के अनुसार “इस सन्धि के साथ हम एक ऐसे काल में प्रवेश करते हैं, जिसमें कि भारत में बसने वाले यूरोप के लोग शांत व्यापारियों का जाया उतारकर प्रबल राजनीतिक शक्तियाँ बन गए।
- इसने पूर्वी जगत की सैनिक शक्ति का जो मिथ्य था, उसे ध्वस्त कर दिया तथा यह तय कर दिया कि संख्या बल में कम होने के बावजूद अनुशासित प्रश्चिमी सेनाएं भारतीय सेनाओं को आसानी से पराजित कर सकती है.
- इस युद्ध के परिणाम ने पश्चिमी शक्तियों के मस्तिष्क में यह बात डाल दी कि वह भारत में राजनैतिक शक्ति प्राप्त कर सकते है। इस युद्ध ने एक शक्तिशाली नौसेना के महत्व को पूरी तरह से स्थापित कर दिया।
- डॉडवेल कहते हैं कि, “इससे समुद्री शक्ति के अत्यधिक प्रभाव का प्रदर्शन हुआ।
- एक अन्य महत्वपूर्ण परिणाम यह था कि भले ही युद्ध के बाद फ्रांसीसियों ने जीता हुआ क्षेत्र अंग्रेजों को वापस कर दिया, परन्तु इस युद्ध ने उनकी प्रतिष्ठा में वृद्धि अवश्य की ।
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